Mangat

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Mangat (मांगट)[1] [2][3] Mangath (मांगठ)[4] Mangadh (मांगध)/Manghat (मांघट)/Magadh (मगध) [5] [6] Mangat (मंगत) [7] [8] Mangat (मांगत) is a gotra of Jats dwelling in Punjab, India and Pakistan.

Guru Mangat is a town, now in Pakistan, owned Punjab [9] and from its name, it may be said that the town was founded by the Jats of Mangat clan. Today, Mangat is a well known Jat clan name, at least among the Jat Sikhs [10]. [11]

Origin

This gotra is said to be originated from Magadha (मगध) janapada. [12] [13]

History

V. S. Agrawala[14] writes that Ashtadhyayi of Panini mentions janapada Magadha (मगध) (IV.1.170) - It was an important janapada. A kshatriya descendant of the Magadha tribe was called Magādha.


B S Dahiya[15] writes about Mangat clan: In the Tang period of Chinese history, the Chinese called the Mongols as Mengu Pronounced as Mung-nguet. [16] It is this word Mung-nguet which is now written as Mongait In Russia , e.g. A.L. Mongait, author of the Archeology in USSR, Pelican series, London (1961) and is written as Mangat (a Jat clan) in India, This clan’s name appears in Mahabharata as Manonugat-a country in Kroncha Dvipa, east of Pamirs. [17] This has almost exact similarity with the Chinese form.

Rajatarangini[18] mentions that Bhagika, Sharadbhasi, Mummuni, Mungata, Kalasha and other men of the king's party harassed the enemies. Kamalaya, son of Lavaraja king of Takka, took the king's side in this war in 1121 AD.

Mangat Ji Temple

मांगट जी महाराज का मंदि‍र :- यह स्‍थान टॉडगढ़ से 17 कि‍मी दूर बडाखेडा से सरूपा पक्‍की सडक से पहाडी पर 4 कि‍मी उपर स्‍थति‍ एक पुराना धार्मिक स्‍थल है. वि‍वरण Todgarh पर दर्ज है. इसी स्‍थान के पास कुण्‍डामाता का मंदि‍र का दर्शनीय स्‍थान भी है।

मॉगध-मागठ-मगध का इतिहास

दलीप सिंह अहलावत[19] लिखते हैं:

यह चन्द्रवंशी जाटवंश प्राचीनकाल से ही प्रसिद्ध है। इस वंश का प्रचलन मगध नामक जनपद के कारण हुआ। जाट इतिहास पृ० 25 पर ठा० देशराज ने लिखा है कि “मगध प्रदेश की राजधानी राजगृह तथा गिरिवृज थी। इस राज्य की नींव डालने वाला वसु


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-251


का पुत्र वृहदश्व था (महाभारत आदि पर्व)। हमारे ख्याल से चन्द्रवंशियों का यह समूह ईरान से आकर यहां आबाद हुआ था। क्योंकि ईरान में क्षत्रिय की संज्ञा मगध थी। इसलिए मगध क्षत्रियों के नाम पर ही यह देश मगध कहलाया।” आगे पृ० 30 पर इसी लेखक ने लिखा है कि बौद्धकाल के समय भारत में सोलह महाजनपद (राज्य) थे। जिनमें से मगध राज्य आज के बिहार में था जिसकी राजधानी राजगृह (राजगिरि) थी। बाद में पाटलीपुत्र (पटना) हो गई थी। यह राज्य पूर्व में चम्पा नदी, पश्चिम में सोन नदी, उत्तर में गंगा नदी, दक्षिण में विन्ध्याचल तक फैला हुआ था।

रामायणकाल में इस वंश का राज्य पूरी शक्ति पर था जिसके प्रमाण रामायण में निम्नलिखित हैं।

(1)
मगधाधिपतिं शूरं सर्वशास्त्रविशारदम्।
प्राप्तिज्ञं परमोदारं सत्कृतं पुरुषर्षभम्॥
(वा० रा० बालकाण्ड सर्ग 13वां, श्लोक 26वां)
अर्थात् - मगध देश के राजा प्राप्तिज्ञ को, जो शूरवीर, सम्पूर्ण शास्त्रों का विद्वान्, परम उदार तथा पुरुषों में श्रेष्ठ है, स्वयं जाकर सत्कारपूर्वक बुला ले आओ॥26॥ (यह आदेश सुग्रीव अपनी वानर सेना को देता है)।
(2)
वा० रा० किष्किन्धाकाण्ड, सर्ग 40वां, श्लोक 22 में लिखा है - मागधांश्च महाग्रामान् - सुग्रीव ने वानरसेना को सीता जी की खोज के लिए मगधदेश के बड़े-बड़े ग्रामों में छानबीन करने का आदेश दिया।

महाभारतकाल में मगध नरेश वृहद्रथ दो अक्षौहिणी सेना रखता था। इसकी दो पत्नियां थीं जो कि काशीराज की जुड़वां पैदा होने वाली पुत्रियां थीं। इसी राजा वृहद्रथ के जरासन्ध नामक पुत्र हुआ (महाभारत सभापर्व)। जरासन्ध अपने समय का सर्वाधिक प्रतापी नरेश था। इसने महाभारतकालीन 101 क्षत्रिय कुलों में से 86 को युद्ध में जीत लिया था। इसी के आतंक से विरत रहने के लिए श्रीकृष्ण जी ने बृज को छोड़ दिया और द्वारका में अपनी राजधानी बनाई। इसीलिए उनका नाम रणछोड़ पड़ा था। कंस, शिशुपाल, कारूप, सौभ, दन्त्रवक्त्र आदि राजागण जरासन्ध के सहायक एवं इनके अत्यन्त प्रभाव में थे। महाभारत सभापर्व 25-26 के लेखानुसार राजसूय यज्ञ करने से पूर्व श्रीकृष्ण व भीम दोनों जरासन्ध के पास पहुंचे। वहां भीम ने जरासन्ध के साथ मल्लयुद्ध करके उसको मार दिया। श्रीकृष्ण जी ने उसके पुत्र सहदेव को मगध का राजा बना दिया।

भगवान् बुद्ध के समय मगधवंश का राजा बिम्बसार इस मगध राज्य का शासक था। “डफ की क्रौनोलोजी” पृ० 5 में लेखक दुल्व ने लिखा है कि “इस बिम्बसार ने मगध कुल का अत्यन्त वैभव बढ़ाया और कुमारावस्था में अंग देश के नागराज से उसकी राजधानी चम्पा छीन ली।” बिम्बसार महात्मा बुद्ध से 5 वर्ष छोटा था। अतः इस राजा का जन्म 561 ई० पूर्व हुआ था। जैनधर्मप्रवर्तक महावीर स्वामी से इसकी मैत्री थी। ‘मंजु श्री मूलकल्प’ के लेखक ने लिखा है कि


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-252


इसके पुत्र अजातशत्रु ने इसका वध कर दिया। यह अजातशत्रु महात्मा बुद्ध के प्रतिद्वन्द्वी देवराज का मित्र था। परन्तु बाद में भगवान् बुद्ध का श्रद्धालु बन गया था। इस अजातशत्रु ने क्षत्रिय विरोधी परशुराम का बदला लेने के लिये उन सहस्रों ब्राह्मणों को अपनी तलवार से मौत के घाट उतार दिया जो ईश्वर के नाम पर उपयोगी पशुओं का वध करके यज्ञ में डालते थे और स्वयं खाते थे। यह प्रसिद्ध ब्राह्मणविरोधी हुआ। ‘मंजु श्री मूलकल्प’ के आधार पर अजातशत्रु के समय अंग, वंग, कलिंग, वैशाली, काशी और उत्तर में हिमालय तक मगधवंश का राज्य हो गया था। इसकी राजधानी गिरिवृज थी जिसके अवशेष पटना के समीप खुदाइयों में मिल रहे हैं। पटना में भी इसने एक किला बनवाया। इसी के समय बौद्ध ग्रन्थ लिपिबद्ध हुए और एक बौद्ध सभा का आयोजन किया गया। ‘एपिग्राफिका इण्डिया’ और ‘अन्धकार युगीन भारत’ के लेखक ने शक्तिवर्मन, चन्द्रवर्मन एवं उसके पुत्र विजयनन्दिवर्मन नामक नरेशों की मगधवंशी परम्परा का कलिंग पर भी पृथक् राजा रहना माना है। मगध राज्य पर अधिकार रखने वाले क्षत्रिय ही मागध या मागठ कहलाये।[20]

वर्तमान काल में भी इस वंश के जाट सिक्ख जि० लुधियाना में एक ही जगह 22 गांवों में निवास करते हैं जिनमें बड़े-बड़े गांव रामगढ़, रायपुर, छिन्दड़, कटाणी कलां व खुर्द, कटाणा, बग्गोवाल, जटाणा, लल्लकलां, थाल, कोटसराय आदि हैं जो एक जत्थे में ग्रेवालों के गांवों के साथ बसे हुए हैं। ये लोग अपने आप को मांगठ कहते हैं। जि० पटियाला में जर्ग, मुरथला, रुड़की जुलाजन, दीवा आदि बड़े गांव मागध या मांगठ जाटों के हैं। मुरादाबाद के पास कुन्दनपुर व अमरोहा में भी मागध क्षत्रिय जाट निवास करते हैं।[21]

Distribution in Punjab

Villages in Gurdaspur district

Chak Depewal,

Villages in Hoshiarpur district


Villages in Patiala district

Patiala district has Mangats (5,400).

This clan holds 6 villages in the sub-district of Sahibgarh,Jarg( जर्ग), Murthala(मुरथला), Rurdki(रुड़की),Julajan (जुलाजन),Deeva (दीवा ).[22]

Villages in Ludhiana district

Mangat Ludhiana is village in Ludhiana East Tahsil in Ludhiana district, Punjab.

Ludhiana district has Mangat population (6,663).[23]

Mehdoodan,

Neelon,

Villages in Nawanshahr district


Villages in Ludhiana district

Begowal (बेगोवाल), Chhandaran (छन्दड़ां), Jatana (जटाणा), Katana (कटाणा), Katani Kalan (कटाणी कलां), Katani Khurd (कटाणी खुर्द), Kot Sarai (कोट सराय), Lallkalan (लल्ल कलां), Raipur (रायपुर), Ramgarh (रामगड़), Rampur (रामपुर), Maangarh (मानगड़), Thal (थाल), Mehdoodan, Neelon,

Distribution in Uttra Pradesh

Village in Amroha

Atairana Khandsal, Mahamdi,

Villages in Meerut district

Ramraj,

Distribution in Pakistan

Mangat - The Mangat clan people are found in Mandi Bahauddin and Gujrat districts. Muslim Mangat were also found in Ambala and Ludhiana districts. They too have settled in Mandi Bahauddin.

According to 1911 census, the Mangats were one of the principal Muslim Jat clans with population in Gujranwala District (549), Gujrat District (1,075). [24]

Notable persons from this gotra

  • B.S. Mangat, Deputy Inspector–General of Police, Punjab is a scion of his clan.
Rais Sardar Bhag anmol Singh Sher Gill, Rais of Mangat Ludhiana, Punjab
  • Navtej Singh Mangat - is a lawyer, Solicitor of the Supreme Court of England and Wales, as well as a historian and politician.

References

  1. B S Dahiya:Jats the Ancient Rulers (A clan study), p.240, s.n.140
  2. Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. म-14
  3. O.S.Tugania:Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu,p.56,s.n. 2029
  4. History and study of the Jats/Chapter 10
  5. Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. म-14
  6. O.S.Tugania:Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu,p.56,s.n. 2029
  7. Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. म-65
  8. O.S.Tugania:Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu,p.55,s.n. 2006
  9. Gupta, H.R., editor, Panjab or Punjab on the eve of First Sikh War, Published by the Publication Bureau of the Punjab University, Chandigarh, Punjab, 1956, pp. 212, 295, 135, 266.
  10. A glossary of the Tribes and Castes of the Punjab and North-West Frontier Province By H.A. Rose Vol II, pp. 237
  11. History and study of the Jats, B.S Dhillon, p.105
  12. Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter III, p.251
  13. Mahendra Singh Arya et al.: Ādhunik Jat Itihas, Agra, 1998, p. 276
  14. V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.60
  15. Jats the Ancient Rulers (A clan study)/Jat Clan in India,p. 264
  16. Journal Asiatique 1920 , I, quoted by Studies in Indian History and Civilization by Buddha Prakash p. 409
  17. Bhisma Parva, 12 / 21
  18. Kings of Kashmira Vol 2 (Rajatarangini of Kalhana)/Book VIII,p.93
  19. जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ-251,252
  20. जाटों का उत्कर्ष पृ० 293-294, लेखक योगेन्द्रपाल शास्त्री।
  21. जाटों का उत्कर्ष पृ० 293-294, लेखक योगेन्द्रपाल शास्त्री।
  22. History and study of the Jats, B.S Dhillon, p.126
  23. History and study of the Jats, B.S Dhillon, p.123
  24. Census Of India 1911 Volume Xiv Punjab Part 2 by Pandit Narikishan Kaul

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