Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram/Jat Jati Utpatti Vikas Evam Vistar

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पुस्तक: शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम

लेखक: रामेश्वरसिंह, प्रथम संस्करण: 2 अक्टूबर, 1984

तृतीय खण्ड-लेखमाला

3. जाट जाति: उत्पति विकास एवं विस्तार

शेखावाटी का आन्दोलन वस्तुतः किसान आन्दोलन था पर अधिकांश किसान जाट थे। अतः यहाँ जाट की उत्पति का विकास और उसके विस्तार पर विचार करना आवश्यक प्रतीत होता है। जाट जाति देश के विभिन्न भागों में अति प्राचीन काल से फैली हुई है। उत्तर में हिमालय पर्वत की निचली तलाई, पश्चिम में सिन्धु नदी का पूर्वी किनारा,दक्षिण में हैदराबाद सिन्धु, कच्छ, काठियावाड़, अजमेर, जोधपुर,बीकानेर,जैसलमेर से भोपाल तक पूर्व में गंगा नदी का किनारा दोआब सेटल खण्ड तक जाट बसे हुए है। सिन्धु नदी के पश्चिम में वे पेशावर बिलौचिस्तान तथा सुलेमान पहाड़ियों के पार तक फैले हुए है अफगानिस्तान में इनकी आबादी प्रायः 25 हजार है।

अफगानिस्तान और उसके पश्चिम में मुसलमान, झेलम में हांसी हिसार तक और पानीपत दीपालपुर में ये सिख हैं। राजस्थान मध्य भारत उत्तर में हरियाणा में ये हिन्दू है। यह कृषि प्रधान जाति अब बन गया है पर प्राचीन काल में यह सैनिक जाति रही है।

जेम्स टाड आदि लेखकों ने राजपूतों के साथ साथ जाट जाति को भी विदेशी माना है। भारतीय विद्वानों की मान्यता है कि जाट आर्य पुत्र भारत की सन्तान है।

डॉ.कानूनगो का यह दृढ़ विचार है कि जाट शुद्ध रूप से आर्य सन्तान है। प्रसिद्ध विद्वान सी.बी.वैध भी इनको भारतीय मूल का मानते है। यह सर्व सम्मत है कि जाट आर्य वंश के है। वे अपने साथ कुछ संस्थायें लाये, जिनमें पंचायत सबसे महत्वपूर्ण है। यह पंचायत गाँव के 5 पंचों की होती थी, जो बुद्धिमान निर्णायक होते थे।

प्रो. कानूनगो कहते है ऐतिहासिक काल में जाट समुदाय ने हिन्दू समाज के


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-III, पृष्ठांत-12

अत्याचारों के शिकार लोगों को संरक्षण प्रदान किया था। उन्होंने अछुतों एवं पददलितों को एक सम्मानजनक स्थिति प्रदान की थी। इस प्रकार सम्मिलित लोगों को आर्य कुल में शामिल किया था।

शारीरिक चिन्हों,भाषा, चरित्र, भावना, प्रशासन के विचार, सामाजिक संस्थाएं इन सबके आधार पर एक बात कही जा सकती है कि आज का जाट प्राचीन वैदिक आर्यों का औरों से अच्छा प्रतिनिधि है। औरों में तीनों अन्य वर्ण शामिल है।

ठाकुर देशराज कहते है कि जाट जन्म जात कार्यकारी एवं योद्धा है। उसने कमर से तलवार बांधे अपनी भूमि जोती है। उसने क्षत्रियों से भी अधिक लड़ाइयां मातृभूमि के लिए लड़ी है। वे आक्रमणकारी के सामने से गाँव छोड़कर भागे नहीं। अगर आक्रमणकारियों ने उसके साथ दुर्व्यवहार किया, उसकी स्त्रियों को तंग किया तो उसका बदला उसने उसके काफिलों को लूटकर दिया। उसको देश भक्ति का स्वरूप विदशियों के प्रति शत्रुतापूर्ण और अपने देशवासियों के प्रति दयालुतापूर्ण था। देशवासी उसके साहस पर निर्भर करते थे। (जाट इतिहास ठाकुर देश राज)

लम्बे समय तक उन्होंने तुर्कों के आक्रमण का सामना किया। तुर्कों के प्रारम्भिक हमलों की रोंद इन्हे ही सहनी पड़ी। निरन्तर यवनों के हमलों के कारण यह जाति इधर उधर बिखरने को बाध्य हुई।

कुछ लोग सैनिक गुण छोड़कर देश के विभिन्न भागों में जा बसे। ये लोग अब मुख्यतः खेती पर निर्भर थे। राजपूताने में जैसलमेर, जोधपुर, जयपुर और बीकनेर रियासतों के भूभागों में ये बड़ी संख्या में आये और इन भूभागों को अपने अधीन किया।

जाटों का शासन प्रजातंत्रीय स्वरूप लिये हुए था। पंचायत शासन चलाती थी, जिनमें सभी जाति पंच होते थे इनका धन्धा मुख्यतः कृषि था तथा सैनिक गुण प्रायः तिरोहित हो चले थे। राजपूतों के साथ साथ देश के अन्य भूभागों में भी जाट गए और बस गये। यहाँ भी वे मूलरूप से कृषि पर ही आश्रित थे। पंजाब में जाट बड़े महत्वपूर्ण है। संख्या में वे राजपूतों से काफी अधिक है। डब्ल्यू कुक अपनी


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प्रसिद्ध पुस्तक टाईल्स एण्ड कस्टम में लिखते है कि यहाँ जाटों में कई ऐसे रीति रिवाज है जो उनके आर्य मूल की और संकेत करते है।

पंजाब एथनोग्राफी में मिइबटेसन का कहना है कि देहली, रोहतक और करनाल के जाटों का बड़ा महत्वपूर्ण भाग है। ये दो भागो में बटें है। जिन्हें दहिया और टोलनिया कहते है प्रथम भाग दहिया नामक जाट के नाम पर है। इस भाग का मुख्यालय सुरपत में भरगांव है। दूसरे भाग के नेता छटनाव या मालक जाट है। जिनका मुख्यालय घेर का आहुलाना है जो गोहाना में स्थित है।

रोहतक में हुआ,लूटमार आदि कुल के जाट है। बेनीवाल जाट तो राजस्थान के सांभर को अपना मूलस्थान मानते है बीकानेर से हिसार तक फैले हुए है। देखवाल गोत्र के जाट हरियाणा में रहते है। हिसार और रोहतक उनके मुख्य केन्द्र है। इन सभी जाट कुलों का राजपुताने से किसी न किसी तरह का सम्बन्ध रहा है।

बीकानेर जैसलमेर और मारवाड़ में वे सभी राजपूत कुल के लोगों से ज्यादा है। जाखड़ जाट का एक शक्तिशाली कुल है। जाखड़ नामक पूर्वज के नाम पर यह कुछ चला है। कहा जाता है की द्वारिका के राजा के पास एक बहुत बड़ा धनुष था उसने घोषणा की थी कि जो कोई उसे उठा लेगा उसे तरक्की दी जावेगी। जाखड़ ने कोशिश की पर इसे नहीं उठा सका। इस पर लज्जित हो कर उसने अपना मूल स्थान छोड़ दिया और बीकानेर में आकर बस गया।

पंजाब की तरह उत्तर प्रदेश में भी जाट आबादी का एक महत्वपूर्ण भाग है। वह जमुना नदी की अपनी घाटी के साथ-साथ बसे हुए है। सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बुलन्दशहर, अलीगढ आदि जिलों में जाट बड़े महत्वपूर्ण है और प्रायः कृषि पर आधारित है।

सहारनपुर में देशवाली, पचांद, सीनर, मुजफ्फरनगर में देशवाली बलिदान, गांठीवाड़ा, राठ, सारादत बदलान, तालटिनि, कनखण्डी, पचाद, पंवार रिखवंश आदि कुलों के जाट बसे हुए है। मेरठ में देशवाली अधिक है बिजनौर में उनका मुख्य केन्द्र धारानगर है जहां वे राजा जगत देव के नेत्तृत्व में आये थे। दिल्ली के


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दक्षिण में जब हम यमुना नदी के साथ-साथ बढ़ते है तो मथुरा में बहुतसंख्यक जाटों को पाते है, इन जाटों का कहना है कि वे बयाना से हिसार गए और वहां से मथुरा चले गये।

डॉ कनिंघम की मान्यता है कि पचाद देशवाल शब्दों का अर्थ क्रमशः बाद के और पूर्व के है। पचादो को वे हाल ही मानते है। ऐसे आर्य जाटों को देशवाल और पचादों से श्रेष्ठ माना जाता है। मथुरा के मुख्य जाट कुलों में कई, खटुल, लठार, छाकर, चुड़ैल, गड़ार, गोड़वार, गाँधी, मैंनी पुवार, फोका, रववत सकरवार, सांगेरियाँ, सरमत, सिनसिनवार और पैनवार है। आगरे के जाट अपना मूल स्थान बयाना मानते हैं। पुनिया जाट भगवान शंकर की जटाओं से उत्तपति बताते है।

नोटवार और नटवर जाट आपस में बड़े सम्बन्धित है। इनमें आपस में शादी विवाह नहीं होते है। नोटवारों का मूल स्थान नोट (जालेतर) था, इनकी स्त्रियां प्रायः पचाद कुलों की होती है। वे अपनी पुत्रियों को सिर्फ सिनसिनवार कुल को देते है। वे अपनी उत्त्पति पृथ्वीराज से मानते हैं।

अलीगढ़ के जाट मलखान से अपनी उत्त्पति मानते है जो 16 वीं सदी के अंत में राजपूताना से चलकर मुसरान में बस गया था। वहां उसने खोखेन जाट कुल की स्त्री से शादी की। पूर्वी अलीगढ़ के जाट जिन बड़े कुलों में विभक्त है वे यह है खुड़िया (टप्पाल) ठाकुरील (हसनगढ़) और थेनवाल, गौरा। इनके अनुसार इनके पूर्वज यहां 1046 में आये। इनके पूर्वज विक्रम ठाकुर ने जंघड़ राजपूतों को वहां से भगा कर कब्जा कर लिया।

आगरा के पश्चिम में भरतपुर है। वहां के जाट शासकों ने जाटों का संगठन किया और उनको एकता के सूत्र में बांध दिया। अवगत होते हुये मुग़ल साम्राज्य पर इन जाटों ने बड़ी करारी चोट दी थी अकेले भरतपुर क्षेत्र में इस जाति के 84 कुल निवास रहते है। इनमें सिनसिनीवार कुटल, हागा, नोहवाल, सोगरिया, चाहर, मंगोहा, डागर, वामरालिया, राणा, पुनिया, ग्राहसिया, कौहीर, इंदौलिया, विसंगतियां और नवतियाँ आदि प्रमुख हैं।


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उपर्युक्त विवरण से ज्ञात होगा कि जाट जाति देश के विभिन्न भागों में बहुत बड़ी संख्या में फैली हुई है। यह जाति अपने प्राचीन सैनिक जीवन को भूलकर अब मुख्यतः खेती का धन्धा करती है। लम्बे समय से युद्ध से विरत रहने के कारण यह जाति शान्तिप्रिय है तथा मानव की एकता और समता पर विश्वास रख कर चलती है। जाटों की आबादी राजस्थान में सबसे ज्यादा है सन 1931 में जनगणना के आकड़ों से स्थिति स्पष्ट हो जाती है।

1931 की जनगणना के अनुसार राजस्थान की 21 रियासतों में जाट जाति का विभाजन निम्न प्रकार से है। आबू 30, धौलपुर 32844, बांसवाड़ा 5, भरतपुर 72383, बीकानेर 212947, बूंदी 2569, धौलपुर 2800, जयपुर 3,93,603, जैसलमेर 430, झालावाड़ 454, करौली 652, किशनगढ़ 15529, कोटा 5198, लांबा 439, जोधपुर 283933, मेवाड़ 80363, प्रतापगढ़ 213, शाहपुरा 4174, सिरोही 49, टोंक 10538, जाटों की संख्या कुल योग 10,42,147 हैं। इसमें अजमेर के 29992 जाटों की जोड़ने से संख्या 10,72,139 हो जाती है। राजस्थान की कुल आबादी उस समय 99,41,836 थी। इस प्रकार जाट 10 प्रतिशत के आसपास थे।

सन 1981 में राजस्थान की जनसंख्या 3,41,02918 थी। इसका 10 प्रतिशत करने से भी जाट 34,10,200 से अधिक हो जाते हैं। संख्या की दृष्टि से राजस्थान में जाटों का बाहुल्य, सत्ता शक्ति महत्वपूर्ण एवं निर्णायक है। शेखावाटी में जाट जाति की सघनता राजस्थान के अन्य इलाकों से अधिक है। इस क्षेत्र के जाटों में राजस्थान स्तर के कई महत्वपूर्ण नेता हुये है जिन्होंने अपने समय में कांग्रेस एवं कांग्रेस सरकार को दिशा निर्देशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। श्री करणीराम भी इसी क्षेत्र जागृति की मशाल लेकर प्रचुर संभावनाओं के साथ आगे बढ़े थे, पर नियति के क्रूर हाथों ने उन्हें अधखिला ही इस संसार से उठा लिया।

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लोगों में बल की नहीं संकल्प शक्ति की कमी होती है।..... विक्टर ह्यूगो

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