Arab Desh
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Arabs (अरब) are a population inhabiting the Arab world. They primarily live in the Arab states in Western Asia, North Africa, the Horn of Africa, and western Indian Ocean islands.
Variants
- Arabia = Arabâya/ Arabaya (अरबय) (Behustun Inscription, L-6)
- Arab आरब = Araba Desha (अरब देश) (AS, p.69)
- Araba (अरब) = आरब देश, दे. Vanayu (वनायु) (AS, p.38)
- Vanayu (वनायु) (AS, p.832)
Location
The Arab world stretches around 13 million km2, from the Atlantic Ocean in the west to the Arabian Sea in the east, and from the Mediterranean Sea in the north to the Horn of Africa and the Indian Ocean in the southeast.
Arab countries
Arabs primarily inhabit the 22 Arab states within the Arab League:
Jat History
Bhim Singh Dahiya[1] writes that Jats are known as Jotta/Zotts in Arabia.
आरब देश
विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है ...आरब देश (AS, p.69): वराहमिहिर की वृहत्संहिता 14, 17 में अरब का आरब नाम से उल्लेख है। बहिस्तां अभिलेख[3] में अरब के प्राचीन नाम 'अरबय' का उल्लेख है।
वनायु
विजयेन्द्र कुमार माथुर[4] ने लेख किया है ...वनायु (AS, p.832) नामक स्थान का उल्लेख महाकवि कालिदास ने अपने महाकाव्य 'रघुवंश' में किया है- 'दीर्घेष्वमी नियमिता: पटमंडपेषु निद्रांविहाय वनजाक्ष वनायुदेश्या: वक्त्रोष्मणा मलिनयन्ति पुरोगतानि, लेह्यानि सैंधवशिला शकलानि वाहां।' (रघुवंश, 5, 73) कालिदास ने उपरोक्त संदर्भ में वनायु प्रदेश के घोड़ों का उल्लेख किया है। कोशकार हलायुध ने ‘पारसीका वनायुजाः’ कहकर वनायु को फ़ारस या ईरान माना है। कुछ विद्धानों के मत में वनायु अरब देश का प्राचीन भारतीय नाम है।
'वाल्मीकि रामायण' के बालकाण्ड (बालकाण्ड 6, 22) में वनायु के श्याम वर्ण के अनेक घोड़ो से अयोध्या को भरीपूरी बताया गया है- 'कांवोजविषये जातैर्वाह्लीकैश्च हयोत्तमै: वनायुजैर्नदीजैश्चपूर्णा हरिहयोत्तमै:।' कालिदास को उर्पयुक्त वर्णन की प्रेरणा अवश्य ही 'वाल्मीकि रामायण' के उल्लेख से मिली होगी, क्योंकि 'रघुवंश' में भी वनायु के घोड़ों का वर्णन अयोध्या के प्रसंग में ही है।
अरब देश
एशिया-खण्ड के दक्षिण-पश्चिमांचल में फ़ारस की खाड़ी, भारतीय समुद्र रक्तसागर ‘हलब’ और फ़ुरात आदि नदियों से अरब देश घिरा हुआ है। 6,000 मील लम्बे 2,240 मील चौड़े बालुकामय इस पहाड़ी देश की तुलना कुछ-कुछ हमारे यहाँ के मारवाड़ और बीकानेर से हो सकती है। बहुत दिनों से अरब-निवासी ‘बद्दू’ बकरी- ऊँट चराते एक स्थान से दूसरे स्थान घूमते-फिरते हैं। ‘शाम’ की भाषा में मरुभूमि को ‘अरबत्’ कहते हैं, इसी से ‘अरब’ शब्द निकला है। यहाँ का उच्चतम पर्वत ‘सिरात’, ‘यमन’ प्रदेश से ‘शाम’ तक फैला हुआ है; जिसकी सबसे ऊँची चोटी 5,333 हाथ ऊँची है। बीच-बीच में कही-कही विशेषकर ‘शाम’ प्रदेश में खेती के उपयुक्त उर्वरा भूमि भी है। जहाँ कहीं-कहीं पर सोने-चाँदी की खानें भी पायी जाती हैं।
इतिहास: अत्यंत प्राचीन काल में 'जदीस', 'आद', 'समूद' आदि जातियाँ, जिनका अब नाममात्र शेष है, अरब में निवास करती थीं, किन्तु भारत-सम्राट हर्षवर्धन के सम-सामयिक हज़रत मुहम्मद के समय 'क़हतान', 'इस्माईल', और 'यहूदी' वंश के लोग ही अरब में निवास करते थे। अरब की सभ्यता के विषय में जर्मन विद्वान् ‘नवेल्दकी’ लिखता है- ईसा से एक हज़ार वर्ष पूर्व अरब के आग्नेय कोण की सभ्यता चरम सीमा पर पहुँची हुई थी। गर्मियों में वर्षा के हो जाने से सबा और हमीर का यह यमन देश बड़ा हरा-भरा रहता था। यहाँ की प्रशस्तियाँ और भव्य प्रासादों के ध्वंसावशेष आज भी हमें बलात् प्रशंसा के लिए प्रेरित करते हैं। समृद्ध-अरब यह यवनों और रोमकों (इटली वालों) का कहना यहाँ के लिए बिलकुल उपयुक्त था। सबां की गौरवसूचक अनेक कथाएँ ‘बाइबिल’ ग्रन्थ में पायी जाती हैं जिनमें सबां की महारानी और सुलेमान की मुलाकात विशेषतः स्मरणीय है। सबां वालों ने उत्तर में अरब के ‘दमश्क’ प्रान्त से लेकर‘, अबीसीनिया (अफ़्रीका में) पर्यन्त, आरम्भ ही में लेखनकला का प्रचार किया था।
फारेस्टर महाशय ने अपने भूगोल में शाम के पड़ोसी प्राचीन ‘नाबत’ राज्य के विषय में लिखा है- युटिड् महाशय ही का यह प्रयत्न है कि प्राचीन ध्वंसावशिष्ट सामग्रियों द्वारा चिर लुप्त समूद जाति का परिचय हमको मिल सका। आरम्भ में इसके द्वारा शिक्षित ‘नाबत’ जाति भी इसके सदृश ही थी, जिसकी कीर्ति अरब की मरुभूमि का उल्लंघन कर ‘हिजाज़’ और ‘नज्द’ तक फैली हुई थी। वाणिज्य, व्यवसाय द्वारा धनार्जन में कुशल यह लोग इस्माईल-वंश के अनुरूप युद्ध भय से भी निर्भय थे। इनके फिलस्तीन तथा ‘शाम’ पर आक्रमण, और अरब समुद्र में अनेक बार मिस्र के जहाजों पर डाका डालने यूनान के राजाओं को भी इनकी शत्रुता के लिए प्रेरित किया था, किन्तु ‘रोम’ की सम्मिलित शक्ति के अतिरिक्त कोई भी इनको परास्त करने में समर्थ न हुआ। ‘अस्त्राबू’ के समय अशक्त होकर इन्होंने रोम की सन्दिग्ध अधीनता स्वीकार की थी।
‘थ्याचर’ महाशय ‘आंग्ल विश्वकोष’ में लिखते हैं- ईसा से कई सौ वर्ष दक्षिण की ओर कोई उच्चतम सभ्यता थी। आज वहाँ नगर-प्रासाद का ध्वंस बाक़ी है, जिसका वर्णन बहुत से यात्रियों ने लिया है। यमन और हज़मौत में ऐसे ध्वसांवशेषों का बाहुल्य है। वहाँ कहीं-कहीं पर प्रशस्तियाँ भी प्राप्त होती हैं।
कदर्जानी ने ‘नगर-ध्वंसावशेष’ पुस्तक में ‘सनआ’ के समीपवर्ती दुर्ग को सप्त आश्वयों में गिना है।
प्राचीन सबा की राजधानी यारब नगरी के ध्वंस को अर्नो, हाल्वे और ग्लाज़ी महाशयों ने देखा है। वहाँ की अवशिष्ट बड़ी खाई के चिह्न जीर्णोद्धार किये गये अदन के कुंडो का स्मरण दिलाते हैं। 'ग्लाज्री' प्रकाशित दो दीर्घ प्रशस्तियों से उनका पुनरुद्धार ईसा के पंचम और पष्ठम शतक में किया गया प्रतीत होता है।
यमन प्रान्त के ‘हरान’ नामक स्थान में 30 हाथ लम्बी खाई मिली है।
संदर्भ: भारतकोश-अरब देश
External links
See also
References
- ↑ Bhim Singh Dahiya: Jats the Ancient Rulers (A clan study)/The Jats,p.25
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.64
- ↑ जर्नल, ऑफ रॉयल सोसायटी, जिल्द 15
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.832