Sukutta

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Sukutta (सुकुट्ट) was clan of people and country mentioned in Mahabharata. V S Agarwal has identified it with Suket in Himachal Pradesh.[1]

Origin

Variants

  • Sukutta सुकुट्ट (AS, p.971)
  • Suket सुकेत, हि.प्र. (AS, p.971)

History

Suket was one of the Princely states of India during the period of the British Raj.[2] The capital of the state was Pangna. Its last ruler signed the accession to the Indian Union on 15 April 1948. Formerly it belonged to the States of the Punjab Hills and currently, it is part of the Indian state of Himachal Pradesh. The present-day Mandi district was formed with the merger of the two princely states of Mandi and Suket.

According to tradition the predecessor state was founded about 765[3] by Bira Sen (Vir Sen), claimed to be a son of a Sena dynasty King of Bengal. The early history of Suket was marred by constant warfare against other principalities, especially against the Kingdom of Kullu. At the time of Raja Bikram Sen, Kullu was under the overlordship of Suket State and was reduced to paying tribute to Suket. Raja Madan Sen's reign was the golden age of Suket, when its ruler reduced into submission the neighboring smaller states. During the reign of Raja Udai Sen Suket came under the influence of the Mughal Empire who were content with merely exacting tribute.

At the time of Raja Bikram Sen II, Sukket survived the invasion of the Gurkhas of Nepal (1803 to 1815) and the ensuing brief period of Sikh dominance thanks to the Raja's diplomatic skills. In 1845, when war broke out between the Sikhs and the British, the Rajas of Suket and Mandi took the side of the British, signing a Treaty of Alliance in Bilaspur in 1846. In the same year a sanad was granted to Raja Ugar Sen II confirming him and his heirs in the possession of the Suket territories.[4]

In Mahabharata

Sukutta (सुकुट्ट) is mentioned in Mahabharata (II.13.25),(VI.10.43),


Sabha Parva, Mahabharata/Book II Chapter 13 mentions the tribes who fled out of fear of Jarasandha. Sukutta (सुकुट्ट) people are mentioned in Mahabharata (II.13.25).[5]....The eighteen tribes of the Bhojas, from fear of Jarasandha, have all fled towards the west; so also have the Surasenas (II.13.25), the Bhadrakas, the Vodhas, the Salwas, the Patachcharas, the Susthalas, the Sukuttas (II.13.25), and the Kulindas, along with the Kuntis.

सुकुट्ट

सुकुट्ट (AS, p.971): सुकुट्ट का उल्लेख महाभारत में हुआ है। महाभारत सभा पर्व 14.26 के अनुसार यह एक प्राचीन देश का नाम था तथा वहाँ के निवासियों को भी इसी नाम से जाना जाता था। वा.श. अग्रवाल के अनुसार यह वर्तमान सुकेत (हिमाचल प्रदेश) है. (दे. कादंबिनी, अक्तूबर 1962) [6]

सुकेत (हि.प्र.)

सुकेत (AS, p.971): हिमाचल प्रदेश का एक ऐतिहासिक स्थान है. सुकेत शुकदेव की पुण्य भूमि कही जाती है. शुकदेव-वाटिका नामक एक उद्यान शुकदेव के नाम पर यहां स्थित भी है जहां से, किंवदंती के अनुसार, p.972]: एक सुरंग हरिद्वार जाती है. सुकेत नाम को शुकदेव का ही अपभ्रंश रूप कहा जाता है. (देखें सुकुट्ट)[7]

सुकेत परिचय

765 ईस्वी में सुकेत के गठन से पहले के इतिहास के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। यह क्षेत्र राना और ठाकुरों के नियंत्रण में था। साहित्य के शुरुआती उल्लेख में एकमात्र स्थान रिवालसर का स्कंद पुराण में तीर्थ यात्रा के पवित्र स्थान के रूप में उल्लेख आता है । कहा जाता है कि महाभारत के एक नायक करण ने एक छोटे से गांव करणपुर की स्थापना की थी। गुम्मा में एक मंदिर उस स्थान की ओर इशारा करता है जो पांडवों को जलाने के विफल प्रयास के बाद उनके द्वारा बनाई शरणस्थली थी। इसके अतिरिक्त शास्त्रीय साहित्य में इस राज्य के अस्तित्व का कोई ठोस उल्लेख नहीं मिलता है । तिब्बती परंपरा के अनुसार, पदम् संभव (750-800 ई.), महान बौद्ध भिक्षु , जिन्हें तिब्बत के राजा त्सोंग-डी-सन द्वारा बुद्ध धर्म के प्रचार के लिए बुलाया था, ज़ाहोर से सम्बन्ध रखते थे जो कि रिवालसर व इसके आसपास का ग्रामीण क्षेत्र है। इस आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि मंडी उस समय बौद्ध शिक्षा का एक महान स्थान रहा होगा।

मंडी और सुकेत के राजा बंगाल के सेन वंश, जो चन्द्रवंशी की परम्परा से थे, से सम्बन्ध रखते हैं। वे महाभारत के पांडवों से अपने वंश की कड़ी जोड़ते हैं। माना जाता है कि इनके पूर्वजों ने इंद्रप्रस्थ (दिल्ली) में 1,700 वर्षों के लिए शासन किया था। जब राजा खेमराज को उनके वजीर, बिसरप ने देश से निकाल कर स्वयं सिंहासन का पद संभाला, वे पूर्व दिशा में भाग गए और बंगाल में बस गए, जहां उनके 13 उत्तराधिकारियों ने 350 साल तक शासन किया। बाद में उन्हें वहां से भी पलायन करना पड़ा और वे पंजाब में रोपड़ में आ गए। लेकिन यहां भी राजा, रुप सेन की हत्या कर दी गई और उनके एक बेटे, बीर सेन को पहाड़ियों की तरफ भागना पड़ा। कहा जाता है कि बीर सेन ने ही सुकेत राज्य की स्थापना की।

सुकेत से मंडी का विभाजन 1200 ईस्वी में हुआ, उस समय तक यह सुकेत के ही अंतर्गत था । तत्कालीन प्रमुख साहू सेन का अपने छोटे भाई बाहू सेन से झगड़ा हुआ था, जो सुकेत छोड़ अपनी किस्मत तलाशने के लिए कहीं और चले गए। सुकेत छोड़ने के बाद बाहू सेन कुल्लू के मंगल में बसे, जहां उनके वंशज 11 पीढ़ियों तक राज करते रहे। जब प्रमुख क्रंचन सेन कुल्लू के राजा के खिलाफ लड़ते हुए मारा गया तब उसकी रानी जो उस समय गर्भवती थीं, सोकोट राज्य के प्रमुख अपने पिता के पास अकेली भाग गई। यहां रानी ने एक बेटे को जन्म दिया, जिसे बान के पेड़ के नीचे पैदा होने के कारण बान नाम दिया गया। बान ने 15 साल की उम्र में किल्ती के प्रमुख को पराजित किया, जो राहगीरों को लूटने का काम करता था। सोकोट के प्रमुख के अपने कोई बेटा नहीं था अतः सोकोट के प्रमुख की मौत पर, बान सोकोट का प्रमुख बना। उन्होंने कुछ समय बाद सकोर के राणा को मार डाला और उस राज्य को भी जीत लिया । फिर उसने भुई को अपना मुख्यालय बनाया जो वर्तमान मंडी शहर से कुछ मील की ही दूरी पर है। सोलहवीं सदी की शुरुआत में मंडी एक अलग राज्य के रूप में उभरा। बान के वंशज अजबर सेन, जो की बाहू सेन से उन्नीसवीं पीढ़ी की संतान थे, ने 1527 ईस्वी में मंडी शहर की स्थापना की।

अजबर सेन मंडी के पहले महान शासक थे। वह अपने वंश में राजा का पद ग्रहण करने वाले वे शायद पहले व्यक्ति थे। उन्होंने उन प्रदेशों को समेकित किया जिन्हें उन्होंने विरासत में लिया था, और उसमें उन क्षेत्रों को भी जोड़ा जिसे उन्होंने अपने पड़ोसियों के हाथों से छीन लिया था । उन्होंने यहां चार मिनारों से सुसज्जित एक महल का निर्माण किया। उन्होंने भूत नाथ का मंदिर भी बनाया और उनकी रानी ने त्रिलोकी नाथ का निर्माण किया। उन्हीं के वंशज राजा सिधा सेन थे, जो 1678 ईस्वी में राजा गुर सेन के बाद राजा बने। मंडी उनके शासनकाल से पहले कभी इतना शक्तिशाली नहीं था और उसके बाद भी कभी नहीं हुआ । उन्होंने आस-पास के क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। उन्हीं के शासनकाल के दौरान 17 वीं शताब्दी में गुरु गोविंद सिंह, सिखों के दसवें गुरु जी, मंडी पहुंचे थे। उन्हें कुल्लू के प्रमुख राजा सिंह ने कैद कर दिया था, जिनसे उन्होंने मुगल सेना के खिलाफ सहायता मांगी थी। उनके अनुयायियों का मानना है कि गुरुजी चमत्कारी शक्तियों का उपयोग करके भाग निकले। राजा सिधा सेन, जो स्वयं भी चमत्कारी शक्तियों के ज्ञानी माने जाते थे, ने गुरु जी का बहुत आतिथ्य व सत्कार किया।

उन्होंने “सिधा गणेश” और “त्रिलोकनाथ” के मंदिर भी बनाए। मंडी और सुकेत दोनों राज्यों का इतिहास आपस के व और दूसरे आस-पास के राज्यों के बीच युद्ध से भरा पड़ा है। ये दोनों राज्य हमेशा प्रतिद्वंदी और दुश्मन थे, लेकिन उनके युद्ध का कोई भी बड़ा परिणाम नहीं निकला । बल्ह की उपजाऊ घाटी पर अधिकार की इच्छा ही विवाद का आधार था। 21 फरवरी 1846 को मंडी और सुकेत के प्रमुख ब्रिटिश सरकार के लिए पहाड़ी राज्यों के सुपर अधीक्षक श्री आर्स्किन से मिले। वे अंग्रेजों के प्रति अपनी निष्ठा दिखाकर उनकी सुरक्षा हासिल करना चाहते थे । 9 मार्च 1846 को ब्रिटिश गवर्नमेंट और सिख दरबार के बीच एक संधि हुई, जिसके द्वारा बयास और सतलुज के बीच के पूरे क्षेत्र को ब्रिटिश सरकार के अंतर्गत किया गया था, और इसमें मंडी और सुकेत भी शामिल थे। 1 नवंबर 1921 को, मंडी और सुकेत दोनों राज्यों का राजनैतिक नियंत्रण पंजाब सरकार से भारत सरकार को स्थानांतरित कर दिया गया। 15 अगस्त, 1947, भारत की स्वतन्त्रता, तक दोनों राज्य भारत सरकार के राजनैतिक नियंत्रण में रहे।

हिमाचल प्रदेश राज्य के अस्तित्व में आने के बाद, मंडी का वर्तमान जिला 15 अप्रैल 1948 को दोनों रियासतों मंडी और सुकेत के विलय के साथ गठित किया गया। जिले के गठन के बाद से अब तक इसकी भौगोलिक सीमाओं में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है।

संदर्भ: मंडी-हिमाचल प्रदेश राज्य

External links

References

  1. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.971
  2. Chisholm, Hugh, ed. (1911). "Punjab" . Encyclopædia Britannica. 22 (11th ed.). Cambridge University Press.
  3. https://www.worldstatesmen.org/India_princes_A-J.html
  4. Mark Brentnall, ed. The Princely and Noble Families of the Former Indian Empire: Himachal Pradesh. p. 94
  5. शूरसेना भद्र कारा बॊधाः शाल्वाः पतच चराः, सुस्थलाश च सुकुट्टाश च कुणिन्थाः कुन्तिभिः सह (II.13.25)
  6. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.971
  7. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.971-972