Valmiki Ashrama

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Valmiki Ashrama (वाल्मीकि-आश्रम) was the hermitage of Valmiki, celebrated as the harbinger-poet in Sanskrit literature, the author of Valmiki Ramayana. It is said to be located at Bachhoi village in Karwi (करवी) tahsil of Banda district in Uttar Pradesh. There is one Valmiki Ashrama in Bithoor town in Kanpur District of Uttar Pradesh. According to Hindu mythology Bithur is the birthplace of Rama's sons Lava and Kusha.

Variants

History

Sister Nivedita and Anand K. Coomaraswamy[1] mentions the story when Rama, Sita and Lakshman went into Exile....Driving fast for two days, Rama reached the boundary of Koshala, and, turning back toward Ayodhya, bade farewell to land and people.... Next day they reached the holy place where Ganga joins with Jamna at Prayag ; there they came to the hermitage of Bharadwaja (Bhardvaja-Ashrama), guided by the wreathing smoke of his sacrificial fire, and they were welcome guests. Bharadwaja counselled them to seek the mountain of Chitrakuta, ten leagues from Prayag, which was a fit abode for them.....

So Rama and Sita and Lakshman took leave of Bharadwaja and crossed the Yamuna by a raft, and came to Shyama.....

On the second day they reached the Chitrakuta mountain, where was the hermitage of Valmiki (Valmiki-Ashrama). Greeted by that rishi, Rama told him all that had befallen. Then Lakshman fetched divers sorts of wood, and those brothers built a goodly house with doors and thatched with leaves. Then Lakshman slew a deer and cooked it, and Rama made ritual offerings to the divinities of that very place, and after communion with the deities he entered the well-wrought thatched house with Sita and Lakshman, and they rejoiced with happy hearts and cast off grieving for Ayodhya.

वाल्मीकि आश्रम

विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है .....वाल्मीकि आश्रम (AS, p.846): रामायण के रचियता आदि कवि वाल्मीकि का आश्रम चित्रकूट (बाँदा ज़िला, उत्तर प्रदेश) के निकट कामतानाथ से पंद्रह-सोलह मील की दूरी पर लालपुर पहाड़ी पर स्थित बछोई ग्राम में बताया जाता है।

संभवतः गोस्वामी तुलसीदास ने 'रामचरित मानस', अयोध्या कांड में इसी स्थान को वाल्मीकि का आश्रम कहा है- 'देखत वन सर शैल सुहाए, वाल्मीकि आश्रम प्रभु आए, रामदीख मुनिवास सुहावन, सुंदर गिरि कानन जलपावन। सरनि सरोज (विटप वन) फूले, गुंजत मंजुमधुप रस भूले। खगमृग विपुल कोलाहल करहीं, विरहित वैर मुदित मन चरहीं।'

किन्तु वाल्मीकि रामायण, उत्तर कांड 47,15 के अनुसार वाल्मीकि का आश्रम गंगा के तट पर स्थित था- 'तदेतज्जाह्नवीतीरे ब्रह्यर्षीणां तपोवनम्।' सीता के विवासन के समय लक्ष्मण और सीता को यहाँ पहुचने में गंगा को पार करना पड़ा था- 'गंगा संतारयामास लक्ष्मणस्तां समाहितः। उत्तर कांड 46, 33

वाल्मीकि रामायण, बाल कांड 2,3 से ज्ञात होता है कि वाल्मीकि का आश्रम तमसा नदी के तट पर और गंगा के निकट स्थित था- 'सं मूहूर्तंगते तस्मिन् देवलोकं मुनिस्तदा जगाम तमसातीरं जाह्नव्यास्त्वविदूरतः।' इससे यह स्पष्ट है कि यह आश्रम तमसा और गंगा के संगम पर स्थित था। 'रघुवंश' 14, 76 में भी कालिदास ने इस आश्रम को तमसा नदी के तट पर स्थित बताया है- 'अशून्यतीरां मुनिसंनिवेशैस्वमोपहन्त्रीं तमसां वगाह्य्।'

कालिदास के रघुवंश 14, 52 के अनुसार भी यहाँ पहुँचने में लक्ष्मण और सीता को गंगा पार करनी पड़ी थी- 'रथात्सयंत्रा निगृहीतवाहातां भ्रातृयायां पुलिनेऽवतार्य गंगां निषादाहृतनौ विशेषस्ततार संधामिवसत्यसंधः। (दे. द्वैलव, परियार)

बछोई

विजयेन्द्र कुमार माथुर[3] ने लेख किया है....बछोई (AS, p.602) ग्राम मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध स्थान चित्रकूट के निकट कामतानाथ से 15-16 मील दूर लालपुर पहाड़ी पर स्थित है। किंवदंती है कि रामायण काल में आदिकवि वाल्मीकि का आश्रम इसी स्थान पर था। संभवत: तुलसीदास ने रामचरितमानस अयोध्याकांड में जिस वाल्मीकि के आश्रम का वर्णन किया है वह इसी स्थान के निकट रहा होगा क्योंकि वह चित्रकूट के समीप ही था।

द्वैलव

विजयेन्द्र कुमार माथुर[4] ने लेख किया है ...द्वैलव (AS, p.461) बिठूर, कानपुर से 6 मील (लगभग 9.6 कि.मी.) की दूरी पर स्थित एक ग्राम है। इस ग्राम को वैला रुद्रपुर नाम से भी जाना जाता है। वाल्मीकि ऋषि का आश्रम द्वैलव में ही माना जाता है। इस ग्राम में वाल्मीकि कूप भी स्थित है। स्थानीय जनश्रुति के आधार पर यह माना जाता है कि लव-कुश का जन्म और रामायण की रचना इसी ग्राम में हुई थी। द्वैलव ग्राम का नाम लव के नाम पर ही रखा गया था।

परियार

परियार (AS, p.532): जिला उन्नाव, उ.प्र., प्राचीन किंवदंती के अनुसार गंगा तट पर स्थित इस ग्राम में वाल्मीकि ऋषि का आश्रम था. यहां से ताम्रयुगीन अवशेष भी प्राप्त हुए हैं (देखें वाल्मीकि आश्रम) [5]

बिठूर

विजयेन्द्र कुमार माथुर[6] ने लेख किया है ...बिठूर (AS, p.629) प्रसिद्ध हिन्दू धार्मिक स्थल है जो कानपुर 12 से मील उत्तर की ओर उत्तर प्रदेश में स्थित है। इसका मूलनाम ब्रह्मावर्त कहा जाता है. किवदन्ती है कि ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना के उपलक्ष्य में यहाँ अश्वमेघयज्ञ किया था। बिठूर को बालक ध्रुव के पिता उत्तानपाद की राजधानी माना जाता है. ध्रुव के नाम से एक टीला भी यहाँ विख्यात है. कहा जाता है कि महर्षि वाल्मीकि का आश्रम जहाँ सीता निर्वासन काल में रही थी, यहीं था। अंतिम पेशवा बाजीराव जिन्हें अंग्रेज़ों ने मराठों की अंतिम लड़ाई के बाद महाराष्ट्र से निर्वासित कर दिया था, बिठूर आकर रहे थे। इनके दत्तक पुत्र नाना साहब पेशवा ने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ 1857 के स्वतंत्रतायुद्ध में प्रमुख भाग लिया था. पेशवाओं ने यहाँ कई सुंदर इमारतें बनवाई थी किन्तु अंग्रेजों ने इन्हें 1857 के पश्चात अपनी विजय के मद में नष्ट कर दिया. बिठूर में प्रागैतिहासिक काल के ताम्र उपकरण तथा बाणफ़लक मिले हैं जिससे इस स्थान की प्राचीनता सिद्ध होती है.

External links

References