Chokha Singh Sihag

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Chokha Singh Sihag (चोखासिंह सिहाग) or Chokha Sihag (चोखा सिहाग) was a Jat ruler of ancient Jangladesh region in Rajasthan.

Introduction

According to James Todd the republic of Sihag Jats in Jangladesh, whose chief was Chokha Singh Sihag having 150 villages in his state with capital at Suin/Pallu. The districts included in his state were Rawatsar, Biramsar, Dandusar, Gandaisi [1]

Legend about Chokhaji Sihag

Once Godara king had sent his messenger to King Chokh Ram Ji of Jangladesh to provoke him for war. That messenger went to Devasar village near Pallu. There is a pond in Devasar village where Chokha Ram ji used to take bath and meditated on its shore. Chokha Ram ji was meditating when that messenger reached him. The messenger reached him and said," I am a messenger of Godaras, give me some offerings". Chokha Ram ji replied, " If you want to have food, it will be prepared soon but I don't give offerings." As the messenger was instructed to say to Chokha Ram ji, he said,"What type of king you are?" On this, Chokha Ram ji took a handful of water and splashed it onto the messenger. Chokha Ram ji said," Take this and go away". But the messenger was astonished on seeing that the water had turned into gold Ashrafees. When the messenger returned to Godara king, he told them:-

सियागां मैं सम्प घणों, दूजी जात न जोड़
सियाग चोखै दान दियो, छपन लाख करोड़

चोखासिंह सिहाग का इतिहास

चूरू जनपद के जाट इतिहास पर दौलतराम सारण डालमाण[2] ने अनुसन्धान किया है और लिखा है कि पाउलेट तथा अन्य लेखकों ने इस हाकडा नदी के बेल्ट में निम्नानुसार जाटों के जनपदीय शासन का उल्लेख किया है जो बीकानेर रियासत की स्थापना के समय था।

क्र.सं. जनपद क्षेत्रफल राजधानी मुखिया प्रमुख ठिकाने
3. सिहाग (स्यागोटी) 140 गाँव सूंई (लूणकरणसर) चोखासिंह सिहाग पल्लू, दांदूसर, बीरमसर, गन्धेली, रावतसर

सूई चुरू से उत्तर-पश्चिम में 58 मील दूर तथा गोदारा जाटों के ठिकाने शेखसर से 12 मील उत्तर-पूर्व में लूणकरणसर तहसील में है. यह सिहाग जाटों की राजधानी थी और यह प्रदेश सियागगोटी कहलाता था. दयालदास ने इनके गाँवों की संख्या 140 लिखी है जबकि कर्नल टाडठाकुर देशराज ने इनको असिहाग लिखा है तथा इनके गाँवों की संख्या 150 बताई है जिन पर इनका अधिकार था. [3] ठाकुर देशराज व दयालदास के अनुसार इनकी राजधानी पल्लू थी. और राजा का नाम चोखा था. इनके राज्य की सीमा में रावतसर, बीरमसर, दांदूसर, गण्डेली आदि थे. सिहागों का दूसरा ठिकाना संभवतः पल्लू रहा हो जो सूई से कुछ मील दूर नोहर तहसील में है. चौहानों के काल में पल्लू जैन धर्म का एक प्रमुख केन्द्र था, जहाँ से 11 वीं शताब्दी की अनेक मूर्तियाँ मिली हैं जिनमें एक राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली व एक बीकानेर संग्रहालय में है.

कहा जाता है कि पहले इसका नाम कोट किलूर था जो बादमें इस ठिकाने के जाट सरदार की लड़की के नाम पर पल्लू हो गया. पल्लू के बारे में एक कथा प्रचलित है कि मूगंधड़का नामक जाट का कोट किलूर पर अधिकर था. उसने डरकर दिल्ली के साहब नामक शहजादे से अपनी बेटी पल्लू का विवाह कर दिया. लेकिन वह मन से नहीं चाहता था, अतः उसने अपने दामाद को भोजन में विष देदिया जो अपने महल में जाकर मरगया. कुछ देर बाद जाटने अपने बेटे को पता लगाने के लिए भेजा कि साहब मरगया या नहीं. उसने जैसे ही महल की खिड़की में मुंह डाला, क्रुद्ध पल्लू ने उसका सिर काट लिया और उसकी लाश को महल में छुपा लिया. इस प्रकार बारी-बारी से उसने पांचो भाइयों को मार दिया, इस पर जाट ने कहा-

जावै सो आवै नहीं, यो ही बड़ो हिलूर (फितूर)।
के गिटगी पल्लू पापणी, के गिटगो कोट किलूर ।।[4]

विक्रम की 16 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में अन्य जाट ठिकानों की तरह पल्लूसूई पर भी राठोड़ों का अधिकार हो गया. कहते हैं कि सिहाग जाटों ने बाद में भी सरलता से राठोड़ों की अधीनता स्वीकार नहीं की थी. तब सिहाग जाटों को धोखे से बुलाकर एक बाड़े में खड़ा करके जला दिया गया था. [5][6]

जाट इतिहास:ठाकुर देशराज

ठाकुर देशराज [7] लिखते हैं कि इन लोगों को ‘असि’ शब्द के कारण कुछ इतिहासकारों ने असीरिया से लौटे हुए लिखा है, किन्तु बात ऐसी नहीं है। आरम्भ में ये लोग असीरगढ़ में रहते थे। यहीं से एक भाग यूरोप चला गया, जिसके कारण उनके उपनिवेश का नाम असीरिया प्रसिद्ध हुआ। जांगल-प्रदेश में बसने वाले असियाग नाम से प्रसिद्ध हुए। असि तलवार को कहते हैं। कौटिल्य ने शस्त्रोपजीवी और शास्त्रोपजीवी गणों का उल्लेख किया है। असियाग शस्त्रोपजीवी थे अर्थात् जिनकी आजीविका शस्त्र अथवा तलवार (असि) थी। जांगल-प्रदेश के 150 ग्रामों पर इनका अधिकार था। इनके राज्य की सीमा में ही रावतसर, वीरमसर, दांदूसर और गण्डेली आदि थे। इनके राज्य की राजधानी पल्लू में थी। राजा का नाम चोखासिंह। राठौरों के युद्ध में वर्षों तक लड़ने के बाद इनका भी राज्य नष्ट हो गया।


जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-620


अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए असियागों ने कोई कसर न छोड़ी थी। स्वतंत्रता-अपहरण हो जाने के बाद भी इन्होंने उद्योग किया कि शत्रु से अपना राज्य छीन लें, किन्तु उस समय तक शत्रु की शक्ति बहुत बढ़ गई थी। देहली के बादशाहों से उस समय राठौरों का सम्बन्ध स्थापित हो जाने के कारण यह एक दम असम्भव हो गया था कि असंगठित जाट, जो कि आपस में ही एक-दूसरे के शत्रु बने हुए थे, अपना राज वापस ले लेते।

References

  1. James Todd, Annals of Bikaner, p. 139
  2. 'धरती पुत्र : जाट बौधिक एवं प्रतिभा सम्मान समारोह, साहवा, स्मारिका दिनांक 30 दिसंबर 2012', पेज 8-10
  3. ठाकुर देशराज , जाट इतिहास, पेज 616
  4. मरू भारती, वर्ष 12, अंक 1
  5. चौधरी हरिश्चंद्र नैन, बीकानेर में जनजाति, प्रथम खंड, पेज 18
  6. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 205-206
  7. जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृ.619-620

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