Angadiya
Author:Laxman Burdak, IFS (Retd.) |
Angadia (अंगदीया) is a place mentioned in Ramayana. It was capital of Karupatha. Anand Ram Barua has identified Angadia with Shahabad in Rampur District of Uttar Pradesh.[1]
Variants
- Angadiya (अंगदीया) (AS, p.3)
- Angadiapuri (अङ्गदियापुरी)[2]
Origin
It was founded by Lakshmana son of Angada in Karupatha Country. [3]
Identification
Anand Ram Barua has identified Angadia with present Shahabad in Uttar Pradesh.[4]
History
Hukum Singh Panwar (Pauria)[5] writes that Angada of the dynasty of Sri Rama inhabited and civilized the Carpathians and founded Angadia, a city after his name in that country (Ramayana, Uttar Khand, 102. 118-119)
कारापथ
विजयेन्द्र कुमार माथुर[6] ने लेख किया है ...कारापथ (AS, p.173) 'अंगदं चंद्रकेतुं च लक्ष्मणो-अप्यात्मसंभवौ, शासनाद्रघुनाथस्य चक्रे कारापथेश्वरौ' रघुवंश 15,90 अर्थात रामचंद्र जी के आदेश से लक्ष्मण ने अपने (अंगद और चंद्रकेतु नाम के) पुत्रों को कारापथ का आधीश्वर बना दिया. वाल्मीकि; उत्तर 102, 5 के अनुसार लक्ष्मण के पुत्र अंगद को श्री राम ने कारूपथ नामक देश का राजा बनाया था. इस प्रकार कारूपथ और कारापथ एक ही जान पड़ते हैं. वाल्मीकि; उत्तर 102,8 में करूपथ की राजधानी अंगदीया कही गई है जो पश्चिम की ओर रही होगी क्योंकि अंगद को पश्चिम की ओर भेजा गया था, 'अंगदं पश्चिमां भूमिं चंद्रकेतु मुदङ्मुख' उत्तर 102, 11. श्री न. ला. डे के अनुसार सिंधु नदी के पश्चिमी तट पर (जिला बन्नू पाकिस्तान) स्थित काराबाग ही कारापथ है. मुगलकालीन पर्यटक टेवर्नियर ने इसे काराबत कहा है.
अंगदीया
विजयेन्द्र कुमार माथुर[7] ने लेख किया है ...अंगदीया (AS, p.3) वाल्मीकि-रामायण के अनुसार कारुपथ की राजधानी थी-- 'अंगदीयापुरी रभ्याप्यंगदस्य निवेशिता, रमणीया सुगुप्ता च रामेणाक्लिष्टकर्मणा'। (उत्तर 102, 8) यह नगरी लक्ष्मण के पुत्र अंगद के नाम पर कारुपथ नामक देश में बसाई गई थी। आनंदराम बरुआ के मत में वर्तमान शाहाबाद (उत्तर प्रदेश) अंगदीया नगरी के स्थान पर बसा है।
प्राचीनकाल में यूरोप देश
दलीप सिंह अहलावत[8] लिखते हैं: यूरोप देश - इस देश को प्राचीनकाल में कारुपथ तथा अङ्गदियापुरी कहते थे, जिसको श्रीमान् महाराज रामचन्द्र जी के आज्ञानुसार लक्ष्मण जी ने एक वर्ष यूरोप में रहकर अपने ज्येष्ठ पुत्र अंगद के लिए आबाद किया था जो कि द्वापर में हरिवर्ष तथा अंगदेश और अब हंगरी आदि नामों से प्रसिद्ध है। अंगदियापुरी के दक्षिणी भाग में रूम सागर और अटलांटिक सागर के किनारे-किनारे अफ्रीका निवासी हब्शी आदि राक्षस जातियों के आक्रमण रोकने के लिए लक्ष्मण जी ने वीर सैनिकों की छावनियां आवर्त्त कीं। जिसको अब ऑस्ट्रिया कहते हैं। उत्तरी भाग में ब्रह्मपुरी बसाई जिसको अब जर्मनी कहते हैं। दोनों भागों के मध्य लक्ष्मण जी ने अपना हैडक्वार्टर बनाया जिसको अब लक्षमबर्ग कहते हैं। उसी के पास श्री रामचन्द्र जी के खानदानी नाम नारायण से नारायण मंडी आबाद हुई जिसको अब नॉरमण्डी कहते हैं। नॉरमण्डी के निकट एक दूसरे से मिले हुए द्वीप अंगलेशी नाम से आवर्त्त हुए जिसको पहले ऐंग्लेसी कहते थे और अब इंग्लैण्ड कहते हैं।
द्वापर के अन्त में अंगदियापुरी देश, अंगदेश के नाम से प्रसिद्ध हुआ, जिसका राज्य सम्राट् दुर्योधन ने अपने मित्र राजा कर्ण को दे दिया था। करीब-करीब यूरोप के समस्त देशों का राज्य शासन आज तक महात्मा अंगद के उत्तराधिकारी अंगवंशीय तथा अंगलेशों के हाथ में है, जो कि ऐंग्लो, एंग्लोसेक्शन, ऐंग्लेसी, इंगलिश, इंगेरियन्स आदि नामों से प्रसिद्ध है और जर्मनी में आज तक संस्कृत भाषा का आदर तथा वेदों के स्वाध्याय का प्रचार है। (पृ० 1-3)।
यूरोप अपभ्रंश है युवरोप का। युव-युवराज, रोप-आरोप किया हुआ। तात्पर्य है उस देश से, जो लक्ष्मण जी के ज्येष्ठपुत्र अङ्गद के लिए आवर्त्त किया गया था। यूरोप के निवासी यूरोपियन्स कहलाते हैं। यूरोपियन्स बहुवचन है यूरोपियन का। यूरोपियन विशेषण है यूरोपी का। यूरोपी अपभ्रंश है युवरोपी का। तात्पर्य है उन लोगों से जो यूरोप देश में युवराज अङ्गद के साथ भेजे और बसाए गये थे। (पृ० 4)
कारुपथ यौगिक शब्द है कारु + पथ का। कारु = कारो, पथ = रास्ता। तात्पर्य है उस देश से जो भूमध्य रेखा से बहुत दूर कार्पेथियन पर्वत (Carpathian Mts.) के चारों ओर ऑस्ट्रिया, हंगरी, जर्मनी, इंग्लैण्ड, लक्षमबर्ग, नॉरमण्डी आदि नामों से फैला हुआ है। जैसे एशिया में हिमालय पर्वतमाला है, इसी तरह यूरोप में कार्पेथियन पर्वतमाला है।
इससे सिद्ध हुआ कि श्री रामचन्द्र जी के समय तक वीरान यूरोप देश कारुपथ देश कहलाता था। उसके आबाद करने पर युवरोप, अङ्गदियापुरी तथा अङ्गदेश के नाम से प्रसिद्ध हुआ और ग्रेट ब्रिटेन, आयरलैण्ड, ऑस्ट्रिया, हंगरी, जर्मनी, लक्षमबर्ग, नॉरमण्डी, फ्रांस, बेल्जियम, हालैण्ड, डेनमार्क, स्विट्जरलैंड, इटली, पोलैंड आदि अङ्गदियापुरी के प्रान्तमात्र महात्मा अङ्गद के क्षेत्र शासन के आधारी किये गये थे। (पृ० 4-5)
नोट - महाभारतकाल में यूरोप को ‘हरिवर्ष’ कहते हैं। हरि कहते हैं बन्दर को। उस देश में अब भी रक्तमुख अर्थात् वानर के समान भूरे नेत्र वाले होते हैं। ‘यूरोप’ को संस्कृत में ‘हरिवर्ष’ कहते थे। [9]
External links
References
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.3
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter IV,p.339-340
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.3
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.3
- ↑ The Jats:Their Origin, Antiquity and Migrations/The identification of the Jats, p.
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.173
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.3
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter IV,p.339-340
- ↑ (सत्यार्थप्रकाश दशम समुल्लास पृ० 173)