Kumaon

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(Redirected from Karachala)
Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Kumaon and Garhwal divisions of Uttarakhand

Kumaon (कुमायूँ) or Kumaun is one of the two regions and administrative divisions of Uttarakhand, the other being Garhwal. It includes the districts of Almora, Bageshwar, Champawat, Nainital, Pithoragarh, and Udham Singh Nagar. Nainital is the administrative centre of Kumaon Division.

Variants

Location

It is bounded on the north by Tibet, on the east by Nepal, on the south by the state of Uttar Pradesh, and on the west by the Garhwal region.

Origin

Kumaon is believed to have been derived from "Kurmanchal", meaning land of the Kurmavatar (the tortoise incarnation of Lord Vishnu, the preserver according to Hinduism). During the time of the British control of the region, between 1815 and 1857 it was also known as Kemaon.[1]

History

Historically ruled by the kings of Katyuri and Chand Dynasties, the Kumaon division was formed in 1816, when the British reclaimed this region from the Gorkhas, who had annexed the erstwhile Kingdom of Kumaon in 1790. The division initially consisted of three districts, Kumaon, Terai and Garhwal, and formed the northernmost frontier of the Ceded and Conquered Provinces in British India, that later became North Western Provinces in 1836, United Provinces of Agra and Oudh in 1902, and United Provinces in 1937.

Important towns of Kumaon

It is home to a famous Indian Army regiment, the Kumaon Regiment. Important towns of Kumaon are Haldwani, Nainital, Almora, Pithoragarh, Rudrapur, Kichha, Kashipur, Pantnagar, Mukteshwar Ranikhet.

चंपावती

विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है ... 1. चंपावती (AS, p.323) = कुमायूं की प्राचीन राजधानी

कराचल

विजयेन्द्र कुमार माथुर[3] ने लेख किया है ... कराचल (AS, p. 141) संभवत: 'कूर्माचल' (कुमाऊँ) जिस पर मुहम्मद बिन तुग़लक़ ने 1335 ई. के लगभग आक्रमण किया था। यह नाम तत्कालीन मुस्लिम इतिहासकारों द्वारा लिखा गया है।


सन 1223 ई. के बालेश्वर मन्दिर के ताम्रपत्र से ज्ञात होता है कि, समकालीन नेपाल नरेश 'कराचल्ल देव' ने कुमाऊँ की राजधानी चम्पावत के निकट अपने एक अलग राज्य का विस्तार कर लिया था। परिणामस्वरूप कालि कुमाऊँ की अनेक ठकुराइयाँ कराचल्ल देव को कर देने लगी थीं। अत: यह आभास होता है कि, कुमाऊँ के एक विस्तृत भू-भाग सहित वह समस्त पर्वतीय भू-क्षेत्र, जिस पर कराचल्ल देव का अधिकार स्थापित हो गया था, 'कराचल' राज्य कहा जाने लगा हो।[4]

कूर्माचल

विजयेन्द्र कुमार माथुर[5] ने लेख किया है ...कूर्माचल (AS, p.219): कूर्माचल आज के कुमायूँ (उत्तराखंड) का प्राचीन पौराणिक नाम है। इसका एक अन्य नाम 'कुमारवन' भी मिलता है। वर्तमान अल्मोड़ा तथा नैनीताल के ज़िले कुमायूँ में स्थित हैं। संभवत: दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद तुग़लक़ ने 1355 ई. के लगभग कूर्माचल के प्रदेश पर आक्रमण किया था, जिसमें उसकी सेना के अधिकांश सैनिक मारे गये थे। 'तारीख-ए-फिरोजशाही' के लेखक जियाउद्दीन बरनी ने इसका नाम 'कराचल' लिखा है और इब्नबतूता ने कराजल पहाड़ और दिल्ली से दस मंज़िल दूर बताया है। जियाउद्दीन बरनी के अनुसार कराचल हिंद और चीन के बीच में स्थित था। (दे.कुमायूं)

कुमायूं

विजयेन्द्र कुमार माथुर[6] ने लेख किया है ...कुमायूं (AS, p.202) उत्तर प्रदेश का प्राचीन पौराणिक नाम कुर्माचल है. कुमायूं में सातवीं सदी में चंद्रवंशी नरेशों का शासन प्रारंभ हुआ था. इनके समय में कुमायूं ने पर्याप्त उन्नति की थी. तत्पश्चात कत्यूरी शासकों के समय में अल्मोड़ा, नैनीताल आदि कुमायूं में सम्मिलित थे. हेनरी इलियट ने कत्यूरी शासकों को खस जाति का सिद्ध करने का प्रयत्न किया है परंतु कत्यूरी लोग स्वयं को अयोध्या के सूर्यवंशी राजाओं का वंशज मानते थे. कहा जाता है कि मोहम्मद तुगलक ने जिस कराचल नामक पहाड़ी राज्य पर विफल आक्रमण किया था वह कूर्माचल ही था. पश्चातवर्ती काल [p.203]: में उत्तर प्रदेश के रूहेलों ने भी कुमायूं पर आक्रमण करके भीमताल, कटारमल, लखनपुर आदि के मंदिरों को तोड़ा-फोड़ा था. 1768 ई. में यहाँ गोरखों का शासन स्थापित हुआ और नेपाली युद्ध के पश्चात 1816 ई. में हिमालय के अन्य पर्वतीय प्रदेशों के साथ कुमायूं भी अंग्रेजी राज्य का अंग बन गया.

कुमायूं परिचय

कुमाऊँ उत्तराखण्ड की राज्य में प्रशासनिक सुविधा के उद्देश्य से बनाऐ गये दो मुख्य संभाग (मंडल) में से एक है। दूसरा मण्डल है गढ़वाल। कुमाऊँ संभाग (मंडल) में नैनीताल, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा , बागेश्वर, चम्पावत तथा उधमसिंह नगर जनपद सम्मिलित हैं जबकि गढवाल संभाग में पौडी गढ़वाल, टिहरी गढ़वाल, उत्तरकाशी, देहरादून, चमोली, रुद्रप्रयाग तथा हरिद्वार जनपद शामिल है। कुमाऊँ का प्राचीन पौराणिक नाम 'कूर्माचल' है। कुमाऊँ में प्रशासनात्मक इकाई इसमें नेपाल के पश्चिम हिमालय पर्वत की बाहरी श्रेणियाँ, तराई और भाभर की दो पट्टियाँ सम्मिलित हैं।

इतिहास: कुमाऊँ में प्राचीन काल में किन्नर, किरात और नाग लोग रहते थे। तदनंतर कुमाऊँ में खस लोग आए और इन लोगों को पराजित कर यहाँ बहुत दिनों तक राज्य करते रहे। नवीं शती ई. के आसपास कत्यूरी वंश ने अपना प्रभुत्व स्थापित किया। कदाचित ये लोग शक थे। यह वंश 1050 ई. तक राज्य करता रहा। उसके बाद के तीन-साढ़े तीन सौ वर्ष के बीच अनेक वंश के राजाओं का अधिकार रहा किंतु उनके संबंध की जानकारी उपलब्ध नहीं है। 1400 ई. के लगभग चंद्रवंश के अधिकार में यह प्रदेश आया। भारतीचंद्र, रतनचंद, किरातीचंद, माणिकचंद, रुद्रचंद के पश्चात् 17 वीं शती में बाजबहादुरचंद्र (1638-78 ई.) राजा हुए। उन्होंने तिब्बत पर आक्रमणकर उसे अपने अधिकार में कर लिया। 18वीं शती में रुहेलों में कुमाऊँ पर आक्रमण किया और अनेक मंदिर ध्वस्त किए। उन्होंने स्वयं तो अपना राज्य स्थापित नहीं किया किंतु चंद्रवंश की स्थिति इतनी नाजुक हो गई कि नेपाल के गोरखा शासकों ने उसपर अधिकार कर लिया। 1815 ई. में अंग्रेज़ों ने इसे गोरखों से ले लिया और यह भारत का एक अंग बन गया। इस प्रदेश के निवासी मुख्यत: ब्राह्मण, राजपूत और शिल्पकार हैं। दूसरी से छठीं शती ई. तक इस प्रदेश पर बौद्ध धर्म का प्रभाव रहा। उस समय अधिकांश खस और शिल्पकारों ने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया था। 12वीं शताब्दी के पश्चात् उस प्रदेश पर हिन्दू धर्म का प्रभाव बढ़ा।

पौराणिक मान्यता: पौराणिक आख्यानों के अनुसार अपने पिता दक्ष के यहाँ यज्ञ के अवसर पर पति महादेव का अपमान देखकर पार्वती ने कुमाऊँ में ही अग्निप्रवेश किया था। स्वर्गयात्रा के समय पांडव यहीं आए थे ऐसा महाभारत में कहा गया है।

भूगोल: कुमाऊँ में 1850 ई. तक तराई और भाभ्र क्षेत्रों में दुर्गम और घने जंगल थे, जिनमें केवल जंगली जानवर रहा करते थे। धीरे-धीरे जंगलों को साफ़ किया गया तथा पहाड़ पर रहने वाले लोगों का ध्यान इधर आकर्षित हुआ। पहाड़ी लोग गर्मी और जाड़े में नीचे आकर इन क्षेत्रों में खेती करते हैं तथा वर्षा में पहाड़ों पर लौट जाते हैं। कुमाऊँ में विशाल पर्वतश्रेणियाँ हैं। 140 मील लंबे तथा 40 मील चौड़े इस पहाड़ी क्षेत्र में लगभग 30 ऐसी चोटियाँ हैं, जिनकी ऊँचाई समुद्रतल से 18,000 फुट से भी अधिक है; जिनमें नंदा देवी पर्वत, त्रिशूल, नंदाकोट और पंचूली विशेष प्रख्यात है। तिब्बत की जलविभाजक श्रेणियों की दक्षिणी ढालों से अनेक नदियाँ निकलती हैं तथा इन विशाल चोटियों को काटती हुई आगे बढ़ती हैं; इससे अत्यंत गहरी घाटियाँ बन गई हैं। इनमें से बहनेवाली प्रमुख नदियों के नाम शारदा नदी या काली नदी, पिंडारी और काली गंगा हैं। ये सभी नदियाँ अलकनंदा नदी से मिल जाती हैं। जंगलों से मूल्यवान लकड़ियाँ मिलती हैं। इन जंगलों में चीड़, देवदार, सरोया साइप्रस, फ़र, साल, सैदान और ऐल्डर आदि के वृक्ष मुख्य हैं। खनिज पदार्थों की दृष्टि से यह क्षेत्र अत्यंत धना हैं; इसमें लोहा, ताँबा, जिप्सम, सीसा और ऐसबेस्टस जैसे महत्त्वपूर्ण खनिज मिलते है। कुमाऊँ के तराई, भाभर और गहरी घाटियों को छोड़कर अन्य सभी भागों की जलवायु सम तथा अनुकूल हैं। कुमाऊँ के बाह्य हिमालय की दक्षिणी ढालों पर अधिक वर्षा होती है, क्योंकि वे मानसून के मार्ग में सर्वप्रथम पड़ते हैं। 40 से 80 इंच तक इस क्षेत्र में औसत वार्षिक वर्षा होती है। जाड़े के दिनों में प्रति वर्षा ऊँची चोटियों पर हिमपात होता है। किसी किसी वर्ष तो पूरा क्षेत्र ही हिमच्छादित हो जाता है।

क्षेत्रफल: कुमाऊँ क्षेत्रफल 23,676 वर्ग किलोमीटर है। इसके उत्तर तिब्बत, पूर्व नेपाल और पश्चिम में शिवालिक पर्वतशृंखला है।

संदर्भ: भारतकोश-कुमाऊँ

खसमंडल

विजयेन्द्र कुमार माथुर[7] ने लेख किया है ...खसमंडल (AS, p.255) कुमायूं उत्तराखंड का एक भाग है। खस-जाति के लोग मध्य हिमालय प्रदेश के प्राचीन निवासी हैं। नेपाल में भी इनकी संख्या काफ़ी है। 10वीं शती से 13वीं शती ई. तक भारत के कई राजपूत - वंशों ने इस प्रदेश में आकर शरण ली थी और छोटी-छोटी रियासतें स्थापित कर ली थीं। पुराणों में खस जाति की अनार्य या असंस्कृत जातियों में गणना की गई है। बरनौफ (burnouf) के अनुसार, दिव्यावदान पृष्ठ 372 में खस राज्य का उल्लेख है। तिब्बत के इतिहास लेखक तारानाथ ने भी खसप्रदेश का उल्लेख किया है। (इण्डियन हिस्टॉरिकल क्वार्टरली, 1930, पृष्ठ 334)

External links

References