Bithur
Bithur (बिठूर) (Bithoor) is a town in Kanpur District of Uttar Pradesh. According to Hindu mythology Bithur is the birthplace of Rama's sons Lava and Kusha.
Variants
Location
Bithoor is 23.4 kilometres by road north of Kanpur city. It is situated on the left bank of the Ganges, and is an important Hindu pilgrimage.
Jat Gotras
History
Bithoor has been closely associated with the Indian independence movement, especially the Indian Freedom Mvement of 1857. It was at one time home to many of the nationalists most prominent characters including the Rani of Jhansi, Lakshmi Bai. During the British Raj, Bithur used to be part of Cawnpore district (now Kanpur) in the United Provinces. The last of the Peshwas, Baji Rao II, was banished to Bithur; his adopted son, Nana Sahib, made the town his headquarters. Bithur was captured by General Havelock on July 19, 1857.[1] The town was laid waste by the British who razed Nana Sahib's palace and the temples in the town in retaliation for the brutal killing of over 300 British men, women and children who had been lured out of their defences at Cawnpore with a promise of truce during the Siege of Cawnpore.[2]
Jat History
In Mythology
Bithur holds a special place in the Indian mythological texts as the place where Brahma created the nature hence it is known as Brahmavrata. According to the Purana, the child sage Dhruva had conducted his tapasya here. Bithoor was the abode of sage Valmiki who established the Valmiki Ashram here.
Monuments
- Valmiki Ashrama - Some of the most significant moments of Hindu religion and mythology are said to be created here, as being the place of the forest-rendezvous of Sita after Lord Rama left her, the birthplace of Lav and Kush, the site where the Ramayana was written.
- Brahmavart Ghat - This is the holiest of the holy ghats of Bithoor, where the disciples of Lord Brahma pray at the altar of the 'Wooden Slippers' after a ritual bath.
- Patthar Ghat - The redstone ghat whose foundation stone was laid by the minister of Avadh, Tikait Rai, is a symbol of incomparable art and architecture. There is a massive Shiva temple where the Shivling is made of 'Kasaauti' stone.
- Dhruva Teela - This is the fabled spot where the child Dhruv meditated single-mindedly on one leg. God was so pleased that he not only appeared but granted him a divine boon—to shine for all time to come as a star.
- Siddhidham Ashram - Siddidham Ashram, also known as Sudhanshu ji Maharaj Ashram is under "Vishva Shanti Mission" organisation which is run by Sudhanshu ji Maharaj. It is situated on Bithoor road. The ashram has a big campus. There is also a Radha Krishna temple and an artificial Kailah Mountain.
- Others - Apart from these, there are some other landmarks as well, such as the Ram Janki temple, Lav-Kush temple, Sai Baba temple, Haridham Ashram, Jahangir Mosque and Nana Saheb Smarak.
In Mahabharata
Utpalavana (उत्पलवन) (Forest) is mentioned in Mahabharata (III.85.11), (XIII.26.33)
Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 85 mentions sacred asylums, tirthas, mountans and regions of eastern country. Utpalavana (उत्पलवन) (Forest) is mentioned in Mahabharata (III.85.11). [3]....In the country of Panchala, there is a wood called Utpala (उत्पल) (III.85.11), where Vishwamitra of Kushika's race had performed sacrifices with his son, and where beholding the relics of Viswamitra's superhuman power, Rama, the son of Jamadagni, recited the praises of his ancestry.
Anusasana Parva/Book XIII Chapter 26 mentions the sacred waters on the earth. Utpalavana (उत्पलवन) is mentioned in Mahabharata (XIII.26.33).[4]..... Bathing in Gangahrada and the tirtha known by the name of Utpalavana and daily offering oblations of water there for a full month to the Pitris, one acquires the merit of a Horse-sacrifice.
बिठूर
विजयेन्द्र कुमार माथुर[5] ने लेख किया है ...बिठूर (AS, p.629) प्रसिद्ध हिन्दू धार्मिक स्थल है जो कानपुर 12 से मील उत्तर की ओर उत्तर प्रदेश में स्थित है। इसका मूलनाम ब्रह्मावर्त कहा जाता है. किवदन्ती है कि ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना के उपलक्ष्य में यहाँ अश्वमेघयज्ञ किया था। बिठूर को बालक ध्रुव के पिता उत्तानपाद की राजधानी माना जाता है. ध्रुव के नाम से एक टीला भी यहाँ विख्यात है. कहा जाता है कि महर्षि वाल्मीकि का आश्रम जहाँ सीता निर्वासन काल में रही थी, यहीं था। अंतिम पेशवा बाजीराव जिन्हें अंग्रेज़ों ने मराठों की अंतिम लड़ाई के बाद महाराष्ट्र से निर्वासित कर दिया था, बिठूर आकर रहे थे। इनके दत्तक पुत्र नाना साहब पेशवा ने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ 1857 के स्वतंत्रतायुद्ध में प्रमुख भाग लिया था. पेशवाओं ने यहाँ कई सुंदर इमारतें बनवाई थी किन्तु अंग्रेजों ने इन्हें 1857 के पश्चात अपनी विजय के मद में नष्ट कर दिया. बिठूर में प्रागैतिहासिक काल के ताम्र उपकरण तथा बाणफ़लक मिले हैं जिससे इस स्थान की प्राचीनता सिद्ध होती है.
बिठूर परिचय
यह स्थल महान् क्रांतिकारी तात्या टोपे, नाना राव पेशवा और रानी लक्ष्मीबाई जैसे क्रांतिकारियों की यादें अपने दामन में समेटे हुए है। यह ऐसा दर्शनीय स्थल है, जिसे ब्रह्मा, महर्षि वाल्मीकि, वीर बालक ध्रुव, माता सीता और लव कुश ने किसी न किसी रूप में अपनी कर्मस्थली बनाया। रमणीक दृश्यों से भरपूर यह जगह सदियों से श्रद्धालुओं और पर्यटकों को लुभा रही है।
स्थिति: उत्तरी भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में औद्योगिक नगर कानपुर के पश्चिमोत्तर दिशा में 27 किमी दूर स्थित गंगा नदी के तट पर एक छोटा सा स्थान स्थित है। बिठूर में सन् 1857 में भारतीय स्वतंत्रता का प्रथम संग्राम का प्रारम्भ हुआ था। यह शहर उत्तर प्रदेश के शहर कानपुर से 22 किलोमीटर दूर कन्नौज रोड़ पर स्थित है। लखनऊ से कानपुर की दूरी 80 किलोमीटर है और वहाँ से बिठूर 22 किलोमीटर है।
ऐतिहासिकता: पवित्र पावनी गंगा के किनारे बसा बिठूर का कण-कण नमन के योग्य है। यह दर्शनीय इसलिए है कि महाकाव्य काल से इसकी महिमा बरकरार है। यह महर्षि वाल्मीकि की तपोभूमि है। यह क्रांतिकारियों की वीरभूमि है। यहाँ महान् क्रांतिकारी तात्या टोपे ने क्रांति मचा दी थी। यहाँ नाना साहब पेशवा की यादें खण्डहरों के बीच बसती हैं। यही नहीं तपस्वी बालक ध्रुव और उसके पिता उत्तानपाद की राजधानी भी कभी यहीं पर थी। कहते हैं कि 'ध्रुव का टीला' ही उस समय ध्रुव के राज्य की राजधानी थी। आज राजधानी की झलक देखने को नहीं मिलती लेकिन ऐतिहासिकता की कहानी यहाँ के खण्डहर सुनाते हैं। कहने को यह कानपुर से साढ़े बाइस किलोमीटर दूर छोटा सा क़स्बा है, लेकिन यह कहना ग़लत न होगा कि इस कस्बे के कारण कानपुर पर्यटन के नक्शे पर महत्त्व पाता है। इसके किनारे से होकर गंगा कल-कल करती बहती है। सुरम्यता का आलम यह है कि जिधर निकल जाइए, मन मोहित हो जाता है।
ब्रह्मावर्त हुआ बिठूर: किवदन्ती है कि ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना के उपलक्ष्य में यहाँ पर ब्रह्मेश्वर महादेव की स्थापना की। उन्होंने इस अवसर पर अश्वमेध यज्ञ भी किया और उसके स्मारक के रूप में एक नाल की स्थापना की जो ब्रह्मवर्त घाट पर आज भी विराजमान है। इसे ब्रह्मनाल या ब्रह्म की खूंटी भी कहते हैं क्योंकि महर्षि वाल्मीकि की यह तपोभूमि है, इसलिए इसका राम कथा से जुड़ाव स्वाभाविक है। धोबी के ताना मारने के बाद जब राजा राम ने सीता को राज्य से निकाला तो उन्हें यहाँ पर वाल्मीकि आश्रम में शरण मिली थी। यहीं पर उनके दोनों पुत्र लव और कुश का जन्म हुआ। यही नहीं जब मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने अश्वमेध यज्ञ किया तो उनके द्वारा छोड़े गए घोड़े को यहीं पर लव-कुश ने पकड़ा। ज़ाहिर है कि इस तरह यह भूमि प्रभु राम और माता सीता के आख़िरी मिलन की भूमि है। भगवान शंकर ने माँ पार्वती देवी को इस तीर्थस्थल का महात्म्य समझाते हुए कहा है- ब्रह्मवर्तस्य माहात्म्यं भवत्यै कथितं महत्। यदा कर्णन मात्रेण नरो न स्यात्स्नन्धयः।
श्रद्धालुओं की ऐसी मान्यता है कि कपिल मुनि ने गंगा सागर जाने से पूर्व यहाँ कपिलेश्वर की स्थापना की। यहाँ अष्टतीर्थ की महत्ता कभी विश्व विख्यात थी। जो श्रद्धालु आते वे अष्ट तीर्थ- ज्ञान तीर्थ, जानकी तीर्थ, लक्ष्मण तीर्थ, ध्रुव तीर्थ, शुक्र तीर्थ, राम तीर्थ, दशाश्वमेघ तीर्थ और गौचारण तीर्थ की परिक्रमा ज़रूर करते थे। हालांकि इनमें से अनेक तीर्थ अब स्मृतियों में ही बचे हैं लेकिन उनकी महिमा अब भी बरकरार है।
स्वतंत्रता संग्राम का केन्द्र: सन 1818 में अंतिम पेशवा बाजीराव अंग्रेज़ों से लोहा लेने का मन बनाकर बिठूर आ गए। नाना साहब पेशवा ने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ क्रांति का बिगुल इसी ज़मीन पर बजाया। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का शैशवकाल यहीं बीता। इस ऐतिहासिक भूमि को तात्या टोपे जैसे क्रांतिकारियों ने अपने ख़ून से सींचकर उर्वर बनाया है। यहाँ क्रांतिकारियों की गौरव गाथाएँ आज भी पर्यटक सुनने आते हैं। पेशवा बाजीराव का दरबार
1818 में अंग्रेज़ों द्वारा अपदस्थ किये जाने के बाद, मराठों के पेशवा बाजीराव ने अपना दरबार यहीं स्थापित किया था। भारतीय विद्रोह में भाग लेने का दंड
1857 में बाजीराव के दत्तक पुत्र के भारतीय विद्रोह में भाग लेने पर प्रतिकार स्वरूप ब्रिटिश सेना ने इस नगर को ढहा दिया और मंदिर और महलों को नष्ट कर दिया। नगर के ध्वंसावशेष हिंदुओं के लिये एक प्रमुख तीर्थ है।
घाटों का नगर: वाराणसी (भूतपूर्व बनारस) की तरह बिठुर भी घाटों का नगर है। सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण घाट भगवान ब्रह्मा को समर्पित है। घाट पर स्थित एक चरण चिह्न को भगवान ब्रह्मा का माना जाता है। कहा जाता है कि महाकाव्य रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि ने यहीं की थी और सीता ने यहाँ शरण ली थी व लव और कुश को जन्म दिया था।
नाना साहब का गृह क्षेत्र: बिठुर नाना साहब का गृह क्षेत्र है, जिन्होंने 1857 के विद्रोह में प्रमुख भूमिका निभाई थी। ये नाना राव और तात्या टोपे जैसे लोगों की धरती रही है।
रानी लक्ष्मीबाई का बचपन: रानी लक्ष्मीबाई ने अपना बचपन यहीं गुजारा था।
संदर्भ: भारतकोश-बिठूर
उत्पलावन-उत्पलारण्य
उत्पलावन या उत्पलारण्य (जिला कानपुर) (AS, p.93): बिठूर का प्राचीन नाम है। वन पर्व महाभारत 87,15 में उत्पलावन का उल्लेख इस प्रकार है- 'पंचालेषु च कौरव्य कथयन्त्युत्पलावनम् विश्वामित्रोऽयजद् यत्र पुत्रेण सह कौशिक:'।
जाट इतिहास
दलीप सिंह अहलावत[6] लिखते हैं: गौर जाट क्षत्रियों की बहुत बड़ी संख्या पंजाब में है। जिला जालन्धर में गुड़ा गांव के गौरवंशी जाट राजा बुधसिंह के पुत्र राजा भागमल मुगल साम्राज्य की ओर से इटावा फरूखाबाद, इलाहाबाद का सूबेदार बना और फफूंद में रहते हुए बड़ी प्रतिष्ठा प्राप्त की। आपने फफूंद में एक किला बनवाया और लखनऊ नवाब की ओर से 27 गांव कानपुर, इटावा में प्राप्त किए। इन गांवों में ही एक गांव बिठूर गंगा किनारे पर है। यही ब्रह्मावर्त के तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है। यहां निवास करते हुए आप ने फफूँद में एक मकबरा बनवाया। उस किले पर लिखा है कि “1288 हिज़री (सन् 1870) में इल्मास अली खां के कहने से राजा भागमल गौर जाट ने यह मकबरा बनवाया।” यहां हिन्दू-मुसलमान समान रूप से चादर चढ़ाते हैं। राजा गौर भागमल ने प्रजा के लिए सैंकड़ों कुएं, औरैय्या में एक विशाल मन्दिर, मकनपुर एवं बिठूर में भी दरगाहें बनवाईं। सन् 1857 ई० के स्वतन्त्रता संग्राम के संचालक नेता नाना साहब पेशवा ने महाराष्ट्र से आकर राजा भागमल के अतिथि रूप में बिठूर में निवास किया था। इस दृष्टिकोण से बिठूर को और भी विशेष महत्त्व प्राप्त हो गया।
ठाकुर देशराज[7] लिखते हैं- आन्ध्र-वंश में महाराज हाल (सातवाहन हाल) एक प्रसिद्ध नरेश हो गये हैं। वे बड़े विद्या-प्रेमी थे। उनके समय में एक ग्रन्थ तैयार हुआ था जिसका नाम गाथा सप्तशती था। इसमें सात सौ कथाएं थीं। यह प्रतिष्ठानपुर में राज्य करते थे। प्रतिष्ठानपुर को कुछ लोग निजाम राज्य का पैठन और कुछ लोग इलाहाबाद के पास का बिठूर बतलाते हैं। इनके ग्रन्थ गाथा सप्तशती में राजा विक्रमादित्य की दानशीलता का इस प्रकार वर्णन है- “संवाहन सुखरस तोषि तेन ददता तव करे लाक्षाम्। चरणेन विक्रमादित्य चरित मनु शिक्षितं तस्याः।”
राजा हाल का समय ई. सन् 69 के इधर-उधर का है।
कुछ क्षत्रिय-जातियों का पथ दक्षिण से उत्तर को है। हाल के वंशज तथा समुदाय के लोग भी इसी तरह दक्षिण-भारत से उत्तर भारत में आ गये और यू.पी. तथा राजस्थान में फेल गये। जाटों के दल में वे हाला के नाम से पुकारे जाते हैं।
External links
References
- ↑ Shashi, S. S. (1996). Encyclopaedia Indica: India, Pakistan, Bangladesh. Anmol Publications. p. 183. ISBN 978-81-7041-859-7.
- ↑ Gupta, Pratul Chandra (1963). Nana Sahib and the Rising at Cawnpore
- ↑ पाञ्चालेषु च कौरव्य कथयन्त्य उत्पलावतम, विश्वा मित्रॊ ऽयजद यत्र शक्रेण सह कौशिकः, यत्रानुवंशं भगवाञ जामदग्न्यस तथा जगौ (III.85.11)
- ↑ गङ्गा ह्रद उपस्पृश्य तथा चैवॊत्पला वने, अश्वमेधम अवाप्नॊति तत्र मासं कृतॊदकः (XIII.26.33)
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.629
- ↑ जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ.234
- ↑ Jat History Thakur Deshraj/Chapter VIII, p-558