Sapadalaksha
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Sapadalaksha (सपादलक्ष) is the ancient name of Shivalika hills, a mountain range of the outer Himalayas. Shivalik literally means 'tresses of Shiva’.[1] Sapadalaksha includes Dehradun-Haridwar region.[2]
Sapadalaksha was the ancient name of Nagaur. Sapadalaksha included one lakh villages. Jobner region in Chauhan period was called Sapadalaksha.[3]
Variants
- Sapadalaksha सपादलक्ष (AS, p.933)
History
Ratan Lal Mishra[4] writes.... The chronology of Harshanath Inscription of Chauhan rulers is supported by their Bijolia Inscription of v.s. 1226 (1170 AD). As per record of Bards the place of origin of Chauhans is Mahishmati on the banks of Narmada River. Ahichhatrapur and Shakambhari were their first and second capitals. Their state was known as Sapadalaksha which included one lakh villages. As per Ojha Sapadalaksha was the name of Nagaur. Shakambhari was the ancient name of Sambhar.
Inscriptions as well as old historical chronicles connect Chauhans with Jangaladesha and Sapadalaksha. [5] [6]
The Kumarikhanda of the Skanda Purana which mentions a few other Sapadalaksha, i.e., territorial units supposed to have 1-1/4 lac villages. The Chauhans belonged to the Sakambhara-sapadalaksha which probably is the territorial unit meant by Wasaf who writes that "Siwalik contains 1,25,000 towns and villages." (ED., III, p. 31.) .</ref> [7]
सपादलक्ष
सपादलक्ष (AS, p.933): सपादलक्ष शिवालिक पर्वत श्रेणी (देहरादून-हरिद्वार, उत्तर प्रदेश की गिरिमाला) के निकट स्थित एक प्रदेश का प्राचीन नाम है। सपालदक्ष का अर्थ 'सवा लाख' है। 'सिवालिक' या 'शिवालिक' शब्द को इसी का अपभ्रंश माना जा सकता है। डॉ. भंडारकर के अनुसार दक्षिण के चालुक्य राजपूत मूलतः सपालदक्ष प्रदेश की राजधानी अहिच्छत्र के निवासी थे। (इंडियन एंटिक्विरी, 11). [8]
Chittor Victory pillar Inscription of 1460 AD
चित्तौड़ के कीर्तिस्तम्भ प्रशस्ति १४६० ई. [9] में सपादलक्ष का उल्लेख है. जहां कुम्भा का वर्णन हमें मिलता है वहां यह उल्लिखित है कि माण्डव्यपुर (मंडोर) से हनुमान की मूर्ति लाया और १५१५ वि.सं. में उसकी स्थापना दुर्ग के प्रमुख द्वार पर की. इसके अनन्तर कुम्भा द्वारा सपादलक्ष, नराणा, वसंतपुर और आबू जीतने का वर्णन है. महाराणा ने एकलिंगजी के मन्दिर के पूर्व की ओर कुम्भ-मंडप का निर्माण कराया. आगे चलकर मालवा और गुजरात की और सेना के प्रयाण का वर्णन मिलता है जो बडा रोचक है. इसी तरह जांगल प्रदेश तथा धुंकराद्रि और खंडेला की विजय के उल्लेख के साथ लेखक ने उस भाग की नैसर्गिक स्थिति पर भी प्रकाश डाला है. श्लोक १४६ में किसी शत्रु के पुर से (?) गणेश -मूर्ति को यहां लाकर स्थापित करने का उल्लेख है. इसी में डीडवाना की नमक की खान से कर लेना तथा विशाल सैन्य से खंडेले को तोड़ना भी उल्लिखित है.
A prasasti of the Sapadalaksha line
- १. ....
- २. प्रशास्तिम् ||१|| पञ्चैव यानि भुवनत्रय-कारणानि त्रेधा स्थितं नमह-
- 3. ...कन्याकाया: | पुष्पेषुदत्तपुरशासन-ताम्रपट्टे रोमांच-वर्ण्णरूचिरौनि
- ४....नागा: कति नाभवन् | समस्तार्थिकृतार्थत्वक्रियायां कल्पपादपा: |
- ५. ....(पुरभि?) द्धरिप्रताप: पृथ्वीप्रिय: । यो न वर्ण्णविकारेण कदा-चिल्लघु:
- ६. ....[पा]दपीठ: श्रीचाहमान इति भूमिपति: क्रमेण । किं वर्ण्यतेन्यदिहत-
- ७. ...वृतौ य: साधुवृत: पृथुश्री: ॥ निहत्य सुरारि-चक्रं यस्या-
- ८. ...र्त्तिम । सोमेश्वर: सुरवर: पृथुमंडपांत: प्रोन्मिलित: प्रतिरवै: प्रददा-
- ९. ....[से?] वापदं सुरपदं प्रिययासुरसौ नृप: ॥ अ....मथात्मजमात्मना
- १०. केसरी....पालिक व्रतमिवात्युपगच्छति स्म ॥१५॥ व [...सिंधु]पतिग्र-
- ११. ...दिननाथो मत्कुलस्यै वृद्ध: ....वचिंतां तस्य विश्रामहेतोरसृजद-जयमेरुं य....हि
- १२. ...॥१८॥ अवंतीपर्यन्ते विजितनरवर्म्म-तिनुतां मुदं नीत्वा येन प्रतिभटचमू मांसरुधिरै...प्रिय सह-
- १३. ...क कूटशतै: समुपार्जितै । अजयमेरुरनीयत येन तां कनकशैल-तुलां किल जिष्णुना ॥ र...थांतरं रि-
- १४. ...जिं विन्यस्य सिंहासने पुण्ये पुष्करतीर्थराजविपिने प्राप्ता परा नि[र्वृ]ति।: ॥२१॥ जयश्रियं श्री नरवर्म्मं च (?) रै: कुमार-
- १५. ...कूपे प्रह्लादकूपेप्यनिवृततृष्ण: । मन्ये समाक्रांतमरु: पिपासु: संसार-सिंधुं च सरस्वतीं च ॥२३॥ पुरे[प]रेषामनि-
- १६. ....पिता येन तुरुष्करक्तैर्विराजति स्माजयमेरुभूमि: । जयोत्सवे जीवित-वल्लभस्य वासो वसानेव कुसुम्भरक्तम-
- १७. ...कटम् ॥२६॥ वाष्पवारिणि कालिन्दीहरितानकयोषिताम् । सत्वा-क्रान्तस्य मिलिता यत्प्रयाणे रजस्वला ॥२७॥ विच...
- १८. ...२८ ॥ यत्सैनिकै: समरमूर्धनि मलवेशादाच्छिद्य सान्द्रमदमोदित-भृंगमाला आलानिता: करटिनो...
- १९. ...स्वल्पेनापि निपीडीत:...ष्यमाणैरिव तुल्यभाव: परेषु नाम्नापि नि...रस्य । यत्सौ स[म]...
- २०. तीं तन...हैव ॥३२॥ अभूत्ततोलंकरणं धरित्र्यास्तदी-
- २१. ...कुमारपाल: करवालपाल: ॥३४॥ आदाय य: प्रथ...
- २२. [रा]गिनीभिरभिनंदितभावनाभि: । सैवाफलत्सकलमंग...
- २३. ...न जनितं जगन्नेत्रं नीत्वा निजकुलगुरुं साक्षिपदवीम
- २४. ...रमिपि व्यक्तीचकार क्षितौ ॥३८॥...
- २५. ...यो जिष्णुभावे प्रभुतां...
- २६. ...धानीग्रहणाति [शंका?]...
- २७. ...र्णस्य स्थावरीं वृत्तिं [स्थापयामास यो] क्षितौ ॥४४॥
- २८. ...सकलासु दिक्षु...नीचो स्थितिं मा...
- २९. ... रक श्रीर...
Reference - Dasharatha Sharma: Early Chauhan Dynasties (800-1316 AD),ISBN 0-8426-0618-1 pp. 203-204 (a study of Chauhan political history, Chauhan political institutions, and life in the Chauhan dominions)
Notes by Wiki editor
- Karwal (करवाल) - It is a gotra of Jats found in Rajasthan and Madhya Pradesh.
- Dattapura (दत्तपुर) - Danta ? Danta (दांता) is a village in Danta Ramgarh tahsil in Sikar district of Rajasthan. It was ruled by Burdak clan.
- Prahladakoupa (प्रह्लादकूप) = Pallu (पल्लू ) is a village in Nohar tahsil in Hanumangarh district in Rajasthan. It was a thikana of Sihag Jats of Jangal Desh prior to its annexation by Rathores.
References
- ↑ Balokhra, J. M. (1999) The Wonderland of Himachal Pradesh. Revised and enlarged 4th edition. H.G. Publications, New Delhi.
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.933
- ↑ Dr. Raghavendra Singh Manohar:Rajasthan Ke Prachin Nagar Aur Kasbe, 2010,p. 83
- ↑ रतन लाल मिश्र:शेखावाटी का नवीन इतिहास, मंडावा, १९९८, पृ.36
- ↑ See Indian Antiquary , 1912, p. 196; ASR, VI, Plat e. XXI
- ↑ "Early Chauhan Dynasties" by Dasharatha Sharma, pp. 11-13
- ↑ "Early Chauhan Dynasties" by Dasharatha Sharma, pp. 11-13
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.933
- ↑ डॉ गोपीनाथ शर्मा: 'राजस्थान के इतिहास के स्त्रोत', 1983, पृ.146-147