Pacheri
Pacheri Kalan (पचेरी कलां), Pacheri Khurd (पचेरी खुर्द),, villages are in Buhana tehsil of Jhunjhunu district in Rajasthan. This village was the hometown of Pandit Tadakeshwar Sharma, leading hero of Shekhawati farmers movement.
Jat gotras
History
When Harphool Jat Julaniwala was under ground, Police had declared an award for his arrest. Once when he was staying at his sister's house at village Pacheri Kalan in Buhana tahsil district Jhunjhunu, he was arrested when in sleep. Here in this village he had friendly relations with a Thakur of Pacheri, who is believed to have informed the Police. Some people say he was cheated by his Brahman muhboli behan's husband, who informed police about his stay. He was hanged to death by the Police in 1936 at Firozpur jail. His body was not handed over to the relatives out of fear that there might be rebellion in his favour.
पचेरी कांड 1944
16 सितम्बर 1944 को पचेरी गाँव के ठाकुर शिवसिंह व संग्राम सिंह, जो पचेरी की एक-चौथाई जमीन के पानेदर थे, ने ढाणी शिवसिंहपुरा में दतू यादव व बिरजू यादव नाम के दो किसानों को गोलियां चलाकर भून दिया तथा अनेक महिलाओं एवं किसानों को घायल कर दिया. सैंकड़ों मुकदमे बेदखली के कर दिए. वकील करणी राम भोजासर, पंडित ताड़केश्वर शर्मा, विद्याधर कुलहरी व नरोत्तम लाल जोशी ने बड़ी हिम्मत व दिलेरी से पचेरी के किसानों की मदद की. उन्होंने किसानों को हौसला बंधाया और उनकी निशुल्क पैरवी करने लगे. करणी राम ने पचेरी बड़ी में ही डेरा दाल दिया और अपनी जान की बजी लगाकर पीड़ितों की क़ानूनी सहायता की. (राजेन्द्र कसवा, p. 188)
रामेश्वरसिंह[1] ने लेख किया है....बड़ी पचेरी में भी इसी प्रकार का हत्याकांड हुआ। पचेरी का जागीरदार अपने संगी साथियों को लेकर किसानों के खेत में पहुंचा, जहां किसानों की औरतें घास काट रही थी। उसने औरतों को मारा पीटा। इस मारपीट में कई औरतें घायल हो गई, बहुतों के सिर हाथ पैरों पर चोट आई।
किसानों को खबर हुई तो दूत और बिरजू उन्हें बचाने आगे आये। जागीरदारों ने वृद्ध और निहत्थे किसानों को अपनी गोली का शिकार बनाया। शव काफी देर तक खेत में पड़े रहे। पुलिस जागीरदारों से मिली हुई थी। आगे चलकर लम्बे समय तक यह केस चलता रहा। दूत और बिरजू का यह बलिदान व्यर्थ नहीं हुआ। भूमि की पैमाइश हुई तथा जागीरदारी अत्याचार पर पूरी रोक लगायी गयी।
पचेरी कांड
रामेश्वरसिंह[2] ने लेख किया है.... झुंझुनू के पश्चिम में हरियाणा की सीमा पर स्थित पचेरी गांव के जागीरदार और किसानों का संघर्ष सन 1944 में चरम सीमा पर था। पचेरी के जागीरदार श्री शिव सिंह उसी गांव की 'ढाणी शिव सिंह' के काश्तकारों से मनमाना लगान वसूल करने लगे। शिव सिंह का पिता धोकल सिंह बड़ा अनुदार व्यक्ति था और अत्याचार की साक्षात मूर्ति था। उनका लड़का शिव सिंह भी काश्तकारों को तंग करने में अपने बाप से कम नहीं निकला। काश्तकारों की आर्थिक हालत बड़ी दयनीय थी। इस दयनीय हालत के कारण लगान देने में वे असमर्थ थे। जागीरदार को यह बात कहां बर्दाश्त होती। उसने इस ढाणी पर हथियारबंद हमला कर दिया। सारी ढाणी उजड़ गई--- लोग बेघर बार हो गए। खून खराबी हुई। दतू और बिरजू काश्तकारों को गोलियों से भून दिया गया। काश्तकारों की महिलाओं को भी मारा पीटा गया। इस खून खराबे की रिपोर्ट काश्तकारों की ओर से की गई। उसी ग्राम के कर्मठ नेता श्री ताड़केश्वर शर्मा ने काश्तकारों का पक्ष लिया। वे भी जागीरदारों के कोप भाजन हुए। रिपोर्ट पर पुलिस ने कोई कार्यवाही नहीं की। बाद में न्यायालय में रिपोर्ट की गई पर अदालत में मुलिज्मान को तलब नहीं किया।
काश्तकारों की ओर से श्री नरोत्तम लाल जोशी, श्री विद्याधर कुल्हारी, श्री संत कुमार शर्मा आदि पैरवी कर रहे थे। इस दौरान जागीरदार शिव सिंह ने
काश्तकारों पर सैकड़ों मुकदमे जमीन से बेदखली के कर दिए। मुकदमों की संख्या बहुत ज्यादा थी। कानून व व्यवस्था की हालत बिगड़ी हुई थी। जागीरदार पैसे की ताकत से डरा-धमका और खून खराबा करके काश्तकारों से जमीन छुड़ाने पर आमादा थे। इन सभी कारणों से राज्य सरकार ने इन सब दावों को पचेरी गांव में कोर्ट कायम कर निर्मित करने का आदेश दिया। मजिस्ट्रेट साहब ने पचेरी में कोर्ट लगाना आरंभ कर दिया। अब काश्तकारों की ओर से मौके पर उपस्थित रहकर पचेरी गांव में पैरवी करने का प्रश्न उपस्थित हुआ। काश्तकारों की हालत बहुत खराब थी। उनके पास पैरवी के लिए रुपए देने को नहीं थे। मौके पर मुकदमा पचेरी गांव में पैरवी करने को कोई वकील तैयार नहीं था। यह कोर्ट कई महीनों तक चलने को थी। उस समय के वरिष्ठ वकीलों को झुंझुनू छोड़ना न तो संभव था तथा न वे त्याग करने को तैयार थे। श्री नरोत्तम लाल जी जोशी ने जब पूरी बात श्री करणी राम जी को बताई तो उन्हें यह कार्य करना स्वीकार कर लिया। करणी राम जी तो गरीबों के दास थे उन्होंने गरीब काश्तकारों की सेवा का व्रत ले रखा था। सभी कठिनाइयों एवं सुविधाओं के होते हुए भी सहर्ष पचेरी गांव में काश्तकारों से बिना फीस लिए पैरवी करना मंजूर कर लिया। लेकिन उन्होंने जोशी जी को स्पष्ट कह दिया कि वे अभी नए वकील है। उन्हें कानून की पूरी जानकारी नहीं है अतः मुकदमे खराब हो सकते हैं। श्री जोशी जी ने उन्हें आश्वस्त किया कि वे समय-समय पर इन मुकदमों को संभालते रहेंगे।
करणी राम जी को उस समय वकालत करते हुए करीब एक डेढ़ साल का ही समय हुआ था। श्री जोशी जी ने करणी राम जी की मदद के तथा लिखा पढ़ी आदि के लिए अपने चाचा जीवन राम जी को साथ भेज दिया। श्री करणी राम जी पचेरी चले गए और काश्तकारों की ओर से पैरवी करने लगे। अदालत सुबह से शाम तक चलती थी। अदालत में पैरवी करने के अलावा जवाब दावा लिखना, सबूत आदि तैयार कर पेश करना बड़ा कठिन काम था। करणी राम जी को सुबह से ही काम में जुट जाना पड़ता और देर तक मुकदमों की तैयारी करनी पड़ती थी। खाने-पीने नहाने तक के लिए समय नहीं मिल पाता था। जोशी जी समय-समय पर पचेरी आकर मुकदमों की पैरवी का जायजा लेते थे। उन्होंने करणी राम जी की पैरवी देख कर आश्चर्य किया कि इतने कम समय में करणी राम जी ने इतनी अच्छी पैरवी करने की दक्षता हासिल कर ली थी। उन्होंने करणी राम जी से कहा कि आप तो
मुझसे भी अच्छी पैरवी करते हैं अतः अब उनकी पैरवी को देखने की आवश्यकता नहीं है। काश्तकारों का असीम विश्वास करणी राम जी में जम गया। वे देवता की तरह उनको पूजने लगे। डरे हुए किसानों के मन में करणी राम जी की मौजूदगी से आत्मविश्वास एवं निडरता का भाव उत्पन्न हो गया। काश्तकार इस बात से पूर्ण आश्वस्त थे कि उनके प्रति होने वाले अन्याय का प्रतिकार करने वाले एक ऐसे व्यक्ति आ गए हैं जो एक प्रबल संगठन के प्रतिनिधि है तथा जिसका हृदय किसानों के प्रति प्रेम और ममत्व से भरा हुआ है।
Population
According to 2011 Census, the population of Pacheri Kalan was 3974 and of Pacheri Khurd, 1630 persons.[3]
Notable persons
- Pandit Tadakeshwar Sharma, leading hero of Shekhawati farmers movement.
- अलबाद सिंह पचेरी / महादेवा खाती पचेरी- 15 जून 1946 को झुंझुनू में किसान कार्यकर्ताओं की एक बैठक चौधरी घासी राम ने बुलाई. शेखावाटी के प्रमुख कार्यकर्ताओं ने इसमें भाग लिया. अध्यक्षता विद्याधर कुलहरी ने की. इसमें यह उभर कर आया कि भविष्य में समाजवादी विचारधारा को अपनाया जाये. जिन व्यक्तियों ने किसान सभा का अनुमोदन किया उनमें आप भी सम्मिलित थे. (राजेन्द्र कसवा, p. 201-03).
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