Jaton Ke Vishva Samrajya aur Unake Yug Purush Part 1/Chapter 10
- इस भोलेनाथ को इतना तंग न करो कि यह तांडव नृत्य कर बैठे - सीकर की किसान सभा में सर छोटूराम
राजस्थान के किसान अंग्रेजों से ज्यादा जागीरदारों से दुखी थे। वे अंग्रेजों के साथ ही सामंतों का शासन समाप्त करना चाहते थे। अंग्रेजों से सीधे टकराव की नौबत तो कम ही आती थी। अंग्रेजों के ज़ोर से उनके सामंत ज्यादा जुल्म करते थे। इस कारण विरोध सीधा जमीन से उठा। सीकर जिले की जमीन की यह विशेषता है कि यहाँ का सोया किसान जब जागता है तो फतेह हासिल कर दम लेता है। उनकी दहाड़ दूर-दूर तक सुनाई देती है। इस कारण ही उन्हें देश-प्रदेश के अन्य किसानों का नेतृत्व करने का सौभाग्य मिला है । इस सदी के तीसरे व चौथे दशक के किसान आंदोलन के दौरान अनेक जाट किसानों ने शहादत दी, जेल गए, यातनाएं सही, घर-बार छोड़े,घर लुटवाए, गोलियों की बौछारों के आगे सीना ताना लेकिन वे वीर झुके नहीं। तब जाट वीरांगनाओं में भी जुझारूपन था।
सीकर के सोये हुये किसान शेरों को जगाने का श्रेय ठाकुर देशराज, जघीना (भरतपुर) को जाता है। पुष्कर के जाट अधिवेशन के बाद यह जागृति ज्यादा आई। इस आंदोलन में सबसे ज्यादा जुझारूपन पलथाना के बुरड़कों ने दिखाया। सूबेदार - चन्द्र सिंह (मदू), हरी सिंह, हरदेव सिंह, जेसा राम, भाना राम, गणपत राम, व पेमा राम आदि यहाँ के प्रमुख सेनानी थे। यहाँ के बुरड़क रतनगढ़ तहसिल के सुलखनिया गांव में बसे हैं। उन्होने भी मेघसिंह के नेतृत्व में ( 6 भाई - मेघ सिंह, धाला राम, अमरा राम, मुखा राम, माना राम व लिखमा राम) सामंती उत्पीड़न के विरुद्ध हर संघर्ष मे ताल ठोक कर भाग लिया तथा फतेह हासिल की। अमरा राम आजाद हिन्द फौज के सेनानी रहे। श्री मेघ सिंह एवं धाला राम ने मरू-भूमि में शिक्षा प्रसार हेतु स्वामी नित्यानंद से खिचिवाला जोहड़े में विद्यालय शुरू करवाया।
पलथाना के अलावा कूदन, गोठड़ा, बाटड़ानाऊ,अलफसर, स्वरूपसर, आकवा, भारणी, गोवर्धनपुरा, गढ़वाल की ढाणी (खंडेला), सांखू भी क्रांतिकारी गाँव थे। कूदन के कालूराम सुण्डा प्रबल सेनानी थे। जिले में किसानों के कत्ले आम कांड हुये जिनमें कूदन, गोठड़ा, बठोठ, खुडी, सिंहासन, भारणी , बेसवा- बागदौड़ा आदि प्रमुख हैं। यहाँ के लोहटसिंह निठारवाल (बठोठ) ने
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अंग्रेज़ी छावनी (नासीराबाद) को लूटकर अंग्रेजों को सीधी चुनौती दी। जिले के पहले शहीद चौधरी शंभू सिंह भूकर (गोठड़ा) व रतन सिंह बाजिया (फकीरपुरा) थे। गोठड़ा के चेताराम, टीकूराम, तुलछा राम भूकर भी शहीद हुये। अजीतपुरा के आशाराम पिलानिया, बठोट के कुरड़ा राम ढाका, दीपपुरा की नाथी देवी, बेसवा के नाथू राम व गुमाना राम कुलहरी भी स्वाधीनता के लिए जुझार हुये। भारणी में शिवबक्ष राम खर्रा व निठारवाल जाट शहीद हुये। सामंतों ने अनेक गांवों को लूट लिया था, अनेक क्रांतिकारी वीरों को लंबे समय तक फरार रहना पड़ा था। इस युग में सामंती अत्याचार के डर से क्रांतिकारियों को लोग पानी पिलाने से भी डरते थे।
प्रमुख किसान सेनानियों में थे :
- पृथ्वी सिंह - गोठड़ा। ये जाट क्रांतिकारियों में सबसे ज्यादा विद्वान व्यक्ति थे।
- रघुनाथ सिंह ढाका - नेतड़वास
- घीसा राम व लूणा राम देवन्दा - खाचरियावास
- किसान सिंह व पन्नेसिंह बाटड़ - बटड़ानाऊ
- ईश्वर सिंह भामू - भैरुपुरा
- लेख राम - कसवाली
- मास्टर कन्हैया लाल व कुमारनारायन - स्वरूपसर
- रणमल सिंह - कटराथल
- चौधरी लादू राम बिजारनिया - गोरधनपुरा । ये अति स्मृद्ध शेर दिल इंसान थे।
- हरीबक्ष राम गढ़वाल - गढ़वालों की ढाणी (खंडेला)। ये खंडेलावाटी के बेताज बादशाह थे। जागीरदार उनके सामने कांपते थे।
जाट किसानों ने राजपूत सामंतों के साथ ही कायमखनी सामंतों से से भी संघर्ष किया तथा बेसवा में बलिदान हुये। भारणी के गणेश राम खर्रा ने महरौली में सामंतों को सीधी चुनौती दी। खाचरियावास के जमींदारों के आतंक से भी लूणा राम व घीसा राम देवन्दा ने लोहा लिया।
सीकर के इन जाटों को जगाने में हरयाणा और भरतपुर के आर्य समाजियों का भी विशेष योगदान रहा। इन्हें जब भी जरूरत पड़ी सर छोटूराम हाजिर रहे। सीकर के किसानों ने फतेह हासिल की। इनके संघर्ष की गाथाएँ देश के बड़े-बड़े अखबारों में छपती थी तथा लंदन में इनकी गूंज रही। इन क्रातिकारियों के साथ देश भक्त जनता की भावनाएं थी। गोठड़ा के पृथ्वी सिंह ने बहुत थोड़ी उम्र पाई। अगर वे ज्यादा जिंदा रहते तो सरदार पटेल की तरह उभरते। पंजाब व पश्चिमी भारत में शिक्षा की अलख जगाने वाले स्वामी केशवानन्द मंगलूणा के ही थे लेकिन उनके भाईयों ने जमने नहीं दिया। इस कारण उनकी कार्य-स्थली पश्चिम भारत रही। चौधरी कुंभाराम आर्य के पूर्वज भी कूदन गाँव के ही थे। कोलिडा के पन्नेसिंह जाखड़ शाही व्यक्तित्व के थे। वे अनेक बार जागीरदारों से टकराए और फतेह हासिल की।
सीकर जिले के किसान आंदोलन में सिर्फ जाट किसानों ने ही जुल्म का प्रतिरोध किया। कुछ लोग अवश्य साथ थे। भोली जनता ने राजा का पक्ष लिया।
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सीकर की किसान जागृति में उत्तर प्रदेश के अध्यापकों जैसे - कूदन के मास्टर चंद्रभान सिंह, हुकम सिंह, चौधरी तेज सिंह भड़ौन्दा, सूरज मल साथी, मास्टर फूल सिंह, मास्टर भरत सिंह, मास्टर दौलत सिंह का भी सहयोग रहा। चौधरी देवी सिंह बोचाल्या ने भी सीकर में काफी समय बिताया।
बधालों की ढाणी के चौधरी मांगुजी ने भी समय पर जाट क्रांतिकारियों की सेवा की।
चूना राम ढाका ने 84 मन बाजरा क्रांतिकारियों को खिला दिया
हरदेवा राम जाखड़ भिखनवासी, धाना राम ढाका, डालमास, चौधरी मुकुंदा राम व रिड़मल जी बाटड़, बाटड़ानाऊ , गोपाल राम फानिन, रसीदपुरा, रूपा राम भाखर आदि भी सक्रिय क्रांतिकारी वीर थे। आजादी कुछ गिने चुने व्यक्तियों का प्रयास नहीं थी, बल्कि यह हर आम देशभक्त भारतीय द्वारा अपनी क्षमता अनुसार किए प्रयासों का परिणाम थी। इस संक्षिप्त लेख में विस्तृत विवरण असंभव है।