Kushavati

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Kushavati (कुशावती) was a city in Kosala Kingdom as per epic Ramayana. The king of Kosala Raghava Rama installed his son Lava at Sravasti and Kusha at Kushavati. The city is identified to be Kushinagar a town near Gorakhpur. Kushavati is also a river in Goa, West India.

Origin

Variants

History

In Mahavansha

Mahavansa/Chapter 2 mentions about the Race of Mahasammata: Sprung of the race of king Mahasammata was the Great Sage. For in the beginning of this age of the world there was a king named Mahüsammata, and (the kings) Roja and Vararoja, and the two Kalyanakas, Uposatha and Mandhata and the two, Caraka and Upacara, and Cetiya and Mucala and he who bore the name Mahamucala, Mucalinda and Sagara and he who bore the name Sagaradeva; Bharata and Angirasa and Ruci and also Suruci, Patäpa and Mahapatapa and the two Panadas likewise, Sudassana and Neru, two and two; also Accima. His sons and grandsons, these twenty-eight princes whose lifetime of immeasurably (long), dwelt in Kusavati, Rajagaha, and Mithila.

कुशावती

विजयेन्द्र कुमार माथुर[1] ने लेख किया है ...

1. कुशावती (AS, p.213): वाल्मीकि रामायण, उत्तरकाण्ड 108,4 से विदित होता है कि स्वर्गारोहण के पूर्व रामचंद्र जी ने अपने ज्येष्ठ पुत्र को कुशावती नगरी का राजा बनाया था-- 'कुशस्य नगरी रम्या विंध्यपर्वत रोधसि, कुशावतीति नाम्ना साकृता रामेण धीमता'. उत्तरकांड 107, 17 से यह भी सूचित होता है कि, 'कोसलेषु कुशं वीरमुत्तरेषु तथा लवम्' अर्थात रामचंद्र जी ने दक्षिण कौशल में कुश और उत्तर कौशल में लव का राज्याभिषेक किया था. कुशावती विंध्यपर्वत के अंचल में बसी हुई थी और दक्षिण कोसल या वर्तमान रायपुर (बिलासपुर क्षेत्र छत्तीसगढ़) में स्थित होगी. जैसा की उपयुक्त उत्तर कांड 108,4 सेवा से सूचित होता है

स्वयं रामचंद्र जी ने यह नगरी कुश के लिए बनाई थी. कालिदास ने भी रघुवंश 15,97 में कुश का, कुशावती का राजा बनाए जाने का उल्लेख किया है--'स निवेश कुशावत्यां रिपुनागांकुशं कुशम्'. रघुवंश सर्ग 16 से ज्ञात होता है कि कुश ने कुशावती में कुछ समय पर्यंत राज करने के पश्चात अयोध्या की इष्ट देवी के स्वप्न में आदेश देने के फलस्वरूप उजाड़ अयोध्या को पुनः बसाकर वहां अपनी राजधानी बनाई थी. कुशावती से ससैन्य अयोध्या आते समय कुश को विंध्याचल पार करना पड़ा था-- 'व्यलंङघयद्विन्ध्यमुपायनानि पश्यन्पुलिंदैरूपपादितानि' रघुवंश 16,32. विंध्य के पश्चात कुश की सेना ने गंगा को भी हाथियों के सेतु द्वारा पार किया था, 'तीर्थे तदीये गजसेतुबंधात्प्रतीपगामुत्तर-तोअस्य गंगाम, अयत्नबालव्यजनीबभूवुर्हंसानभोलंघनलोलपक्षा:...' रघुवंश 16,33 अर्थात जिस समय कुश, पश्चिम वाहिनी गंगा को गज सेतु द्वारा पार कर रहे थे, आकाश में उड़ते हुए चंचल पक्षों वाले हंसों की श्रेणियां उन (कुश) के [p.214]: ऊपर डोलती हुई चंवर के समान जान पड़ती थीं. यह स्थान जहां कुश ने गंगा को पार किया था चुनार (जिला मिर्जापुर उत्तर प्रदेश) के निकट हो सकता है क्योंकि इस स्थान पर वास्तव में गंगा एकाएक उत्तर पश्चिम की ओर मुड़ कर बहती है और काशी में पहुंचकर फिर से सीधी बहने लगती है.

2. कुशावती (AS, p.214): महवंश 2,26 में कुशीनगर (कसिया) का प्राचीन नाम है. अनुश्रुति के अनुसार इसे कुश ने बसाया था. कुशावती का उल्लेख कुस-जातक में भी है.

External links

References