Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram/Shekhawati Me Shahidon Ki Parampara
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पुस्तक: शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम
लेखक: रामेश्वरसिंह, प्रथम संस्करण: 2 अक्टूबर, 1984शेखावाटी का इलाका जागीरी जुल्मों की केन्द्र भूमि रहा है। यहां के भौमियां और छोटे-छोटे जागीरदार बड़े निर्दयी और दुर्दांत थे। किसानों से वे माल के अलावा 50 तरह की लागबाग लेते थे और बेगार की कोई सीमा नहीं थी। अनेकों अवसरों पर किसान को पकड़ लिया जाता और चाहे जो काम उससे लिया जाता। जागीरदार की खुदकाश्त की भूमि उसे ही बेगार में जोतनी पड़ती और बोने से लेकर काटने तक का सारा काम उसे करना पड़ता था।
अनेकों सामाजिक असमानताओं का किसान शिकार था। वह विवाह के समय भी घोड़े पर नहीं चढ़ सकता था, पक्के मकान नहीं बनवा सकता था। जागीरदार के आगे या उसकी उपस्थिति में खाट पर नहीं बैठ सकता था। उसकी स्त्री सोने चांदी के जेवर नहीं पहन सकती थी। जागीरदार जब मर जाता तो उसके क्षेत्र के सभी लोगों को अपने बाल देने पड़ते थे और स्त्रियों को रोने पीटने के लिए रावले जाना पड़ता था।
इन असमानताओं के अतिरिक्त किसान पर और भी तरह-तरह के अत्याचार होते थे। भूमि का लगान आधा कूंत के आधार पर लिया जाता था और कूंत स्वयं जागीरदार के आदमी करते थे। किसान की कोई नहीं सुनता था। बेदखली आम बात थी और जानबूझकर की जाती थी, भूमि जोतने के लिए बताते समय किसान से नजराना लिया जाता था। उसे बेदखल कर दूसरे को वह भूमि बता देते और फिर उससे नजराना ले लेते।
शेखावाटी का किसान आगे चलकर सन 1930 के आसपास से आर्य समाज के प्रचार प्रसार और ब्रिटिश भारत में हो रहे आन्दोलन आदि के कारण सचेत
हो गया था तथा इन बेजा हरकतों का विरोध करने लगा था। अब भी वह पूरी तरह संगठित नहीं हो पाया था। अतः जागीरदारों के विरोध में जो कुछ हुआ वह अभी तक व्यक्तिगत प्रयास ही था। कई स्थानों पर सामूहिक प्रतिरोध भी हुये थे।
शेखावाटी के इस क्षेत्र में कुछ उत्साही नेता किसानों में जागृति का मंत्र फूंक रहे थे। ऐसे नेताओं में श्री भूधाराम जी और उनके भाई श्री चिमनाराम जी सांगासी प्रमुख थे। दोनों ही भाई अजीब लगन के थे और दृढ़ निश्चयी थे। उन्होंने जाट जाति की जागृति में महत्वपूर्ण योगदान किया था।
श्री पन्ने सिंह जी देवरोड़ बड़े ओजस्वी नेता थे, जिन्होंने अपनी छोटी सी उम्र में इतने काम किये जो लम्बे समय मंम भी होने मुश्किल है। ऐसे ही नेताओं में थे श्री गोविन्दराम हनुमानपुरा और श्री लादूराम किसारी, ये पार्टी के लोग थे जो सुधारवादी दृष्टिकोण लिए युगों-युगों से सोई इस जाति के कान में जागरण का मंत्र फूंक रहे थे। उनका काम आगे की पीढ़ी के नेतृत्व ने पूरा किया और किसान पूरी तरह जाग गया. इस जागृती में जघीना के ठाकुर देशराज, भरतपुर के कुँवर रतन सिंह और पृथ्वी सिंह बेधड़क का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
श्री देवीबक्स जी सर्राफ मंडावा आर्यसमाज के इस क्षेत्र में प्रबल स्तम्भ थे। उन्होंने आर्य समाज के सिद्धान्तों का किसान वर्ग में प्रचार करवाया और सुधार के अनेकों प्रयत्न किये। उनके प्रयास से कई लोग उठ खड़े हुए और जागीरी जुल्मों का प्रतिकार करने लगे। सरदार हरलाल सिंह को तैयार करने में उनका ही प्रमुख हाथ रहा है।
शहीदों का बलिदान का ऋण अब शुरू हुआ। अनेकों सदियों की गुलामी के बन्धन तोड़ने को किसान छटपटा रहा था। मातृभूमि खून मांग रही थी। सदियों से अधिकार का उपभोग करने वाला जागीरदार सहज ही अपने अधिकार से वंचित होना नहीं चाहता था। ऐसी अवस्था में प्रतिरोध और प्रतिकार की इस प्रक्रिया में बलिदान अवश्यम्भावी हो गया था।
डूंडलोद ठिकाने का जागीरदार अपने आपको दमनकारियों की अग्रिम पंक्ति में मानता था। वह अत्याचारों के लिए बदनाम था। उसने जयसिंहपुरा गाँव के किसानों को बेदखल करने के लिए गाँव पर चढ़ाई कर दी। किसान अपनी भूमि माता से विलग होने को किसी सूरत में तैयार नहीं था। इस जगह पर किसान खेतों पर एकत्रित हो गये। यहां पर भिड़न्त हुई जिसमें अनेकों निहत्थे किसान घायल हो गए। यहां का वीर किसान टीकूराम इस संघर्ष में मारा गया। यह आषाढ़ माह सम्वत 1991 की घटना है।
जागीरदार पर कत्ल का मुकदमा बना तथा जयसिंहपुरा के किसानों की सहायतार्थ लोग उलट पड़े। जागीरदार को यह जुल्म बड़ा भारी पड़ा। ठिकाना आफत में फंस गया। आखिर रियासत जयपुर को बीच में पड़कर सलटारा करना पड़ा। जमीन की पैमाइश हुई और किसानों को पट्टे उनकी जमीन के दे दिए गये। किसानों के हौसले अब बुलन्द हो चुके थे।
सं. 1991-92 में बाजीसर गांव में भी लगान के मामले पर झगड़ा हुआ। वहां के वीर किसान श्री घड़सीराम जब खलिहान में अनाज निकाल रहे थे तब जागीरदारों ने उनको कत्ल कर दिया।
पातुसरी गांव मंडावा ठिकाने का था। मनमाना लगान जागीरदार वसूल करता था। साथ ही बेदखली की तलवार सिर पर लटकाये रखता था। गांव वालों ने सामूहिक तौर पर मुकाबला किया। श्री हरदेव सिंह और श्री बालूराम इनमें अग्रणी थे। यह घटना सन 1939 के समय की है। ठिकाने ने हमला किया। गांव वालों ने अहिंसात्मक ढंग से प्रतिरोध किया। सारा गांव खाली हो गया, फसलें जल गयी, मवेशी मारे गये पर गाँव वाले झुके नहीं और उन्होंने ठिकाने को लगान नहीं दिया। पूरे के पूरे गांव की बेदखली का यह अनुपम उदाहरण था।
सन 1946 में चनाणा गाँव में एक विशाल सभा का आयोजन किया गया। हजारों की संख्या में किसान यहां एकत्रित हुये।चनाणा का जागीरदार इसे अपने अधिकारों को चुनौती मानता था। इसे वह अपना अपमान मानता था। सम्मेलन में श्री टीकाराम जी पालीवाल इसकी अध्यक्षता कर रहे थे। सरदार हरलाल सिंह, श्री
नरोत्तम लाल जी जोशी आदि नेता इस सम्बोधित कर रहे थे।
जागीरदारों ने अपने लोगों के साथ इस समय हमला कर दिया। जागीरदारों के पास बंदूके, तलवार, भाले आदि थे किसान भी संगठित थे, पर उनके पास सिर्फ लाठियां ही थी। यहां भिड़न्त हुई, जिसमें अनेक लोग घायल हुये। यहां श्री हनुमानाराम (सीथल) जागीरदारों का प्रतिरोध करते हुए मारे गये। इनकी छतरी यहां आगे चलकर बनाई गई, जो इस वीर के बलिदान का स्मरण नई पीढ़ी को करा रही है।
हुकमपुरा में हरलाल सिंह किसान अपना खेत जोत रहा था। भाद्रपद कृष्ण पक्ष की सप्तमी को गुढा तथा लीला की ढाणी के जागीरदार लोग सैकड़ों की तादाद में हथियारबन्द आये। हरलाल सिंह को खेत जोतने से मना किया। किसान ने अकेले ही इन लोगों का सामना किया और आखिर भूमाता की रक्षार्थ बलिदान हो गया। जागीरदारों ने पूरे गांव को लूटा। मवेशी ले गये और जो कुछ सामान मिला, उसे भी उठा लिया। शेष नष्ट कर दिया। जाते समय किसान का मृत शरीर भी ले गये।
खीरोड में भी ऐसी घटना हुई। लगान का झगड़ा हर साल होता था। जागीरदार खड़ी फसल बिना लगान दिए काटने नहीं देता था। लगान के बदले खड़ी फसल बरबाद होती रहती थी। यह किसानों को बर्दाश्त नहीं था। खीरोड के किसानों ने संगठित होकर जागीरदारों के इस अधिकार का प्रतिरोध किया। उन्होंने उनके हुक्म की कोई परवाह नहीं कर अपनी मेहनत से तैयार की गई फसल की कटाई करने लगे। उधर जागीरदार भी इकठ्ठे होकर आये और उन्होंने किसानों पर हमला कर दिया। किसानों ने इसका भरपूर प्रतिकार किया और कई लोग घायल हो गये।
रघुनाथपुरा में भी इसी प्रकार की वारदात हुई। गाँव के लोग संगठित होकर जागीरदार का मुकाबला कर रहे थे। उदयपुरवाटी के भौमियों ने एकत्रित होकर गाँव के किसानों पर रात को हमला किया। श्री मंगलाराम गांव के मुखिया
थे, उसके घर पर हमला किया गया। गाँव वाले मुकाबले पर आ गये। आक्रमणकारी डर कर भाग गए।
सीकर जिले के खुड़ी गाँव में किसानों पर अनेकों अत्याचार किये जा रहे थे, यहां एक किसान के विवाह था। वह घोड़े पर चढ़कर तोरण मारने जा रहा था, अचानक जागीरदारों के समूह ने हमला कर दिया। इसका प्रतिकार किया गया तो ठिकाने की पुलिस ने गोली चलाना शुरू कर दिया, जिसमें अनेकों लोग घायल हो गये और कुछ लोग जान से मारे गये।
कूदन का गोलीकाण्ड भी शहीदों की परम्परा में एक कड़ी जोड़ता है। सीकर ठिकाने की पुलिस की बबर्रता का यह एक अनुपम उदाहरण था। किसान ने संगठित होकर अन्याय का मुकाबला किया था, इस पर पुलिस ने गोली चला दी फलस्वरूप कई लोग मारे गये थे।
बड़ी पचेरी में भी इसी प्रकार का हत्याकांड हुआ। पचेरी का जागीरदार अपने संगी साथियों को लेकर किसानों के खेत में पहुंचा, जहां किसानों की औरतें घास काट रही थी। उसने औरतों को मारा पीटा। इस मारपीट में कई औरतें घायल हो गई, बहुतों के सिर हाथ पैरों पर चोट आई।
किसानों को खबर हुई तो दूत और बिरजू उन्हें बचाने आगे आये। जागीरदारों ने वृद्ध और निहत्थे किसानों को अपनी गोली का शिकार बनाया। शव काफी देर तक खेत में पड़े रहे। पुलिस जागीरदारों से मिली हुई थी। आगे चलकर लम्बे समय तक यह केस चलता रहा। दूत और बिरजू का यह बलिदान व्यर्थ नहीं हुआ। भूमि की पैमाइश हुई तथा जागीरदारी अत्याचार पर पूरी रोक लगायी गयी।
श्री करणीराम जी व श्री रामदेव जी की हत्या का विवरण पुस्तक में विस्तार से अन्यत्र दिया गया है। यह शहादत अन्तिम थी। एक आजाद देश में भी इस प्रकार अत्याचार चल रहे थे, मानो शासन सत्ता जनता की सरकार के हाथ में नहीं होकर जागीरदारों के हाथ में थी। इसका प्रमुख कारण यह था कि लम्बे समय से शासन से सयुंक्त रहने के कारण जागीरदारों का प्रभाव अब भी बना हुआ था।
पुलिस के अधिकांश व्यक्ति पुरानी व्यवस्था से जुड़े थे अतः वे जानबूझकर जागीरदारों की मदद करते और शासन की नीतियों को निस्तेज बना देते थे।
इन शहादतों से और सामूहिक प्रतिकार से जागीरदार बौखला उठे थे, लगान वसूली उन्हें भारी पड़ रही थी। बेदखली का जमाना बन्द हो चुका था। किसानों की सोई शक्ति जब जाग उठी तो उसका मुकाबला करना जागीरदारों के बस की बात नहीं थी। लम्बी परम्परा का अन्त बलिदान मांगता है। यहां भी बलिदान हुए, रक्त बहा, लोगों का सर्वस्व लुटा पर सदियों से चले आते हुए अत्याचार का इससे अन्त हो गया था।
"टूट जाओ परन्तु अन्याय के सामने झुको नहीं। " ------- सुभाष चन्द्र बोस