Shveta Naga
Shveta Naga (श्वेत नाग) was a Nagavanshi King. He is the originator of Dhaulya clan.
Variants of name
- Dhaulya Naga (धौल्या नाग) (Rajasthani)
- Shwetanga (श्वेतनाग)
- Swet Naga (स्वेत नाग)
- Shweta Naga (श्वेत नाग)
History
Tejaji's ancestors were Nagavanshi descendant of Shvetanaga, who had five kingdoms in Central India, namely - 1. Khilchipur, 2. Raghaugarh, 3. Dharnawad, 4. Garhkila (Kilkila), and 5. Khairagarh [1]
तेजाजी के पूर्वज
संत श्री कान्हाराम[2] ने लिखा है कि.... [पृष्ठ-62] : रामायण काल में तेजाजी के पूर्वज मध्यभारत के खिलचीपुर के क्षेत्र में रहते थे। कहते हैं कि जब राम वनवास पर थे तब लक्ष्मण ने तेजाजी के पूर्वजों के खेत से तिल खाये थे। बाद में राजनैतिक कारणों से तेजाजी के पूर्वज खिलचीपुर छोडकर पहले गोहद आए वहाँ से धौलपुर आए थे। तेजाजी के वंश में सातवीं पीढ़ी में तथा तेजाजी से पहले 15वीं पीढ़ी में धवल पाल हुये थे। उन्हीं के नाम पर धौलिया गोत्र चला। श्वेतनाग ही धोलानाग थे। धोलपुर में भाईयों की आपसी लड़ाई के कारण धोलपुर छोडकर नागाणा के जायल क्षेत्र में आ बसे।
[पृष्ठ-63]: तेजाजी के छठी पीढ़ी पहले के पूर्वज उदयराज का जायलों के साथ युद्ध हो गया, जिसमें उदयराज की जीत तथा जायलों की हार हुई। युद्ध से उपजे इस बैर के कारण जायल वाले आज भी तेजाजी के प्रति दुर्भावना रखते हैं। फिर वे जायल से जोधपुर-नागौर की सीमा स्थित धौली डेह (करणु के पास) में जाकर बस गए। धौलिया गोत्र के कारण उस डेह (पानी का आश्रय) का नाम धौली डेह पड़ा। यह घटना विक्रम संवत 1021 (964 ई.) के पहले की है। विक्रम संवत 1021 (964 ई.) में उदयराज ने खरनाल पर अधिकार कर लिया और इसे अपनी राजधानी बनाया। 24 गांवों के खरनाल गणराज्य का क्षेत्रफल काफी विस्तृत था। तब खरनाल का नाम करनाल था, जो उच्चारण भेद के कारण खरनाल हो गया। उपर्युक्त मध्य भारत खिलचीपुर, गोहाद, धौलपुर, नागाणा, जायल, धौली डेह, खरनाल आदि से संबन्धित सम्पूर्ण तथ्य प्राचीन इतिहास में विद्यमान होने के साथ ही डेगाना निवासी धौलिया गोत्र के बही-भाट श्री भैरूराम भाट की पौथी में भी लिखे हुये हैं।
Jat Gotras from Swet Naga
- Shvitra (श्वित्र) Shvitr (श्वित्र) Shveta (श्वेत) Shvet (श्वेत) gotra originated from Nagavanshi mahapurusha Shveta Naga (श्वेत). [3]
- Dhaulya (धौल्या) Dhauliya (धौलिया) Dholya (धोल्या) are descendants of Dhaulya Naga (धौल्या नाग). Dhaulya is the Rajasthani version of Shveta in Sanskrit. This gotra of Jats originated from province named Dhaul (धौल) of Nagavansh. [4]
- Dhoreliya (धोरेलिया) clan is derived from Dhaulya clan. They migrated from village Dharoli on the border of Rohtak and Narnaul.[5]
In Mahabharata
Shalya Parva, Mahabharata/Book IX Chapter 44 mentions about all the warriors who came to the ceremony for investing Kartikeya with the status of generalissimo. Shloka 59 mentions about Sweta as under:
- पुत्र मेषः परवाहश च तदा नन्दॊपनन्दकौ
- धूम्रः शवेतः कलिङ्गश च सिद्धार्दॊ वरदस तदा ।।59 ।।
Virata's son Sweta was a great warrior, described as a commander of Matshya army. However the role he played was that of a commander-in-chief, for the whole of Pandava army for Day One. Then when their commander (Sweta) was slain, Arjuna and Krishna, slowly withdrew the troops (for their nightly rest). And then the withdrawal took place of both the armies. Kauravas made shouts of victory. The Pandavass entered (their quarters) cheerlessly, thinking, of that awful slaughter in single combat of their commander. (6,48). (see - Kurukshetra War Day-1)
Shalya Parva, Mahabharata/Book IX Chapter 44 mentions name of Shvetanaga in verse Mahabharata (IX.44.100)
- वृकॊदर निभाश चैव के चिद अञ्जनसंनिभाः]]
- शवेताङ्गा लॊहितग्रीवाः पिङ्गाक्षाश च तदापरे Mahabharata (IX.44.100)
References
- ↑ Sant Kanha Ram: Shri Veer Tejaji Ka Itihas Evam Jiwan Charitra (Shodh Granth), Published by Veer Tejaji Shodh Sansthan Sursura, Ajmer, 2015. p.158
- ↑ Sant Kanha Ram: Shri Veer Tejaji Ka Itihas Evam Jiwan Charitra (Shodh Granth), Published by Veer Tejaji Shodh Sansthan Sursura, Ajmer, 2015. pp.62-63
- ↑ Dr Mahendra Singh Arya, Dharmpal Singh Dudee, Kishan Singh Faujdar & Vijendra Singh Narwar: Ādhunik Jat Itihas (The modern history of Jats), Agra 1998, p. 281
- ↑ Dr Mahendra Singh Arya, Dharmpal Singh Dudee, Kishan Singh Faujdar & Vijendra Singh Narwar: Ādhunik Jat Itihas (The modern history of Jats), Agra 1998 p.258
- ↑ Dr Mahendra Singh Arya, Dharmpal Singh Dudee, Kishan Singh Faujdar & Vijendra Singh Narwar: Ādhunik Jat Itihas (The modern history of Jats), Agra 1998, p.258
Back to The Ancient Jats