Nagana
- For village in Barmer district see Nagana Barmer
Nagana (नागाणा) was a waste region around Nagaur in Rajasthan. It was ruled by Nagavanshi Jats.
Location
Origin
Jat Gotras Namesake
- Nagna = Nagia (Pliny.vi.32)[1]. Nagana (नागाणा) was a waste region around Nagaur in Rajasthan. It was ruled by Nagavanshi Jats.
The Founders
Naga Jats.
History
तेजाजी के पूर्वज
संत श्री कान्हाराम[2] ने लिखा है कि.... [पृष्ठ-62] : रामायण काल में तेजाजी के पूर्वज मध्यभारत के खिलचीपुर के क्षेत्र में रहते थे। कहते हैं कि जब राम वनवास पर थे तब लक्ष्मण ने तेजाजी के पूर्वजों के खेत से तिल खाये थे। बाद में राजनैतिक कारणों से तेजाजी के पूर्वज खिलचीपुर छोडकर पहले गोहद आए वहाँ से धौलपुर आए थे। तेजाजी के वंश में सातवीं पीढ़ी में तथा तेजाजी से पहले 15वीं पीढ़ी में धवल पाल हुये थे। उन्हीं के नाम पर धौलिया गोत्र चला। श्वेतनाग ही धोलानाग थे। धोलपुर में भाईयों की आपसी लड़ाई के कारण धोलपुर छोडकर नागाणा के जायल क्षेत्र में आ बसे।
[पृष्ठ-63]: तेजाजी के छठी पीढ़ी पहले के पूर्वज उदयराज का जायलों के साथ युद्ध हो गया, जिसमें उदयराज की जीत तथा जायलों की हार हुई। युद्ध से उपजे इस बैर के कारण जायल वाले आज भी तेजाजी के प्रति दुर्भावना रखते हैं। फिर वे जायल से जोधपुर-नागौर की सीमा स्थित धौली डेह (करणु के पास) में जाकर बस गए। धौलिया गोत्र के कारण उस डेह (पानी का आश्रय) का नाम धौली डेह पड़ा। यह घटना विक्रम संवत 1021 (964 ई.) के पहले की है। विक्रम संवत 1021 (964 ई.) में उदयराज ने खरनाल पर अधिकार कर लिया और इसे अपनी राजधानी बनाया। 24 गांवों के खरनाल गणराज्य का क्षेत्रफल काफी विस्तृत था। तब खरनाल का नाम करनाल था, जो उच्चारण भेद के कारण खरनाल हो गया। उपर्युक्त मध्य भारत खिलचीपुर, गोहद, धौलपुर, नागाणा, जायल, धौली डेह, खरनाल आदि से संबन्धित सम्पूर्ण तथ्य प्राचीन इतिहास में विद्यमान होने के साथ ही डेगाना निवासी धौलिया गोत्र के बही-भाट श्री भैरूराम भाट की पौथी में भी लिखे हुये हैं।
संत श्री कान्हाराम[3] ने लिखा है कि....[पृष्ठ-111]: नागौर नागों की मूल राजधानी रही है। प्राचीन काल में यहाँ पानी की झील थी। जिसमें नागवंशियों का जलमहल था। पहले शिशुनाग (शेषनाग) और बाद में वासुकि नाग यहाँ राजा था। शिशुनाग जलमहल में निवास करता था। ईसा की चौथी शताब्दी में यहाँ नागों द्वारा दुर्ग का निर्माण किया गया था। इस दुर्ग का नाम नागदुर्ग। कालांतर में नागदुर्ग शब्द ही नागौर बना।
मध्यकाल में नागौर के चारों ओर तीन सौ से चार सौ किमी के क्षेत्र में नाग गणों के गणराज्य फैले हुये थे। नाग+गण = नागाणा । इस क्षेत्र को नागाणा बोला गया। इन गण राज्यों में 99 प्रतिशत नागवंश से निकली जाट शाखा के थे। आज नागौर के चारों और 400-500 किमी तक फैली जाट जाति अकारण नहीं है। इसका ठोस कारण प्राचीन गणराज्य है।
नागौर कई बार बसा और उजड़ा, उजड़ने के कारण इसका नाम नागपट्टन भी पड़ा। नागौर किले का माही दरवाजा भी नागवंशी परंपरा का उदाहरण है। इसके प्रस्तर खंडों पर नाग-छत्र बना हुआ है। नागौर का एक नाम अहिछत्रपुर भी है जिसका उल्लेख महाभारत में है। महाभारत युद्ध में अहिछत्रपुर के राजाओं ने भी भाग लिया था। अहिछत्रपुर का अर्थ है 'नागों की छत्रछाया में बसा हुआ पुर (नगर)'। यहाँ नागौर की धरती पर नाग वंश की जाट शाखा के राव पदवी धारी जाटों ने 200 वर्ष तक राज किया था।
[पृष्ठ-128]: तेजाजी के पूर्वज धौलिया गोत्र के जाट नागवंश की चौहान शाखा (खांप) की उपशाखा खींची नख से संबन्धित थे। खींची चौहान की उपशाखा है। इनके गणराज्य जायल क्षेत्र के अंतर्गत तेजाजी के पूर्वजों का गणराज्य खरनाल आता था। तेजाजी के पूर्वज श्वेतनाग शाखा के जाट थे। चौहान उनका दल था। खींची उनकी नख थी। जाट उनका वंश था।
जायल के खींची राज्य की स्थापना करने वाले माणकराव (खिंचलवाल) की आठवीं पीढ़ी में गून्दलराव हुआ था। खींची चौहनों की एक शाखा है। सांभर के चौहान शासक सिंहराज के अनुज लक्ष्मण ने 960 ई. में नाडोल राज्य की स्थापना की थी। लक्ष्मण के वंशज आसराज (1110-1122 ई) के पुत्र माणकराव, खींची शाखा का प्रवर्तक था। वह 1111 ई. में जायल आया था। उनकी पीढ़ियाँ – 1. माणकराव 2. अजयराव 3. चन्द्र राव 4. लाखणराव 5. गोविंदराव 6. रामदेव राव 7. मानराव 8. गून्दलराव
खींची शाखा की वंशावली जायल के राम सिंह खींची के पास उपलब्ध है। रामसिंह जायल से पूर्व दिशा में एक ढाणी में रहते हैं। तेजाजी के इतिहास के शोध के दौरान जायल के सहदेव बासट जाट के साथ लेखक उनसे मेले थे।
Jat Gotras
Population
Notable Persons
External Links
References
- ↑ Bhim Singh Dahiya: Jats the Ancient Rulers (A clan study)/Appendices/Appendix II,p.332
- ↑ Sant Kanha Ram: Shri Veer Tejaji Ka Itihas Evam Jiwan Charitra (Shodh Granth), Published by Veer Tejaji Shodh Sansthan Sursura, Ajmer, 2015. pp.62-63
- ↑ Sant Kanha Ram: Shri Veer Tejaji Ka Itihas Evam Jiwan Charitra (Shodh Granth), Published by Veer Tejaji Shodh Sansthan Sursura, Ajmer, 2015. pp.111, 128
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