Gundal

From Jatland Wiki
(Redirected from Gundalarava)

Gundal was a Khichi- Chauhan ruler of Jayal in Nagaur.

Variants of name

Genealogy of Gundal

Sinharaja (944-964 A.D.) Chauhan's younger brother in 960 AD founded Nadol branch of Chauhans. His decendant was Asaraja (1110-1122 AD), his son Manak Rao was originator of Khichi branch who visited Jayal in 1111 AD. Gundal Rao was in 8th generation of Manak Rao -

तेजाजी के पूर्वजों ले लड़ाई

पनेर के निकटवर्ती गाँव थल, सिणगारा, रघुनाथपुरा, बाल्यास का टीबा स्थित सांभर के चौहान शासक गोविंददेव तृतीय के समय के शिलालेख, जो कि तेजाजी के समकालीन था

संत श्री कान्हाराम[1] ने लिखा है कि.... रियासत काल में कुछ वर्ष तक किशनगढ़ की राजधानी रूपनगर रहा था, जो पनेर से 7-8 किमी दक्षिण-पूर्व दिशा में पड़ता है।


[पृष्ठ-45]: जहा पहले बबेरा नामक गाँव था तथा महाभारत काल में बहबलपुर के नाम से पुकारा जाता था। अब यह रूपनगढ तहसील बनने जा रहा है।

तेजाजी के जमाने (1074-1103 ई.) में राव महेशजी के पुत्र राव रायमलजी मुहता के अधीन यहाँ एक गणराज्य आबाद था, जो शहर पनेर के नाम से प्रसिद्ध था। उस जमाने के गणराज्यों की केंद्रीय सत्ता नागवंश की अग्निवंशी चौहान शाखा के नरपति गोविन्ददेव तृतीय (1053 ई.) के हाथ थी। तब गोविंददेव की राजधानी अहिछत्रपुर (नागौर) से शाकंभरी (सांभर) हो चुकी थी तथा बाद में अजयपाल के समय (1108-1132 ई.) चौहनों की राजधानी अजमेर स्थानांतरित हो गई थी। रूपनगढ़ क्षेत्र के गांवों में दर्जनों शिलालेख आज भी मौजूद हैं, जिन पर लिखा है विक्रम संवत 1086 गोविंददेव


[पृष्ठ-46]: किशनगढ़ के स्थान पर पहले सेठोलाव नामक नगर बसा था। जिसके भग्नावशेष तथा सेठोलाव के भैरुजी एवं बहुत पुरानी बावड़ी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में आज भी मौजूद है। सेठोलाव गणराज्य के शासक नुवाद गोत्री जाट हुआ करते थे। ऐसा संकेत राव-भाटों की पोथियों व परम्पराओं में मिलता है। अकबर के समय यहाँ के विगत शासक जाट वंशी राव दूधाजी थे। गून्दोलाव झीलहमीर तालाब का निर्माण करवाने वाले शासक का नाम गून्दलराव था। यह शब्द अपभ्रंस होकर गून्दोलाव हो गया। हम्मीर राव ने हमीरिया तालाब का निर्माण करवाया था। सेठोजी राव ने सेठोलाव नगर की स्थापना की थी।


संत श्री कान्हाराम[2] ने लिखा है कि.... [पृष्ठ-62] : रामायण काल में तेजाजी के पूर्वज मध्यभारत के खिलचीपुर के क्षेत्र में रहते थे। कहते हैं कि जब राम वनवास पर थे तब लक्ष्मण ने तेजाजी के पूर्वजों के खेत से तिल खाये थे। बाद में राजनैतिक कारणों से तेजाजी के पूर्वज खिलचीपुर छोडकर पहले गोहद आए वहाँ से धौलपुर आए थे। तेजाजी के वंश में सातवीं पीढ़ी में तथा तेजाजी से पहले 15वीं पीढ़ी में धवल पाल हुये थे। उन्हीं के नाम पर धौलिया गोत्र चला। श्वेतनाग ही धोलानाग थे। धोलपुर में भाईयों की आपसी लड़ाई के कारण धोलपुर छोडकर नागाणा के जायल क्षेत्र में आ बसे।


[पृष्ठ-63]: तेजाजी के छठी पीढ़ी पहले के पूर्वज उदयराज का जायलों (काला जाट) के साथ युद्ध हो गया, जिसमें उदयराज की जीत तथा जायलों की हार हुई। युद्ध से उपजे इस बैर के कारण जायल वाले आज भी तेजाजी के प्रति दुर्भावना रखते हैं। फिर वे जायल से जोधपुर-नागौर की सीमा स्थित धौली डेह (करणु के पास) में जाकर बस गए। धौलिया गोत्र के कारण उस डेह (पानी का आश्रय) का नाम धौली डेह पड़ा। यह घटना विक्रम संवत 1021 (964 ई.) के पहले की है। विक्रम संवत 1021 (964 ई.) में उदयराज ने खरनाल पर अधिकार कर लिया और इसे अपनी राजधानी बनाया। 24 गांवों के खरनाल गणराज्य का क्षेत्रफल काफी विस्तृत था। तब खरनाल का नाम करनाल था, जो उच्चारण भेद के कारण खरनाल हो गया। उपर्युक्त मध्य भारत खिलचीपुर, गोहाद, धौलपुर, नागाणा, जायल, धौली डेह, खरनाल आदि से संबन्धित सम्पूर्ण तथ्य प्राचीन इतिहास में विद्यमान होने के साथ ही डेगाना निवासी धौलिया गोत्र के बही-भाट श्री भैरूराम भाट की पौथी में भी लिखे हुये हैं।


संत श्री कान्हाराम[3] ने लिखा है कि....


[पृष्ठ-128]: तेजाजी के पूर्वज धौलिया गोत्र के जाट नागवंश की चौहान शाखा (खांप) की उपशाखा खींची नख से संबन्धित थे। खींची चौहान की उपशाखा है। इनके गणराज्य जायल क्षेत्र के अंतर्गत तेजाजी के पूर्वजों का गणराज्य खरनाल आता था। तेजाजी के पूर्वज श्वेतनाग शाखा के जाट थे। चौहान उनका दल था। खींची उनकी नख थी। जाट उनका वंश था।

गून्दलराव की वंशावली:

जायल के खींची राज्य की स्थापना करने वाले माणकराव (खिंचलवाल) की आठवीं पीढ़ी में गून्दलराव हुआ था। खींची चौहनों की एक शाखा है। सांभर के चौहान शासक सिंहराज के अनुज लक्ष्मण ने 960 ई. में नाडोल राज्य की स्थापना की थी। लक्ष्मण के वंशज आसराज (1110-1122 ई) के पुत्र माणकराव, खींची शाखा का प्रवर्तक था। वह 1111 ई. में जायल आया था। उनकी पीढ़ियाँ – 1. माणकराव 2. अजयराव 3. चन्द्र राव 4. लाखणराव 5. गोविंदराव 6. रामदेव राव 7. मानराव 8. गून्दलराव

खींची शाखा की वंशावली जायल के राम सिंह खींची के पास उपलब्ध है। रामसिंह जायल से पूर्व दिशा में एक ढाणी में रहते हैं। तेजाजी के इतिहास के शोध के दौरान जायल के सहदेव बासट जाट के साथ लेखक उनसे मेले थे।

तेजाजी के पूर्वज और खींची

संत श्री कान्हाराम[4] ने लिखा है कि.... जायल खींचियों का मूल केंद्र है। उन्होने यहाँ 1000 वर्ष तक राज किया। नाडोल के चौहान शासक आसराज (1110-1122 ई.) के पुत्र माणक राव (खींचवाल) खींची शाखा के प्रवर्तक माने जाते हैं। तेजाजी के विषय में जिस गून्दल राव एवं खाटू की सोहबदे जोहियानी की कहानी नैणसी री ख्यात के हवाले से तकरीबन 200 वर्ष बाद में पैदा हुआ था।


[पृष्ठ-158]: जायल के रामसिंह खींची के पास उपलब्ध खींचियों की वंशावली के अनुसार उनकी पीढ़ियों का क्रम इस प्रकार है- 1. माणकराव, 2. अजयराव, 3. चन्द्र राव, 4. लाखणराव, 5. गोविंदराव, 6. रामदेव राव, 7. मानराव 8. गून्दलराव, 9. सोमेश्वर राव, 10. लाखन राव, 11. लालसिंह राव, 12. लक्ष्मी चंद राव 13. भोम चंद राव, 14. बेंण राव, 15. जोधराज

गून्दल राव पृथ्वी राज के समकालीन थे।

यहाँ जायल क्षेत्र में काला गोत्री जाटों के 27 खेड़ा (गाँव) थे। यह कालानाग वंश के असित नाग के वंशज थे। यह काला जयलों के नाम से भी पुकारे जाते थे। यह प्राचीन काल से यहाँ बसे हुये थे।

तेजाजी के पूर्वज राजनैतिक कारणों से मध्य भारत (मालवा) के खिलचिपुर से आकर यहाँ जायल के थली इलाके के खारिया खाबड़ के पास बस गए थे। तेजाजी के पूर्वज भी नागवंश की श्वेतनाग शाखा के वंशज थे। मध्य भारत में इनके कुल पाँच राज्य थे- 1. खिलचिपुर, 2. राघौगढ़, 3. धरणावद, 4. गढ़किला और 5. खेरागढ़

References

  1. Shri Veer Tejaji Ka Itihas Evam Jiwan Charitra (Shodh Granth), Published by Veer Tejaji Shodh Sansthan Sursura, Ajmer, 2015. pp. 44-45
  2. Sant Kanha Ram: Shri Veer Tejaji Ka Itihas Evam Jiwan Charitra (Shodh Granth), Published by Veer Tejaji Shodh Sansthan Sursura, Ajmer, 2015. pp.62-63
  3. Sant Kanha Ram: Shri Veer Tejaji Ka Itihas Evam Jiwan Charitra (Shodh Granth), Published by Veer Tejaji Shodh Sansthan Sursura, Ajmer, 2015. p.128
  4. Sant Kanha Ram: Shri Veer Tejaji Ka Itihas Evam Jiwan Charitra (Shodh Granth), Published by Veer Tejaji Shodh Sansthan Sursura, Ajmer, 2015. pp.157-158