Harbaks Garhwal
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Harbaks Garhwal (born:1880) (हरबक्स गढ़वाल) or Hari Baksh Ram Garhwal was from village Garhwalon Ki Dhani, District Sikar, Rajasthan. He was Freedom fighter and leader of Shekhawati farmers movement. He was one of the leaders of Khandelawati of whom Jagirdars were very scared. [1]
जाट जन सेवक
ठाकुर देशराज[2] ने लिखा है ....हरबख्श जी गढवाल - [पृ.467]: पिताजी का नाम चौधरी कनीराम, गोत्र गढ़वाल, निवास: गढ़वालों की ढाणी, खंडेलावाटी। जन्म संवत 1937 विक्रमी (1880 ई.) भादों सुदी 10 रविवार।
यह ढाणी आपके प्रपिता (दादा) चौधरी भैरोसिंह जी ने आबाद की। इससे पहले आप के बुजुर्ग सलेदीपुरा में रहते थे।
[पृ.468]: जो इस ढाणी से एक मील दूर है। आपके दादा-हर पांच भाई थे:1. पूराराम, 2. उदाराम, 3. परसराम, 4. भैरोसिंह, 5 मुन्ना राम। इनमें से पिछले दो इस ढाणी में आ गए। कहा जाता है आपके बुजुर्ग गंगा किनारे गढ़मुक्तेश्वर में रहते थे। वहां से चलकर यहां आबाद हुए इसलिए गढ़वाल कहलाते हैं। इधर गढ़वालों के कंवरपुरा, धीरजपुरा, रानोली, रणजीतपुरा आदि गांव है।
भैरोसिंह जी के दो पुत्र थे चौधरी कन्नीराम और मानाराम। मानाराम जी के लछूराम, हीरासिंह और धनसिंह 3 पुत्र थे। कनीराम जी के हरबख्श जी और बलदेव जी दो पुत्र थे। हरबख्श जी के कोई पुत्र नहीं है। बलदेव जी के झूथा सिंह जी एक पुत्र हैं। जिनके कि इस समय तक जगदीश सिंह और नानू सिंह दो पुत्र हैं।
चौधरी हरबख्श जी खंडेलावाटी के मशहूर आदमियों में से एक हैं। आप बड़े ही दिलावर आदमी है। नारनोल की ओर से चौधरी रामनारायण जी आहीर इधर आया करते थे। वह आर्य समाजी ख्याल के आदमी थे। उनसे ही आपको आर्य समाज का रंग लगा और सन् 1932 में ठाकुर भोला सिंह ने आपको यज्ञोपवित दिया।
आप सन् 1925 में पुष्कर जाट महोत्सव में गए थे। आप वहां नुक्ता न करने का व्रत लेकर के आए थे। तब से आपने नुक्ता नहीं किया है। यहां तक कि नुक्ता करने वालों के घर खाते भी नहीं और न उनसे लेन देन का व्यवहार करते हैं।
झुञ्झुणु महोत्सव आप देखने गए थे। उसके एक साल बाद आपने अपने गांव में खंडेला वाटी जाट पंचायत का जलसा करवाया जिसके कि सभापति चौधरी लादूराम जी थे।
आपका खंडेला छोटापाना से संवत 1965 से संघर्ष
[पृ.469]: है। आप को ठिकाने के आदमी धोखे से पकड़कर गढ़ में ले गए, वहां से आप उनसे भाग गए। ठिकाने ने आपके यहां लूट भी कराई जिस पर आपने जयपुर में फरियाद की जिसका कोई अच्छा नतीजा नहीं निकला।
संवत 1987 में आपने उन सात गांवों का नेतृत्व किया जिनको ठिकाना ने अधिक लगान देने के लिए बेइज्जत किया। किसानों ने सामूहिक रुप से जायद लगान के लिए इनकार कर दिया। यह आंदोलन 5 वर्ष तक रहा। ठिकाना घुड़सवार लेकर गांव पर चढ़ता किंतु गांव के लोग मिलकर अपनी इबादत करते । सातो गांव में मुसीबत पड़ने पर इकट्ठे होने के अजब-अजब संकेत तय हो गए थे।
नीमेडा के भोमियों से भी आपका संघर्ष चलता रहा। आप कौमी कामों के लिए खूब मदद करते हैं। खंडेला वाटी में आपकी बहादुरी, ईमानदारी और सच्चाई की धूम है। हरबक्श जी के एक चालाक पुत्र नारायण सिंह हैं।
जीवन परिचय
शेखावाटी में किसान आन्दोलन और जनजागरण के बीज गांधीजी ने सन 1921 में बोये. सन् 1921 में गांधीजी का आगमन भिवानी हुआ. इसका समाचार सेठ देवीबक्स सर्राफ को आ चुका था. सेठ देवीबक्स सर्राफ शेखावाटी जनजागरण के अग्रदूत थे. आप शेखावाटी के वैश्यों में प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने ठिकानेदारों के विरुद्ध आवाज उठाई. देवीबक्स सर्राफ ने शेखावाटी के अग्रणी किसान नेताओं को भिवानी जाने के लिए तैयार किया. भिवानी जाने वाले शेखावाटी के जत्थे में प्रमुख व्यक्ति थे. [3]
सन 1925 में पुष्कर सम्मलेन के पश्चात् शेखावाटी में दूसरी पंक्ति के जो नेता उभर कर आये, उनमें आपका प्रमुख नाम हैं [4]
किसान आंदोलन
ठाकुर देशराज[5] ने लिखा है....बटाई के तरीकों में सुधार कराने, मनमाने लगान न बढ़ाने और मानवता का व्यवहार करने के लिए यहां के जाट किसानों ने कई बार प्रयत्न किए। जिनमें पहला प्रयत्न खंडेला के सात गांवों का बधा हुआ लगान न देने संबंधी था जो सन् 1930 में आरंभ हुआ और शायद 1933 में समाप्त हुआ।
[पृ.443]: इसके संचालक चौधरी हरबख्श जी गढ़वाल थे। इसके अलावा सन् 1934 में जमीनों का बंदोबस्त करने संबंधी आंदोलन हुआ। जिस का संचालन किसान पंचायत ने किया।
References
- ↑ Jaton Ke Vishva Samrajya aur Unake Yug Purush Part 1/Chapter 10,p.94
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.467-469
- ↑ राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश वाया शेखावाटी, 2012, पृ. 70
- ↑ राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), जयपुर, 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 100
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.442-43
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