Cimbri
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Cimbri (केम्ब्री/किम्बरी) were a Germanic people who together with the Teutones and the Ambrones fought the Roman Republic between 113 and 101 BC.[1]
Variants
Jat clans
History
The Cimbri were initially successful, particularly at the Battle of Arausio, in which a large Roman army was routed, after which they raided large areas in Gaul and Hispania. In 101 BC, during an attempted invasion of Italy, the Cimbri were decisively defeated by Gaius Marius, and their king, Boiorix, was killed. Some of the surviving captives are reported to have been among the rebelling Gladiators in the Third Servile War.[4]
Roman sources such as Strabo and Tacitus identify these Cimbri with a group living in Jutland.
Origins
Archaeologists have not found any clear indications of a mass migration from Jutland in the early Iron Age. The Gundestrup Cauldron, which was deposited in a bog in Himmerland in the 2nd or 1st century BC, shows that there was some sort of contact with southeastern Europe, but it is uncertain if this contact can be associated with the Cimbrian expedition.[5]
Advocates for a northern homeland point to Greek and Roman sources that associate the Cimbri with the peninsula of Jutland, Denmark. According to the Res gestae (ch. 26) of Augustus, the Cimbri were still found in the area around the turn of the 1st century AD:
- My fleet sailed from the mouth of the Rhine eastward as far as the lands of the Cimbri, to which, up to that time, no Roman had ever penetrated either by land or by sea, and the Cimbri and Charydes and Semnones and other peoples of the Germans of that same region through their envoys sought my friendship and that of the Roman people.
The contemporary Greek geographer Strabo testifies that the Cimbri still existed as a Germanic tribe, presumably in the "Cimbric peninsula" (since they are said to live by the North Sea and to have paid tribute to Augustus).
Migration
Some time before 100 BC many of the Cimbri, as well as the Teutons and Ambrones migrated south-east. After several unsuccessful battles with the Boii and other Celtic tribes, they appeared ca 113 BC in Noricum, where they invaded the lands of one of Rome's allies, the Taurisci.
On the request of the Roman consul Gnaeus Papirius Carbo, sent to defend the Taurisci, they retreated, only to find themselves deceived and attacked at the Battle of Noreia, where they defeated the Romans. Only a storm, which separated the combatants, saved the Roman forces from complete annihilation.
जाट इतिहास और जर्मन जातियां
ठाकुर देशराज[6] के अनुसार हेरोडोटस ने लिखा है कि - मध्य एशिया की बड़ी जेटी जाति में अश्वमेध का रिवाज था और संक्रांति के शुभ अवसर पर यह महोत्सव उनके यहां होता था (पारसी लोगों में तो अश्वमेध नहीं होता फिर हेरोडोटस किस आधार पर उन्हें शाक ही पुकारता है। - ले.) । मध्य ऐशिया में एक अश्व जाति भी जाटों के पड़ोस में रहती थी, वह वाजस्व की संतान के लोग कहे जाते थे। लेकिन पिंकर्टन ने यूरोप में जाटों के साथ सुएवी, कट्टी, केम्ब्री और हेमेन्द्री आदि 6 जातियां बताई हैं। ये सब एल्प और वेजर नदी के किनारे तक फैल गई थीं। वहां उन्होंने युद्ध के देवता महादेवजी के नाम पर एक विशाल स्तंभ खड़ा किया था। अनेक इतिहास लेखकों ने अपनी-अपनी मति से उसे मंगल अथवा बुद्ध का स्तंभ बताया है। ये छः जातियां भारत में क्रम से जाट, अहीर, काछी, कुर्मी, हेमेन्द्री कहलाती हैं। वास्तव में जाटों का और अहीर काछियों आदि का प्रारम्भ से निकट रहना और निकटतम सम्बन्ध पाया जाता है। ये सभी एक ही स्टाक की जगजार्टिस के किनारे की रहने वाली जातियां थीं। जाटों ने यूनान में कर्जसीज को और अर्बेला में दारा को रथों की सेना की सहायता दी थी। इस सेना में 15 हाथी और 200 रथ थे। कर्नल टाड ने हेरोडोटस के आधार पर लिखा है कि इन लोगों से युद्ध करने के लिए सिकन्दर ने स्वयं कमान की थी। वे अपनी भुजाओं के बल से यूनानियों को प्रत्येक आचरण में विफल कर देते थे। उन्होंने सिकन्दर की पर्शिनियो की कमान वाली सेना को अस्तव्यस्त कर दिया था, जिससे उसे दूसरी सेना उनसे भिड़ने के लिए भेजनी पड़ी थी। प्रत्येक जाट ने वह पराक्रम दिखाया कि मानो वह जीत की पक्की अभिलाषा रखता है, किन्तु अर्बोला के युद्ध में दारा की पराजय बदी थी। काछी लोग भी इस युद्ध में बड़ी बहादुरी से लड़े थे।
दलीप सिंह अहलावत[7] लिखते हैं कि विजेता जाट अत्तीला का साम्राज्य कैस्पियन सागर से लेकर राइन नदी (पश्चिमी जर्मनी में) तक फैला हुआ था। तात्पर्य है कि जाटों का निवास व शासन जर्मनी में भी रहा है। ये लोग ईसा से लगभग 500 वर्ष पूर्व जर्मनी में पहुंचे। यूरोप के अन्य देशों इटली, गॉल, स्पेन, पुर्तगाल, इंगलैण्ड और यूनान आदि पर जो जाटों ने आक्रमण किये उनका वर्णन यूरोपीय इतिहास में यही मिलता है कि उसमें अधिकांश जाट लोग जर्मनी और स्कन्धनाभ (स्केण्डेनेविया) के निवासी थे।
श्री मैक्समूलर ने भी जर्मनी में आर्य रक्त स्वीकार किया है। टसीटस ने लिखा है कि :“जर्मन लोगों के रहन-सहन, आकृति, रस्म व रिवाज तथा नित्य कार्यों का जो वृत्तान्त पाया जाता है उससे विदित होता है कि कदाचित् ये लोग और शाक द्वीप (ईरान) के जिट, कठी, किम्बरी (कृमि) और शिवि (चारों जाट) एक ही वंश के हैं।”
आगे यही लिखते हैं कि “जर्मन लोग घोड़े की आकृति बनी हुई देखकर ही सिक्के का व्यवहार करते थे, अन्यथा नहीं। यूरोप के असि जेटी लोग और भारत के अट्टी तक्षक जटी, बुध को अपना पूर्वज मानकर पूजते थे। प्रत्येक जर्मन का बिस्तर पर से उठकर स्नान करने का स्वभाव जर्मनी के शीतप्रधान देश का नहीं हो सकता, किन्तु यह पूर्वी देश का है।”
कर्नल टॉड ने लिखा है कि “घोड़े की पूजा जर्मनी में सू, कट्टी, सुजोम्बी और जेटी (जाट) नाम की जातियों ने फैलाई है, जिस भांति कि स्कन्धनाभ में असि जाटों ने फैलाई।” कर्नल टॉड ने भारत के जाट और राजपूत तथा जर्मन लोगों की समानता के लिए लिखा है कि “चढ़ाई करने वालों और इन सब हिन्दू सैनिकों का धर्म बौद्ध-धर्म था। इसी से स्केण्डेनेविया वालों और जर्मन जातियों और राजपूतों के आचार, विचार और देवता सम्बन्धी कथाओं की सदृश्यता और उनके वीररसात्मक काव्यों का मिलान करने से यह बात अधिकतर प्रमाणित हो जाती है।”
प्रसिद्ध इतिहासज्ञ टसीटस ने लिखा है कि “जर्मनी और स्कन्धनाभ के असि लोग जाटवीर ही थे[8]। जाट इतिहास अंग्रेजी पृ० 36 पर लेफ्टिनेन्ट रामस्वरूप ने लिखा है कि “प्राचीनकाल में जर्मनी पर शिवि गोत्र के जाटों का राज्य व निवास था।”
External links
References
- ↑ "Cimbri (people)". Encyclopædia Britannica Online.
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter III,p.194
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter III,p.194
- ↑ Strauss, Barry (2009). The Spartacus War. Simon and Schuster. pp. 21–22. ISBN 1-4165-3205-6.
- ↑ Kaul, F. & Martens, J. "Southeast European Influences in the Early Iron Age of Southern Scandinavia. Gundestrup and the Cimbri", Acta Archaeologica 66 (1995) 111-161.
- ↑ जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठ-185
- ↑ जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ.395-396
- ↑ आधार लेख - जाट इतिहास पृ० 183 से 185, लेखक ठा० देशराज।