Lekhu Ram Balara

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Lekhu Ram Balara

Lekhu Ram Balara (Subedar), born 16 January 1970, retired from Indian Army on 31 August 2016. He fought many wars including Operation Pawan in Srilanka by the Indian Peace Keeping Force (IPKF) to take control of Jaffna from the Liberation Tigers of Tamil Eelam (LTTE). He also took part in Kargil War 1999. After rtirement he is doing social service. He belongs to village Biramsar in Ratangarh tehsil of Churu district of Rajasthan.

सूबेदार लेखूराम बलारां का जीवन परिचय

कारगिल विजय का जांबाज सूबेदार लेखू राम बलारां का जीवन परिचय

भारतीय सेना का ऐसा जांबाज सिपाही जो श्रीलंका में शांति सेना व कारगिल युद्ध का शूरवीर रहा है। सेवा निवृत्त सूबेदार लेखू राम का जन्म गांव बीरमसर‌ तहसील रतनगढ़ जिला चूरू के किसान परिवार में 16 जनवरी 1970 पिता श्री चन्द्रा राम बलारां व माता श्रीमती धापा देवी के घर हुआ। माता-पिता का साया बाल्यकाल में ही उठ गया। प्रारंभिक शिक्षा बीरमसर ,मिडल क्लास ठठावता, माध्यमिक शिक्षा टीडियासर तथा उच्च माध्यमिक शिक्षा सेठ बंशीधर जालान उच्च माध्यमिक विद्यालय रतनगढ़ से उत्तीर्ण की।

शिक्षा के साथ खेल कूद में प्रारंभ में ही अभिरुचि ‌रही। शादी 1987 में श्रीमती गीता देवी के साथ हुई। प्रथम सेवा 6 अगस्त 1988 को जबलपुर ‌में ग्रेनिडियर रेजिमेंटल सेंटर पद जनरल ‌ड्युटी (G.D.) पर हुई। सेना में क्रोस कंट्री, बाक्सिंग मुख्य ‌खेल रहे। सेना की सेवा शुरु होते ‌ही 1989 में ऑपरेशन पावन के अंतर्गत शांति सेना में श्रीलंका के जाफना प्रायदीप में भेजा गया लेकिन इस मिशन के अंतिम समय में लिट्टे के साथ लड़ाई भी शुरू हो गई। सेवा काल में हैदराबाद, सिक्किम, श्री गंगानगर, जम्मू-कश्मीर, फिरोजपुर, अरुणाचल प्रदेश, देहरादून, ग्वालियर आदि स्थानों पर पदस्थिति रही। अंत में लद्दाख लेह ग्लेशियर से 31 अगस्त 2016 को सूबेदार के पद से सेवानिवृत्त हुये।

सूबेदार लेखूराम की बाहादुरी के कार्यों का विवरण

विभिन्न लड़ाइयों में सूबेदार लेखूराम के द्वारा किए गए बाहादुरी के कार्यों का विवरण उनके अपने शब्दों में इस प्रकार है:

श्री लंका में शांति सेना में : अक्टूबर 1987 में श्रीलंका सरकार लिट्टे उग्रवादियों के समक्ष असहाय महसूस करने लगी तथा भारत से सैनिक सहायता मांगी. उग्रवादियों को खदेड़ने का दायित्व भारतीय सेना को मिला. सेना ने इस अभियान का नाम रखा 'ऑपरेशन पवन जो पवनसुत हनुमान के पराक्रम का प्रतीक था. मैंने सेवा काल में श्री लंका में शांति सेना में भाग लिया। सेना की सेवा शुरु होते ‌ही 1989 में ऑपरेशन पावन के अंतर्गत शांति सेना में श्रीलंका के जाफना प्रायदीप में भेजा गया था। इस मिशन के अंतिम समय में लिट्टे के साथ लड़ाई शुरू हो गई।

दुर्गम पहाड़ी इलाक़ों में : सिक्किम व अरुणाचल प्रदेश के पहाड़ी इलाक़ों में साढ़े चार साल तक सेवा दी। उस समय चीन बोर्डर मैकमोहन रेखा पर ‌ड्युटी युद्ध से कम नहीं थी । चीनी सैनिकों व समुद्र तल से ऊंचाई वाले पहाड़ी क्षेत्र में मौसम से संघर्ष कठिन कार्य था। कारगिल युद्ध से पूर्व कश्मीर के मानस बल ‌मे 1999 में मिलीटेंसी से अप्रत्यक्ष छापामार लड़ाई किसी युद्ध से कम नहीं थी

Map of Kargil War areas

कारगिल युद्ध में: कारगिल युद्ध का अनुभव विशेष रहा। जहां पर मौत व जीवन के बीच थोड़ा सा ही फासला रहा। कारगिल युद्ध में अपने अजीज साथियों को शहीद होते हुए आंखों से देखा। शरीर के पास से सनसनाती गोलियां व दुश्मन के बरसते हुए ‌गोलों ने हमारे अफसरों व सिपाहियों के मनोबल को कम नहीं किया। हम तोलोलिंग की पहाड़ियों के नीचे व ‌दुश्मन ऊपर था। 22 मई 1999 को हमारी 18 ग्रेनेडियर को तोलोलिंग पहाड़ी पर पाकिस्तानी घुसपैठिय सैनिकों से कब्जा छुड़ाने का टास्क मिला। हम जिन्हें घुसपैठिए समझ रहे थे वे पाकिस्तानी सैनिक कमांडो निकले यह उनकी पे बुक व कंधे पर रेजिमेंट नम्बर लिखा था। हमारे वहां 22 दिन तक कठिन लड़ाई लगभग 17000-18000 फीट ऊंचाई पर बर्फीली पहाड़ियों पर हो रही थी। हम नीचे से ऊपर बर्फीली दुर्गम रास्तों से पाकिस्तानी बमबारी से ‌बचते हुए निकल रहे थे। मोर्चे पर डटे हुए हमारे जांबाज सैनिक भी बराबर फायरिंग कर रहे थे। मैं गाईड के रूप में सबसे आगे चल रहा था हमारे टास्क के अनुसार तोलोलिंग की पहाड़ियों पर ‌कब्जा करना था। हमारे से लगभग 500 मीटर दूर ऊंची चोटी पर दुश्मन थे। बर्फ गिरते-गिरते मौसम ने करवट ली तथा थोड़ी सी रोशनी होते ही हमें दुश्मन दिखाई देने लगे। हमने अपनी फायरिंग पोजीशन बनाई तथा हमने भी फायरिंग शुरू कर दी। 12 जून 1999 को हमने जिस चोटी को ‌पाकिस्तानी कब्जे से मुक्त करवाया‌ उसे हमने इसका नाम हनुमान ‌चोटी रखा। तथा इस पर तिरंगा फहराया। इस ‌चोटी को 3 आफिसर, 2 जूनियर कमिशन आफिसर, 22 जवानो‌ ने अपने प्राणों की शहादत दी।

तोलोलिंग पहाड़ी पर ‌कब्जा करने के बाद ‌हमारे देश के चीफ जनरल वी.पी.मलिक ने इस विजय से खुश होकर दूसरा टास्क टाइगर हिल्स को मुक्त कराने का दिया। जनरल चीफ मलिक साहब ने हमारी बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल कुशाल चंद ठाकुर को बुलाकर टाईगर ‌हिल्स फतह करने का आदेश दिया। यह पहाड़ी काफी ऊंची व दुर्गम हैं जहां पर ‌दुश्मन हथियारों का जखीरा ‌लेकर बैठा था। हमारे कमांडिंग ऑफिसर ने ‌हम‌ सब को सामने बैठाकर कर्तव्य बोध करवाया तथा कहा कि आज देश को हमारी ‌जरुरत है। भारत माता के जयकारे के साथ ही हमारा हौसला अफजाई किया। तथा अगले टास्क की तैयारी करो।

टाईगर हिल्स ऊंचा व दुर्गम था। हमारा टास्क मुश्किल था। दुश्मन इस पहाड़ी पर ऊपर नहीं चढ़ने दे रहा था। हमारी बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर ने बोफोर्स व एयर फायटर द्वारा बम गिरवाये गये। जिससे हमारे को आगे बढ़ने के लिए सुरक्षित रास्ता मिला। 3 जुलाई 1999 को हमारी बटालियन ‌ने इस पहाड़ी को तीन ओर से घेर लिया था। चोटी की दुर्गम चोटियों ‌पर रस्से बांधकर चढ़े। इसका दुश्मन को अंदाज ही नहीं था। हमारी ‌बटालियन ने टाईगर हिल्स पर चढ़कर पाकिस्तानी सैनिकों पर‌ जोरदार हमला किया तथा सर्व शक्तिमान का नारा लगाया। अब दुश्मन से आमना-सामना हो गया। हमारे 10‌ सैनिक ‌शहीद हुए। पाकिस्तान के बहुत से सैनिक मारे गए। उनको महसूस हुआ कि बहुत सी भारतीय सेना आ चुकी है। ज्योंहि सर्वदा शक्तिशाली का नारा गुंजायमान हुआ। इससे दुश्मन घबरा गया। दुश्मन के शेष बचे-खुचे सैनिक अपने हथियार, अमेन्सन, गोलियां सब छोड़कर भाग खड़े हुए। 4 जुलाई 1999 की सुबह टाईगर हिल्स पर तिरंगा फहराया गया। सभी जवानों ने भारत माता के जयकारे के साथ ही लाईन आफ कंट्रोल ( L.O.C.) तक जाकर क्लीयर करवाया।

यहां पर हमारे ‌पास राशन पानी खत्म हो गया। पाकिस्तानी ‌अपने राशन सामग्री पर केरोसिन डालकर भाग ‌गये‌ थे ।उसको भी हमारे भूखे सैनिकों ने खाया। यह समय बड़ा मुश्किल था।आगे तीसरी पहाड़ी पर एल.ओ.सी.के पास 17 जाट का एक जवान, जिसके हाथ पैर में गोली लगी हुई थी, हमें चार दिन बाद जिंदा मिला। यह हवलदार राजेंद्र सिंह था जो मेरे साथ पूना में था । इसको नीचे भिजवाया। 'जांको राखे साइयां मार ‌सके न कोय' वाली कहावत चरितार्थ हुई। मेरे सेवा काल का सबसे भयंकर युद्ध था जिसमें बहुत से सैनिक शहीद हुए। सौभाग्य से मैं सकुशल रहा। मैं सभी शहीदों को श्रद्धांजलि देता हूं।

मेरे सेवा निवृत्त होने के बाद सामाजिक, शैक्षिक कार्यक्रमों में भाग लेता हूं। मेरे दो पुत्र व एक पुत्री है। छोटा पुत्र सैनिक के रूप में देश सेवा कर रहा है। बड़ा पुत्र निजी धंधा कर रहा है।

जय ‌हिंद! जय जवान!! जय किसान!!!

आपका शुभेच्छु - लेखू राम बलारां, सेवा निवृत्त सूबेदार, ग्राम बीरमसर तहसील रतनगढ़, जिला चूरू राजस्थान, मो.न. 9407534584

लेखक व संकलन कर्ता - मुकन्दा राम नेहरा, सेवा निवृत्त प्रधानाचार्य

चित्र गैलरी

बाहरी कड़ियाँ

संदर्भ


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