Ludi

Ludi (लूद्दी) (Luddi, Ludy, Ludi Khuba) is a Village in Rajgarh tahsil of Churu district in Rajasthan. Ludi village was converted to Rajgarh by Jagirdars in name of Gaj Singh in 1766.
Jat Gotras
कान्हाजी पूनिया का इतिहास
चूरू जनपद के जाट इतिहास पर दौलतराम सारण डालमाण[1] ने अनुसन्धान किया है और लिखा है कि पाउलेट तथा अन्य लेखकों ने इस हाकडा नदी के बेल्ट में निम्नानुसार जाटों के जनपदीय शासन का उल्लेख किया है जो बीकानेर रियासत की स्थापना के समय था।
क्र.सं. | जनपद | क्षेत्रफल | राजधानी | मुखिया | प्रमुख ठिकाने |
---|---|---|---|---|---|
7. | पूनिया | 360 गाँव | बड़ी लूदी | कान्हाजी पूनिया | लूदी, झांसल, मरौडा, अजीतपुर |
History
लूद्दी चुरू से 38 मील उत्तर-पूर्व में और सीधमुख से 16 मील दक्षिण-पूर्व में राजगढ़ कसबे के पास है. यह पूनिया जाटों की राजधानी थी. [2] किसी समय लूद्दी स्मृद्ध कस्बा रहा होगा, लेकिन अब यह अति साधारण गाँव है. पूनियों के अधीन 360 गाँव थे. [3]
इसके तीन बास है -
- लूद्दी छाजू - लूद्दी छाजू तो सर्वथा निर्जन है. नेतजी मंदिर राजगढ़ - नेतजी अथवा भोमिया जी नगर के प्रधान देवता माने जाते हैं। सन 1823 मे राजगढ़ की स्थापना के समय लुद्दी छाजू से एक परिवार आकर राजगढ़ में बसा और उसने नगर के पश्चिम मे नेतजी का थान बनाया। नगर या गाँव की स्थापना पर भोमिया जी की पूजा की जाती है। बीकानेर राज्य ने मंदिर के लिए 9 बीघा भूमि आवंटित की। 22 जून 1983 को इस भूमि का पक्का पट्टा बना। [4]
लुद्दी खूबा और लुद्दी झाबर की जनसंख्या रजिस्टर देहात बीकानेर (1931) के अनुसार 25 और 76 थी, जो बढकर 1961 में 69 और 190 हो गयी. लुद्दी झाबर के उदमीराम पुनिया ने बताया कि बाढ़मेर से बाढ़जी पूनिया पहले पहल यहाँ आए थे. बाढ़जी के 12 बेटे थे जिन्होंने अपने नाम पर 12 गाँव बसाए. लुद्दी में पहले 360 दुकाने तो केवल पटवों की ही थी. यहाँ से माल दिल्ली जाता था. उदमीराम ने बताया कि 11 वीं पीढी पूर्व उसका एक पूर्वज खेमा था. खेमा और उसकी पत्नी की यहाँ छतरी बनी हैं, यहाँ दो और छतरियाँ हैं जो एक तो कुंवारी लड़की की है और एक उस माँ की छतरी बतलाई जाती है जो अपने बेटे की अकाल मृत्यु पर सती हुई थी.[5] [6]
ठाकुर देशराज ने लिखा है की पूनिया जांगल देश में ईसा के प्रारम्भिक काल में पहुँच गए थे. उन्होने इस भूमि पर 16 वीं सदी के पूर्वार्ध तक राज किया. रठोड़ों के आगमन के समय इनका राजा कान्हादेव था. कान्हा बड़ा स्वाभिमानी योद्धा था. उसने राव बीका की अधीनता स्वीकार नहीं की. अंत में राठोडों ने उसके दमन के लिए उनके एरिया में गढ़ बनाना प्रारंभ किया. दिन में राठोड़ गढ़ बनाते थे और पूनिया जाट रात को आकर गढ़ ढहा देते थे. कहा जाता है की राजगढ़ के बुर्जों में कुछ पूनिया जाटों को चुन दिया गया था. बड़े संघर्ष के बाद ही पूनियों को हराया जा सका था. पूनियों ने राठोड नरेश रामसिंह को मारकर बदला चुकाया. [7] [8]
Notable persons
External links
References
- ↑ 'धरती पुत्र : जाट बौधिक एवं प्रतिभा सम्मान समारोह, साहवा, स्मारिका दिनांक 30 दिसंबर 2012', पेज 8-10
- ↑ ठाकुर देशराज ने पूनिया जाटों की राजधानी झांसल तहसील भाद्रा लिखी है जाट इतिहास, पेज 613
- ↑ Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 205
- ↑ राजश्री स्मारिका, राजगढ़ विकास परिषद, पृ 57
- ↑ गोविन्द अग्रवाल, चुरू मंडल का शोधपूर्ण इतिहास, पेज 118
- ↑ Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 211-212
- ↑ ठाकुर देशराज , जाट इतिहास, पेज 613-614
- ↑ Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 205
Back to Jat Villages