Panne Singh Jakhar: Difference between revisions
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कोलिडा के पन्नेसिंह जाखड़ शाही व्यक्तित्व के थे। वे अनेक बार जागीरदारों से टकराए और फतेह हासिल की। <ref>[[Jaton Ke Vishva Samrajya aur Unake Yug Purush Part 1/Chapter 10]],p.94</ref> | कोलिडा के पन्नेसिंह जाखड़ शाही व्यक्तित्व के थे। वे अनेक बार जागीरदारों से टकराए और फतेह हासिल की। <ref>[[Jaton Ke Vishva Samrajya aur Unake Yug Purush Part 1/Chapter 10]],p.94</ref> | ||
== जाट जन सेवक == | == जाट जन सेवक == | ||
[[ठाकुर देशराज]]<ref>[[Thakur Deshraj]]:[[Jat Jan Sewak]], 1949, p.306-307 </ref> ने लिखा है ....'''[[Panne Singh Kolida|चौधरी पन्नेसिंह कोलीड़ा]]''' - [पृ.306]:सीकर वाटी में कई पन्ने सिंह है। हम जिन का जीवन परिचय लिख रहे हैं वह [[पन्ने सिंह जी कोलीड़ा]] के नाम से जाट जगत में मशहूर हैं। जिसने जागीरदार न होते हुए जागीरदारों जैसा आनंद | [[ठाकुर देशराज]]<ref>[[Thakur Deshraj]]:[[Jat Jan Sewak]], 1949, p.306-307 </ref> ने लिखा है ....'''[[Panne Singh Kolida|चौधरी पन्नेसिंह कोलीड़ा]]''' - [पृ.306]:सीकर वाटी में कई पन्ने सिंह है। हम जिन का जीवन परिचय लिख रहे हैं वह [[पन्ने सिंह जी कोलीड़ा]] के नाम से जाट जगत में मशहूर हैं। | ||
जिसने जागीरदार न होते हुए जागीरदारों जैसा आनंद | |||
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[पृ.307]: का जीवन बिताया हो और छोटे-मोटे जागीदार भी जिसकी खुशामद में खड़े रहे हो वैसा दबंग और समृद्धि जाट सरदार '''[[Kolida|कोलीड़ा]]''' के | [पृ.307]: का जीवन बिताया हो और छोटे-मोटे जागीदार भी जिसकी खुशामद में खड़े रहे हो वैसा दबंग और समृद्धि जाट सरदार '''[[Kolida|कोलीड़ा]]''' के पन्नेसिंह जी हैं। | ||
उन्हें सन 1933 ई. में जबकि [[जाट महायज्ञ]] की तैयारी हो रही थी, जनरल देवा सिंह जी ने जगाया और यह कोशिश की की [[Deorod|देवरोड]] के पन्ने सिंह जी के स्थान की पूर्ति कर दें। किंतु होता वही है जिसे परमेश्वर करना चाहता है। कोलीड़ा के पन्ने सिंह जी चमके और जेल भी गए, आंदोलन में फिर भी और लुटे भी। किंतु जब मनोवांछित सफलता प्राप्त न हुई तो फिर पहले की भांति सो गए। किंतु उन्होंने जितने दिन भी काम किया बड़ी दिलेरी और हौसला मंदी के साथ किया। | उन्हें सन 1933 ई. में जबकि [[जाट महायज्ञ]] की तैयारी हो रही थी, जनरल देवा सिंह जी ने जगाया और यह कोशिश की की [[Deorod|देवरोड]] के पन्ने सिंह जी के स्थान की पूर्ति कर दें। किंतु होता वही है जिसे परमेश्वर करना चाहता है। कोलीड़ा के पन्ने सिंह जी चमके और जेल भी गए, आंदोलन में फिर भी और लुटे भी। किंतु जब मनोवांछित सफलता प्राप्त न हुई तो फिर पहले की भांति सो गए। किंतु उन्होंने जितने दिन भी काम किया बड़ी दिलेरी और हौसला मंदी के साथ किया। | ||
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आपका जन्म संवत 1952 (1895 ई.) विक्रम में चौधरी '''जीवनराम जी जाखड़''' के घर हुआ था। आप घर पहले से ही संपन्न है घर है। तमाम सीकर वाटी में अच्छे से अच्छे घरों में आपका प्रमुख स्थान है रहता है। | आपका जन्म संवत 1952 (1895 ई.) विक्रम में चौधरी '''जीवनराम जी जाखड़''' के घर हुआ था। आप घर पहले से ही संपन्न है घर है। तमाम सीकर वाटी में अच्छे से अच्छे घरों में आपका प्रमुख स्थान है रहता है। | ||
== सीकर के जाटों पर जुल्मों का पहाड़ == | == सीकर के जाटों पर जुल्मों का पहाड़ == | ||
[[ठाकुर देशराज]]<ref>[[Thakur Deshraj]]: [[Jat Jan Sewak]], 1949, p.283-84</ref> ने लिखा है ....गांवों में सीकर ठिकाने द्वारा अन्यायों का तांता बन गया और गांवों में जाटों को पीटा जाने लगा। | [[ठाकुर देशराज]]<ref>[[Thakur Deshraj]]: [[Jat Jan Sewak]], 1949, p.283-84</ref> ने लिखा है ....गांवों में सीकर ठिकाने द्वारा अन्यायों का तांता बन गया और गांवों में जाटों को पीटा जाने लगा। |
Latest revision as of 04:30, 5 February 2018
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Panne Singh Jakhar (born:1895), from village Kolira, District Sikar, Rajasthan, was Freedom fighter of Shekhawati farmers movement.
जीवन परिचय
कोलिडा के पन्नेसिंह जाखड़ शाही व्यक्तित्व के थे। वे अनेक बार जागीरदारों से टकराए और फतेह हासिल की। [1]
जाट जन सेवक
ठाकुर देशराज[2] ने लिखा है ....चौधरी पन्नेसिंह कोलीड़ा - [पृ.306]:सीकर वाटी में कई पन्ने सिंह है। हम जिन का जीवन परिचय लिख रहे हैं वह पन्ने सिंह जी कोलीड़ा के नाम से जाट जगत में मशहूर हैं।
जिसने जागीरदार न होते हुए जागीरदारों जैसा आनंद
[पृ.307]: का जीवन बिताया हो और छोटे-मोटे जागीदार भी जिसकी खुशामद में खड़े रहे हो वैसा दबंग और समृद्धि जाट सरदार कोलीड़ा के पन्नेसिंह जी हैं।
उन्हें सन 1933 ई. में जबकि जाट महायज्ञ की तैयारी हो रही थी, जनरल देवा सिंह जी ने जगाया और यह कोशिश की की देवरोड के पन्ने सिंह जी के स्थान की पूर्ति कर दें। किंतु होता वही है जिसे परमेश्वर करना चाहता है। कोलीड़ा के पन्ने सिंह जी चमके और जेल भी गए, आंदोलन में फिर भी और लुटे भी। किंतु जब मनोवांछित सफलता प्राप्त न हुई तो फिर पहले की भांति सो गए। किंतु उन्होंने जितने दिन भी काम किया बड़ी दिलेरी और हौसला मंदी के साथ किया।
उन्होंने सीकर महायज्ञ के लिए बड़ी रकम दी। आपने कान्फ्रेंस कराई और उन पर काफी खर्च किया। देने में कभी भी कंजूस नहीं रहे।
आपका जन्म संवत 1952 (1895 ई.) विक्रम में चौधरी जीवनराम जी जाखड़ के घर हुआ था। आप घर पहले से ही संपन्न है घर है। तमाम सीकर वाटी में अच्छे से अच्छे घरों में आपका प्रमुख स्थान है रहता है।
सीकर के जाटों पर जुल्मों का पहाड़
ठाकुर देशराज[3] ने लिखा है ....गांवों में सीकर ठिकाने द्वारा अन्यायों का तांता बन गया और गांवों में जाटों को पीटा जाने लगा।
लादूराम और बिरम सिंह दो जाट किसी कारणवश सीकर आए थे उन्हें गिरफ्तार करके बुरी तरह पीटा गया। बीरमसिंह की हालत नाजुक कही जाती है। खुड़ी के राजपूतों के घस्सू गांव के 4 जाटों को पकड़कर मनमाना पीटा और पुलिस ने गिरफ्तार करा दिया।
सरदार पन्ने सिंह जी जाखड़ ग्राम कोलीड़ा को बहुत पीटा जा रहा है। पुलिस इंचार्ज के नाम पूछने पर उसने अपना नाम पन्नेसिंह बतलाया था। उसको अपना नाम थाने पर लिखाने को कहा जाता है, परंतु वह नहीं लिखाता।
[पृ.284]: कई घायल अस्पताल में भर्ती नहीं किए जाने के कारण ग्रामों की ओर जा रहे हैं। खुड़ी में आए हुए जाटों से बीबीपुर ग्राम का एक और घस्सु ग्राम के 2 जाट का पता नहीं है। जाट जनता में विश्वास है कि वे दोनों खुड़ी में लाठीचार्ज के समय मर गए। उनके घरवाले उन्हें ढूंढ रहे हैं। अभी तक उनका या उनकी लाश का पता नहीं चला है।
शेखावाटी किसान आन्दोलन पर रणमल सिंह
शेखावाटी किसान आन्दोलन पर रणमल सिंह[4] लिखते हैं कि [पृष्ठ-113]: सन् 1934 के प्रजापत महायज्ञ के एक वर्ष पश्चात सन् 1935 (संवत 1991) में खुड़ी छोटी में फगेडिया परिवार की सात वर्ष की मुन्नी देवी का विवाह ग्राम जसरासर के ढाका परिवार के 8 वर्षीय जीवनराम के साथ धुलण्डी संवत 1991 का तय हुआ, ढाका परिवार घोड़े पर तोरण मारना चाहता था, परंतु राजपूतों ने मना कर दिया। इस पर जाट-राजपूत आपस में तन गए। दोनों जातियों के लोग एकत्र होने लगे। विवाह आगे सरक गया। कैप्टन वेब जो सीकर ठिकाने के सीनियर अफसर थे , ने हमारे गाँव के चौधरी गोरूसिंह गढ़वाल जो उस समय जाट पंचायत के मंत्री थे, को बुलाकर कहा कि जाटों को समझा दो कि वे जिद न करें। चौधरी गोरूसिंह की बात जाटों ने नहीं मानी, पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया। इस संघर्ष में दो जाने शहीद हो गए – चौधरी रत्नाराम बाजिया ग्राम फकीरपुरा एवं चौधरी शिम्भूराम भूकर ग्राम गोठड़ा भूकरान । हमारे गाँव के चौधरी मूनाराम का एक हाथ टूट गया और हमारे परिवार के मेरे ताऊजी चौधरी किसनारम डोरवाल के पीठ व पैरों पर बत्तीस लठियों की चोट के निशान थे। चौधरी गोरूसिंह गढ़वाल के भी पैरों में खूब चोटें आई, पर वे बच गए।
चैत्र सुदी प्रथमा को संवत बदल गया और विक्रम संवत 1992 प्रारम्भ हो गया। सीकर ठिकाने के जाटों ने लगान बंदी की घोषणा करदी, जबरदस्ती लगान वसूली शुरू की। पहले भैरुपुरा गए। मर्द गाँव खाली कर गए और चौधरी ईश्वरसिंह भामू की धर्मपत्नी जो चौधरी धन्नाराम बुरड़क, पलथना की बहिन थी, ने ग्राम की महिलाओं को इकट्ठा करके सामना किया तो कैप्टेन वेब ने लगान वसूली रोकदी। चौधरी बक्साराम महरिया ने ठिकाने को समाचार भिजवा दिया कि हम कूदन में लगान वसूली करवा लेंगे।
कूदन ग्राम के पुरुष तो गाँव खाली कर गए। लगान वसूली कर्मचारी ग्राम कूदन की धर्मशाला में आकर ठहर गए। महिलाओं की नेता धापू देवी बनी जिसका पीहर ग्राम रसीदपुरा में फांडन गोत्र था। उसके दाँत टूट गए थे, इसलिए उसे बोखली बड़िया (ताई) कहते थे। महिलाओं ने काँटेदार झाड़ियाँ लेकर लगान वसूली करने वाले सीकर ठिकाने के कर्मचारियों पर आक्रमण कर दिया, अत: वे धर्मशाला के पिछवाड़े से कूदकर गाँव के बाहर ग्राम अजीतपुरा खेड़ा में भाग गए। कर्मचारियों की रक्षा के लिए पुलिस फोर्स भी आ गई। ग्राम गोठड़ा भूकरान के भूकर एवं अजीतपुरा के पिलानिया जाटों ने पुलिस का सामना किया। गोठड़ा गोली कांड हुआ और चार जने वहीं शहीद हो गए। इस गोली कांड के बाद पुलिस ने गाँव में प्रवेश किया और चौधरी कालुराम सुंडा उर्फ कालु बाबा की हवेली , तमाम मिट्टी के बर्तन, चूल्हा-चक्की सब तोड़ दिये। पूरे गाँव में पुरुष नाम की चिड़िया भी नहीं रही सिवाय राजपूत, ब्राह्मण, नाई व महाजन परिवार के। नाथाराम महरिया के अलावा तमाम जाटों ने ग्राम छोड़ कर भागे और जान बचाई।
[पृष्ठ-114]: कूदन के बाद ग्राम गोठड़ा भूकरान में लगान वसूली के लिए सीकर ठिकाने के कर्मचारी पुलिस के साथ गए और श्री पृथ्वीसिंह भूकर गोठड़ा के पिताजी श्री रामबक्स भूकर को पकड़ कर ले आए। उनके दोनों पैरों में रस्से बांधकर उन्हें (जिस जोहड़ में आज माध्यमिक विद्यालय है) जोहड़े में घसीटा, पीठ लहूलुहान हो गई। चौधरी रामबक्स जी ने कहा कि मरना मंजूर है परंतु हाथ से लगान नहीं दूंगा। उनकी हवेली लूट ली गई , हवेली से पाँच सौ मन ग्वार लूटकर ठिकाने वाले ले गए।
कूदन के बाद जाट एजीटेशन के पंचों – चौधरी हरीसिंह बुरड़क, पलथना, चौधरी ईश्वरसिंह भामु, भैरूंपुरा; पृथ्वी सिंह भूकर, गोठड़ा भूकरान; चौधरी पन्ने सिंह बाटड़, बाटड़ानाऊ; एवं चौधरी गोरूसिंह गढ़वाल (मंत्री) कटराथल – को गिरफ्तार करके देवगढ़ किले मैं कैद कर दिया। इस कांड के बाद कई गांवों के चुनिन्दा लोगों को देश निकाला (ठिकाना बदर) कर दिया। मेरे पिताजी चौधरी गनपत सिंह को ठिकाना बदर कर दिया गया। वे हटूँड़ी (अजमेर) में हरिभाऊ उपाध्याय के निवास पर रहे। मई 1935 में उन्हें ठिकाने से निकाला गया और 29 फरवरी, 1936 को रिहा किया गया।
जब सभी पाँच पंचों को नजरबंद कर दिया गया तो पाँच नए पंच और चुने गए – चौधरी गणेशराम महरिया, कूदन; चौधरी धन्नाराम बुरड़क, पलथाना; चौधरी जवाहर सिंह मावलिया, चन्दपुरा; चौधरी पन्नेसिंह जाखड़; कोलिडा तथा चौधरी लेखराम डोटासरा, कसवाली। खजांची चौधरी हरदेवसिंह भूकर, गोठड़ा भूकरान; थे एवं कार्यकारी मंत्री चौधरी देवीसिंह बोचलिया, कंवरपुरा (फुलेरा तहसील) थे। उक्त पांचों को भी पकड़कर देवगढ़ किले में ही नजरबंद कर दिया गया। इसके बाद पाँच पंच फिर चुने गए – चौधरी कालु राम सुंडा, कूदन; चौधरी मनसा राम थालोड़, नारसरा; चौधरी हरजीराम गढ़वाल, माधोपुरा (लक्ष्मणगढ़); मास्टर कन्हैयालाल महला, स्वरुपसर एवं चौधरी चूनाराम ढाका , फतेहपुरा।
संदर्भ
- ↑ Jaton Ke Vishva Samrajya aur Unake Yug Purush Part 1/Chapter 10,p.94
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.306-307
- ↑ Thakur Deshraj: Jat Jan Sewak, 1949, p.283-84
- ↑ रणमल सिंह के जीवन पर प्रकाशित पुस्तक - 'शताब्दी पुरुष - रणबंका रणमल सिंह' द्वितीय संस्करण 2015, ISBN 978-81-89681-74-0 पृष्ठ 113-114
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