Patalaloka

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Patala (पाताल) is a mythological region composed of seven lokas, the seventh and lowest of them is also called Patala or Nagaloka, the region of the Nagas.

Origin

Variants

History

In Mahabharata

Nagaloka (नागलोक) Mahabharata (III.81.12)

Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 81 mentions names of Tirthas (Pilgrims). Nagaloka (नागलोक) is mentioned in Mahabharata (III.81.12).[1].....Proceeding next to Sarpadarvi (सर्पदर्वी) (III.81.12), that excellent tirtha of the Nagas, one obtaineth the merit of the Agnishtoma sacrifice and attaineth to the region of the Nagas (Nagaloka).

Patalaloka

Patalaloka (पाताललोक) , in Hindu cosmology, denotes the seven lower regions of the universe - which are located under the earth. Patala is often translated as underworld or netherworld. Patala is composed of seven regions or lokas, the seventh and lowest of them is also called Patala or Naga-loka, the region of the Nagas. The Danavas, Daityas , Yakshas and the snake-people Nagas live in the realms of Patala.[2] According to Hindu cosmology, the universe is divided into the three worlds: Svarga (Heaven: six upper regions), Prithvi (earth) and Patala (the seven lower regions)- the underworld and netherworld.[3]

Different realms of Patala are ruled by different demons and Nagas; usually with the Nagas headed by Vasuki assigned to the lowest realm.[4] Vayu Purana records each realm of Patala has cities in it. The first region has the cities of the daitya Namuchi and Naga Kaliya; in the second Hayagriva and Naga Takshaka; in the third, those of Prahlada and Hemaka; in the fourth of Kalanemi and Vainateya; in the fifth of Hiranyaksha and Kirmira and in the sixth, of Puloman and Vasuki. Bali rules as the sovereign king of Patala.[5]

Patala or Nagaloka, is the lowest realm and the region of the Nagas, ruled by Vasuki. Here live several Nagas with many hoods. Each of their hood is decorated by a jewel, the light of which illuminates this realm.[6]

पाताल

विजयेन्द्र कुमार माथुर[7] ने लेख किया है ... पाताल (AS, p.546): पुराणों में वर्णित पाताल का कुछ विद्वान अमेरिका या मेक्सिको से करते हैं (देखे श्री मानकद, पुणे ओरिएंटललिस्ट 2,2)

पाताल लोक

पाताल लोक हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार पृथ्वी के नीचे स्थित बताये गये हैं। हिन्दू धर्म ग्रंथों में पाताल लोक से सम्बन्धित असंख्य कहानियाँ, घटनायें तथा पौराणिक विवरण मिलते हैं। पाताल लोक को नागलोक का मध्य भाग बताया गया है, क्योंकि जल-स्वरूप जितनी भी वस्तुएँ हैं, वे सब वहाँ पर्याप्त रूप से गिरती हैं। पाताल लोकों की संख्या सात बतायी गई है।

निवासी: पाताल लोक में दैत्य तथा दानव निवास करते हैं। जल का आहार करने वाली आसुर अग्नि सदा वहाँ उद्दीप्त रहती है। वह अपने को देवताओं से नियंत्रित मानती है, क्योंकि देवताओं ने दैत्यों का नाश करके अमृतपान किया तथा अमृत पीकर उसका अवशिष्ट भाग वहीं रख दिया था। अत: वह अग्नि अपने स्थान के आस-पास नहीं फैलती। अमृतमय सोम की हानि और वृद्धि निरंतर दिखाई पड़ती है। सूर्य की किरणों से मृतप्राय पाताल निवासी चन्द्रमा की अमृतमयी किरणों से पुन: जी उठते हैं। [8]

सात पाताल लोक: हिन्दू धर्म के शास्त्रों में पृथ्वी के नीचे स्थित पाताल लोक की गहराईयों को लेकर अद्भुत तथ्य हैं, जिनके अनुसार भू-लोक यानि पृथ्वी के नीचे सात प्रकार के लोक हैं, जिनमें पाताल लोक अंतिम है। विष्णु पुराण भी इस संख्या की पुष्टि करता है। विष्णु पुराण के अनुसार पूरे भू-मण्डल का क्षेत्रफल पचास करोड़ योजन है। इसकी ऊँचाई सत्तर सहस्र योजन है। इसके नीचे ही सात लोक हैं, जिनमें क्रम अनुसार पाताल नगर अंतिम है। सात पाताल लोकों के नाम इस प्रकार हैं- 1. अतल, 2. वितल, 3. सुतल, 4. रसातल, 5. तलातल, 6. महातल, 7. पाताल

पौराणिक उल्लेख: पुराणों में पाताल लोक के बारे में सबसे लोकप्रिय प्रसंग भगवान विष्णु के अवतार वामन और राजा बलि का माना जाता है। बली ही पाताल लोक के राजा माने जाते हैं। रामायण में भी अहिरावण द्वारा राम-लक्ष्मण का हरण कर पाताल लोक ले जाने पर श्री हनुमान के वहाँ जाकर अहिरावण वध करने का प्रसंग आता है। इसके अलावा भी ब्रह्माण्ड के तीन लोकों में पाताल लोक का भी धार्मिक महत्व बताया गया है।

सर्वदेवी

सर्वदेवी (AS, p.934): महाभारत, वनपर्व 83, 14 15 में वर्णित तीर्थ (पाठांतर सर्पदेवी) - 'सर्वदेवी समासाद्य नागानां तीर्थमुत्तमम्। अग्निष्टोमपवाप्नोति नागलोकं च विन्दति। ततोगच्छेत् धर्मज्ञ द्वारपालं तरन्तुकम्।' वासुदेव शरण अग्रवाल के मत में यह वर्तमान सफीदों (पाकिस्तान) है। द्वारपाल शब्द संभवतः खैबर दर्रे के लिए प्रयुक्त हुआ है। द्वारपाल का उल्लेख महाभारत, सभापर्व 32, 12 में भी पश्चिमोत्तर में स्थित प्रदेशों के साथ है। सफीदों सर्वदेवी का ही फ़ारसी रूपांतरण प्रतीत होता है। [9]

External links

References

  1. सर्पदर्वीं समासाद्य नागानां तीर्थम उत्तमम, अग्निष्टॊमम अवाप्नॊति नागलॊकं च विन्दति (III.81.12)
  2. Wilson, Horace Hayman (1865). "Chapter V". The Vishnu Purana (Translation) II. London: Trubner & co. pp. 209–213.
  3. Swami Parmeshwaranand. Encyclopaedic Dictionary of Purāṇas 1. pp. 762–3.
  4. Wilson, Horace Hayman (1865). "Chapter V". The Vishnu Purana (Translation) II. London: Trubner & co. pp. 209–213.
  5. Wilson, Horace Hayman (1865). "Chapter V". The Vishnu Purana (Translation) II. London: Trubner & co. pp. 209–213.
  6. Mani, Vettam (1975). Puranic Encyclopaedia: A Comprehensive Dictionary With Special Reference to the Epic and Puranic Literature. Delhi: Motilal Banarsidass. pp. 580–1. ISBN 0-8426-0822-2.
  7. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.546
  8. महाभारत, उद्योगपर्व, अध्याय 99
  9. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.934