Boyat Ram Dudi: Difference between revisions

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'''Boyat Ram Dudi''' (1923-30.01.2023) was a soldier of Raj Rifles. He retired from Indian Army in 1957. He was from [[Bhorki]] village in [[Udaipurwati]] tahsil of [[Jhunjhunu]] district in [[Rajasthan]]. He fought bravely at six fronts in [[World War-II]] for which he was awarded 6 [[Sena Medal]]s. He was sent to '''[[Libya]]''' and '''[[Africa]]''' during [[World War-II]].  
'''Boyat Ram Dudi''' (1923-30.01.2023) was a soldier of Raj Rifles. He retired from Indian Army in 1957. He was from [[Bhorki]] village in [[Udaipurwati]] tahsil of [[Jhunjhunu]] district in [[Rajasthan]]. He fought bravely at six fronts in [[World War-II]] for which he was awarded 6 [[Sena Medal]]s. He was sent to '''[[Libya]]''' and '''[[Africa]]''' during [[World War-II]].  


== पूर्व सैनिक बोयतराम डूडी ==
== पूर्व सैनिक बोयतराम डूडी ==
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झुंझुनूं के पूर्व सैनिक बोयतराम डूडी का 100 साल की उम्र में निधन सोमवार दिनांक 30.01.2023 को हो गया. भोड़की गांव के रहने वाले डूडी ने तकरीबन 66 साल तक फौज से रिटायर्ड होने के बाद पेंशन ली. वहीं मंगलवार को बोयतराम डूडी का अंतिम संस्कार उनके पैतृक गांव '''[[Bhodki|भोडकी]]''' में किया गया.
झुंझुनूं के पूर्व सैनिक बोयतराम डूडी का 100 साल की उम्र में निधन सोमवार दिनांक 30.01.2023 को हो गया. भोड़की गांव के रहने वाले डूडी ने तकरीबन 66 साल तक फौज से रिटायर्ड होने के बाद पेंशन ली. वहीं मंगलवार को बोयतराम डूडी का अंतिम संस्कार उनके पैतृक गांव '''[[Bhodki|भोडकी]]''' में किया गया.



Latest revision as of 12:27, 2 February 2023

Boyat Ram Dudi

Boyat Ram Dudi (1923-30.01.2023) was a soldier of Raj Rifles. He retired from Indian Army in 1957. He was from Bhorki village in Udaipurwati tahsil of Jhunjhunu district in Rajasthan. He fought bravely at six fronts in World War-II for which he was awarded 6 Sena Medals. He was sent to Libya and Africa during World War-II.

पूर्व सैनिक बोयतराम डूडी

Boyat Ram Dudi

झुंझुनूं के पूर्व सैनिक बोयतराम डूडी का 100 साल की उम्र में निधन सोमवार दिनांक 30.01.2023 को हो गया. भोड़की गांव के रहने वाले डूडी ने तकरीबन 66 साल तक फौज से रिटायर्ड होने के बाद पेंशन ली. वहीं मंगलवार को बोयतराम डूडी का अंतिम संस्कार उनके पैतृक गांव भोडकी में किया गया.

राजस्थान का झुंझुनूं जिला शहीदों और सैनिकों के लिए विख्यात है जहां की धरती से देश की सेवा करने वाले ना जाने कितने ही वीर निकले और कितने ही युद्ध में अपने जज्बे और साहस का परिचय दिखाया. वहीं झुंझुनूं की धरती के नाम सैनिकों की शहादत के कई रिकॉर्ड हैं लेकिन सेना में देश की सेवा करके गांव लौटने के बाद भी जवानों ने यहां कई कीर्तिमान बनाए हैं.

एक ऐसा ही रिकॉर्ड झुंझुनूं के एक बहादुर सिपाही बोयतराम डूडी ने बनाया जिन्होंने सेना से रिटायर्ड होने के बाद सबसे अधिक समय तक पेंशन ली है. बोयतराम डूडी का सोमवार को 100 साल की उम्र में निधन हो गया है. झुंझुनूं के भोड़की गांव के रहने वाले पूर्व सैनिक बोयतराम डूडी जिन्होंने तकरीबन 66 साल तक फौज से रिटायर्ड होने के बाद पेंशन ली. वहीं मंगलवार को बोयतराम डूडी का अंतिम संस्कार उनके पैतृक गांव में किया गया.

जानकारी के मुताबिक बोयतराम ने द्वितीय विश्व युद्ध में 6 मोर्चों पर जंग लड़ी थी और वह महज 17 साल की उम्र में सेना में चले गए थे. इसके बाद बोयतराम 66 साल पहले रिटायर हुए थे जहां रिटायरमेंट के दौरान उनकी सेना से महज 19 रुपए पेंशन आती थी और उनके निधन तक पहुंचने तक वह 35460 रुपए हो गई. बताया जा रहा है कि बोयतराम संभवतया प्रदेश में एकमात्र पूर्व सैनिक थे जिन्होंने रिटायर होने के बाद करीब 66 साल तक फौज से पेंशन ली.

17 साल की उम्र में हुए सेना में भर्ती: इधर बोयतराम के निधन के बाद गांव में शोक की लहर दौड़ गई और उनके अंतिम संस्कार में रिश्तेदार और गांव के कई पूर्व सैनिक शामिल हुए जिन्होंने इस जाबांज को आखिरी विदाई दी. बता दें कि बोयतराम 1957 में रिटायर होकर गांव लौटे थे तब उनकी पेंशन 19 रुपए थी और 66 साल बाद बढ़कर 35640 रुपए तक पहुंच गई थी.

वहीं अब उनकी पत्नी 92 साल की चंदा देवी को सेना के नियमों के मुताबिक आजीवन पेंशन दी जाएगी. भोड़की गांव के रहने वाले लोगों का कहना है कि बोयतराम दूसरे विश्व युद्ध के किस्से अक्सर अपने परिजनों और गांव वालों को सुनाया करते थे.

उनके परिजनों का कहना है कि बुजुर्ग बोयतराम इस उम्र में भी अपने नित्य काम खुद करते थे और खेत भी जाया करते थे. उनके परिजनों के मुताबिक वह बेहद सादा खाना खाते थे और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जब बोयतराम मेडल लेकर वापस अपने देश लौटे तो वह महात्मा गांधी और प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से भी मिले थे.

बहादुरी के लिए मिले चार सेना मेडल: बता दें कि बोयतराम को द्वितीय विश्व युद्ध में छह मोर्चो पर जंग लड़ने के बाद उनकी बहादुरी के लिए चार सेना मेडल मिले थे. वहीं डूडी की पोस्टिंग सेना की राजरिफ बटालियन में हुई थी जहां दूसरा विश्व युद्ध शुरू होने पर उनको लीबिया और अफ्रीका के छह मोर्चों पर जंग के लिए भेजा गया था.

बताया जाता है कि उन्होंने इस लड़ाई में अपनी बहादुरी का परिचय दिया था और बटालियन के 80 फीसदी सैनिकों के शहीद होने के बाद भी जंग पर डटे रहे.

गौरतलब है कि डूडी का जन्म भोड़की में 1923 में हुआ था. वहीं बोयतराम अब अपने पीछे के 2 बेटे धर्मवीर और मुकंदाराम और 4 पोते धर्मवीर, सत्यप्रकाश, मुकेश व सुरजीत को छोड़कर गए हैं.

Source - tv9hindi.com, अवधेश पारीक, Feb 01, 2023

References

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