Swami Karmanand
Swami Karmanand (स्वामी कर्मानन्द) (कलकल), from Imlota, Charkhi Dadri, Bhiwani, Haryana was a Social worker in Churu, Rajasthan. [1][2]
जाट जन सेवक
ठाकुर देशराज[3] ने लिखा है ....स्वामी कर्मानन्दजी [पृ.150]: स्वामी कर्मानन्दजी एक कर्मठ और साहसी सन्यासी हैं। स्वामी स्वतंत्रतानंद जी पंजाब के आप प्रिय सहयोगी हैं। 1935-36 के लोहारू जाट आंदोलन और आर्य आंदोलन के बाद कर्मानन्द जी लोहारू में आर्य समाज संगठन के लिए नियुक्त हुए। तब से अब तक अनेक विघ्न बाधाओं का सामना करते हुए उन्होंने लोहारु आर्य समाज को दृढ़ किया तथा लोहारू राज्य में आय समाजिक पाठशालाओं की स्थापना की है। बीकानेर राज्य में अभी कालरी और गागड़वास गांव में दो पाठशालाएं कायम की हैं। बीकानेर में गरीब किसानों के लिए साथ जो ज्यादतियां सरकारी कर्मचारियों और पट्टेदारों की ओर से होती हैं। उनसे आपका ह्रदय क्षुब्ध रहता है। अतः बीकानेर में भी जनजागृती का आपने बिगुल बजाया और गांधी सप्ताह के दिनों में राष्ट्रीय झंडा फहराते हुए बीकानेर सरकार ने उन्हें गिरफ्तार करके नजरबंद भी किया।
आपका जन्म जींद राज्य के बिलोटा नामक गांव में हुआ था। लोहारू के आसपास का प्रदेश स्वामी कर्मानन्द जी से बहुत आशाएं रखता है।
आप बीकानेर प्रजा परिषद के अध्यक्ष और राजस्थान रीजनल काउंसिल के सदस्य रह चुके हैं।
जीवन परिचय
ठाकुर देशराज[4] ने लिखा है ....स्वामी कर्मानंद जी - [पृ.517]: इमलोटा (जींद राज्य) जिला दादरी के कलकल वंश में आपका जन्म हुआ। आपने गुरुकुल बठिंडा में साधारण शिक्षा पाई। आप स्वामी स्वतंत्रतानन्द जी के शिष्य हैं। 1942 में आप ने सन्यास लिया। आपकी आयु लगभग 40 वर्ष है।
आर्यसमाज लोहारू में आपने 3 वर्ष तक काम किया। वहां के मंत्री रहे और आर्य पाठशालाओं के लिए मकान बनाने में आपने सहयोग दिया। मंदिर आर्य समाज के लिए धन संग्रह में भी आप ने सहयोग दिया। अब आप का कार्यक्षेत्र बीकानेर राज्य में है। गागड़वास, कालड़ी 2 ग्रामों में आपके प्रयतन से आप आर्य पाठशालाएं खुली है।
आप बीकानेर प्रजामंडल की ओर से देसी राज्य प्रजा परिषद के प्रतिनिधि हैं। बीकानेर के किसान आंदोलन में आपका पूर्ण सहयोग है। 30 मार्च 1946 को किसान आंदोलन के संबंध में ही आप की गिरफ्तारी हो गई है।
लुहारु किसान आंदोलन के बाद आर्यसमाज का प्रचार
ठाकुर देशराज[5] ने लिखा है ....लुहारु किसान आंदोलन समाप्त हो गया उसके बाद स्वामी स्वतंत्रतानंद जी के कर्मठ शिष्य स्वामी कर्मानंद जी के नेतृत्व में यहां आर्य समाज का प्रचार हुआ। आरंभ में यहां जो आर्यसमाज स्थापित हुआ उसमें सिर्फ म. गंगानंदजी सत्यार्थी, ठाकुर भगवतसिंह जी, श्री किशोरी लाल जी, म. मनीराम जी, चौधरी गंगासहाय जी, चौधरी हुक्मीराम जी, चौधरी रणसिंह जी, ठाकुर रतन सिंह जी और म. नाथूराम जी थे। 29-30 मार्च सन 1941 को आर्य समाज का प्रथम उत्सव जिसमें नवाब के आदमियों ने जुलूस पर लाठियां बरसाई उसमें स्वामी स्वतंत्रतानंद जी भी जख्मी हुए थे।
स्वामी कर्मानंद जी ने कई पाठशालाये लुहरु राज्य में खोली उनमें हरियाबास, विलासबास, दमकोरा, सेहर, चहड़ खुर्द, गोकुलपुरा, बारबास की पाठशालाएं अपने-साथ त्याग और शौर्य का इतिहास रखती हैं।
गैलरी
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Jat Jan Sewak, p.150
सन्दर्भ
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.150
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.517
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.150
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.517
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.505
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