Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram/Janpratinidhitv Evam Jansewa

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पुस्तक: शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम

लेखक: रामेश्वरसिंह, प्रथम संस्करण: 2 अक्टूबर, 1984

प्रथम-खण्ड:जीवन-वृतांत

3. जन-प्रतिनिधित्व एवं जन सेवा

श्री करणी राम अपना निष्ठापूर्ण जन सेवा एवं संगठन के काम में असीम आस्था के बल पर ही जिला कांग्रेस के अध्यक्ष के पद पर आसीन थे। इस समय शीघ्र आने वाले प्रथम चुनावों की तैयारी हो रही थी। लोगों को कांग्रेस के समर्थन में तैयार किया जा रहा था। तरह-तरह के जोड़-तोड़ किए जा रहे थे।

प्रांतीय सरकार और शेखावाटी की स्थिति

जयनारायण जी व्यास के नेतृत्व में प्रांतीय सरकार कार्य कर रही थी। बहुत लंबे समय से यह आशा की जा रही थी कि जब देश स्वतंत्र होगा और सत्ता जनता में निहित होगी तो जनता की सरकार किसानों की मदद के लिए शीघ्र आवश्यक कदम उठाएगी पर प्रारंभ में ऐसा कुछ नहीं हो सका।

पंडित हीरालाल शास्त्री की सरकार लगातार विरोध का ही सामना करती रही। आखिरकार उसे 1950 में हटना पड़ा। यह सरकार किसानों के भले के लिए कुछ नहीं कर पाई। आगे चलकर जब व्यास मंत्रिमंडल बना तो चुनाव सर पर आ गए थे जिनके लिए विविध प्रकार की व्यवस्था करनी थी। अत: चाहते हुए भी सरकार प्रशासन सुधार की ओर अपना ध्यान नहीं लगा सकी। फलस्वरूप जागीरदारों के अत्याचारों में कोई कमी नहीं आई।

ये चुनाव कांग्रेस के लिए जीवन मरण के प्रश्न के रूप में उपस्थित हुए थे तथा बड़े महत्वपूर्ण थे। कांग्रेस के आंदोलन का मुख्य आधार नगरीय ही था तथा अभी ग्रामीण क्षेत्रों में उसे विस्तृत आधार नहीं मिल पाया था। इसके लिए निरंतर प्रयत्न जरूरी थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कांग्रेस ने अपना सारा ध्यान राज्यों के एकीकरण की और लगा दिया था, साथ ही मंत्रिमंडल के निर्माण का महत्वपूर्ण


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प्रश्न भी उसके सामने था। इन कारणों से कांग्रेस समर्थन के और अधिक विस्तृत बनाने के वांछित प्रयत्न नहीं हो सके थे।

दूसरी स्थिति यह थी कि ग्रामीण क्षेत्रों में जागीरदार और उनके छुट भैयों का अभी बड़ा दबदबा था। जनता उनसे अब भी भयभीत थी। इसके साथ ही हर स्तर पर कांग्रेस के आंतरिक मतभेद थे जो उभरकर इस समय सामने आ रहे थे।

शेखावाटी की स्थिति पर नजर डालना भी समीचीन है। यहां कांग्रेस को दोहरे विरोध का सामना करना पड़ रहा था। एक और किसान सभा के लोग थे जो कांग्रेस के विरोध में कमर कस कर तैयार थे। दूसरी और जागीरदार लोग थे जो लोगों को डरा धमका कर अपना पक्ष मजबूत कर रहे थे। उनके आतंक और भय के कारण तथा लंबे समय तक इस क्षेत्र का प्रशासन चलाने के कारण लोगों पर उनका असर था। अधिकांश लोग अज्ञानता के कारण बदलती परिस्थितियों से बिल्कुल अनभिज्ञ थे तथा देश में जो क्रांतिकारी परिवर्तन हो चुके थे उन्हें कोई जानकारी नहीं थी। इसके साथ-साथ ही जागीरदारों का धुआंधार प्रचार उन्हें बहका रहा था ।

उपर्युक्त परिस्थितियों में कांग्रेस इस क्षेत्र में अपना पहला महत्वपूर्ण चुनाव लड़ने जा रही थी। इसी समय तक चुनाव क्षेत्रों की सीमा का निर्धारण हो चुका था और तैयारियां धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी। शेखावाटी प्रदेश में चुनाव का सारा भार सरदार हरलाल सिंह जी के ऊपर था। इस भार में टिकटों का वितरण भी था जो उनकी सिफारिश पर ही हुआ था।

जागीरदारी प्रथा अब भी ज्यों की त्यों थी और वे लोग उसी प्रकार हासिल और लाग-बाग वसूल कर रहे थे। भोली भाली और निरक्षर जनता को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि राज पलट गया। उन्हें न कोई राहत मिली न किसी भी अत्याचार से मुक्ति। वही पुराने ढरे का जागीरदारी शासन अब भी चल रहा था।

सन 1952 के प्रथम चुनाव

चुनाव तय होने पर जागीरदारों ने पूरी तैयारी की। अब वे वोटों के माध्यम


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से अपना राज्य कायम रहने की कोशिश पर उतर आए थे। उन्होंने तलवारों की ताकत अब भी नहीं छोड़ी थी। शेखावाटी में अन्य स्थानों की तरह राजपूत कांग्रेस में नहीं आए थे। उन्होंने विभिन्न कांग्रेस विरोधी पार्टियों के माध्यम से जीतना उचित समझा था। जागीरदार और पदच्युत राजा महाराजा अब पूरी तरह संगठित हो गए थे और इस चुनाव को जीतने की भरपूर कोशिश कर रहे थे।

राम राज्य परिषद के नाम से धर्म की आधार शिला पर एक दल बनाया गया जो पूरी तरह राजनैतिक था। राजनैतिक वातावरण भी क्षुब्ध हो चुका था। गुंडागर्दी का आतंक चारों और छाने लगा था। झुंझुनू जिला इस प्रकार आतंकवादी प्रवृत्तियों का केंद्र हो रहा था। जागीरदार अपने समर्थक साम, दाम, दंड, भेद से जुटा रहे थे। जो लोग उनके सीधे नियंत्रण में थे उनको डरा धमका कर अपने पक्ष में कर रहे थे। दूसरों को फुसला, बहका कर अपने पक्ष समर्थन के लिए तैयार कर रहे थे।

कांग्रेस ने झुंझुनू जिले की 6 सीटों के लिए प्रतिनिधि चुनने का काम आगे बढ़ाया। सरदार हरलाल सिंह इस क्षेत्र के गणमान्य सर्वोच्च नेता थे और कृषकों पर उनका काफी प्रभाव था। लंबे समय तक उन्होंने नेतृत्व एवं जन सेवा की थी। पर लोग इन भावनाओं से प्रभावित होते हुए भी जागीरी आतंक और सदियों की गुलामी की भावना से ग्रस्त थे। सरदार जी नवलगढ़ और चिड़ावा दोनों क्षेत्र में स्वयं खड़े हो गए। मुकाबला बहुत कठिन था।

उदयपुरवाटी के क्षेत्र के लिए उम्मीदवार को चुनने का काम सबसे मुश्किल था। इसका कारण यह था कि यहां के भौमियो (जागीरदार) बड़े दुर्दांत और निर्मय थे। यह क्षेत्र बहुत पिछड़ा था। काश्तकारों पर निरंतर जुल्म होते रहे थे पर कोई सुनने वाला नहीं था। किसान यहां बहुत अधिक दुखी और दबा हुआ था। भौमियों के आतंक के कारण कोई प्रचार कांग्रेस का भी नहीं हो पाता था कांग्रेस की विधिवत कोई शाखा भी इस क्षेत्र में नहीं बनी थी।

काश्तकारों में अधिकतर माली और जाट थे। इलाका खेती की दृष्टि से अन्य स्थानों की तुलना में अधिक अच्छा था। और जो कुछ पैदा होता लाग बाग


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और बंट बाटे के रूप में भौमियो ले जाते थे। किसान फिर बोहरे से अनाज लाकर अपना काम चलाता था।

भौमिये लूटमार करते रहते थे। किसानों के अलावा किसी भी व्यक्ति के लिए यह क्षेत्र सुरक्षित नहीं था। यह ऐसा क्षेत्र था जिसमें किसी भी राजनैतिक परिवर्तन की हवा भी नहीं पहुंच सकती थी। शिक्षा की बेहद कमी थी और किसी प्रकार की सुविधा होने का कोई प्रश्न ही नहीं था। किसान सदियों से दुखी था पर उसे बचने का कोई रास्ता नजर नहीं आता था। इस संबंध में अन्यत्र विस्तार से लिखा जा रहा है।

चुनाव का नाम सुनते ही उदयपुरवाटी में घोर आतंक का माहौल पैदा कर दिया गया। जागीरी अत्याचार यहां निकृष्टतम रूप से प्रकट हुआ। जगह जगह मारपीट होने लगी। जनता को आतंकित करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जाने लगे। ठीक दीपावली के दिन उदयपुर के चंद्राराम माली के घर को लूटने की घटना हुई जिसने सारे क्षेत्र में आतंक फैला दिया।

इस प्रकार आतंक से परिपूर्ण क्षेत्र में उम्मीदवार चुनने का प्रश्न निश्चय ही कठिन था। इस क्षेत्र में उम्मीदवार बनकर कौन मौत को निमंत्रण दे। आखिर जिला कांग्रेस के सुयोग्य कार्यकर्ता और वकील श्री चंद्रभान भार्गव को इस स्थान के लिए प्रत्याशी बन जाने की पेशकश की गई। जागीरदारों से उनका सद् भाव था। अतः यह आशा की गई कि वह उनका अधिक विरोध नहीं करेंगे।

श्री चंद्रभान भार्गव होशियार व्यक्ति थे। वे परिस्थिति का जायजा लेने के लिए चुनाव क्षेत्र के कुछ स्थानों पर गए। लेकिन वहां उन्होंने जो भयावह स्थिति देखी उससे उनका साहस जाता रहा और उन्होंने इस सीट से चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया। इस जगह अपना सिर फंसा कर सब कुछ बर्बाद करने को तैयार नहीं थे। आखिर कौन उम्मीदवार बने यह प्रश्न अब विकट रूप से सामने आ खड़ा हुआ।

समय बीता जा रहा था और उम्मीदवार अनिश्चित था। आखिर श्री करणी राम जी के सामने यह प्रस्ताव रखा गया। सारी परिस्थिति उनके ही


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सामने थी। इस क्षेत्र में जीतना तो दूर जमानत बचाना मुश्किल लगता था। इस स्पष्ट हार को लेकर कोई क्यों उम्मीदवार बने। यह सब था पर जिस व्यक्ति को प्रस्ताव किया वह फौलाद का बना हुआ था। कोई आतंक से उसे भयभीत न कर सकता था। करणी राम जी निर्भीक पुरुष थे। जनता की सेवा करने के लिए वह दीवाना था। गरीब काश्तकारों का मसीहा था। उदयपुरवाटी के कर्मठ कार्यकर्ता रामदेव सिंह जो उनके संबंधी थे ने करणी राम जी पर जोर डाला कि वे उदयपुरवाटी से चुनाव लड़े। श्री करणी राम जी ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और बिना किसी हिचक के अपनी स्वीकृति दे दी। कार्यकर्ताओं में और नेताओं में इस निर्णय से आशा की लहर दौड़ गई। जिले के सर्वोच्च नेताओं को राहत मिली क्योंकि इस आग में कूदने को कोई तैयार नहीं था।

इसी संबंध में मुझे एक तथ्य और बताया गया कि करणी राम जी को पहले खेतड़ी विधानसभा क्षेत्र से टिकट देना निश्चय किया गया था। लेकिन करणी राम जी की लोकप्रियता के कारण उस क्षेत्र से संभावित आसान जीत थी और इसकी वजह से उनका राजस्थान की राजनीतिक क्षितिज पर उन्नयन कुछ महत्वाकांक्षी व्यक्तियों के लिए यह डाह का कारण बन गया। खेतड़ी क्षेत्र से टिकट के लिए नाम चुनने की बात जिला कांग्रेस कमेटी के सामने आई तो कुछ कार्यकर्ताओं ने करणी राम जी के नाम का विरोध किया। करणी राम जी सर्वानुमति में विश्वास करते थे। अगर एक भी आदमी का विरोध होता तो वे टिकट लेना स्वीकार करने वाले नहीं थे। विधि के लेख को कोई टाल नहीं सकता। करणी राम जी का खेतड़ी क्षेत्र से टिकट के लिए सर्वाधिक हक था क्योंकि पचेरी रिपोर्ट में कैंप में पैरवी कर वे उस क्षेत्र के काश्तकारों के हृदय सम्राट बन चुके थे। और इसी पचेरी में की गई जनसेवा की वजह से ही क्षय रोग के शिकार हो गए थे। अगर उन्हें खेतड़ी से टिकट मिल जाती तो निश्चित सफलता उनके पांव चूमती और इसी वजह से झुंझुनू जिले की एवं राजस्थान की राजनीति की कहानी ही कुछ भिन्न होती।

कठिन दायित्व के वाहक

श्री करणी राम जी का कहना था कि चुनाव जीतने की आशा से इसे स्वीकार नहीं कर रहा हूं। मेरी अंतर आत्मा इस क्षेत्र के लिए कुछ करने को मुझे प्रेरित


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कर रही है। उसी की प्रेरणा से मैंने यह कबूल किया है। उन्होंने इसे अपना सौभाग्य बताया कि वह पीड़ित क्षेत्र के लोगों के लिए कुछ करने जा रहे हैं। श्री करणी राम के अन्य साथी एवं श्री रामदेव जी ने भी उन्हें स्वीकृति की ओर प्रेरित किया था। वे इसी क्षेत्र के थे तथा इस क्षेत्र के दुख-दर्द को दूर करने की उनकी भी अटूट इच्छा थी

शीघ्रता से प्रारंभिक तैयारियां की गई और श्री करणी राम जी अपने अन्यतम साथी एवं संबंधी श्री राम देव सिंह जी और भंवर सिंह जी को लेकर उदयपुर पहुंचे। जहां श्री हनुमान प्रसाद बावलिया वकील पहले से मौजूद थे। इलाके में घूम कर स्थिति का जायजा लिया गया।

चुनाव की रणनीति तैयार की जाने लगी। जागीरी आतंक के कारण खुल कर काम करना मुश्किल हो रहा था। सारे स्थानों की कार्यकर्ताओं की सूची बनाई गई और उनके पास गुप्त संदेश पहुंचाया गए। लोगों में कुछ जान आ रही थी तथा आशा की एक क्षीण किरण उन्हें निर्मल आकाश से चमकती दिखाई देने लगी थी।

उन्होंने उदयपुर में अपना चुनाव कार्यालय स्थापित किया। कांग्रेस का तिरंगा अब इस स्थान पर भी गर्व से लहराने लगा जहां सदियों से अत्याचार ही लहराता रहा था। झंडे के नीचे अनेक लोग एकत्र होने लगे। एक माहौल बनने लगा। लोगों का भय जाने लगा। इससे जागीरदार बौखला उठे।

चुनाव अभियान

चुनाव कार्यालय के लिए जागीरदारों के डर से कोई अपना मकान देने के लिए तैयार नहीं हुआ। आखिर श्री रुडमल जी पुजारी की बगीची में कार्यालय की स्थापना की गई। श्री राम देव सिंह जी चुनाव के मुख्य संचालक बने। कार्यकर्ता जगह-जगह से आकर एकत्र होने लगे। देखते ही देखते चुनाव अभियान ने एक आंदोलन का रूप ले लिया। कार्यकर्ताओं की पैदल टोलियां गांव गांव में घूमने लगी। बाहर से अब लोग आए तो स्थानीय लोगों का भी साहस जाग उठा। लोग सहयोग करने लगे मीटिंग होने लगी और प्रचार कार्य बढ़ चला। उधर जागीदार का दमन चक्र भी तेजी से चलने लगा। मीटिंग में बाधा पहुंचाना, कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट


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करना एक आम बात ही थी। इसका एक बड़ा दिलचस्प उदाहरण है। श्री करणी राम चुनाव अभियान के दौरान उदयपुरवाटी के अंतस्थित स्थान पौंख पहुंचे। यह स्थान चारों ओर पहाड़ों से घिरा हुआ था। नई रोशनी की कोई किरण यहां नहीं पहुंच सकती थी। अधिकांश बस्ती राजपूतों की थी पर आसपास के ढाणियों से अनेक लोग मीटिंग में भाग लेने आए थे। मीटिंग शुरू हुई पर फौरन ही जागीदार सभी आदमियों को उठा कर ले गए। एक भी आदमी सभा में मौजूद नहीं रहा। श्री करणी राम अजीब लगन के आदमी थे। वे उस जन विहीन सभा स्थल पर एक घंटे तक निरंतर बोलते रहे। उन्होंने कहा कि मैं इन दीवारों, झोपड़ियों को अपना संदेश सुनाऊंगा। पौंख भयंकर स्थान था। श्री करणी राम पर हमले की आशंका बनी हुई थी। उदयपुरवाटी के उप-जिलाधीश श्री आर.डी. गुप्ता स्वयं शांति व्यवस्था एवं इंतजाम हेतु वहां पहुंचे थे।

गांव के पुजारी ने आकर श्री करणी नाम से आग्रह किया कि आप यहां न रहें अन्यथा कोई बड़ा नुकसान हो जावेगा। चारों तरफ भौमिये बंदूक लिए गलियारों को रोक रहे हैं। बार-बार दूर से गोली चलने की आवाजे आती थी। पर वे अडिग और निडर थे और निरंतर बोल रहे थे। इस घटना का आस पास के लोगों के दिलों पर बड़ा असर हुआ था। वह स्थिति की विवशता को समझते थे। पुलिस अकर्मण्य बनी तमाशा देख रही थी।

प्रचार कार्य अनेक विरोधों के बावजूद सघन रूप से आगे बढ़ा। गांव गांव में ढाणी ढाणी में वे गए और लोगों के कानों तक कांग्रेस का संदेश पहुंचाया। हर जगह बाधाएं पहुंचाई जाती पर लोगों में इतना साहस बढ़ा कि वे निडर होकर हजारों की संख्या में आने लगे। आखिर सदियों के बाद कोई तो उनकी खोज खबर लेने आया। अत्याचार में एक बड़ी शक्ति होती है वह अपने विरुद्ध शीघ्र लोगों को एकत्रित कर देती है।

करणी राम जी रात दिन गांव में घूमते रहते और कार्यकर्ताओं से मिलते रहते । अनेक स्थानीय मुखिया लोग चुनाव संचालन में लग गए। श्री हनुमान प्रसाद जी बावलिया का बड़ा सहयोग था। विद्यार्थियों की टोलियां अलग-अलग गांवों में जाकर जुट गई। देखते ही देखते एक नया वातावरण समस्त क्षेत्र में पैदा हो गया।


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नए परिवर्तनों की बात लोगों को बताई गई तो उनमें एक आशा का संचार हुआ। उन्होंने अपने दुखों और कष्टों को अंत होते हुए समझा। करणी राम जी जगह-जगह एक ही बात कहते थे कि तुम अपने मन में भय भगा दो, निर्भीक बनो, परमात्मा स्वयं तुम्हारी मदद करेगा। वे चुनाव में मतदान के लिए यह कहते कि मर्जी आए जिसको मत देना मैं वोट मांगने नहीं आया हूं। अन्याय, अत्याचार का प्रतिरोध करने के लिए आया हूं। अत्याचार के आगे झुकना छोड़ दो। चुनाव तो एक साधन मात्र है। उन्होंने लोगों को विश्वास दिलाया कि चुनाव के बाद भी मैं निरंतर आपके साथ रहूंगा।

उधर जागीरदारों ने भी अपनी सभी गोटिया बैठाई। भौमिये बड़े जागीरदारों के कहने में चलते थे। बड़े-बड़े जागीदार अपने स्वार्थ की पूर्ति में उनका उपयोग करते थे। राम राज्य परिषद धर्म के नाम पर वोट मांगकर सत्ता को हथियाने का एक प्रयत्न था।

इस संगठन की ओर से उदयपुर की सीट पर विरोधी उम्मीदवार खड़ा हुआ। मंडावा ठिकाने के कुंवर श्री देवी सिंह राम राज्य परिषद में उदयपुरवाटी के उम्मीदवार बनाए गए। भोमियों के साथ जागीरदारों का दल अपने पूरे साधनों से लेस होकर मैदान में उतरा। क्षेत्र के संतो, पंडे पुजारियों को सहयोग के लिए भर्ती किया गया। स्वयं श्री करपात्री जी इस क्षेत्र में चुनावों में मदद करने आए। कांग्रेस विधर्मी है, गाय काटती है, धर्म की हानि होती है अतः इसे हटा कर रामराज्य को जिताओ जिससे धर्म का रामराज्य स्थापित हो यही उनका कहना था। लोग इस 'रामराज्य' का आनंद भोग चुके थे अतः बात का सही अर्थ समझते थे।

चुनाव अभियान शुरू होकर पूरे जोर पर आ गया। मतदान के दिन नजदीक आने लगे थे। आजकल की तरह एक-दो दिन में चुनावों में मतदान कार्य पूर्ण नहीं होता था। एक रोज में सिर्फ 6 मतदान केंद्रों पर मतदान होता था। 1952 जनवरी 15, 17, 19,21, 23 और 24 मतदान केंद्रों पर मतदान की तिथियां थी। उस समय मतदान पार्टियां कम थी। एक ही दिन में चुनाव करना संभव नहीं था। सारा चुनाव 10 दिनों में संपन्न हुआ था।


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इस चुनाव के तीन उम्मीदवार थे। राम राज्य परिषद की ओर से श्री देवीसिंह मंडावा, जिन्हें सामंती ततवों का सहयोग प्रमुख रूप से था। उनके पास साधनों की कमी नहीं थी। दूसरे उम्मीदवार कांग्रेस के श्री करणी राम थे जो दलितों पीड़ितों के सहयोग का बल लिए हुए थे। उनके पास ऊंट बैल गाड़ियों का साधन था । यह तीसरा उम्मीदवार कृषिकार लोक पार्टी का था। वह भी साधनविहीन था।

कांग्रेस कार्यकर्ता टोलियों में बट गए थे और मतदान के निश्चित स्थानों पर पहुंच जाते। श्री करणी राम जी व रामदेव जी चुनाव का स्वयं संचालन करते थे। हर स्थान पर एजेंटों की सुविधा भी नहीं मिली थी। मतदान के समय भौमिये पूरी नागाई पर उतर आए। उन्हें रोकने वाला कोई नहीं था। गांवों में रहने नहीं देते। दुकानदार से सामान नहीं लेने देते। जमादार कानाराम की टोली लोहागर में एक धर्मशाला में दिनभर की थकी मांदी पहुंची। खाना तैयार किया और ज्योंही खाने को बैठे कि कुछ लोग आए और बना हुआ खाना मिट्टी में मिला दिया और सामान लूट लिया गया। धर्मशाला से निकाल दिया। लोग रात भर सर्दी में खुले में बैठे रहे। इन सब बातों के बावजूद कार्यकर्ताओं ने हिम्मत नहीं हारी।

पहला मतदान केंद्र पचलंगी पापड़ा नामक स्थान था। श्री करणी राम जी, रामदेव जी श्री बावलिया जी एक जीप में पहले दिन वहां पहुंचे। उनके साथ भगवान सिंह जी मोहरीर व श्री चंद्र सिंह भी थे। श्री भगवान सिंह जी मुंशी व श्री चंद्र सिंह जी को पचलंगी बूथों पर कांग्रेसी एजेंटों के रूप में लगाने के लिए करणी राम जी साथ लिए हुए थे। उन्हें पचलंगी की सींव में मालियों की ढाणी में छोड़ दिया। जब जागीरदारों को पता लगा तो उन्होंने रात के 12 बजे के करीब ढाणी को घेर लिया और भगवान सिंह जी व चंद्र सिंह जी को वहां भगाने को मजबूर कर दिया और कड़ाके की सर्दी में पास में नदी तक पीछा किया।

किसी भी पोलिंग बूथ पर कांग्रेस की पर्चियां नहीं बांटने देते थे। न ही कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को ठहरने व खाने की कोई व्यवस्था होने देते थे। कार्यकर्ता


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गाजर खाकर आधे भूखे रहकर प्रचार कार्य करते थे। भूरदास जी साधु का समस्त डेरा सरदारों से भरा हुआ था। तिल रखने की जगह नहीं थी। पीला साफा साथ में तलवार के लिए रामराज्य की जय के नारे लगा रहे थे।

8 बजे मतदान शुरू हुआ। फर्जी वोटरों को पकड़ने की कोई व्यवस्था नहीं थी। श्री राधेश्याम मुरारका पार्लियामेंट के लिए इसी क्षेत्र से खड़े हुए थे। वे भी मतदान के दिन आए। पोलिंग अफसरों से शिकायत की पर कोई सुनवाई नहीं। दूसरे दिन कार्यकर्ता मंडावरा छापोली पहुंचे। जागीरदारों के डर से कोई नागरिक पास नहीं आया। गिरावडी और छापोली की ढाणी से वोटरों को आने ही नहीं दिया गया। इस प्रकार लगभग 400 मतदाताओं के सहयोग से कांग्रेस वंचित रह गई। श्री रामदेव जी एवं झावर सिंह जी के साथ धक्का-मुक्की, मारपीट भी हुई। इसके बाद उदयपुर कस्बा और ढेर के वोट पड़े।

उदयपुर में एक अजीब तरह का माहौल था। स्वामी करपात्री जी आ गए थे। प्रचार था जो सूरज को वोट नहीं देगा वह भी विधर्मी है। हिंदू नहीं है। गली गली में पीला साफा और तलवार थी। लोगों में धर्म का विष फैला दिया गया था। सिंगड़ोद गांव की पोलिंग के समय मोहन लाल जी पटवारी की दुकान रामराज्य का अखाड़ा था। राजा साहब खेतड़ी का दौरा भी हो चुका था। कांग्रेस के सहयोगी यहां श्री परस राम जी गोदारा थे। स्त्रियाँ आती कुछ एक थाली में चोपड़ा लिए जिनमें रोली, चावल, दो चूरमे के लड्डू और एक पानी की घंटी अपने ओढ़ने में छुपा कर लाती। सूरज भगवान की प्रार्थना करती रोली मिला चावल चढ़ाती। चुलू कराने का समय चुनाव अधिकारी की सतकर्ता से नहीं मिल पाता।

श्री झावर सिंह एवं श्री रामू सिंह गीला बहादुर कार्यकर्ता थे। सवारी नहीं मिलती तो पैदल दौड़ जाते। कार्यकर्ता और भी थे पर अधिकांश छिपकर काम करते थे। सामने आकर मुकाबला करना हर एक के बस की बात नहीं थी। श्री रामदेव तो पूरी तरह चुनाव प्रचार में लगे हुए थे।

आखिर मतदान पूर्ण हुआ। परिणाम जब निकला तो सभी को सुखद आश्चर्य हुआ। जीत यद्यपि राम राज्य परिषद के उम्मीदवार की हुई, पर कांग्रेस


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, पृष्ठांत-66

को इतने अधिक मत इस क्षेत्र में मिल जाएंगे इसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। लोगों ने जी भरकर अपना मत कांग्रेस को दिया था। आतंक, पुलिस की अकर्मण्यता एवं चुनाव अधिकारियों की उपेक्षा के कारण कांग्रेस के कुछ मत रह गए थे पर इसका कोई उपाय भी नहीं था।

चुनाव परिणाम निम्न प्रकार से था। इस चुनाव क्षेत्र के कुल मतदाताओं की संख्या 44260 थी। इन वोटों में से कुल 23754 वैध मत मतदान में पड़े थे। मतदान का प्रतिशत 53.66 था। उम्मीदवारों को निम्न प्रकार से मत मिले थे।

1. श्री करणी राम 10536

2. श्री देवी सिंह 12283

3. श्री मोती 935

श्री करणी राम को कुल मतदाताओं के 44.4 प्रतिशत, श्री देवी सिंह को 51.7 प्रतिशत एवं श्री मोती को 3.9 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे।

7 साल पूर्व जयपुर धारा सभा के चुनाव हुए थे। उस समय संपूर्ण उदयपुरवाटी क्षेत्र के कांग्रेस के पक्ष में 3000 मतों में से सिर्फ एक मत पड़ा था। शेष मत कांग्रेस के विरुद्ध गए थे। उसी क्षेत्र से कांग्रेस ने राम राज्य परिषद का बड़ा मुकाबला किया। सिर्फ दो हजार से भी कम मतों से करणी राम जी पीछे रहे। जहां कोई उम्मीदवार खड़ा होने की हिम्मत नहीं करता था उसी स्थान पर उन्होंने अपने अदम्य साहस और आत्मबल के कारण इतने अधिक मत प्राप्त किए।

करणी राम जी का चुनाव लड़ना उदयपुरवाटी के कृषकों के लिए एक वरदान सिद्ध हुआ। लोगों में आत्मविश्वास जागृत हुआ। सोई शक्ति जाग उठी, डर कम हुआ और अत्याचारियों के हाथ कुछ रुके।

चुनाव का परिणाम सुनकर गरीब काश्तकारों को बड़ा दुख हुआ और वहां के गरीब मालिक काश्तकार रोने लगे। उन्होंने करणी राम जी को कहा कि अब हमारा क्या होगा। आप यहां से चले जाएंगे तब जागीरदार हमें तबाह कर देंगे। चुनावों


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, पृष्ठांत-67

के दौरान भी गरीब काश्तकारों को उन्होंने कहा था कि अगर जीत जाऊंगा तो तुम्हारे हक के कानून बनाऊंगा और अगर हार गया तो तुम्हारे साथ रहने लग जाऊंगा तुम्हारे दुख दर्द को दूर करने का प्रयत्न करूंगा। करणी राम जी जब हार गए तो वे काश्तकारों की दीन पुकार पर द्रवित हो गए और उन लोगों को याद दिलाया कि अब मैं तुम्हारे साथ रहने लग जाऊंगा। वास्तव में हारने के बाद करणी राम जी से गरीब काश्तकारों के साथ एकाकार हो गए। वे गांव गांव, ढाणी ढाणी व घर-घर काश्तकारों के दरवाजों पर पहुंचने लगे और लोगों का भी उन्हें अपने पास पाकर मनोबल बढ़ गया। गरीब काश्तकार करणी राम जी के पीछे होकर जागीरदारों से संघर्ष के लिए अग्रसर हो गए। चुनाव हारने के कुछ दिनों बाद ही होली का पर्व आया था। होली के पर्व पर भी करणी राम जी अपने घर नहीं गए और गरीब काश्तकारों के साथ में होली मनाई ताकि हिम्मत और हौसला बना रहे। वे होली के पर्व पर उदयपुर में भगवान राम माली के यहां सरकड़ी कुए पर ठहरे और काफी देर रात तक मालियों का चंग व नाच देखते रहे। दूसरे दिन सुबह धुलंडी के दिन वे चंद्र सिंह जी वकील के मकान पर गए और वहीं सारे काश्तकार होली और फाग खेलने के लिए इकट्ठे हो गए। उस दिन भागसिंह जी सोंथली वाले भी उनके साथ थे। इस प्रकार करणी राम जी दृढ़ निश्चय के साथ उदयपुरवाटी के काश्तकारों की सेवा करने का व्रत ले लिया और उन्होंने अपनी वकालत पर ध्यान नहीं दिया। गरीबों का मसीहा बनकर उदयपुरवाटी के गांव गांव में निकल पड़े और घर घर पर जागृति का डंका बजा दिया। गरीब एवं निर्बल काश्तकार उनके जादुई व्यक्तित्व से प्रभावित होकर अपने आपको मजबूत महसूस करने लगे और जागीरदारों से लोहा लेने की पूरी तैयारी उनके नेतृत्व में करने लगे। रामदेवसिंह जी भी उनके कंधे से कंधा मिलाकर इस संघर्ष से पूर्ण रूप से कूद पड़े।

चुनाव से कई बातें सामने आई। उदयपुरवाटी के किसानों के दुख-दर्द, पीड़ा तथा अत्याचार की बातें श्री करणी राम जी ने प्रत्यक्ष देखी और स्वयं उनका अनुभव किया। उनकी आत्मा जन वर्ग पर होने वाले अत्याचार से कराह उठी। उन्होंने मन ही मन एक कठोर व्रत लिया किया तो इस जन वर्ग का सदियों से चला आता हुआ कष्ट दुख दर्द मिटा दूंगा या खुद मिट जाऊंगा। लोगों ने उनको भरपूर प्यार और सहयोग दिया था।


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, पृष्ठांत-68

उधर भौमिये भी यह बात समझ गए थे कि उनके अन्याय का अंत अब आ गया है। शांति पूर्वक बदलती हुई परिस्थिति के अनुरूप अपने को ढालने की बजाएं परिवर्तन की इस सजल और अगाध धारा को उन्होंने लाठी तलवार से रोकना चाहा। परिणाम वही हुआ जो होना था। तलवार बंदूकों के साथ वे स्वयं बह गए और धारा अबाध गति से निरंतर चलती रही।


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, पृष्ठांत-69

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