Chitravarma

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Chitravarma (चित्रवर्मा) (326 BC) was an ancient King of Kuluta Kingdom in Sindh in Pakistan. At the time of Alexander's invasion king Chitra Verma ruled Baluchistan.[1]

Jat Gotras

Kalwana (कलवाना) people were inhabitants of country Kuluta (कुलूत), whose king was Raja Chitravarma. [2]

History

ठाकुर देशराज लिखते हैं कि जिस समय सिकन्दर ईरान पर हमला करने के लिए बढ़ रहा था, उस समय पर्शिया के अधीश्वर शैलाक्ष (सेल्यूकक्ष) ने सिन्धु देश के राजा सिन्धु सैन के पास, जो कि सिन्धु के जाटों के गणतंत्र के अध्यक्ष थे, सहायता के लिए याचना की। महाराज ने यहां से तीर-कमान और बर्छे धारण करने वाले सैनिकों को उसकी सहायता के लिए भेज दिया। हेरोडोटस ने इस लड़ाई के सम्बन्ध में लिखा है कि सिकन्दर की सेना के जिस भाग पर जेटा लोग झुक जाते थे वही भाग कमजोर पड़ जाता था। उसके योद्धा लोग रथों में बैठकर लड़ते थे। वह अपनी कमान को पैर के अंगूठे से दबाकर और कान की बराबर तानकर तीर छोड़ते थे। सिकन्दर को स्वयं इनके मुकाबले के लिए सामने आना पड़ा था। इसी समय बिलोचिस्तान में राजा चित्रवर्मा राज करता था। कुलूत उसकी राजधानी थी। [3]

सिकन्दर की वापसी में जाट राजाओं से सामना

दलीप सिंह अहलावत[4] के अनुसार व्यास नदी के तट पर पहुंचने पर सिकन्दर के सैनिकों ने आगे बढ़ने से इन्कार कर दिया। इसका कारण यह था कि व्यास से आगे शक्तिशाली यौधेय गोत्र के जाटों के गणराज्य थे। ये लोग एक विशाल प्रदेश के स्वामी थे। पूर्व में सहारनपुर से लेकर पश्चिम में बहावलपुर तक और उत्तर-पश्चिम में लुधियाना से लेकर दक्षिण-पूर्व में दिल्ली, मथुरा, आगरा तक इनका राज्य फैला हुआ था। इनका प्रजातन्त्र गणराज्य था जिस पर कोई सम्राट् नहीं होता था। समय के अनुकूल ये लोग अपना सेनापति योग्यता के आधार पर नियुक्त करते थे। ये लोग अत्यन्त वीर और युद्धप्रिय थे। ये लोग अजेय थे तथा रणक्षेत्र से पीछे हटने वाले नहीं थे। इनकी महान् वीरता तथा शक्ति के विषय में सुनकर यूनानियों का साहस टूट गया और उन्होंने आगे बढ़ने से इन्कार कर दिया। इनके राज्य के पूर्व में नन्द वंश[5] (नांदल जाटवंश) के सम्राट् महापद्म नन्द का मगध पर शासन था जिसकी राजधानी पाटलिपुत्र थी। यह बड़ा शक्तिशाली सम्राट् था। यूनानी लेखकों के अनुसार इसकी सेना में 20,000 घोड़े, 4000 हाथी, 2000 रथ और 2,00,000 पैदल सैनिक थे। सिकन्दर को ऐसी परिस्थिति में व्यास नदी से ही वापिस लौटना पड़ा। [6]

सिकन्दर की सेना जेहलम नदी तक उसी रास्ते से वापिस गई जिससे वह आयी थी। फिर जेहलम नदी से सिन्ध प्रान्त और बलोचिस्तान के रास्ते से उसके सैनिक गये। परन्तु वापिसी का मार्ग सरल नहीं था। सिकन्दर की सेना से पग-पग पर जाटों ने डटकर युद्ध किए। उस समय दक्षिणी पंजाब में मालव (मल्लोई), शिवि, मद्र और क्षुद्रक गोत्र के जाटों ने सिकन्दर की सेनाओं से सख्त युद्ध किया तथा सिकन्दर को घायल कर दिया। कई स्थानों पर तो जाटों ने अपने बच्चों को आग में फेंककर यूनानियों से पूरी शक्ति लगाकर भयंकर युद्ध किया।

मालव-मल्ल जाटों के साथ युद्ध में सिकन्दर को पता चला कि भारतवर्ष को जीतना कोई सरल खेल नहीं है। मालव जाटों के विषय में यूनानी लेखकों ने लिखा है कि “वे असंख्यक थे और अन्य सब भारतीय जातियों से अधिक शूरवीर थे[7]।”

सिन्ध प्रान्त में उस समय जाट राजा मूसकसेन का शासन था जिसकी राजधानी अलोर थी। जब सिकन्दर इसके राज्य में से गुजरने लगा तो इसने यूनानी सेना से जमकर युद्ध किया। इससे आगे एक और जाटराज्य था। वहां के जाटों ने भी यूनानियों से लोहा लिया[8]

सिकन्दर की सेना जब सिंध प्रान्त से सिंधु नदी पर पहुंची थी तो इसी राजा मूसकसेन (मुशिकन) ने अपने समुद्री जहाजों द्वारा उसे नदी पार कराई थी[9]

जब सिकन्दर अपनी सेना सहित बलोचिस्तान पहुंचा तो वहां के जाट राजा चित्रवर्मा ने जिसकी राजधानी कलात (कुलूत) थी, सिकन्दर से युद्ध किया[10]


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-363


अलग-अलग स्थानों पर हुए युद्ध में जाटों ने सिकन्दर को कई बार घायल किया। वह बलोचिस्तान से अपने देश को जा रहा था परन्तु घावों के कारण रास्ते में ही बैबीलोन (इराक़ में दजला नदी पर है) के स्थान पर 323 ई० पू० में उसका देहान्त हो गया[11]। उस समय उसकी आयु 33 वर्ष की थी।

भारत से लौटते समय सिकन्दर ने अपने जीते हुए राज्य पोरस और आम्भी में बांट दिये थे और सिन्ध प्रान्त का राज्यपाल फिलिप्स को बनाया। परन्तु 6 वर्ष में ही, ई० पू० 317 में भारत से यूनानियों के राज्य को समाप्त कर दिया गया और मौर्य-मौर जाटों का शासन शुरु हुआ। इसका वर्णन अध्याय पांच में किया गया है।

References

  1. Ram Swaroop Joon:History of the Jats/Chapter III,p.39
  2. Dr Mahendra Singh Arya, Dharmpal Singh Dudee, Kishan Singh Faujdar & Vijendra Singh Narwar: Ādhunik Jat Itihasa (The modern history of Jats), Agra 1998, p. 230
  3. जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठ-699
  4. जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ.363-364
  5. जाट्स दी ऐनशन्ट रूलर्ज, लेखक बी० एस० दहिया ने पृ० 256 पर लिखा है कि यह कहना उचित है कि नन्द जाट आज नांदल/नांदेर कहे जाते हैं।
  6. भारत का इतिहास, पृ० 47, हरयाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड भिवानी; हिन्दुस्तान की तारीख उर्दू पृ० 161-162)
  7. हिन्दुस्तान की तारीख उर्दू पृ० 162 भारत का इतिहास पृ० 47 हरयाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड, भिवानी।
  8. जाट इतिहास क्रमशः पृ० 695, 192, 695 लेखक ठा० देशराज।
  9. जाट इतिहास क्रमशः पृ० 695, 192, 695 लेखक ठा० देशराज।
  10. जाट इतिहास क्रमशः पृ० 695, 192, 695 लेखक ठा० देशराज।
  11. भारत का इतिहास पृ० 47, हरयाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड भिवानी; हिन्दुस्तान की तारीख उर्दू पृ० 162।

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