Baba Bandev Budania

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

बाबा बनदेव जी बुडानिया

Baba Bandev Budania (b.?-d.1195) was ancestor of Budania people. His temple situated in village Chichroli in Khetri tahsil of Jhunjhunu district in Rajasthan.

जीवन परिचय

जाट आजना में एक वंश बुडराव जी का हुआ इनके एक लड़का बलूराम ने जन्म लिया। बलूराम जी के दो लड़के हुए- एक बलदेव और दूसरे रायसिंह जी थे। दोनों लड़कों से दो गोत्र प्रारंभ हुई। बड़े लड़के बलदेव जी का वंश बुडानिया जाट और छोटे लड़के रायसिंह जी का वंश रायल गोत्र के जाट प्रसिद्ध हुए। इसलिए बुडानिया और रॉयल गोत्र के जाट आज भी आपस में भाई कहलाते हैं तथा आपस में रिश्ता नहीं हो सकता।

बाबा बनदेव जी : बुडानिया परिवार की वंशावली को जानने पर ज्ञात होता है कि इस वंश में आगे चलकर एक सिद्ध पुरुष का जन्म हुआ-बाबा बनदेव जी। उस सिद्ध पुरुष की जीवनी के बारे में यह इतिहास प्रस्तुत है। संवत 1202 (1145 ई.) में बुडानिया गोत्र के प्रमुख श्री बरसिंह ने ग्राम बनगोठड़ी कला, तहसील चिड़ावा, जिला झुंझुनू की स्थापना की थी। उस समय के अनुसार यह बसावट सुंदर व सभ्य थी।

इसी गोत्र के परिवार में एक लड़के का जन्म हुआ। इसका जन्म पूरे गांव के लिए बड़ा ही शुभ रहा। जन्म लेते ही गांव की हवा में एक मनमोहक महक आने लगी और गांव के हर व्यक्ति के चेहरे पर मानो खुशी की आभा चमक उठी- जननी जने तो ऐंडा जने, क दाता के सूर। नहीं रहीजे बाँझ ही, मति गवा जे नूर।।

पंडितों को बुलवाया गया तो पंडितों ने उसके नक्षत्र देख कर कहा कि लड़का बड़ा ही होनहार व भाग्यशाली है। पंडितों द्वारा उसका नाम बलबीर सिंह उर्फ बने सिंह रखा गया। नाम के अनुसार बड़े ही बलिष्ट, बलवान, बहादुर और धर्मनीतिज्ञ बनेंगे। यह उनकी बाल्यावस्था में लगने लग गया- बचपन से ही गाय की रक्षा करना और तप, यज्ञ पर विश्वास करना उनके आचरण का अभिन्न अंग बन चुका था। उम्र बढ़ने लगी तो धर्म के प्रति आस्था ज्यादा बढ़ने लगी और गुरु के रूप में एकलव्य की तरह गुरु गोरखनाथ जी के शिष्य के रूप में रहने लगे और संवत 1221 में गुरु गोरखनाथ जी के शिष्य बने- 'गुरु को ज्ञान और महादेव को मंत्र' यह कहावत तभी से प्रसिद्ध है।

बाबा बनदेव जी को सिद्धि प्राप्त

संवत 1225 (=1168 ई.) में सिद्धि प्राप्त कर ली। जबसे ही बाबा बनदेव जी केवल सफेद वस्त्र व सफेद घोड़े का प्रयोग करते थे। लगन और चेष्ठा से उनके हर कदम सिद्ध होने लगे। एक सिद्ध पुरुष के रूप में जाने जाने लगे और वरदान देने लगे। उनके आशीर्वाद से सभी के काम संवरने लगे। जो कोई भी अपनी कामना लेकर आता उसी की मनोकामना पूर्ण होने लगी। इस कारण से, लोग बलवीर जी को वरदान देने के कारण, बलवीर जी से बनदेव जी कहने लगे। उनके नाम से बनी छोड़ी गई। वे बनी में तपस्या करने लगे। उनकी तपस्या और उनके तप को देखकर हरकोई दंग रह जाता था। उनके धुणी की महक से वहां की आबोहवा वातावरण एकदम शुद्ध और निरोग हो गया। किसी को भी किसी रोग की चिंता नहीं थी। किसी को कोई बीमारी हो जाती तो बाबा बलदेव जी की धूनी में से थोड़ी सी राख लाकर उसे पानी में मिलाकर पिला देते तो वह तैयार हो जाता। दूरदराज के एवं आसपास के लोग बाबा की धूनी पर आया करते थे।

बाबा उन्हें अच्छी बातें बताते, उन्हें सत्य और धर्म पर चलने को कहते थे। सत्य बोलो, धर्म की रक्षा करो अत्याचार सहन मत करो, अन्याय के खिलाफ बोलो, जीवन की मूल जड़ को समझो, मांस मदिरा का सेवन मत करो।

उस समय बादशाह का शासन था। बादशाह ने हजूरिये और नवाब लोगों पर अत्यधिक लगान लगाते और अत्याचार करते और गायों पर अत्याचार भी करने लगे। गायों को ले जाने लगे। गौ हत्या करने लगे। आसपास के गांवों एवं बनगोठड़ी कला के लोग बाबा के पास फरियाद लेकर आए कि आप ही कहते थे कि धर्म की रक्षा करो गाय की रक्षा करो। लेकिन आज गायों पर अत्याचार हो रहा है। गाय के ऊपर हो रहे अत्याचारों के लिए वे बादशाह के हजूरिये गायों को लेकर चले गए। आप अब हमारी और गाय की रक्षा करो। इतना सुनते ही बाबा अपने साथियों सहित घोड़े पर बैठकर गायों को छुड़वाने के लिए वहां से रवाना हो गए और वहां जाकर गायों को छोड़ने का निवेदन किया। लेकिन उन्होंने बाबा की बात की बिल्कुल ही परवाह नहीं की। इस पर बाबा ने हार नहीं मानी और लगातार निवेदन करते रहे। लेकिन जब देखा कि उनके निवेदन का उन पर कोई असर नहीं हो रहा है तो बाबा ने फिर अपनी बल-शक्ति का परिचय दिया तथा उनसे लड़ने लगे। बाबा की सिद्धि के सामने कोई नहीं टिक सका और गायों को वहीं छोड़कर भाग गए। इस लड़ाई में बाबा के शरीर पर भी काफी जख्म आए तथा शरीर से काफी खून बह गया तथा उनका घोड़ा भी जख्मी हो गया।

जीवित समाधि ली

बाबा बनदेव जी बनगोठड़ी कला आए और संवत 1252 (1195 ई.) की साल चैत्र महीने सुदी पक्ष तेरस को बाबा ने घोड़े, हथियार आदि सहित जीवित समाधि ली। समाधि लेने से पूर्व बुडानिया गोत्र के सभी बंधुओं को यह कहा कि--

कोई मांस मदिरा का सेवन नहीं करेगा। अगर करेगा तो उसकी गति भी नहीं होगी। बुडानिया वंश में सबसे बड़ा धर्म गऊ को माना गया और बुडानिया वंश का धर्म और मर्यादा की कुल का पूरा ध्यान रखा जाएगा।

आन बची, शान बची, गऊ की ओ जान बची।
हे वन देवा तुम जीत गए, सारे जहान की लाज बची।।

आगे चलकर गांव बनगोठड़ी में बाबा की समाधि पर लोगों का ताता सा लगा रहता था। तेरस और चौदस के दिन लोग बाबा के नाम का प्रसाद और दूध देने लगे। धीरे-धीरे समय व्यतीत होने लगा और किसी कारण बस बुडानिया परिवार वहां से पलायन कर गया और ग्राम चूलीखेड़ा (हरयाणा) में रहने लगा।

बाबा बनदेव जी का मंदिर चिचड़ोली

बाबा बनदेव जी का मंदिर चिचड़ोली

चिचड़ोली गाँव का इतिहास : गांव चिचड़ोली के इतिहास के पीछे लोगों की मान्यता है कि चिचड़ोली गांव राणुराम जी बुडानिया द्वारा बसाया गया था। वह श्री डालूराम जी बुडानिया के पुत्र थे। इनकी दो शादी हुई पहली पत्नी का नाम धर्माणी अर्थात धर्मा था जो सेवदा गोत्र की थी। उनके पिताजी का नाम टीलाराम था। दूसरी भड़ुन्दा ग्राम की रहने वाली चिड़ीया थी जो झाझड़िया गोत्र की थी। इनके पिताजी का नाम नाथूराम जी झाझड़िया था। चिड़ीया का ससुराल चूलीखेड़ा था।

दोनों ही औरतों से संतान नहीं थी। इस कारण राणुराम जी हमेशा उदास रहते थे और इस चिंता के कारण चिड़ीया अक्सर अपने पीहर भड़ुन्दा में ही रहती थी। चौधरी राणूराम जी गांव चूलीखेड़ा को छोड़कर गांव भड़ुन्दा आकर रहने लगे। समय निकलता गया। एक दिन रात को चिड़िया सो रही थी तब उसको सपने में बाबा बनदेव जी के दर्शन हुए। बाबा सपने में बोले कि यदि तुम मेरी समाधि में से जोत लेकर आओ तो तुम्हारे पुत्र प्राप्त हो जाएगी क्योंकि गांव बनगोठड़ी में मेरी समाधि पर कोई धूप करने वाला भी नहीं है। मेरे वंश का कोई भी परिवार वहां नहीं रह रहा है। अगर तुम मेरी पूजा अर्चना कर सकती हो तो तुम्हें पुत्र प्राप्ति हो जाएगी। तुम जाओ और समाधि से जोत लेकर आओ। इतने में चिड़िया की नींद उड़ गई। उसने अपने पति राणू राम जी बुडानिया से सपने का सारा किस्सा सुनाया। रानू राम और चिड़ीया दोनों सुबह नहा-धोकर जोड़े से बाबा का ध्यान कर बाबा की समाधि की ओर रवाना हो गए और बनगोठड़ी जाकर बाबा की समाधि पर जोतली। जोत को लेकर वहां से रवाना हो गए। उस जोत को लेकर जैसे ही भड़ुन्दा के कांकड़ पर पहुँचे, जहां वर्तमान में बनदेव जी का मंदिर है, वहां आकर जोत रुक गई। वहां बाबा बनदेव जी का चबूतरा बनवाया और बनी छोड़ी गई। भगवान की कृपा और बाबा बन देव जी के आशीर्वाद से चिड़िया के चार संतान हुई- दो लड़के और दो लड़कियां। एक का नाम लुहण राम और दूसरे का नाम दुर्जन राम। चिड़ीया के नाम से भड़ुन्दा के कांकड़ को तोड़कर गांव चिचड़ोली बसाया। चिड़ीया के नाम से गांव का नाम चिचड़ोली रखा। चिचड़ोली बसाई संवत 1535 में वैसाख के महीने में आखा तीज के दिन। बाबा बनदेव जी की बनी छोड़ी गई।

उसके बाद में चिचड़ोली गांव में तीन बार बाबा की चबूतरे का निर्माण हुआ और बाद में एक विशाल मंदिर का निर्माण हुआ।

1. पहली बार संवत 1535 में गांव बसाया गया।

2. दूसरी बार संवत 1713 लगभग चबूतरे का निर्माण हुआ,

3. तीसरी बार संवत 2003 में चबूतरे का निर्माण हुआ और

4. अब एक भव्य मंदिर का निर्माण हुआ है जो शिखर बंध है।

यह जगह एसे स्थान पर है जो कि 8-10 किलोमीटर से भी देख सकते हैं। इस जगह का वातावरण बहुत ही सराहनीय है। इस मंदिर की मर्यादा यह है कि इसकी जो बनी है उस बनी में कोई भी मदिरा का सेवन नहीं कर सकता। औरतें व पुरुष अपने जूते-चप्पल बाहर ही खोलते हैं। यह मंदिर गांव चिचड़ोली से उत्तर दिशा में है और गांव में सबसे ऊंची जगह पर है। इस मंदिर तक जाने के लिए इस्लामपुर से भड़ुन्दा रोड पर एक बड़े दरवाजे का निर्माण कराया गया है। यह निर्माण रामनारायण बुडानिया पूर्व विधायक और उनकी पुत्री रीटा सिंह पुत्री श्री राजेंद्र सिंह गांव हेतमसार वालों ने करवाया। इसके आगे जो सड़क है जोहड़ से निकलने के बाद जमीन सड़क के लिए दी जो चौधरी हनुमान राम पुत्र श्री राम, रोहिताश्व, विद्याधर, हरिराम, धर्मपाल, अमीलाल पुत्र माधाराम जी ने। गेट से जो सड़क बनी बनदेव जी के मंदिर तक जाती है इस सड़क का निर्माण करवाया सांसद शीशराम ओला ने। बनी के अंदर दो पानी टंकी हैं जिसमें से पहली टंकी का निर्माण रामकुमार जी पुत्र खम्मा राम जी बुडानिया ने करवाया और दूसरी टंकी का निर्माण ग्राम रुकणसर वाले बुडानिया परिवार ने करवाया। इसके अलावा एक कुआं भी है जिसका निर्माण हरियाणा सरकार में मंत्री संपत सिंह जी द्वारा करवाया गया। उसके बाद कई भामाशाहों ने मंदिर प्रांगण और बनी में कमरों का निर्माण करवाया।

स्रोत

स्रोत:- पुस्तक 'बुडानिया (जाट) इतिहास', 2010, लेखक बड़वा श्री शिशुपाल सिंह और महीपाल सिंह, दादिया, किशनगढ़, आजमेर-305813. Mob:9829846234, 9829807064

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