Bakargarh

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Bakargarh (बाकरगढ़) (or Bakkargarh) is a small village situated in west Delhi.

Location

This village falls under Najafgarh zone. Neighbouring villages are Kair, Mundhela Issapur and Dhansa. All these villages, including Bakkargarh, are close to Haryana border.

Gotra in Bakargarh

History

इतिहास

बाकरगढ़ दिल्ली हरयाणा बॉर्डर पर दिल्ली का आखिरी गाँव है,ये छोटा सा गाँव अपने वीरता और बलिदान के लिए जाना जाता है। 800 साल पहले इस गाँव को खरब गोत के जाट बागर ने बसाया था| उस समय दिल्ली में जाटो में आपस में गोत्रों की लड़ाई चल रही थी तो ऐसे में खरब गोत्र के छोटे छोटे तीन गाँव को डागर गोत्र जो सबसे बड़ा है साउथ-वेस्ट दिल्ली में ख़त्म करना चाहता था। खरब गोत्र को दिल्ली और हरयाणा के मान गोत्र के जाट पंजाब से लेकर आये थे, तो डागर गोत्र के खिलाफ, खरब, मान, गिल, सिद्धू, संधु, काजला गोत्र के गाँव जो अड़ोस पड़ोस में थे, पर अब हरयाणा में है जमकर लडे, जीते और सरदारी बाकरगढ़ के जाटो को मिल गयी। ये इतने दिलेर थे की किसी भी गाँव में अकेले जाकर पूरे गाँव का सर झुकवा देते थे - इस गाँव के हर जाट के पास एक घोडा, एक बन्दूक और 6 तोप थी और एक शानदार किला भी जिसे कोई नहीं जीत पाया। इन्होंने मुगलो को भी खदेड़ा। फिर आये अंग्रेज - 1857 की क्रान्ति जब इनके कानों तक पहुंची तो इन्होंने हथियार उठा लिए। बाकरगढ़ गाँव के पास एक पुलिया है जिस से मुख्य रास्ता झज्जर को जाता था और अंग्रेज यहाँ से आते जाते थे। इस गाँव में 16 जाट 7.6 फ़ीट से ज्यादा लंबे थे जिनमे तेज सिंह जो सिर्फ 17 साल का था सबसे खतरनाक था। उसने इन बाकी लंबे तगड़े जाटों को साथ लेकर पुलिया के नीचे छुप कर बैठना शुरू कर दिया और जब भी अंग्रेज आते तो ये उनको पकड़ कर उनका सर धड़ से उखाड़ देते, सिर्फ बाजुओं के दम्म से। बात दिल्ली तक पहुंची और 3000 के गाँव को उड़ाने के लिए 2000 अंग्रेज भेजे गए। इन जाटो के पास बंदूके थी और तोप भी, तो मुकाबला बराबर का था। लड़ाई हुई पर एक भी अंग्रेज जिन्दा वापिस नहीं गया और बाकरगढ के सिर्फ 14 जवान शहीद हुये,अब अंग्रेज अपनी इज़्ज़त गवा चुके थे तो अब की बार उन्होंने अंग्रेज और हिन्दुओ की 10,000 की फ़ौज भेजी - मुकाबला इतना खतरनाक था की ललकारो की आवाज 14 किलोमीटर तक जा रही थी। इस बार भी अंग्रेजो ने मुंह की खाई पर 400 जाट भी शहीद हुए और अंग्रेज फ़ौज बचे-खुचे सैनिकों के साथ भाग गयी। अंग्रेज समझ चुके थे इनको इनके किले के भीतर नहीं हराया जा सकता। इस बीच तेज सिंह, जिसने अकेले ने इस लड़ाई में 300 अंग्रेजो को मारा था वो एरिया के लार्ड अंग्रेज की पत्नी को उठा लाया और बोला कि इन अंग्रेजो ने हम हिन्दुस्तानियो को मजदूर बनाया, देखो हम इनकी रानी को मजदूर बनाएंगे और उस रॉयल अंग्रेज औरत को जाटो ने रेहट (बैलो की ताकत से कुए से पानी खीचने वाला गोल चक्र) में जोड़ दिया और उस से 3 दिन पानी खिचवाया।

यह बेइज्जती अंग्रेजों से सहन ना हुई और वो थोडे दिन चुप बैठे रहे फिर ईसापुर और ढांसा गाँव के लोगों को रिश्वत देकर जाटों को समझौता करने के लिए बुला लिया। बाक्करगढ़ गाँव के जाटों ने इस्सापुर और ढांसा के लोगों की बात पर यकीन करके अंग्रेजों से मिलने के लिए समय रख दिया। औरतें, छोटे बच्चे और जाट मर्द अब बिना हथियारों के हाथों में फूलों की मालायें लिए खड़े थे। अब कई हज़ार अंग्रेज हथियारों के साथ आये और जाट औरतो और छोटे बच्चों को पकड़ लिया और कहा कि सारे जाट मर्द फांसी पर चढ़ो नहीं तो हर औरत और बच्चों को जिन्दा जलाएंगे। ढांसा और इस्सापुर की इस गद्दारी से जाट वंश ख़त्म हो गया। हर जाट को उनकी पत्नी और बच्चों के सामने फांसी पर लटकाया गया। फिर छोटे बच्चों और औरतो को फांसी पर टांगा गया। इनके पड़ोस के गाँव का एक गिल जाट जमींदार आ कर बोला की गर्भवती औरतों को मत मारो। उनके पेट में बच्चे हैं। यह गलत है, अगर आप उनको छोड़ दोगे तो मैं अपने लगान से हज़ार गुना ज्यादा पैसा दूंगा। पर अंग्रेज नहीं माने। ढांसा और इस्सापुर के लोगों को उचित इनाम और सरकारी नौकरी दी। अंग्रेजों ने पूरे बाकरगढ़ को राख में बदल दिया। अंग्रेजों ने इनकी 6 हज़ार बीघे जमीन ईसापुर और समसपुर खालसा के डागर जाटों को दे दी। भाग्य से इस गाँव की एक जाटणी अपने मायके गयी हुई थी उसके पेट में बच्चा था। जब वह वापिस आई तो उसने गिल, सिद्धू, संधु, मान और काजला जाटो को खूब बुरा भला कहा तो इन गाँव ने उसे शरण दी और उस औरत से एक लड़का पैदा हुआ जिसने बड़ा होकर लड़कर अपनी कुछ जमीन हासिल करी। बेशक यह गाँव सबसे छोटा है पर ये किसी से नहीं दबते और एरिया में अपने गरम खून की वजह से मशहूर हैं।

Notable persons

External links

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References


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