Jawad
Jawad (जावद) is a town and tahsil in Nimach district in Madhya Pradesh.
Jat Gotras
- Baja (बाजा),
- Bajya (2), बाज्या
- Faras (1), फरस
- Gandhi (1), गाँधी
- Garoriya (1), गरोलिया/गरोरिया
- Mahla (1), महला
- Pipaliya (2), पीपलया
- Saran (1), सारण
- Saudu (1), सौदु
मध्यकाल (600-1200 ई.) के जाट राज्यों का वर्णन: मौर्य
ठाकुर देशराज[1] ने लिखा है.... मौर्य - मध्यकाल अर्थात राजपूती जमाने में इनका राज्य चित्तौड़ में था। बाप्पा रावल जिसे कि गहलोतों का विक्रमादित्य कहना चाहिए चित्तौड़ के मौर्य राजा मान के ही यहां सेनापति बना था। 'हिंदू भारत का उत्कर्ष' के लेखक श्री राव बहादुर चिंतामणि विनायक वैद्य लिखा है कि राजा मान से बाप्पा ने चित्तोड़ को अपने कब्जे में कर लिया। यहां हम इस बात को और साफ कर देना चाहते हैं कि राजा मान बौद्ध धर्म का अनुयाई था। इस प्रांत में हारीत नाम का साधु नवीन हिंदूधर्म का प्रचार कर रहा था। 'स्रोत चरितामृत' में भी इस बात को स्वीकार किया है कि हारीत ने बाप्पा को इसलिए काफी मदद दी कि वह उनके मिशन को पूरा करने के लिए योग्य पुरुष था। हारीत अपने षड्यंत्र में सफल हुआ। सारी फ़ौज और राज्य के वाशिंदे राजा मान के खिलाफ हो गए और मान से चित्तौड़ छीन लिया।
[पृ.120]: सीवी वैद्य ने इस घटना का जिस तरह वर्णन किया है उसका भाव यह है। बाप्पा रावल चित्तौड़ के मोरी राजा का सामंत था। रावल के माने छोटे राजा के होते हैं। उदयपुर के उत्तर में नागदा नाम का जो छोटा सा गांव है, वहीं बाप्पा रावल राज्य करता था। आसपास में बसे हुए भीलों पर उसका राज्य था। भीलों की सहायता से ही उसने अरबों का आक्रमण विफल किया था। नवसारी के एक चालुक्यों संबंधी शिलालेख से है पता लगता है कि अरबों ने मौर्यों (शायद के ही मौर्यों) पर भी आक्रमण किया था। हम ऐसा अनुमान कर सकते हैं कि हारित ऋषि ने बाप्पा को मौर्य राजा की सेना में धर्म रक्षा के हेतु भर्ती होने की सलाह दी होगी। कालक्रम से बाप्पा को चित्तौड़ का सर्वोच्च पद प्राप्त हो गया था। यह कैसे हुआ इसमें कई दंतकथाएं हैं। एक तो यह है कि चित्तौड़ के सब सरदारों ने मिलकर राजा के विरुद्ध विप्लव कर दिया और उसे पदच्युत करके बाप्पा को चित्तौड़ का अधीश्वर बनाया। बात कुछ भी हो, इसके बाद मोर्य कुल का राज्य चित्तौड़ से नष्ट हो गया।
अब विचारना यह है कि मान मोर्य से चित्तौड़ का राज्य कब निकल गया। चित्तौड़ में मान मौर्य का जो शिलालेख मिला है उस पर संवत 770 अंकित है अर्थात सन् 713 में मान आनंद से राज्य कर रहा था। अरबों ने जो मौर्य राज्य पर आक्रमण किया था उसका समय सन् 738 नवसारी के
[पृ.121]: चालुक्य के शिलालेख के अनुसार माना जाता है। तब हम यह ख्याल कर सकते हैं कि यदि सचमुच अरबों ने चित्तौड़ के मौर्य राज्य पर हमला किया था तो मान राजा सन् 738 तक तो चित्तौड़ में राज्य कर ही रहे थे।*बाप्पा ने उनसे यह राज्य सन् 740 के इधर-उधर हड़प लिया होगा।
यहां यह बताना उचित होगा कि मान के साथी-संगाति चित्तौड़ के छोड़कर बड़े दुख के साथ जावद (ग्वालियर राज्य) की ओर चले गए। ये मौर्य जाट अपना निकास चित्तौड़ से बताते हैं। वे कहते हैं कि ऋषि के श्राप से हमें चित्तौड़ छोड़ना पड़ा। यह ऋषि दूसरा कोई ओर नहीं हारीत है। कहा जाता है कि भाट ग्रन्थों में मान राजा को बाप्पा का भांजा कहा है। हमारे ख्याल से तो वैसा ही था जैसा कि धर्म वीर तेजाजी मीणा लोगों को मामा कहकर पुकारा था। उस जमाने में कोई किसी से रक्षा चाहता तो मामा कहकर संबोधित करता था और वह आदमी जिसे मामा कहा जाता था तनिक भी नाराज न कर खुश होता था।
एक बात और भी है कि बाप्पा के बाद ही तो उसका खानदान राजपूतों में (हारीत से दीक्षित होकर) गिना जाता है। तब हम यह मान लें कि जाट गहलोत और राजपूत गहलोत यहीं से गहलोतों की
* किंतु डॉट राजस्थान 729 में बाप्पा को चितौड़ का अधीश्वर होना मानता है।
[पृ.122]: दो श्रेणियां हो गई इन महाराज ने चित्तौड़ में एक सरोवर भी खुदवाया था जो मानसरोवर कहलाता है। भाट ग्रंथों से टाड साहब ने जो वर्णन बाप्पा के संबंध में दिया है वह तो अलिफलैला अथवा पुराणों के अधिकार गप्प से मिलता है। यथा- उनकी मां ने कहा मैं चित्तौड़ के सूर्यवंशी राजा की बहिन हूँ। झट बाप्पा जिसने आज तक नगरों के दर्शन भी नहीं किए थे चित्तौड़ में पहुंचता है। राजा केवल बाप्पा के यह कहने भर से कि मैं तेरा भांजा हूं उसे बड़े आदर से अपने यहां रखता है। राजा के संबंध सामंत राजा को और बाप्पा को इतना आकर्षित देखकर नाराज़ हो जाते हैं और राजा का उस समय तक तनिक भी साथ नहीं देती जब उस पर चढ़कर शत्रु आता है। बाप्पा जिसके पास कि हारीत के दिए हुये दिव्यास्त्र और गोरखनाथ की दी हुई तलवार थी, शत्रुओं को हरा देता है।* किंतु विजयी देश से लौटकर चितौड़ नहीं आता, अपनी पितृभूमि गजनी को चला जाता है।† उस काल वहां
* गुरु गोरखनाथ 13-14वीं सदी के बीच हुये हैं। कुछ लोग उन्हें आल्हा-उदल का समकालीन मानते हैं, जो कि 13वीं शदी में मौजूद थे। किंतु बाप्पा पैदा हुआ था आठवीं सदी में, फिर गोरखनाथ उस समय कहां से आ गया।
† गजनी बाप्पा के पितृों की भूमि कहां से आई? वहां तो यादव वंशी कई पीढ़ी से राज करते थे। यह भाटों की गप्प है।
[पृ.123]: गजनी में एक म्लेछ सलीम राज करता था। उसको गद्दी से हटाकर एक एक सूर्यवंशी को गद्दी पर बैठाया और खुद ने सलीम म्लेछ की लड़की से शादी कर ली। अब चित्तोड़ को लौटे। इधर जो नाराज सामामन्त गण थे वे बाप्पा के साथ मिल गए और उन्होंने चित्तोड़ को छीनने के लिए बाप्पा का साथ दिया। बाप्पा के इस कार्य के लिए कर्नल टॉड ने उसको कृतघ्न और दूराकांक्षी जैसे बुरे शब्दों से याद किया है। बाप्पा ने राजा होकर 'हिंदू-सूर्य' 'राजगुरु' और 'चकवे' की पदवियां धारण की। इसके बाद बापपा ने ईरान, तूरान, कंधार, काश्मीर, इस्पहान, काश्मीर, इराक और काफिरिस्तान के राजाओं को जीता तथा उनकी लड़कियों से शादी की। और जब वह मरा तो हिंदू मुसलमान सबने उसकी लाश पर गाड़ने और जलाने के लिए झगड़ा किया। जब कफन उठा कर देखा तो केवल फूल लाश की जगह मिले।
हम कहते हैं भाट लोगों की यह कोरी कल्पना है। ऐतिहासिक तथ्य इतना ही है कि बाप्पा एक होनहार युवक था। बौद्ध विरोधी हारीत ने उसे शिक्षा दीक्षा दी। नागदा के आसपास के भीलों को उसका सहायक बना दिया। वह अपने भीलों की एक सेना के साथ मान राजा के नौकर हो गया। उधर हारीत अपना काम करता रहा। अवसर पाकर बौद्ध राजा मान को हटाकर बाप्पा को चित्तौड़ का अधीश्वर बना दिया। उस समय चित्तौड़ एक संपन्न राज्य था। भील जैसे वीर बाबा को सहायक मिल गए वह आगे प्रसिद्ध
[पृ.124]: होता गया। हम तो कहते हैं कि अग्निकुण्ड के चार पुरुषों की भांति ही राजस्थान में बाप्पा नवीन हिंदू धर्म के प्रसार के लिए हितकर साबित हुआ। अतः हिंदुओं ने उसे 'हिंदुआं सूरज' कहा तो आश्चर्य की बात नहीं। धीरे-धीरे मेवाड़ से वे सब राज्य नष्ट हो गए जो मौर्य के साथी थे। सिंध के साहसी राय मौर्य का राज्य चच ने और चित्तौड़ का हारीत ने नष्ट कर दिया। इस तरह से सिंध और मेवाड़ से मौर्य जाट राज्य का खात्मा ही कर दिया गया।*
* चीनी यात्री ह्वेनसांग ने चित्तौड़ के मौर्य को सिंध वालों का संबंधी लिखा है! टाड चित्तौड़ के मौर्य को परमारों की शाखा लिखते हैं, किंतु सीवी वैद्य का मत उन्हें मौर्य ही मानता है।
Villages in Jawad tahsil
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Notable persons
- Suresh Bajya - Jawad, Nimach, Mob:9981666768[2]
- Gautam Lal Jat-9424041572/ 9993920464
- Ramesh Chandra Choudhari 9685028284/ 9098484849
External links
References
- ↑ Thakur Deshraj: Jat Itihas (Utpatti Aur Gaurav Khand)/Shashtham Parichhed, pp.119-124
- ↑ Jat Vaibhav Smarika Khategaon, 2010, p. 82
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