Jat Itihas Ki Smriddhi Ke Liye Pustakalayon Ki Awashyakta

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जाट इतिहास की समृद्धि के लिए पुस्तकालयों की स्थापना आवश्यक

जाट समाज द्वारा मंदिर, धर्मशाला, छात्रावास, विद्यालयों की स्थापना अच्छी बात है. सामाजिक रूप से यह संगठनात्मक सहभागिता के कार्य हैं जोकि रचनात्मक प्रवृत्ति के द्योतक हैं. समाज के सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक उन्नति में सहायक रहे हैं. पहले कहा जाता था कि जाट इतिहास के पृष्ठ ईरान से इलाहाबाद तक बिखरे पड़े हैं उन्हें संकलित करने वाले चाहिए. बाद में वैज्ञानिक शोध और मानव विज्ञान की खोज ने जाटों का रक्त संबंध दक्षिण भारत और यूरोप तक माना है.

जाटों पर शोध कार्य के लिए अध्ययन सामग्री का अभाव

जाटों पर शोध करने वाले शोधकर्ता जाटों पर अध्ययन सामग्री के अभाव में कार्य करने से पीछे हट जाते हैं. हमारी सजातीय राष्ट्रीय स्तर की संस्थाएं इस और विचार ही नहीं करती कि हम क्या उपाय करें कि शोधकर्ता आकर्षित होकर जाटों पर शोध कार्य करें. इसके लिए प्रचुर मात्रा में शोध सामग्री और संदर्भ पुस्तकों का संकलन हो. जाटों पर शोध करने वाले शोधकर्ताओं को देश के बड़े-बड़े पुस्तकालयों में भटकना पड़ता है. उसे यह भी अध्ययन करके तय करना पड़ता है कि किन-किन पुस्तकों में जाटों से संबंधित सामग्री मिल पाएगी. पत्रिका प्रकाशन के इन 45 वर्षों में पत्रिका कार्यालय में अनेकानेक शोधार्थी स्वयं अपने सोच से संबंधित सामग्री के लिए आ चुके हैं अथवा फोन से संपर्क कर चुके हैं. सभी की परेशानी यही रहती है. इसलिए प्राय: अन्य बिरादरी के शोधार्थी जाटों पर शोध कार्य को छोड़ देते हैं, और दूसरा विषय (Topic) ले लेते हैं. केवल सजातीय शोधार्थी ही अपने शोध कार्य को भावनायुक्त होने के कारण पूर्ण करते हैं. वह अपने इतिहास की समृद्धि के लिए स्वयं अनेक कष्ट एवं सुविधाओं के बावजूद अपने कार्य को संकल्पित होकर पूर्ण करते हैं. जबकि जाटों पर शोध का विस्तृत क्षेत्र खाली पड़ा है. इस कमी की पूर्ति हेतु हमें अच्छे उच्च स्तरीय समृद्ध पुस्तकालयों की स्थापना करना चाहिए.

अखिल भारतीय युवा जाट महासभा के प्रयास

सन् 1988-89 में अखिल भारतीय युवा जाट महासभा ने दिल्ली में जाट भवन और उसमें केंद्रीय जाट शोध पुस्तकालय स्थापित करने का प्रयास किया था. उस समय मैं दिल्ली में महाराजा सूरजमल शिक्षण संस्था के मासिक सूरज सुजान का संपादन कर रहा था. स्वर्गीय देवेंद्र खोखर, फुलवर सिंह चाहर (डिप्टी डायरेक्टर उद्यान), सुधीर तेवतिया (केंद्रीय जल आयोग), नरेंद्र खोत और विशेष सहयोगी ओ पी अग्रे, रूपसिंह चाहर, जगदीश सिनसिनवार ने डॉक्टर बलबीर सिंह जी के दिशा निर्देश में इस महत्वपूर्ण सामाजिक कार्य के लिए भाग दौड़ करके रात दिन एक कर दिया. दिल्ली में भूमि मिलना आसान कार्य न था. डॉ बलबीर सिंह जी जोकि महाराजा सूरजमल शिक्षा संस्थान के संस्थापक महामंत्री रहे थे, उन्हें सामाजिक कार्यों का विशेष अनुभव भी था. हमें किशनगढ़ गांव में पक्का तालाब गांव वालों की ओर से इस कार्य हेतु देने पर सहमति व्यक्त की थी जिसका क्षेत्रफल लगभग 5000 गज था. दिल्ली में इतनी जगह निशुल्क मिलना बहुत बड़ी उपलब्धि थी. गांव वालों ने ईंट पत्थर लगाकर कब्जे किए हुए थे. गांव वालों के साथ एक बैठक हुई और कब्जेदारों ने अपने कब्जे छोड़ने की सहमति दिल्ली में जाट भवन के लिए सहर्ष देदी और सहमति पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए.

अखिल भारतीय जाट समाज सेवा ट्रस्ट का पंजीयन

जाट भवन के विधिवत संचालन हेतु अखिल भारतीय जाट समाज सेवा ट्रस्ट का पंजीयन कराया गया. ट्रस्ट के पदाधिकारी में देवेंद्र खोखर-अध्यक्ष, महेंद्र सिंह उपाध्यक्ष, राजेंद्र फौजदार-महासचिव, फूलवर सिंह चाहर-कोषाध्यक्ष, ओमप्रकाश चौधरी- प्रचार सचिव नियुक्त हुए. जाट भवन के शिलान्यास आयोजन 2 अक्टूबर 1990 निर्माण स्थल किशनगढ़ महरौली पर हुआ. समारोह में दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश के सैकड़ों महिला पुरुषों ने भाग लिया. समारोह की अध्यक्षता अखिल भारतीय जाट महासभा के अध्यक्ष कैप्टन भगवान सिंह चाहर ने की. समारोह के विशेष अतिथि सुप्रसिद्ध उद्योगपति सी एल वर्मा थे.

जाट भवन हेतु ट्रस्ट ने योजना बनाई थी कि जिलेवार कमरे निर्माण की जिम्मेदारी जाट बाहुल्य जिलों को सौंपी जाए और बड़े हाल और पुस्तकालय के निर्माण हेतु अलग से सामूहिक/व्यक्तिगत दान लिया जावे. समारोह में विभिन्न जिलों के प्रतिनिधियों ने 40 कमरे निर्माण की घोषणा की और ₹5,00,000/- का आश्वासन दिया. लगभग ₹20,000/- नगद प्राप्त हुए. समारोह में मुख्य अतिथि तत्कालीन नागरिक आपूर्ति मंत्री नाथूराम मिर्धा आरक्षण विरोधी आंदोलन के कारण बहुत इच्छा होते हुए भी सिक्योरिटी ने नहीं आने दिया.

शिलान्यास के कार्यक्रम स्थगित

गांव के एक विजातीय ने ईर्ष्यावश कहा कि तालाब पर तो गांव वालों के आपस में मुकदमे न्यायालय में चल रहे हैं. हालांकि हम गांव की सहमति पहले ही ले चुके थे. अतः सर्व समिति से तय किया


[पृ.6]: गया कि शिलान्यास के कार्यक्रम को स्थगित कर दिया जाए और न्यायालय के वादों को समाप्त कराकर उचित अवसर आने पर शिलान्यास किया जावे. इस प्रकार दुर्भाग्यवश समाज का एक महत्वपूर्ण कार्य तत्कालीन परिस्थितियों वस और एक विजातीय व्यक्ति के द्वारा जानबूझकर शंका व्यक्त करने पर रुक गया. इसके बाद उसी गांव के एक युवा ने पुस्तकालय हेतु 800 गज भूमि ट्रस्ट को प्रदान की, जिसमें फुलवर सिंह चाहर की अहम भूमिका थी. उसके लिए दिल्ली, जयपुर और विभिन्न प्रकाशकों, दुकानदारों से लगभग 600 पुस्तकें जाट इतिहास पर संकलित की गई थी. उस स्थल पर कई आयोजन ट्रस्ट द्वारा कराए गए जिसमें केंद्रीय मंत्री कुंवर नटवर सिंह, रामू वालिया आदि पधारे थे. दिल्ली विकास प्राधिकरण द्वारा आसपास की बिल्डिंग तोड़ दी किंतु जाट भवन को नहीं छुआ. देखरेख के अभाव में बाद में वह सभी पुस्तकें डॉक्टर बलबीर सिंह द्वारा चौधरी छोटूराम जी गांव सांंपला में खोले गए पब्लिक स्कूल के पुस्तकालय में स्थानांतरित कर दी गई थी.

महाराजा सूरजमल शिक्षा संस्थान

आज 33 वर्ष बाद भी समाज की स्थिति जस-की-तस है. हां, सूरजमल शिक्षा संस्थान समाज की धनाढ्य और साधन संपन्न संस्था है. उसका पुस्तकालय शोध कार्य के लिए अब काफी संपन्न हो गया है. जाटों से संबंधित काफी पुस्तकें वहाँ उपलब्ध हैं. यह जाट समाज सेवा ट्रस्ट के केंद्रीय पुस्तकालय की स्थापना के उद्देश्य को पूर्ण कर रहा है. जबकि देश के हिंदी भाषी क्षेत्रों में जाट धर्मशालाओं, छात्रावासोंं एवं सजातीय विद्यालयों, संस्थानों में ऐतिहासिक पुस्तकों से संपन्न पुस्तकालयों का होना भी अति आवश्यक है. हमारी संस्थाओं को उस ओर प्रमुखता देनी चाहिए. तभी जाटों के इतिहास पर अधिकतम शोध कार्य संभव है.

इतिहासकार उपेंद्रनाथ शर्मा की राय

इतिहासकार उपेंद्रनाथ शर्मा ने एक बार जाट समाज पत्रिका के कार्यालय पर बातचीत के दौरान बताया कि जाट अपने इतिहास के प्रति बहुत ही नीरस और निष्क्रिय हैं. उन्होंने राजपूतों से तुलना करते हुए कहा कि वह अपने इतिहास के प्रति बहुत सजग और क्रियाशील हैं, सामाजिक रूप से और व्यक्तिगत रूप से भी. उनकी संस्थाएं-इतिहास सेमिनार आयोजित करती हैं और प्रतिष्ठित इतिहासकारों को बुलाकर बहुत सम्मानित करती हैं तो निश्चय ही इतिहासकार भी उनके प्रति सद्भाव रखते हैं. अनेक व्यक्ति हैं जो अलग-अलग क्षेत्रोंं में कार्य कर रहे हैं- कोई रियासतों के पूर्व संचालकों से सामग्री पुराने दस्तावेज, पांडुलिपियां आदि एकत्र कर रहा है, कोई रियासतों जमीदारों के चित्र संकलित कर रहा है तो कोई राजवाड़ों के कहानी-किस्से संकलित करके अपने साहित्य संस्कृति इतिहास को संपन्न कर रहा है.

वर्तमान समय में प्रयास

वर्तमान समय में यदि हम अपने समाज की बात करें तो सामाजिक पत्र-पत्रिकायें विषम परिस्थितियों में कार्य कर रही हैंं. जयपुर के लक्ष्मण राम बुरडक जी आईएफएस (LR Burdak) जोकि वन अधिकारी से सेवा निवृत्ति के पश्चात जाट इतिहास की सभी विधाओं पर डिजिटल क्षेत्र (आधुनिक) में जाटलैंड वेबसाइट (Jatland.com) के माध्यम से महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं. बाड़मेर के जोगाराम जी सारण निरंतर जाट इतिहास के लेखन और पुस्तक संकलन एवं गांव में पुस्तकालय स्थापित करने का स्तुतीय कार्य कर रहे हैं. इनसे पूर्व स्वामी ओमानंद जी और स्वामी केशवानंद जी का भी पुस्तक प्रेम किसी से छिपा नहीं है. उनके विद्यालयों और आश्रमों में जाट इतिहास पर काफी सामग्री शोधार्थियों के लिए उपलब्ध है. उन्होंने जाटों से संबंधित पुस्तकालयों और संग्रहालय्यों की स्थापना की. हमें हिंदी भाषी प्रदेशों में कम से कम पांच-पांच जाट पुस्तकालयों की स्थापना करनी चाहिए.

स्रोत - सम्पादकीय लेख, जाट समाज, सितम्बर-अक्टूबर, 2023, p.5-6