Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram/Amar Path Ke Pathik Shri Karni Ramji

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पुस्तक: शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम

लेखक: रामेश्वरसिंह, प्रथम संस्करण: 2 अक्टूबर, 1984

द्धितीय खण्ड - सम्मत्ति एवं संस्मरण

12. अमर पथ के पथिक शहीद श्री करणीराम जी

श्री विद्याधर कुल्हरि,

वकील झुंझुनू

यद्धपि श्री करणीराम जी का जन्म मेरे पड़ोस के गांव भोजासर में हुआ था मगर उनकी माता का स्वर्गवास हो जाने से उनका लालन पालन व शिक्षण उनके मामा श्री मोहनराम जी अजाड़ी ने कराया था और जब वह वकालत करने सन 1948 में झुंझुनू आये तभी मेरा सर्वप्रथम परिचय हुआ।

श्री करणीराम जी बहुत सीधे सादे स्वभाव के थे। कम बोलते थे तथा उनकी बोली में मिठास था। अपने मिलनसार स्वभाव, सहानुभूति तथा स्पष्ट व मधुर वार्तालाप से किसानों एवं साथियों को सहज ही प्रभावित व आकर्षित करते थे। श्री करणीराम जी कोई विशेष प्रतिभाशाली व्यक्ति नहीं थे, न वकालत में विशेष दक्ष थे, मगर उनमें अपने कार्यो के प्रति पूरी निष्ठा और कर गुजरने की अभी अभिलाषा थी।

श्री करणीराम जी शुरू में श्री नरोतमलाल जी के सम्पर्क में आये। कुछ अर्से बाद पचेरी ग्राम में जो श्योजीपुरा नामक वहां के श्योसिंह ठाकुर ने दूसरे गाँवों के किसानों का गाँव बसाया था, उनसे ठाकुर के झगड़े शुरू हो गये थे। वहां किसान का कत्ल भी हो गया था,पूरा क्षेत्र अशांत था और किसानों पर बेदखली व लगान संबन्धी काफी दावे चल रहे थे, जिनकी पैरवी मैं व श्री नरोतम लाल जी करते थे,उन मुकदमों की तहकीकात मौके पर ही हो रही थी इसलिए हम लोगों के लिए लगातार वहां रहना सम्भव नहीं था अतः श्री नरोतम लाल जी ने यह कार्य श्री करणीराम जी को सौंप दिया।

वे वहां पर लगातार रहे और किसानों की पैरवी की। किसानों में अच्छी


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-26

तरह से घुलमिल गए व किसानों में आत्मीयता पैदा हो गई। वहां पर किसानों की जो दुर्दशा करणीराम जी ने देखी, उससे उनके दिल पर गहरा असर पड़ा और वे जागीरी प्रथा के घोर विरोधी हो गये हालांकि उनके मामा ठिकाना डूंडलोद के मुख्य चौधरी व कामदार थे और करणीराम जी का लालन पालन एवं शिक्षण उसी वातावरण में हुआ था। श्री करणीराम जी ने जिस कष्टमय परिस्थितियों में रहकर पूरी लगन व चेष्टा से पचेरी श्योसिंहपुरा में कार्य किया वह प्रशंसनीय है और वहीं से उनका सार्वजनिक जीवन शुरू हुआ और वह एक सच्चे व होनहार कार्यकर्ता के रूप में निखर कर आये।

यद्धपि श्री मोहनराम जी ठिकाना के चौधरी व कामदार थे और ठिकाना के कुकृत्यों में किसी न किसी प्रकार सम्मिलित भी रहते थे मगर वो एक संजिदा चतुर व दूरदर्शी व्यक्ति थे, जो किसान नेताओं से भी सम्पर्क रखते थे। गुप्त सूचनायें देते व अपनी सलाह भी देते थे। वह अकसर मेरे पिताजी श्री चिमनाराम जी से मिलने आते और वार्तालाप करते। तब मुझे गुस्सा भी आता था कि वह चौधरी क्यों आता है? ठिकानेदारों का सी.आई.डी.है और किसान आन्दोलन की जानकारी प्राप्त करके ठिकानेदारों को सूचना देता है मगर बाद में मुझे पता चला कि श्री मोहनराम जी की हमदर्दी भी किसानों से ही थी। वह श्री करणीराम जी के जागीरी प्रथा के विरोधी विचारों व कार्यो में बाधक नहीं बने बल्कि सहायक सिद्ध हुए।

श्री करणीराम जी को जागीरदारों के विरुद्ध संघर्षरत होने का दूसरा कारण भौमियों के क्षेत्र उदयपुरवाटी में श्री श्योनाथ सिंह जी भूतपूर्व एम.पी. व शहीद रामदेव सिंह जी की भूआ से विवाह होना भी है। यद्पि झुंझुनू जिले में बड़े ठिकानेदारों की जागीरों का लम्बे संघर्ष के बाद बन्दोबस्त हो चुका था मगर उदयपुरवाटी के किसान भूमि के बन्दोबस्त से वंचित थे और भौमियों को अपनी मनमानी करने व किसानों को हर प्रकार से यातनायें देने की पूरी छूट थी। उसका एहसास करणीराम जी को भी था। सन 1944 में उदयपुरवाटी के भौमिया जागीरदारों ने संगठित होकर जयपुर स्टेट का सशस्त्र मुकबला भी किया जिसमें जयपुर स्टेट झुकी जिसका लाभ उनको मिला।

जयपुर राज्य प्रजा मंडल के सन 1939 के सत्याग्रह आन्दोलन के पहले जयपुर रियासत जागीरदारों के खिलाफ थी। उनके स्वेछाचारी व मनमाने


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-27

अधिकारों पर अंकुश लगाना चाहती थी। भूमि का बन्दोबस्त करवाना चाहती थी। ठिकानेदारों के अधिकारों व उनकी हैसियत के संबंध में जयपुर रियासत ने एक विल्स कमेटी नियुक्त की थी जिसने ठिकानेदारों के खिलाफ रिपोर्ट तैयार की थी,जबकि ठिकानेदार अपने आपको रियासत के जागीरदार नहीं मानते थे बल्कि अर्द्ध स्वतंन्त्र हैसियत के मालिक मानते थे तथा रियासत को मामला देने के अलावा अन्य सभी अधिकार अपने में निहित समझते थे। कस्टम वसूली, भूमि बिक्री व लगान वसूली के पूर्ण अधिकार जयपुर रियासत में खेतड़ी, सीकर व उनियारा तीन ठिकानों को सीमित दीवानी व फौजदारी व रेवेन्यू वसूली के अधिकार भी थे। मगर जब जयपुर सत्याग्रह में किसानों ने खुलकर भाग लिया और ठिकानेदारों ने रियासत की मदद की। सत्याग्रहियों पर सब तरह के जुल्म किये तो रियासत के अधिकारियों की सहानुभूति ठिकानेदारों की तरफ हो गई थी और किसानों की मांगो को अनदेखी करने लगे बल्कि जो बन्दोबस्त लागू किया था उसमें भी ठिकानेदारों के पक्ष से तोड़ मरोड़ करदी गई। यदि सर मिर्जा इस्माईल प्राइम मिनिस्टर नहीं आता तो सम्भवतः बन्दोबस्त ही लागू नहीं होता। सर मिर्जा एक उदार प्रशासक थे, जिन्होंने रियासत में कुछ राजनैतिक सुधार किये, मगर सन 1942 के आन्दोलन में प्रजामण्डल का सक्रिय भाग नहीं लेने दिया।

यह दुर्भाग्य की बात रही कि जिस शुभ कार्य के लिये श्री करणीराम जी ने पूरी मेहनत व लगन से पचेरी श्योसिंहपुरा के किसानों के लिये काम किया और जिससे उनकी छवि उभरी, उसकी वजह से वे क्षय रोग से पीड़ित हो गये और प्राय: तीन साल तक इलाज कराते रहे वकालत छूट गई, सार्वजनिक कार्यो में भी भाग नहीं ले सके और अजाड़ी के खेत में कुटिया बना कर रहे, इससे से भी लोगों की उनके प्रति सहानुभूति बढ़ी। बीमारी के दौरान उनका सहचर एक हरिजन था, जो उनका सब खाने पीने व अन्य कार्य करता था। व हरिजनों के प्रति उनका प्रेम व छुआछूत के विरुद्ध प्रबल भावना प्रकट करता है।

लम्बी बीमारी से ठीक होने के बाद करणीराम जी ने पुनः वकालत शुरू की और सार्वजानिक क्षेत्र में भाग लेने लगे लेकिन सीमित कार्य करते थे।

स्मरण रहे मेरे स्व. पूज्य पिताजी चिमनाराम जी जिले के एक प्रतिष्ठित


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-28

पुराने आर्य समाजी व समाज सुधारक थे और सर्वमान्य किसान नेता थे जिनकी सलाह व निर्देशन में किसान आन्दोलन चला। सरदार हरलाल सिंह जी, फौजी राम जी व पन्ने सिंह जी उनके ही बनाये हुए अनुयायी थे।

झुंझुनू जिले में उदयपुरवाटी क्षेत्र सबसे ज्यादा अशान्त क्षेत्र था, जहां पर भूमि का बन्दोबस्त न होने के कारण भौमिया अपने आपको भूमि का मालिक मानते थे तथा जमीन पर किसानों के कोई अधिकार नहीं समझते थे। जो मनचाहा लगान लेते, चाही भूमि का आधा या एक तिहाई लगान लेते और तरह तरह की लाग बाग वसूल करते और किसानों पर भौमियों का पूरा आतंक रहता था।

किसान अपने आपको सुरक्षित नहीं समझते थे क्योंकि देव गाँव में एक पेड़ काटने के मामले को लेकर गोठड़ा के भौमियों ने देव गाँव में जाकर किसानों को गोलियों से दो किसानो को मार दिया था। हुकमपुरा में कत्ल कर दिया तथा ऐसी घटनायें प्रायः हर गाँव में होती रहती थी। भौमियां जागीरदार उदयपुरवाटी में भी काफी संख्या में है।

वे अन्य कोई कार्य आजीविका के लिये नहीं करते थे। पर्दा प्रथा होने से औरतें कोई काम नहीं करती थी, इसलिए वे अपनी जमीन की आमदनी से ही सब खर्च चलाते थे। इस वजह से किसानों व भौमियों में काफी संघर्ष चलता था। भौमियों किसानों को जबरन बेदखल करने की कार्यवाही की जिससे वे खुद जमीनों पर काबिज हो जावें या दूसरों को भारी रकम लेकर ऊँचे लगान कर देवें।

राजस्थान सरकार ने किसानों को इस प्रकार अनुचित खिलाफ कानून बेदखली से रोकने के लिए राजस्थान किसान सरंक्षण (आर. पी. टी. औ.) आर्डिनेंस जारी किया और एन्टीइजेक्टमेन्ट आफिसर नियुक्त किये जो अनुचित व अवैधानिक रूप से बेदखल किये गये किसानों के प्रार्थनापत्रों पर किसानों को पुनः जमीनों पर कब्जा दिलाने का कार्य करते थे।

उदयपुरवाटी में इस प्रकार हजारों बेदखल किये गये किसानों ने प्रार्थना


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-29

पत्र दिये थे, और श्री करणीराम जी अपने साथी वकीलों की मदद से गांव में जाकर किसानों की पैरवी करते थे, जिससे वे किसानों में आत्मसात हो गये। झुंझुनू जिले में जिस व्यक्ति को एन्टीइजेक्टमेन्ट ऑफिसर नियुक्त किया था वह भ्र्ष्ट तो था ही बल्कि भौमियों का पक्ष भी लेता था, जिसकी वजह से भौमियों ने और भी किसानों को बेदखल किया।

श्री दूलीचंद जैन एन्टीइजेक्टमेन्ट ऑफिसर ने किसानों को राहत देने के बजाय उनके अधिकांश प्राथना पत्र खारिज कर दिये और किसानों को जमीनों से वंचित होना पड़ा। ऐसे वातावरण में श्री करणीराम जी ने अथक परिश्रम करके किसानों को राहत पहुंचाने की भरसक कोशिश की। किसानों की उनमे पूर्ण आस्था थी।

करणीराम जी हमेशा ही किसानों से घिरे रहते थे और सबको सलाह व सान्त्वना देते रहते। श्री करणीराम जी बहुत सच्चे व सरल स्वभाव के व्यक्ति थे ओर सबके प्रिय थे, किसी से कठोर शब्द भी नहीं बोलते थे। वे पूर्णरूप से गाँधीवादी थे। वह सत्य पर अडिग रहने वाले निर्भीक व्यक्ति थे। जब वे किसानों के मुकदमों के लिये गाँव-गाँव फिरते थे,तब भी भौमियों को अखरते थे।

सन 1952 के प्रथम भाग चुनावों में करणीराम जी ने राजस्थान विधान सभा के लिये उदयपुरवाटी से ही चुनाव लड़ा, मगर तब तक भौमियों का बहुत ज्यादा दबदबा था। किसान व अन्य लोग उनसे दबते थे, इसलिये करणीराम जी चुनाव में हार गये, मगर उन्होंने किसानों से मुँह नहीं मोड़ा बल्कि दुगुने उत्साह व साहस से उन्होंने किसानों में घूम घूमकर काम करना शुरू किया।

उस वर्ष किसानों को राहत पहुंचाने के लिए राजस्थान सरकार ने एक आदेश पारित किया था कि किसानों से जागीरदार लोग लगान की बटाई में 1/6 हिस्से से ज्यादा अनाज नहीं ले सकेंगे। उदयपुरवाटी के भौमिये इस आदेश को मानने के लिए तैयार नहीं थे, क्योंकि पहले वो एक तिहाई व आधे बांटे तक वसूल करते थे। भौमियों ने जबरन अपनी मर्जी के मुताबिक पहले की तरह वसूली करनी चाही।


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-30

श्री करणीराम जी ने अपने साथी रामदेव जी, झाबर सिंह आदि कार्यकर्ताओं की मदद से किसानों को हिम्मत रखने व छठे हिस्से से ज्यादा बांटा न देने के लिये संगठित किया। भौमियां जबरन आधा या तीसरा बांटा का अनाज खलियानों से उठाकर ले जाना चाहते थे और किसान छठे बांटे से ज्यादा नहीं देना चाहते थे, जिससे पूरा क्षेत्र अशांत था, जगह जगह पुलिस पड़ी थी। एस.डी.एम.बराबर चक्कर लगाता रहता था और करणीराम जी अपने साथियों के साथ घूमधाम कर किसानों को अधिकारों की रक्षा के लिए तैयार करते थे। भौमियों ने श्री करणीराम जी व रामदेव जी को अपना शत्रु समझा और उनको मारने की धमकियां भी दी गई। अन्य लोगों से भी कहलवाया मगर श्री करणीराम जी व रामदेव जी अपने कर्तव्य से नहीं डिगे।

स्मरण रहे श्री करणीराम जी रामदेव जी के फूफा थे, तथा रामदेव जी उदयपुरवाटी के एक ठोस कार्यकर्ता थे,जो छाया की भांति करणीराम जी के साथ लगे रहते थे। उस वक्त चंवरा का ढेर इस अनाज वसूली को लेकर सब से ज्यादा तनाव पूर्ण अशान्त क्षेत्र बना हुआ था।

तारीख 5-5-52 को मैं किसी कार्यवश जयपुर गया हुआ था, वहा पर दीपसिंह भौमियां धमोरा ने मुझे कहा कि आप करणीराम जी को समझा दो वे किसानों को न उकसायें और उदयपुरवाटी में न जावें, वरना कोई भौमियां उनको मार डालेगा।

झुंझुनू जाकर मैनें श्री करणीराम जी को उपरोक्त बात बतलाई और सलाह दी कि यदि आप थोड़े समय के लिये उदयपुरवाटी में जाना टाल सको तो क्या हर्ज है यदि जावें तो अपनी सुरक्षा का पूरा प्रबन्ध रखना। इस पर करणीराम जी ने बड़ी हिम्मत व बहादुरी के साथ कहा कि विद्याधर जी! मैनें उदयपुरवाटी से चुनाव लड़ा है, इसलिए अब मेरा वहां के किसानों को मदद करना व उनके अधिकारों के लिये लड़ना, कर्तव्य हो गया है और मैं कर्तव्य से विमुख नहीं हो सकता चाहे मेरी जान भले ही चली जावे। मरना एक बार है कायर होकर नहीं मरना।

करणीराम जी के इस प्रकार निडर निर्भीक व अपने कर्तव्य के प्रति आस्था और सारगर्भित विचार जाने तो मैंने भी उनको जाने की अनुमति दी और हिम्मत


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-31

बंधाई। इसके बाद मई की भयंकर लू में भी करणीराम जी चले गये और फिर कभी नहीं लौटे।

13 मई 1952 को जब श्री करणीराम जी व रामदेव जी कड़कड़ाती दोपहरी की धूप में किसानों में घूम घूमकर चंवरा के ढेर में सेडू गुर्जर की ढाणी के छप्पर में विश्राम कर रहे थे, तो बन्दूक धारी भौमियों का एक झुण्ड घोड़ों पर बन्दूक ताने दोनों वीरों को मारने आया तो उनको देखकर सेडू की लड़की ने श्री करणीराम जी व रामदेव को जाकर इतला दी कि भौमिये उनको मारने आ रहे हैं। वे छिप जावें, मगर दोनों वीरों ने मौत की कोई परवाह नहीं की और अविचलित पास-पास बैठ गये। निर्दयी भौमियों ने आते ही दोनों को उसी अवस्था में गोलियों से भून दिया और उन्होंने उसी समय प्राण त्याग दिये, आत्मोत्सर्ग किया।

पास में ही पुलिस की टुकड़ी पड़ी थी, किसानों के खलिहान पड़े थे, सब जगह हाहाकार मच गया। मगर शस्त्रधारी भौमियों का पीछा करने की किसी की हिम्मत नहीं हुई। श्री करणीराम व रामदेव जी ने किसानों के लिये प्रसंशनीय बलिदान किया। करणीराम जी शहीद हुये उनका बलिदान व्यर्थ नहीं गया बल्कि जागीरी प्रथा के शव में आखिरी कील का कार्य किया। बाद में उदयपुरवाटी में भूमि का बन्दोबस्त भी हुआ और जागीरी प्रथा भी खत्म हुई।

भयंकर गर्मी की वजह से रात को जब मैं अपने मकान की छत पर सो रहा था, तो रात को 11 बजे के बाद मा.भागसिंह एक पुराने कार्यकर्ता ने आकर मुझे यह दुःखद समाचार दिया कि चंवरा में करणीराम जी व रामदेव जी को भौमियों ने कत्ल कर दिया। ऊपर बज्रपात हुआ और किंकर्तव्य विमूढ़ हो गया।

मैनें भागसिंह को तुरन्त नरोतम लाल जी के पास भेजा और फिर मैं भी सबके पास गया अन्य लोग भी एकत्रित हुए और फिर रात को हम लोग कलेक्टर के साथ 14 मई को सुबह चंवरा पहुंचे और स्व. करणीराम जी के मृत देहों के दर्शन किये। दोनों के शवों को झुंझुनू लाकर विद्यार्थी भवन के प्रांगण में दाह संस्कार किया।

चंवरा में करणीरामजी व रामदेव जी के कत्ल स्थान पर सालाना मेला भरता है और किसान करणीराम जी के उतसर्ग व बलिदान से प्रेरणा लेते हैं।


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-32

करणीराम जी के गांव भोजासर में उनकी मूर्ति लगाई गई है। यह कहना असंगत नहीं होगा कि श्री करणीराम जी व रामदेव जी बलिदान का फल श्री शिवनाथ सिंह जी भूतपूर्व एम.एल. ए. व एम.पी. को विशेषतया मिला। श्री करणीराम जी अमर हो गये, उनकी याद सदियों तक रहेगी।

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"अगर तुम्हारा अहंकार चला गया है तो किसी भी धर्मपुस्तक की एक भी पंक्ति बांचे बिना वहां बैठे हो, मोक्ष प्राप्त हो जायेगा।" ----विवेकानन्द


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-33

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