Chandrabhan Singh Tomar
Master Chandrabhan Singh Tomar, from Bamnauli (Baraut, Bagpat, Uttar Pradesh), was a teacher and social worker in Sikar district of Rajasthan, who took great pains in awakening of farmers of Rajasthan. He was leading Freedom Fighter who took part in Shekhawati farmers movement in Rajasthan .
Teacher and motivator
He initially joined at village Hanumanpura in Jhunjhunu district where he taught Har Lal Singh. He was then teacher in villages Palthana, Kudan, Kasli, Mittadbas, Piprali in Sikar district of Rajasthan. He was treasurer of Jat Boarding House Sikar. His wife was named Buddhimati. He was a key person in awakening the farmers of Sikar district which led to abolition of jagirdari system.
चौधरी चंद्रभान का जीवन परिचय
मास्टर प्यारेलाल गुप्ता ने कर्मनिष्ठ अध्यापकों का एक ऐसा समूह खड़ा कर दिया जो स्वतंत्रता की भावना से पूरी तरह ओतप्रोत थे. इसी प्रकार के व्यक्ति मास्टर चंद्रभान थे, वे मेरठ जिले के बामडोली ग्राम के निवासी थे. ये राष्ट्रीय विचारों के युवक थे. सन् 1925 में सरदार हरलाल सिंह के गाँव हनुमानपुरा में पाठशाला खोली तब उसका भार इन्हीं को सौंपा. वे शिक्षा के साथ आर्य समाज के सिद्धांतों का भी प्रचार करते थे. जनजागृति करना उनका प्रथम कार्य था. वे सीकर प्रजापति महायज्ञ में स्वागत समिति के सचिव भी थे. आगे चलकर ये जाट पंचायत के सचिव बने. सीकर ठिकाने ने इन्हें गिरफ्तार कर खूब यातनाएं दी. शिक्षा प्रचार उनका मूल मन्त्र रहा. उन्होंने खादी आश्रम भी स्थापित किया था. [1]
सीकर की जन-जागृति में पलथाना का मुख्य स्थान है. इसी स्थान पर सर्वप्रथम सीकर में महायज्ञ करने का निर्णय किया था. इसी प्रकार यहीं सर्वप्रथम ठिकाने के आतंक को भंग किया था और यहीं से अत्याचार की शुरुआत ठिकाने की फ़ौज द्वारा पाठशाला के भवन को ध्वस्त करके और यहाँ के मास्टर चंद्रभान सिंह को मारपीट कर गिरफ्तार करके की थी. [2]
मास्टर चंद्रभानसिंह गिरफ्तार
मास्टर चंद्रभानसिंह गिरफ्तार - ठिकानेदार और रावराजा ने जाट प्रजापति महायज्ञ सीकर सन 1934 के नाम पर जो एकता देखी, इससे वे अपमानित महसूस करने लगे और प्रतिशोध की आग में जलने लगे. जागीरदार किसान के नाम से ही चिढ़ने लगे. एक दिन किसान पंचायत के मंत्री देवी सिंह बोचल्या और उपमंत्री गोरु सिंह को गिरफ्तार कर कारिंदों ने अपमानित किया. लेकिन दोनों ने धैर्य का परिचय दिया. मास्टर चंद्रभान उन दिनों सीकर के निकट स्थित गाँव पलथाना में पढ़ा रहे थे. स्कूल के नाम से ठिकानेदारों को चिड़ होती थी. यह स्कूल हरीसिंह बुरड़क जन सहयोग से चला रहे थे. बिना अनुमति के स्कूल चलाने का अभियोग लगाकर रावराजा की पुलिस और कर्मचारी हथियारबंद होकर पलथाना गाँव में जा धमके. मास्टर चंद्रभान को विद्रोह भड़काने के आरोप में गिरफ्तार किया और हथकड़ी लगाकर ले गये. [3]
किसान नेता घरों में पहुँच कर शांति से साँस भी नहीं ले पाए थे कि सीकर खबर मिली कि मास्टर चंद्रभान सिंह को 24 घंटे के भीतर सीकर इलाका छोड़ने का आदेश दिया है और जब वह इस अवधि में नहीं गए तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. ठिकाने वाले यज्ञ में भाग लेने वाले लोगों को भांति-भांति से तंग करने लगे. मास्टर चंद्रभान सिंह यज्ञ कमेटी के सेक्रेटरी थे और पलथाना में अध्यापक थे. सीकर ठिकाने के किसानों के लिए यह चुनौती थी. मास्टर चंद्रभानसिंह को 10 फ़रवरी 1934 को गिरफ्तार करने के बाद उन पर 177 जे.पी.सी. के अधीन मुक़दमा शुरू कर दिया था. [4]
यह चर्चा जोरों से फ़ैल गयी की मास्टर चन्द्रभान को जयपुर दरबार के इशारे पर गिरफ्तार किया गया है. तत्पश्चात ठिकानेदारों ने किसानों को बेदखल करने, नई लाग-बाग़ लगाने एवं बढ़ा हुआ लगान लेने का अभियान छेड़ा. (राजेन्द्र कसवा: p. 122-23)
पीड़ित किसानों ने बधाला की ढाणी में विशाल आमसभा आयोजित की, जिसमें हजारों व्यक्ति सम्मिलित हुए. इनमें चौधरी घासीराम, पंडित ताड़केश्वर शर्मा, ख्यालीराम भामरवासी, नेतराम सिंह, ताराचंद झारोड़ा, इन्द्राजसिंह घरडाना, हरीसिंह पलथाना, पन्ने सिंह बाटड, लादूराम बिजारनिया, व्यंगटेश पारिक, रूड़ा राम पालडी सहित शेखावाटी के सभी जाने-माने कार्यकर्ता आये. मंच पर बिजोलिया किसान नेता विजय सिंह पथिक, ठाकुर देशराज, चौधरी रतन सिंह, सरदार हरलाल सिंह आदि थे. छोटी सी ढाणी में पूरा शेखावाटी अंचल समा गया. सभी वक्ताओं ने सीकर रावराजा और छोटे ठिकानेदारों द्वारा फैलाये जा रहे आतंक की आलोचना की. एक प्रस्ताव पारित किया गया कि दो सौ किसान जत्थे में जयपुर पैदल यात्रा करेंगे और जयपुर दरबार को ज्ञापन पेश करेंगे. तदानुसार जयपुर कौंसिल के प्रेसिडेंट सर जॉन बीचम को किसानों ने ज्ञापन पेश किया. (राजेन्द्र कसवा: p. 123)
मास्टर चंद्रभानसिंह को छुड़ाने के लिए मुख्य जाट किसान सीकर में माजी साहिबा की धर्मशाला में इकट्ठे हुए. सीकर ठिकाने द्वारा मास्टर चंद्रभानसिंह को छोड़ना तो दूर किसान नेताओं को चेतावनी दी की तत्काल धर्मशाला खाली कर दें. तब किसान नेता शामपुरा गाँव में इकट्ठे हुए. शामपुरा गाँव जयपुर राज्य के अधीन था. किसानों ने इस अवसर पर एक मेमोरियल तैयार किया जिसमें सीकर ठिकाने की ज्यादतियों का वर्णन किया गया था और किसानों के हित में मांगें रखी गयी थी. 200 किसानों का एक दल जयपुर के लिए रवाना हुआ तो उन्हें सीकर व रींगस से रेल में नहीं बैठने दिया गया. तब वे 18 फ़रवरी 1934 को पैदल ही कुंवर रतनसिंह भरतपुर के नेतृत्व में जयपुर के लिए रवाना हुए. [दी नेशनल काल, 25 फ़रवरी, 1934, पृ.8] जयपुर में वे जयपुर सरकार के वाइस प्रेसिडेंट सर जॉन बिचम से मिले और 14 सूत्री मांगें पेश की. [5]
जब सीकर ठिकाने को मालूम हुआ की किसान उसके खिलाफ जयपुर गए हैं तो ठिकाने वाले और चिढ़ गए और जाट नेताओं के खिलाफ गिरफ़्तारी के वारंट जरी कर दिए. 5 मार्च 1934 को मास्टर चंद्रभान के मुकदमें में जब पृथ्वी सिंह, चौधरी हरीसिंह, तेज सिंह और बिरदाराम लौट रहे थे, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. इससे पहले 20 आदमी और गिरफ्तार किये जा चुके थे. इनमें ईश्वरसिंह भैरूपुरा भी थे. उन्होंने काठ में देने का विरोध किया तो उन्हें उल्टा डालकर काठ में दे दिया गया और उस समय तक उसी प्रकार काठ में रखा जब तक उनको इस परेशानी से बुखार न आ गया. [अर्जुन, 1 मार्च 1934] फतेहपुर के के एक तहसीलदार ने तो बाजार में सौदा खरीदने आये और पिराणी के चौधरी मुकुन्दसिंह को गिरफ्तार कर लिया और जब उसका भतीजा कारण पूछने आया तो उसे भी पीटा गया. आकवा, ढहर का बास आदि गाँवों में बिना वारंट के गिरफ्तारियां हुईं, वो भी एक-एक दो-दो की नहीं, आठ-आठ और दस-दस दिन की. [6]
सीकर में जागीरी दमन
ठाकुर देशराज[7] ने लिखा है .... जनवरी 1934 के बसंती दिनों में सीकर यज्ञ तो हो गया किंतु इससे वहां के अधिकारियों के क्रोध का पारा और भी बढ़ गया। यज्ञ होने से पहले और यज्ञ के दिनों में ठाकुर देशराज और उनके साथी यह भांप चुके थे कि यज्ञ के समाप्त होते ही सीकर ठिकाना दमन पर उतरेगा। इसलिए उन्होंने यज्ञ समाप्त होने से एक दिन पहले ही सीकर जाट किसान पंचायत का संगठन कर दिया और चौधरी देवासिह बोचल्या को मंत्री बना कर सीकर में दृढ़ता से काम करने का चार्ज दे दिया।
उन दिनों सीकर पुलिस का इंचार्ज मलिक मोहम्मद नाम का एक बाहरी मुसलमान था। वह जाटों का हृदय से विरोधी था। एक महीना भी नहीं बीतने ने दिया कि बकाया लगान का इल्जाम लगाकर चौधरी गौरू सिंह जी कटराथल को गिरफ्तार कर लिया गया। आप उस समय सीकरवाटी जाट किसान पंचायत के उप मंत्री थे और यज्ञ के मंत्री श्री चंद्रभान जी को भी गिरफ्तार कर लिया। स्कूल का मकान तोड़ फोड़ डाला और मास्टर जी को हथकड़ी डाल कर ले जाया गया।
उसी समय ठाकुर देशराज जी सीकर आए और लोगों को बधाला की ढाणी में इकट्ठा करके उनसे ‘सर्वस्व स्वाहा हो जाने पर भी हिम्मत नहीं हारेंगे’ की शपथ ली। एक डेपुटेशन
[पृ 229]: जयपुर भेजने का तय किया गया। 50 आदमियों का एक पैदल डेपुटेशन जयपुर रवाना हुआ। जिसका नेतृत्व करने के लिए अजमेर के मास्टर भजनलाल जी और भरतपुर के रतन सिंह जी पहुंच गए। यह डेपुटेशन जयपुर में 4 दिन रहा। पहले 2 दिन तक पुलिस ने ही उसे महाराजा तो क्या सर बीचम, वाइस प्रेसिडेंट जयपुर स्टेट कौंसिल से भी नहीं मिलने दिया। तीसरे दिन डेपुटेशन के सदस्य वाइस प्रेसिडेंट के बंगले तक तो पहुंचे किंतु उस दिन कोई बातें न करके दूसरे दिन 11 बजे डेपुटेशन के 2 सदस्यों को अपनी बातें पेश करने की इजाजत दी।
अपनी मांगों का पत्रक पेश करके जत्था लौट आया। कोई तसल्ली बख्स जवाब उन्हें नहीं मिला।
तारीख 5 मार्च को मास्टर चंद्रभान जी के मामले में जो कि दफा 12-अ ताजिराते हिंद के मातहत चल रहा था सफाई के बयान देने के बाद कुंवर पृथ्वी सिंह, चौधरी हरी सिंह बुरड़क और चौधरी तेज सिंह बुरड़क और बिरदा राम जी बुरड़क अपने घरों को लौटे। उनकी गिरफ्तारी के कारण वारंट जारी कर दिये गए।
और इससे पहले ही 20 जनों को गिरफ्तार करके ठोक दिया गया चौधरी ईश्वर सिंह ने काठ में देने का विरोध किया तो उन्हें उल्टा डालकर काठ में दे दिया गया और उस समय तक उसी प्रकार काठ में रखा जब कि कष्ट की परेशानी से बुखार आ गया (अर्जुन 1 मार्च 1934)।
उन दिनों वास्तव में विचार शक्ति को सीकर के अधिकारियों ने ताक पर रख दिया था वरना क्या वजह थी कि बाजार में सौदा खरीदते हुए पुरानी के चौधरी मुकुंद सिंह को फतेहपुर का तहसीलदार गिरफ्तार करा लेता और फिर जब
[पृ 230]: उसका भतीजा आया तो उसे भी पिटवाया गया।
इन गिरफ्तारियों और मारपीट से जाटों में घबराहट और कुछ करने की भावना पैदा हो रही थी। अप्रैल के मध्य तक और भी गिरफ्तारियां हुई। 27 अप्रैल 1934 के विश्वामित्र के संवाद के अनुसार आकवा ग्राम में चंद्र जी, गणपत सिंह, जीवनराम और राधा मल को बिना वारंटी ही गिरफ्तार किया गया। ढहर का बास में 8 आदमी पकड़े गए और कटराथल में जहा कि जाट स्त्री कान्फ्रेंस होने वाली थी दफा 144 लगा दी गई।
ठिकाना जहां गिरफ्तारी पर उतर आया था वहां उसके पिट्ठू जाटों के जनेऊ तोड़ने की वारदातें कर रहे थे। इस पर जाटों में बाहर और भीतर काफी जोश फैल रहा था। तमाम सीकर के लोगों ने 7 अप्रैल 1934 को कटराथल में इकट्ठे होकर इन घटनाओं पर काफी रोष जाहिर किया और सीकर के जुडिशल अफसर के इन आरोपों का भी खंडन किया कि जाट लगान बंदी कर रहे हैं। जनेऊ तोड़ने की ज्यादा घटनाएं दुजोद, बठोठ, फतेहपुर, बीबीपुर और पाटोदा आदि स्थानों और ठिकानों में हुई। कुंवर चांद करण जी शारदा और कुछ गुमनाम लेखक ने सीकर के राव राजा का पक्ष ले कर यह कहना आरंभ किया कि सीकर के जाट आर्य समाजी नहीं है। इन बातों का जवाब भी मीटिंगों और लेखों द्वारा मुंहतोड़ रूप में जाट नेताओं ने दिया।
लेकिन दमन दिन-प्रतिदिन तीव्र होता जा रहा था जैसा कि प्रेस को दिए गए उस समय के इन समाचारों से विदित होता है।
जाट जन सेवक
ठाकुर देशराज[8] ने लिखा है ....चंद्रभान जी सीकर - [पृ.310]: जन्म मंगसिर सुदी 7 संवत 1965 विक्रमी पिता चौधरी भोलू सिंह जी गोत्र सलकलायन, गांव बामनोली जिला मेरठ। इस गोत के जिला मेरठ के 84 गांव है। आप तीन भाई हैं। दो छोटे भरत सिंह और चरण सिंह। भरत सिंह
[पृ.311]: खेती करते हैं। चरणसिंह जी नागौर में महेश्वरी स्कूल के हेडमास्टर हैं। आप सन् 1925 के दिसंबर में सरदार हरचरण सिंह के घर गांव हनुमानपुरा शेखावाटी में आए। हरलाल सिंह जी को लिखना पढ़ना सिखाया। सन् 1929 से 1938 तक सीकर के कूदन, पलथाना में कासली मितड़बास, पिपराली में अध्यापक का काम किया। जाट महायज्ञ के स्वागत मंत्री रहे। सन् 1934 में यज्ञ के बाद दो दफा गिरफ्तार हुए। 3-3 माह जेल में रहे।
सन 1938 से सीकर में दुकान करते हैं। इस समय जाट बोर्डिंग सीकर के खजांची हैं। आपके 3 पुत्र और दो पुत्रियां हैं। हरि सिंह, शेर सिंह, किशोर सिंह लड़कों के नाम हैं। हरि सिंह, शेर सिंह पढ़ते हैं। आपकी धर्मपत्नी पढ़ी लिखी है। उनका बुद्धिमती देवी नाम है। लड़की रामदुलारी देवी और शांति देवी है। वह भी पढ़ती हैं।
आप सेवा संघ सीकर के मंत्री हैं। और हिंदू सभा सीकर राज के उप मंत्री हैं। स्वभाव से बहुत मीठे और मिलनसार हैं। सीकर के लोगों को आप की ईमानदारी पर विश्वास है। इसमें संदेह नहीं सीकर में जो जागृति है उसमें मास्टर चंद्रभान का हाथ अवश्य रहता है।
आप करते ज्यादा और कहते कम प्रकृति के मनुष्य में से हैं। इसलिए हर दिल अजीज हैं।
बाहरी कड़ियाँ
References
- ↑ डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: राजस्थान स्वर्ण जयंती प्रकाशन समिति जयपुर के लिए राजस्थान हिंदी ग्रन्थ अकादमी जयपुर द्वारा प्रकाशित 'राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम के अमर पुरोधा - सरदार हरलाल सिंह' , 2001 , पृ. 20
- ↑ डॉ पेमाराम: शेखावाटी किसान आन्दोलन का इतिहास, 1990, p.85
- ↑ राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), जयपुर, 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 122
- ↑ डॉ पेमाराम: शेखावाटी किसान आन्दोलन का इतिहास, 1990, p.91
- ↑ डॉ पेमाराम: शेखावाटी किसान आन्दोलन का इतिहास, 1990, p.92
- ↑ डॉ पेमाराम: शेखावाटी किसान आन्दोलन का इतिहास, 1990, p.93
- ↑ Thakur Deshraj: Jat Jan Sewak, 1949, p.228-230
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.310-311
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