Tiku Ram Budania

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Ch.Tikoo Ram Budania
लेखक:लक्ष्मण बुरड़क, IFS (Retd.), Jaipur

Tiku Ram Budania (चौधरी टीकूराम बुडानिया) was a freedom fighter and reformer in Rajasthan. He was born in the family of a Budania Jats of village Loha, tahsil Ratangarh, district Churu in Rajasthan.

Kisan Sabha at Loha

Hari Ram Dhaka and Megh Singh Sewda went from village to village in Churu district and gave momentum to this movement. Tiku Ram Budania of Loha, Budh Ram Dudi of Sitsar, Rupram Maan and Hari Ram Dhaka of Norangsar organized a meeting at village Loha in Ratangarh tehsil on 10 October 1946.

The urban people also came in their support. Mohan Lal Saraswat and Rameswar Pareek from Ratangarh were of great help in the sabha. Jagirdars did their best to disturb the sabha but it continued. It was decided unanimously not to pay the taxes to the Jagirdars and not to obey their orders.

जीवन परिचय

चौधरी टीकूराम बुडानिया का जन्म 2-7-1895 को चौधरी सेवाराम बुडानिया के घर श्रीमती बिडदी देवी की कोख से हुआ। आप सामाजिक कुरीतियों के प्रबल विरोधी रहे हैं तथा सवतंत्रता आन्दोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया। आप चूरू जिले के नक़्शे पर लोहा ग्राम को स्थापित करने में सफल रहे।

चौधरी टीकूराम बुडानिया 10 अक्टूबर 1946 को जागीरदार के गढ़ के आगे एक विशाल किसान सम्मलेन करने में सफल हुए। हजारों हथियार बंद जागीरदारों एवं चमचमाती तलवारों तथा जय भवानी के बार-बार जयघोष की परवाह किये बिना तथा बिना किसी भय के किसान सम्मलेन करवाकर राजशाही एवं सामंत शाही को ललकारा कि अब किसान जग उठा है, तुम्हारा शोषण ज्यादा दिन चलने वाला नहीं है। इसी दिन से जागीरदारों को लाग-बाग़ नहीं देने का निर्णय हुआ। राजशाही एवं सामंतशाही लोहा सम्मलेन से घबराकर किसानों विशेषकर जाटों को नेस्तनाबूद करने के लिए सबक सिखाने की ठान ली और इसी का परिणाम था काँगड़ आन्दोलन। [1]

लोहा गाँव में किसान सम्मलेन

रतनगढ़ तहसील जिला चूरू में रतनगढ़ से उत्तर की तरफ(मेगा हाईवे पर गोगासर के पूर्व में 5 किमी) 20 किमी दूरी पर स्थित काँगड़ नाम का गाँव है जिसमें 135 घरों की बस्ती थी, जिसमें 90 घर जाटों के थे। यह गाँव खालसा में था। जब बीकानेर रियासत में आजादी के लिए किसानों का आन्दोलन शुरू हुआ तो, बीकानेर महाराजा सार्दुल सिंह ने अपने ए.डी.सी. ठाकुर गोपसिंह को काँगड़ का पट्टा देकर इसे जागीरदार के अधीन कर दिया। खालसा के समय यह गाँव सीधा बीकानेर रियासत के अधीन था। गाँव में एक चौधरी नियुक्त था जो लगान लेकर सीधे बीकानेर राजकोष में जमा करवा देता था। राजा का आगमन नहीं था और कोई ज्यादा लाग-बाग भी नहीं थी। भूमि का लगान भी ठीक-ठाक था, जिसे किसान आसानी से चुका देते थे। खेत की प्राकृतिक फसल जैसे लूँग, ल्हासू, पाला आदि काटकर किसान स्वयं अपने पशुओं को चराता था। ज्योही यह गाँव पट्टे में आया किसान की यह स्वतंत्रता ख़त्म हो गयी थी। ठाकुर गोपसिंह बीकानेर में रहता था वह कभी कभी आता था। ठाकुर के कारिंदे आते और लगान वसूल कर उसे ले जाकर बीकानेर देते थे।

लोहा गाँव में किसान सम्मलेन - 10 अक्टूबर 1946 में मेघसिंह आर्य, लोहा के चौधरी टीकूराम बुडानिया, सीतसर के चौधरी बुद्धाराम डूडी ने लोहा गाँव में किसान सम्मलेन आयोजित किया था जो बहुत सफल रहा। इस सम्मलेन में जागीरदारों को लाग-बाग़ न देने का निर्णय लिया था और यही निर्णय जागीरदारों के प्रतिशोध का कारण बना।

सन्दर्भ

  1. उद्देश्य:जाट कीर्ति संस्थान चूरू द्वारा आयोजित सर्व समाज बौधिक एवं प्रतिभा सम्मान समारोह, स्मारिका जून 2013,p.134

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