Panchajata
Panchajata (पंचजट) or Panchajanya (पंचजन), meaning "five people", is the common name given to five most ancient vedic Kshatriya tribes. It is supposed they are all descendants of the Five Folks and are known by that name for e.g. Yadava for descendants of Yadu,Paurava for descendants of Puru and so on. Some scholars believe they were different tribes who came as different waves of immigrants.
जाटों की प्राचीन निवास भूमि
ठाकुर देशराज[1] ने लिखा है .... जब हम जाटों की प्राचीन निवास भूमि का वर्णन पढ़ते हैं तो कुभा (काबुल) और कृमि (कुर्रम) नदी उसकी पश्चिमी सीमाएं, तिब्बत की पर्वतमाला पूर्वी सीमा, जगजार्टिस और आक्षस नदी उत्तरी सीमा और नर्मदा नदी दक्षिणी सीमा बनाती हैं। वास्तव में यह देश में आर्यों का है जो चंद्रवंशी अथवा यदु, दृहयु तुर्वसु, कुरु और पुरू कहलाते थे। भगवान श्रीकृष्ण के सिद्धांतों को इनमें से प्राय सभी ने अपना लिया था अतः समयानुसार बेशक जाट कहलाने लग गए। इन सभी खानदानों की पुराणों में स्पष्ट और अस्पष्ट निन्दा ही की है। या तो इन्होंने आरंभ से ही ब्राह्मण वैशिष (बड़प्पन) को स्वीकार नहीं किया था या बौद्ध काल में यह प्राय: सभी बौद्ध हो गए थे।
[पृ.147]: बाहलीक, तक्षक, कुशान, शिव, मल्ल, क्षुद्रक (शूद्रक), नव आदि सभी खानदान जिंका कि महाभारत और बौद्ध काल में नाम आता है इन्हीं यदु, दृहयु तुर्वसु, कुरु और पुरू की उत्तराधिकारी शाखाएं थे। बाहलीक लोग कुरुवंशी राजा शांतनु के भाई बाहलीक के वंशज हैं। शिवी यदुओं में उशीनर के वंशज हैं। यह बात हम पहले ही बता चुके हैं। गांधार, पांचाल यह लोग पुरू वंश में थे।
कृष्ण द्वारा ज्ञातिराज्य का प्रस्ताव - उत्तरोत्तर संख्या वृद्धि के साथ ही वंश (कुल) वृद्धि भी होती गई और प्राचीन जातियां मे से एक-एक के सैंकड़ों वंश हो गए। साम्राज्य की लपेट से बचने के लिए कृष्ण ने इनके सामने भी यही प्रस्ताव रखा कि कुल राज्यों की बजाए ज्ञाति (जाति) राज्य कायम का डालो।
सारे यदुओं का एक राष्ट्र हो चाहे वे भोज, शूर, अंधक, वृष्णि, दशार्ण आदि कुछ भी कहलाते हों। इसी तरह सारे कुरुओं का एक जाति राष्ट्र हो; पांचाल, पौरव, गांधार, मद्र, पांडव सब मिलकर एक संघ कायम कर लें। किन्तु इसको कोई क्या कहे कि कम्बखत कुरु लोग और यादव लोग आपस में ही लड़कर नष्ट हो गए। यदि वेदो के पंचजना:, कहे जाने वाले, यदु, कुरु, पुरू, आदि संगठित हो जाते तो आज सारे संसार में वैदिक धर्मी ही दिखाई देते। किंतु ये तो लड़े, खूब लड़े। एक दो वर्ष नहीं, सदियों तक लड़े।