Hukam Singh Parihar

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ठाकुर हुक्मसिंह परिहार

Hukam Singh Parihar (born:1911) (ठाकुर हुकमसिंह परिहार), from Kathwari (कठवारी) (Agra), was a Social worker in Bharatpur, Rajasthan.[1]He was Freedom fighter of Shekhawati farmers movement. [2]

जाट जन सेवक

ठाकुर देशराज[3] ने लिखा है ....ठाकुर हुक्मसिंह परिहार - [पृ.49]: ठाकुर भोला सिंह का नाम लेते ही हुकमसिंह का नाम अपने आप सामने आ जाता है। उन दोनों ने ही सीकर शेखावाटी में नाम कमाया है। कठवारी जिला आगरा में ठाकुर दौलतसिंह के यहाँ आज से 37-38 वर्ष पहले जन्म हुआ था। पंडित लालाराम, जो आजकल मध्यभारत में हिन्द अबलाओं के रक्षक समझे जाते हैं, के साथ रहकर उनसे गान विद्या सीखी। शुद्धि सभा आगरा के वे एक अच्छे उपदेशक समझे जाते थे। इसके बाद उन्होने ठाकुर भोला सिंह के साथ मिलकर राजस्थान को जगाया। वर्ष 1940 ई. से अबतक उन्होने भरतपुर के प्रोपेगेंडा विभाग में काम करके देहाती जनता को जगाया है।

ईश्वर ने उन्हें दो चीजें विशेष रूप में दी हैं अच्छा गला और निरंतर चलने वाली नींद।

जीवन परिचय

ठाकुर हुकम सिंह परिहार ठाकुर देशराज की पहली पत्नी श्रीमती उत्तमा देवी के सगे भाई थे. [4] आप आर्य समाज और अखिल भारतीय जाट महासभा के भजनोपदेशक और प्रचारक थे। आपने साथियों के साथ घूम-घूम कर उत्तर प्रदेश, हरयाणा, पंजाब और राजस्थान में अंधविश्वास, कुरीतियों का विरोध किया और संगठन, एकता , भाई चारे का प्रचार अपने भजनों के माध्यम से करके जन-जागृति का कार्य किया। [5]


ठाकुर हुकम सिंह परिहार ठाकुर देशराज की पहली पत्नी श्रीमती उत्तमा देवी के सगे भाई थे. [6] आप आर्य समाज और अखिल भारतीय जाट महासभा के भजनोपदेशक और प्रचारक थे। आपने साथियों के साथ घूम-घूम कर उत्तर प्रदेश, हरयाणा, पंजाब और राजस्थान में अंधविश्वास, कुरीतियों का विरोध किया और संगठन, एकता , भाई चारे का प्रचार अपने भजनों के माध्यम से करके जन-जागृति का कार्य किया। [7]


ठाकुर देशराज[8] ने लिखा है ....ठाकुर दामोदरसिंह का मान न केवल रियासत में है बल्कि बाहर के जिलों में भी उनका नाम है। वे अच्छे गायक और प्रसिद्ध नृत्यकार हैं। सन् 1942 से वे किसान सभा भरतपुर के प्रचारक और कार्यकर्ता रहे हैं। ठाकुर हुकम सिंह और किरोड़ी सिंह के साथ मिल कर उन्होने किसान संघ को ऊंचा उठाया। सन् 1948 के किसान सत्याग्रह में जेल गए। कौमी गौरव से उनका हृदय भरा हुआ है।


ठाकुर देशराज[9] ने लिखा है ....उत्तर और मध्य भारत की रियासतों में जो भी जागृति दिखाई देती है और जाट कौम पर से जितने भी संकट के बादल हट गए हैं, इसका श्रेय समूहिक रूप से अखिल भारतीय जाट महासभा और व्यक्तिगत रूप से मास्टर भजन लाल अजमेर, ठाकुर देशराज और कुँवर रत्न सिंह भरतपुर को जाता है।


[पृ.4]: अगस्त का महिना था। झूंझुनू में एक मीटिंग जलसे की तारीख तय करने के लिए बुलाई थी। रात के 11 बजे मीटिंग चल रही थी तब पुलिसवाले आ गए। और मीटिंग भंग करना चाहा। देखते ही देखते लोग इधर-उधर हो गए। कुछ ने बहाना बनाया – ईंधन लेकर आए थे, रात को यहीं रुक गए। ठाकुर देशराज को यह बर्दाश्त नहीं हुआ। उन्होने कहा – जनाब यह मीटिंग है। हम 2-4 महीने में जाट महासभा का जलसा करने वाले हैं। उसके लिए विचार-विमर्श हेतु यह बैठक बुलाई गई है। आपको हमारी कार्यवाही लिखनी हो तो लिखलो, हमें पकड़ना है तो पकड़लो, मीटिंग नहीं होने देना चाहते तो ऐसा लिख कर देदो। पुलिसवाले चले गए और मीटिंग हो गई।

इसके दो महीने बाद बगड़ में मीटिंग बुलाई गई। बगड़ में कुछ जाटों ने पुलिस के बहकावे में आकार कुछ गड़बड़ करने की कोशिश की। किन्तु ठाकुर देशराज ने बड़ी बुद्धिमानी और हिम्मत से इसे पूरा किया। इसी मीटिंग में जलसे के लिए धनसंग्रह करने वाली कमिटियाँ बनाई।

जलसे के लिए एक अच्छी जागृति उस डेपुटेशन के दौरे से हुई जो शेखावाटी के विभिन्न भागों में घूमा। इस डेपुटेशन में राय साहब चौधरी हरीराम सिंह रईस कुरमाली जिला मुजफ्फरनगर, ठाकुर झुममन सिंह मंत्री महासभा अलीगढ़, ठाकुर देशराज, हुक्म सिंह जी थे। देवरोड़ से आरंभ करके यह डेपुटेशन नरहड़, ककड़ेऊ, बख्तावरपुरा, झुंझुनू, हनुमानपुरा, सांगासी, कूदन, गोठड़ा


[पृ.5]: आदि पचासों गांवों में प्रचार करता गया। इससे लोगों में बड़ा जीवन पैदा हुआ। धनसंग्रह करने वाली कमिटियों ने तत्परता से कार्य किया और 11,12, 13 फरवरी 1932 को झुंझुनू में जाट महासभा का इतना शानदार जलसा हुआ जैसा सिवाय पुष्कर के कहीं भी नहीं हुआ। इस जलसे में लगभग 60000 जाटों ने हिस्सा लिया। इसे सफल बनाने के लिए ठाकुर देशराज ने 15 दिन पहले ही झुंझुनू में डेरा डाल दिया था। भारत के हर हिस्से के लोग इस जलसे में शामिल हुये। दिल्ली पहाड़ी धीरज के स्वनामधन्य रावसाहिब चौधरी रिशाल सिंह रईस आजम इसके प्रधान हुये। जिंका स्टेशन से ही ऊंटों की लंबी कतार के साथ हाथी पर जुलूस निकाला गया।

कहना नहीं होगा कि यह जलसा जयपुर दरबार की स्वीकृति लेकर किया गया था और जो डेपुटेशन स्वीकृति लेने गया था उससे उस समय के आईजी एफ़.एस. यंग ने यह वादा करा लिया था कि ठाकुर देशराज की स्पीच पर पाबंदी रहेगी। वे कुछ भी नहीं बोल सकेंगे।

यह जलसा शेखावाटी की जागृति का प्रथम सुनहरा प्रभात था। इस जलसे ने ठिकानेदारों की आँखों के सामने चकाचौंध पैदा कर दिया और उन ब्राह्मण बनियों के अंदर कशिश पैदा करदी जो अबतक जाटों को अवहेलना की दृष्टि से देखा करते थे। शेखावाटी में सबसे अधिक परिश्रम और ज़िम्मेदारी का बौझ कुँवर पन्ने सिंह ने उठाया। इस दिन से शेखावाटी के लोगों ने मन ही मन अपना नेता मान लिया। हरलाल सिंह अबतक उनके लेफ्टिनेंट समझे जाते थे। चौधरी घासी राम, कुँवर नेतराम भी


[पृ.6]: उस समय तक इतने प्रसिद्ध नहीं थे। जनता की निगाह उनकी तरफ थी। इस जलसे की समाप्ती पर सीकर के जाटों का एक डेपुटेशन कुँवर पृथ्वी सिंह के नेतृत्व में ठाकुर देशराज से मिला और उनसे ऐसा ही चमत्कार सीकर में करने की प्रार्थना की।


सीकरवाटी किसान आंदोलन की शुरुआत

ठाकुर देशराज[10] ने लिखा है ....सन् 1931 के अक्टूबर महीने में जाट महासभा का


[पृ.223]: डेपुटेशन झूंझावाटी का दौरा करके सीकर में घुसा तो उसका प्रथम मुकाम कूदन में हुआ। डेपुटेशन में ठाकुर झम्मन सिंह जी एडवोकेट मंत्री जाट महासभा, ठाकुर देशराज जी मंत्री राजस्थान जाट सभा और महासभा के दोनों उपदेश ठाकुर भोला सिंह और हुकुम सिंह थे। गांव के किसी प्रतिष्ठित आदमी ने उनकी बात तक नहीं सुनी। यदि उस समय वहां मास्टर चंद्रभान सिंह जी (अध्यापक कार्य पर) न होते तो रात को ठहरना भी मुश्किल हो जाता। यह हालत थी उस समय सीकर के जाटों की हिम्मत और जाति प्रेम की।

हां उस समय भी एक जाट घराना सीकर में शेर की भांति ही निर्भर था वह था चौधरी रामबक्स जी भूकर, गोठड़ा का। चौधरी रामबक्स जी के लड़के चौधरी पृथ्वी सिंह को उस समय का सीकर का सिंह शावक कहें तो कुछ भी अयुक्ति नहीं होगी। उसके दिल में एक तिलमिलाहट थी और वह जल्द से जल्द अपनी कौम को बंधन मुक्त कराने की उत्कंठा में था। वही सिंह शावक अपने दूसरे साथियों श्री हरदेव सिंह पलथाना आदि के साथ झुंझुनू के महान जाट महोत्सव में पहुंचा और तमाम बाहरी जाट लीडर को उसने अपने इलाके के जाटों की दयनीय स्थिति से परिचित कराया।

जयपुर ने सीकर को आंतरिक अमन बनाये रखने की आजादी दे रखी थी। इसलिए यह सीकर का अपना आंतरिक मामला था कि कोई सभा-सोसाइटी अपने यहाँ होने दे या नहीं।

एक बार ठाकुर भोला सिंह जी महोपदेशक जाट महासभा सीकर में जा पहुंचे। CID ने पुलिस में इतला दी और पुलिस ने बैरंग उन्हें सीकर से वापस कर दिया। अतः यह एकदम कठिन था कि वहां जाट महासभा या उसकी किसी


[पृ.224]: शाखा सभा का वहां अधिवेशन हो जाने दिया जाता या प्रचारको को प्रचार की आजादी रहती। ऐसी कठिन परिस्थितियों में वहां जलसा करना था। यह वचन ठाकुर देशराज, कुँवर पृथ्वी सिंह जी को दे चुके थे।

पलथना में मीटिंग: बहुत सोचने विचारने के बाद उनके दिमाग में सीकर में एक यज्ञ कराने की आई और इसी उद्देश्य को लेकर उन्होंने सन् 1933 के अक्टूबर महीने में पलथना में एक मीटिंग बुलाई। इस मीटिंग में सीकर के 500 गांवों में से एक एक आदमी बुलाया गया लेकिन 5,000 आदमी इकट्ठे हुए। मीटिंग को भंग करने के लिए सीकर की पुलिस दल बल सहित मौके पर पहुंची किंतु मीटिंग सफल हुई और वक्ताओं के ओजस्वी भाषण से लोगों में जीवन की लहर पैदा कर दी। इस समय तक कुँवर पन्ने सिंह जी मर चुके थे। उनके बड़े भाई कुंवर भूर सिंह, चौधरी घासी राम, सरदार हरलाल सिंह, चौधरी रामसिंह कुँवरपुरा आदि सभी प्रतिष्ठित कार्यकर्ता शामिल हुए। मा. रतन सिंह जी बीए जो उस समय पिलानी में अध्यापक थे उनका भी भाषण हुआ।

इसी दिन सीकर बसंत पर जाट प्रजापति महायज्ञ करने का एलान किया गया और उसके लिए तय हुआ कि हर घर से घी व पैसा उगाया या जाए। श्री मास्टर चंद्रभान जी को यज्ञ कमेटी का मंत्री और चौधरी हरू सिंह जी पलथाना को अध्यक्ष चुना गया। श्री देवी सिंह बोचल्य और ठाकुर हुकुम सिंह, भोला सिंह जी को प्रचार विभाग सौंपा गया।

डेपुटेशन उपदेशकों के गांवों में पहुंचने से सीकर के कर्मचारियों के कान खड़े हुए और उन्होंने छेड़खानी आरंभ कर दी। तारीख 6 दिसंबर 1932 को जबकि नेछूआ तहसील के सिगड़ोला गांव में प्रचार हो रहा था, रात के समय लावर्दीखां


[पृ.225]: नाम का सवार तहसील की ओर से पहुंचा और ठाकुर हुकुम सिंह जी उपदेशक महासभा को पकड़ ले गया और तहसील में ले जाकर रात भर के लिए काठ में दे दिया। दूसरे दिन काफी डरा धमका कर उन्हें छोड़ दिया गया।

इसके विरोध में ठाकुर देशराज जी मंत्री राजस्थान आदेशिक जाटसभा ने राव राजा साहब सीकर को एक पत्र भेजा और मांग की कि लावर्दी खां को उसके गैरकानूनी कृत्य पर दंड दिया जाए किंतु ठिकाने ने उस पत्र का कोई उत्तर तक नहीं दिया।

जाट महयज्ञ सीकर 1933

[पृ.7]: जाट महयज्ञ सीकर 1933: सीकरवाटी में जागृति लाने के लिए ठाकुर देशराज ने जाट महयज्ञ करने की सोची। इसके लिए पलथाना में अक्तूबर 1932 में एक बैठक बुलाई। इसमें शेखावाटी के तमाम कार्यकर्ता और सीकर के हजारों आदमी इकट्ठे हुये। बसंत पर 7 दिन का यज्ञ करने का प्रस्ताव पारित हुआ। जिस समय यह मीटिंग चल रही थी सीकर ठिकाने ने पुलिस का गारद भेजा। जिसके साथ ऊंट पर हथकड़ियाँ लदी हुई थी। जिन्हें देखकर लोगों के होश खराब होने लगे। तब ठाकुर देशराज ने कहा ये हथकड़ियाँ तो हमको आजाद


[पृ.8]: कराएंगे। अगर आप इनसे डरोगे तो आप कभी भी आनंद प्राप्त नहीं कर सकते जो आप प्राप्त करना चाहते हो। हम यहाँ धर्म का काम करने के लिए इकट्ठा हुये हैं। यज्ञ में विघ्न डालना क्षत्रियों का काम नहीं है यह तो राक्षसों का काम है। आप डरें नहीं ठिकाना हमारे काम में विघ्न डाल कर बदनामी मौल नहीं लेगा। मुझसे अभी कहा गया है कि मैं राव राजा साहब सीकर के पास चलूँ। ऐसे तो मैं नहीं जा सकता। मुझे न तो किसी रावराजा का डर है न महाराजा का। इन शब्दों ने बिजली जैसा असर किया, लोग शांति से जमे रहे और यज्ञ के लिए कमेटियों का निर्माण कर लिया गया।

इससे कुछ ही महीने पहले खंडेलावाटी इलाके की जाट कनफेरेंस चौ. लादूराम गोरधनपुरा के सभापतित्व में बड़ी धूम-धाम से गढ़वाल की ढानी में हो चुकी थी। इस प्रकार जागृति का बिगुल तमाम ठिकानों में बज चुका था।

सीकर यज्ञ होने में थोड़े दिन शेष थे कि नेछआ में ठाकुर हुकम सिंह परिहार जब चंदा कमेटी का काम करने गए थे तो पकड़ कर काठ में दे दिया। और एक जाट की पिटाई सीकर में की। इन्हीं दिनों अर्थात दिसंबर 1932 को पिलानी में राय साहिब हरीराम सिंह के सभा पतित्व में अखिल भारतीय जाट विद्यार्थी कानफेरेंस का अधिवेशन हो रहा था। उसमें चौधरी छोटूराम साहब भी पधारे थे। तार द्वारा जब उनको सीकर से इतला मिली तो वे सीकर पहुँच गए। वहाँ उन्होने 5000 लोगों की उपस्थिती में एक तगड़ा भाषण दिया। इससे ठिकाने के भी होश ढीले हो गए। और जाटों में भी जीवन पैदा हो गया। सन 1933 की जनवरी में बसंत आ गया और उसके


[पृ.9]: सुनहले दिनों में लगभग 80000 की हाजिरी में यज्ञ का कार्य आरंभ हुआ। किरथल आर्य महाविद्यालय के ब्रह्मचारियों ने पंडित जगदेव सिद्धांती के नेतृत्व में यज्ञ आरंभ किया।

यज्ञपति थे आंगई के कुँवर हुकम सिंह परिहार और यज्ञमान ने कूदन के चौधरी कालूराम। वेदी पर दो दाढ़िया आर ब्रह्मचारी गण वैदिक काल के राजाओं और ऋषि बालकों की याद दिलाते थे। दस दिन तक वेद मंत्रों से यज्ञ हुआ। यज्ञभूमि छोटी-छोटी झोंपड़ियों और छोलदारियों का एक उपनिवेश सा बन गई थी।

यज्ञपति और वेदों का जुलूस निकालने के लिए जयपुर से एक हाथी मंगवाया गया था। किन्तु सीकर ठिकाने ने हाथी पर जुलूस न निकालने देने की जिद की। तीन दिन तक बराबर चख-चख रही। जयपुर के आईजी एफ़एस यंग को जयपुर से हवाई जहाज से मौके पर सीकर भेजा। दोनों तरफ की झुका-झुकी के बाद हाथी पर जुलूस निकल गया।

इस यज्ञ में 10 दिन तक जाट संगठन और जाट उत्थान का प्रचार होता रहा। लगभग 10 भजन मंडलियों और दर्जनों वक्ताओं ने जनता का मनोरंजन और ज्ञान-वर्धन किया। इसी समय कुँवर रतन सिंह की सदारत में राजस्थान जाटसभा का भी जलसा किया गया। इस में राजस्थान के तो हर कोने से लोग आए ही थे भारत के भी हर कोने से लोग आए थे। इसी समय जाट इतिहास का प्रकाशन हुआ और सर्वप्रथन उसकी कापी यज्ञकर्ताओं के लिए दी गई। ठाकुर देशराज[11] ने लिखा है ....चौधरी डालूराम - [p.322a]: प्रत्येक लीडर का कोई नहीं कोई लेफ्टिनेंट होता है। कुंवर पृथ्वी सिंह जी के लेफ्टिनेंट चौधरी डालू रामजी भूकर से सभी कार्यकर्ता परिचित हैं। आपके पिताजी का नाम चौधरी जीवनराम जी था। आपका जन्म संवत 1944 में हुआ था। आपने सीकर महायज्ञ के समय ठाकुर हुकुम सिंह जी परिहार के साथ घूम-घूम कर यज्ञ के लिए धन संग्रह कराया। फिर आंदोलन के छिड़ने पर आप गिरफ्तार हो गए और 6 महीने तक जेल में रहे। आप अत्यंत उत्साही पुरुष हैं। आपके छोटे भाई का नाम बिरधू है. पुत्रों के नाम लोना और सुखराम हैं। आप अभी यथासाध्य काम करते हैं।

पुस्तक का प्रकाशन

गैलरी

External links

References

  1. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, p.49
  2. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.322a
  3. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, p.49
  4. हरभान सिंह 'जिन्दा: ठाकुर देशराज - राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम के अमर पुरोधा, राजस्थान स्वर्ण जयंती प्रकाशन समिति जयपुर के लिए राजस्थान हिंदी ग्रन्थ अकादमी द्वारा प्रकाशित, वर्ष 2003, पृ. 37
  5. Jat Samaj, Agra, 7/2016,p.20
  6. हरभान सिंह 'जिन्दा: ठाकुर देशराज - राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम के अमर पुरोधा, राजस्थान स्वर्ण जयंती प्रकाशन समिति जयपुर के लिए राजस्थान हिंदी ग्रन्थ अकादमी द्वारा प्रकाशित, वर्ष 2003, पृ. 37
  7. Jat Samaj, Agra, 7/2016,p.20
  8. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, p.50
  9. ठाकुर देशराज:Jat Jan Sewak, p.1, 4-6
  10. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.223-225
  11. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.322a

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