Pishacha

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Author:Laxman Burdak, IFS (Retd.)

Pishacha (पिशाच) was a tribe and republic known to Panini and mentioned in Mahabharata. They fought Mahabharata War in Pandava's side

Mention by Panini

Pishacha (पिशाच), a warlike tribe, is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [1]

History

V. S. Agrawala[2] mentions Sanghas known to Panini which includes - Pishacha (पिशाच), under Parshvadi (पर्शवादि) (V.3.117).


V. S. Agrawala[3] mentions Ayudhajivi Sanghas in the Ganapatha, which includes - Pisācha – Literally a people who were consumers of raw flesh. Grierson has conclusively shown that the inhabitants of the North Western Frontier, i.e. Gilgit, Chitral and Kafiristan, where of Pishacha tribe, were cannibalism, eating raw flesh, once prevailed and he also observed that in the south of the Kafir country, round about Laghman, are the


[p.448]: Pasai Kafirs whom Dr. Hoernle proposed to identify with Pishacha as a phonetically sound equation (Pishacha, JRAS, 1950, pp.285-288). They were originally Aryan people, who inhabited north west India and parts of Himalayas, and were closely connected with Khasas, Nagas and Yakshas. Pargiter agrees to this that they were the real human beings. The existence of Pishachi prakrit language is so well attested to by literary references.


According to one legend, they are sons of Kashyapa and Krodhavasa, one of the daughters of Prajapati Daksha. The Nilamat Puran of the 7th century mentions the valley of Kashmir being inhabited by two tribes: the Nagas and the Pisachas.

The origin of Piśāca is unknown, although it may be the personification of the will-o'-the-wisp.[4]

Pāṇini, in his Aṣṭādhyāyi, described the Piśāca as a "warrior clan". In the Mahābhārata, the "Piśāca people" (equivalent to the modern day Nuristani people) are said to live in Northwest India and they are descendants of Prajāpati Kaśyapa.[5]

In Mahabharata

Mahabharata (VI.46.49),(VI.83.8),(VI.83.8),(VIII.30.44),(VIII.30.78),(IX.36.21),(XIV.8.5), (XIV.8),

Bhisma Parva, Mahabharata/Book VI Chapter 46 tells that Pishacha fought in Yudhisthira's army mentioned in verse (VI.46.49).... "And Yudhishthira with ....the Pisachas, with the Kundavishas, and the Mandakas, Madaka, Kadaka and Tanganas other Tanganas,....[6]


Karna Parva/Mahabharata Book VIII Chapter 30 description about blaming the Vahikas and Madrakas. It mentions Pishacha in verse (VIII.30.44)....that There are two Pishachas named Vahi and Hika in the river Vipasha. The Vahikas are the offspring of those two Pishachas. [7]


Shalya Parva, Mahabharata/Book IX Chapter 36 describes Baladeva's journey along the bank of the Sarasvati river. Pishachas are mentioned in verse (IX.36.21)....."There dwell Yakshas, and Vidyadharas, and Rakshasas of immeasurable energy and Pisachas of immeasurable might, and Siddhas, numbering thousands. [8]


Aswamedha Parva, Mahabharata/Book 14 Chapter 8 mentions that There is a peak named Munjaban (Punjavan) on the summits of the Himalaya mountains, where the adorable Lord of Uma (Mahadeva) is constantly engaged in austere devotional exercises. Pishacha as attendants are mentioned in verse (XIV.8.5)...[9]

पिशाच

विजयेन्द्र कुमार माथुर[10] ने लेख किया है .....पिशाच (AS, p.561): 'द्रौपदेयाभिमन्युश्च सात्यकिश्च महारथ:, पिशाचादारदाश्चैव पुंड्रा: कुंडीविषै: सह'। महाभारत, भीष्मपर्व, 50,50

दरद देश के निवासियों तथा पिशाचों का उपर्युक्त श्लोक में, जिसमें भारत के पश्चिमोत्तर सीमांत पर रहने वाली जातियों का उल्लेख है, साथ साथ नामोल्लेख होने से यह अनुमेय है कि पिशाच देश, दरद देश, वर्तमान दर्दिस्तान के निकट होगा। वास्तव मे इस देश की अनार्य तथा असभ्य जातियों के लिए महाभारत के समय में 'पिशाच' शब्द व्यवहृत था।

पिशाच देश के योद्धा महाभारत के युद्ध में पांडवों की ओर से लड़े थे। इस देश के निवासियों की भाषा 'पैशाची' नाम से प्रसिद्ध है, जिसमें प्रतिष्ठान, महाराष्ट्र निवासी गुणाढ्य की वृहत्‌कथा लिखी गयी थी। पैशाची को 'भूत भाषा' भी कहा गया है। इस भाषा का क्षेत्र भारत का पश्चिमोत्तर प्रदेश और पश्चिमी कश्मीर था, जिसकी पुष्टि महाभारत के उपर्युक्त लेख से भी होती है। कहा जाता है कि गुणाढ़्य पिशाच देश (पश्चिमी कश्मीर) में प्रतिष्ठान से जाकर बसे थे।

कुछ लोगों का यह भी कहना है कि आर्यों से पूर्व, कश्मीर देश में नाग जाति का निवास था और पैशाची इन्हीं लोगों की जातिय भाषा थी। सम्भव है कि पिशाच नामक लोग इसी जाति से सम्बंधित हों और उनके बर्बर आचार व्यवहार के कारण 'पिशाच' शब्द संस्कृत में दरिद्र की भाँति एक विशेष अर्थ का द्योतक बन गया हो। (दे.दरद देश)

दरद देश

विजयेन्द्र कुमार माथुर[11] ने लेख किया है ...दरद = दर्दिस्तान (AS, p.426): महाभारत में दरदनिवासियों का काम्बोजों के साथ उल्लेख से ज्ञात होता है के इनके देश परस्पर सन्न्निकट होगे- 'गृहीत्वा तु बलं फाल्गुन: पांडुनंदन: दरदान्‌ सह काम्बौजैरजयत्‌ पाकशासिनि:।' महाभारत, सभापर्व, 27,23. दरद देश पर महाभारत के अनुसार अर्जुन ने दिग्विजय यात्रा के प्रसंग में विजय प्राप्त की थी।

दरद का उल्लेख विष्णु पुराण में भी है और टॉलमी तथा स्ट्रेबो ने भी दरदों का वर्णन किया है। दरद का अभिज्ञान 'दर्दिस्तान' के प्रदेश से किया गया है जिसमें गिलगित और यासीन का इलाक़ा शामिल है। यह प्रदेश उत्तरी कश्मीर और दक्षिणी रूस के सीमांत पर स्थित है। विल्सन के अनुसार दरद लोगों का इलाक़ा आज भी वहीं है, विष्णु पुराण, टॉलमी और स्ट्रेबो के समय था, अर्थात् सिंध नदी द्वारा संचित वह प्रदेश जो हिमालय की उपत्यकाओं में स्थित है। दरतपुरी दरद की राजधानी थी। (मार्कंडेय पुराण,57) इसका अभिज्ञान डॉ. स्टाइन ने गुरेज से किया है। संस्कृत साहित्य में 'दरद' और 'दरत' दोनों ही रूप मिलते हैं। कुछ विद्वानों का मत है कि संस्कृत का शब्द 'दरिद्र' 'दरद' से ही व्युत्पन्न है और मौलिक रूप में यह शब्द दरदवासियों की हीनदशा का द्योतक था.

External links

References

  1. V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.447, 448
  2. V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.500
  3. India as Known to Panini,p.447-48
  4. Sanskṛit-English dictionary : etymologically and philologically arranged with special reference to cognate Indo-European languages (Corrected ed.). Delhi: Motilal Banarsidass. 2005. p. 628. ISBN 81-208-3105-5.
  5. The Piśāca languages of north-western India, Sir George Abraham Grierson, Royal Aisatic Society, 1906
  6. पिशाचा दरदाश चैव पुण्ड्राः कुण्डी विषैः सह, मडका कडकाश चैव तङ्गणाः परपङ्गणाः (VI.46.49)
  7. बहिश च नाम हलीकश च विपाशायां पिशाचकौ, तयॊर अपत्यं बाह्लीका नैषा सृष्टिः परजापतेः (VIII.30.44)
  8. यक्षा विथ्याधराश चैव राक्षसाश चामितौजसः, पिशाचाश चामितबला यत्र सिथ्धाः सहस्रशः(IX.36.21)
  9. भूतानिपिशाचाशनासत्याव अश्विनाव अपि, गन्धर्वाप्सरसश चैव यक्षा थेवर्षयस तदा (XIV.8.5)
  10. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.561
  11. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.426