Fatehpur district

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Fatehpur district map

Fatehpur ( फ़तहपुर) is a city and District of Uttar Pradesh in India.

Variants

Fatehpur District (फ़तहपुर) (AS, p.593)

Location

Fatehpur is located on the banks of the sacred rivers Ganges and Yamuna. Fatehpur district is situated between two important cities: Prayagraj, which is also known as "Allahabad", and Kanpur of the state Uttar Pradesh. Fatehpur is well connected with those cities by train routes and roads. The distance from Prayagraj is 117 km and from Kanpur is 76 km by railway. The north boundary of the district is limited by the river Ganges and its southern boundary is the river Yamuna. Fatehpur district is a part of Allahabad division.

History

Fatehpur was mentioned in the puranic literature. The ghats of Bhitaura and Asani were described as sacred in the puranas. Bhitaura, the site of the sage Bhrigu, was an important source of learning.

In the Vedic era the region of this district was known as "Antardesh", which means the fertile area between two big rivers. Later, it was known as "Madhyadesh" which means central region. The northern region of the district is influenced with "Avadhi culture", while the southern part shows effect of the "Bundelkhand". The territory covered by the present-day Fatehpur district was part of Vatsa, which was one among sixteen mahajanapadas described in the Buddhist literature.

The known history of Fatehpur is as old as the Vedic era. General Cunningham has written about "Bhitaura" and "Asani" places of this district, while discussing the heritage of the Vedic Period. There is evidence that the Chinese traveller Xuanzang visited the Asani area within this district.

In village Renh, which is 25 km in the south-west of Fatehpur town, some articles of archaeological interest have been found, which date from 800 B.C. Many artifacts, including coins, bricks and idols of the Maurya period, 'Kushan period & Gupta period have been found throughout the district. Many temples of the Gupta period still exist in village Tenduli, Korari and Sarhan Bujurg which are important archaeological sites. Golden coins of period of Chandragupta II have been recovered from the village of Bijauli. The bricks used in the fort of Asani are also of the Gupta Period.

Khajuha town, situated on Mughal road is a very old town. Its description has been found in the old Hindu scripture "Brahm Puran", which is 5000 years old.

In 1561 A.D., Moghal emperor Humayun passed through this town while invading Jaunpur state. On 5 January 1659 A.D., Mughal emperor Aurangzeb had a fierce battle with his brother prince Shah Shuja (Mughal), and killed him near this place. To celebrate the victory, he constructed a large beautiful garden "Badshahi Bagh" and a big lodge having 130 rooms. During the Mughal regime, the control of Fatehpur changed hands between rulers of Jaunpur, Delhi and Kannauj.

In 1801 A.D., this region came under the control of East India Company. On 10th November 1826 A.D., Fatehpur was redesignated as the District headquarters. It has many historic places like Bawni Imli in which English men were allegedly hanged on a tree[citation needed] during excesses in the Great Indian Mutiny. It is situated at Bindki.

In 1966 this was given the status of a sub-division (Paragana), while the headquarters was at Bhitaura, which is now a block office.

फ़तहपुर

विजयेन्द्र कुमार माथुर[1] ने लेख किया है ...फतहपुर (AS, p.593) उत्तर प्रदेश में जिला है जिसमें देंडसाही नामक स्थान (तहसील खंखरेरू) से प्राप्त एक अभिलेख में फतहपुर नगर का संस्थापक फ़तहमंदखाँ बताया गया है. यह अभिलेख 917 हिजरी = 1519 ई. का है.

फ़तेहपुर ज़िला

फ़तेहपुर ज़िला उत्तर प्रदेश राज्य का एक ज़िला है जो कि पवित्र गंगा एवं यमुना नदी के किनारों पर बसा हुआ है। फ़तेहपुर का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। भिटौरा और असनी के घाट भी पुराणों में मिलते हैं। भिटौरा भृगु ऋषि की तपोस्थली थी। फ़तेहपुर ज़िला इलाहाबाद मण्डल का एक हिस्सा है। ऐतिहासिक स्थल

बावनी इमली: यह स्मारक स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किये गये बलिदानों का प्रतीक है। 28 अप्रैल, 1858 को ब्रिटिश सेना द्वारा बावन स्वतंत्रता सेनानियों को एक इमली के पेड़ पर फाँसी दी गयी थी। ये इमली का पेड़ अभी भी मौजूद है। लोगो का विश्वास है के उस पेड़ का विकास उस नरसंहार के बाद बंद हो गया है। यह जगह बिन्दकी उपखंड में खजुआ कस्बे के निकट है। बिन्दकी तहसील मुख्यालय से तीन किलोमीटर पश्चिम मुग़ल रोड स्थित शहीद स्मारक बावनी इमली स्वतंत्रता की जंग में अपना विशेष महत्त्व रखती है। शहीद स्थल में बूढ़े इमली के पेड़ में 28 अप्रैल, 1857 को रसूलपुर गांव के निवासी जोधा सिंह अटैया को उनके इक्यावन क्रांतिकारियों के साथ फाँसी पर लटका दिया गया था इन्हीं बावन शहीदों की स्मृति में इस वृक्ष को बावनी इमली कहा जाने लगा।

4 फ़रवरी, 1858 को जोधा सिंह अटैया पर ब्रिगेडियर करथ्यू ने असफल आक्रमण किया। साहसी जोधा सिंह अटैया को सरकारी कार्यालय लूटने एवं जलाये जाने के कारण अंग्रेजों ने उन्हें डकैत घोषित कर दिया। जोधा सिंह ने 27 अक्टूबर, 1857 को महमूदपुर गांव में एक दरोगा व एक अंग्रेज़ सिपाही को घेरकरमार डाला था। 7 दिसंबर, 1857 को गंगापार रानीपुर पुलिस चौकी पर हमला करएक अंग्रेज़ परस्त को भी मार डाला। इसी क्रांतिकारी गुट ने 9 दिसंबर को जहानाबाद में हंगामा काटा और छापा मारकर ढंग से तहसीलदार को बंदी बना लिया। जोधा सिंह ने दरियाव सिंह और शिवदयाल सिंह के साथ गोरिल्ला युद्ध की शुरुआत की थी। जोधा सिंह को 28 अप्रैल, 1858 को अपने इक्यावन साथियों के साथ लौट रहे थे तभी मुखबिर की सूचना पर कर्नल क्रिस्टाइल की सेना ने उन्हें सभी साथियों सहित बंदी बना लिया और सबको फाँसी दे दी गयी। बर्बरता की चरम सीमा यह रही कि शवों को पेड़ से उतारा भी नहीं गया। कई दिनों तक यह शव इसी पेड़ पर झूलते रहे। चार जून की रात अपने सशस्त्र साथियों के साथ महराज सिंह बावनी इमली आये और शवों को उतारकर शिवराजपुर में इन नरकंकालों की अंत्येष्टि की।

भिटौरा: इस मुख्यालय पवित्र गंगा नदी के किनारे पर स्थित है। यहाँ सुप्रसिद्ध संत महर्षि भृगु लंबे समय तक पूजा का स्थान रहा है। यहाँ पर गंगा नदी प्रवाह उत्तर दिशा की ओर है। शहर मुख्यालय से उत्तर दिशा में बारह किलोमीटर दूर उत्तरवाहिनी भागीरथी के भिटौरा तट पर महर्षि भृगु मुनि ने तपस्या की थी। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भृगु मुनि की तपोस्थली में देवता भी परिक्रमा करने आए थे। पवित्र धाम गंगा महर्षि भृगु क्रोध में एक बार भगवान विष्णु की छाती पर लात भी मारी थी। यहाँ पर अन्य आधा दर्जन मन्दिर बने हुए हैं। स्वामी विज्ञानानंद जी ने महर्षि भृगु की तपोस्थली में भगवान शंकर की विशाल मूर्ति स्थापित कराई है, और नया पक्का घाट भी तैयार कराया है। भगवान शंकर की मूर्ति पर ॐ नमः शिवाय का बारह वर्षों से अनवरत पाठ चल रहा है। उत्तर वाहिनी गंगा पूरे भारत में मात्र तीन जगह है जिसमे हरिद्वार, काशी व भृगु धाम भिटौरा है।

हथगाम: यह महान् स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय श्री गणेश शंकर विद्यार्थी एवं उर्दू के शायर श्री इकबाल वर्मा का जन्म स्थान है। इस् स्थान पर राजा जयचंद की हथशाला थी। और सिखों के पाँचवे गुरु अर्जुन देव जी की तपोस्थली होने का गौरव प्राप्त है।

रेन्ह्: यह महाभारत कालीन गाँव है और यमुना नदी के किनारे पर बसा हुआ है। दो दशकों पहले एक बहुत पुरानी भगवान विष्णु की कीमती मिश्र धातु की मूर्ति को इस इस गांव में पाया गया था। अब ये मूर्ति कीर्तिखेडा गांव में एक मंदिर में स्थित है और ये गांव बिन्दकी ललौली सड़क पर है। कहा जाता है कि यहां पर कृष्ण के बडे भाई बलराम की ससुराल है।

शिवराजपुर: यह गांव बिन्दकी के निकट गंगा नदी के किनारे पर स्थित है। इस गांव में भगवान कृष्ण का एक बहुत पुराना मंदिर है। जो मीरा बाई का मंदिर के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि ये भगवान कृष्ण की मूर्ति को मीरा बाई जो की भगवान कृष्ण की एक प्रख्यात भक्त और मेवाड़ के शाही परिवार के एक सदस्य थी के द्वारा स्थापित किया गया था।

तेन्दुली: यह गांव चौड्गरा-बिन्दकी सडक पर है। ऐसा मानना है कि यहाँ सांप के शिकार / कुत्ता काटे बीमारों का ईलाज बाबा झामदास के मन्दिर में होता है।

बिन्दकी: यह बहुत ही पुराना शहर है जो कि मुख्यालय से लगभग 15 मील दूर है। बिन्दकी का नाम यहाँ के राजा वेनुकी के नाम पर पडा। यह बहुत ही धर्मनिरपेक्ष शहर है। यहाँ कि भूमि गंगा और यमुना नदी के बीच में होने के कारण बहुत ही उपजाऊ है। यह् उत्तर प्रदेश के राज्य में एक् एक सबसे पुराना तहसील है। शहीद जोधा सिंह अटैया और कई अन्य स्वतंत्रता सेनानियों और प्रसिद्ध हिन्दी कवि राष्ट्रकवि सोहनलाल द्विवेदी की मात्रभूमि है।

खजुहा :आदि काल में खजुहा को खजुआ गढ के नाम से जाना जाता था। इस स्थान का मुग़ल काल में बहुत ही महत्त्व था। औरंगजेब के समय पर यह इलाहाबाद मण्डल की मुख्य छावनी थी। खजुहा को भगवान शिव की नगरी के तौर पर भी जाना जाता है। इस छोटे से शहर में 118 अद्भुत शिव मंदिर है| खजुहा क़स्बा ऐतिहासिक घटनाओं और स्थानों को समेटे हुए है। कस्बे के मुग़ल रोड में विशालकाय फाटक और सरांय स्थित है। जो कस्बे की पहचान बना हुआ है। वहीं कस्बे के स्वर्णिम अतीत के वैभव की दास्तां बयां कर रहा है। मुग़ल रोड के उत्तर में रामजानकी मंदिर, तीन विशालकाय तालाब, बनारस की नगरी के समान प्रत्येक गली और कुँए अपनी भव्यता की कहानी कह रही है।

इस छोटे से कस्बे में क़रीब एक सौ अठारह शिवालय हैं। इसी क्रम में दशहरा मेले में होने वाली रामलीला के आयोजन में रावण पूजा भी अलौकिक और अनोखी मानी जाती है। यहां की रामलीला को देखने के लिए प्रदेश के कोने-कोने से श्रृद्धालु एकत्रित होते हैं। खजुहा कस्बे की रामलीला ज़िले में ही नहीं पूरे प्रदेश में ख्याति प्राप्त है। यहां पर दशहरा मेले पर अन्य स्थानों की तरह रावण को जलाया नहीं जाता, बल्कि रावण को पूजनीय मानकर हज़ारों दीपों की रोशनी के साथ पूजा अर्चना की जाती है। कस्बे के महिलाएं और बच्चे भी इस सामूहिक आरती और पूजन कार्य में हिस्सा लेते हैं। इस अजीब उत्सव को देखने के लिए दूरदराज़ से लोगों जमावड़ा लगता है। वहीं रावण के साथ अन्य पुतलों को नगर के मुख्य मार्गों में भ्रमण कराया जाता है। इस ऐतिहासिक मेले का शुभारम्भ भादों मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया (तीजा) के दिन तालाब से लाई गई मिट्टी एवं कांस से कुंभ निर्माण कर गणेश की प्रतिमा निर्माण कर दशहरा के दिन पूजा अर्चना की जाती है। खजुहा मेले में निर्मित होने वाले सभी स्वरूप नरई, पुआल आदि समान से बनाए जाते हैं। इन स्वरूपों के चेहरों की रंगाई का कार्य खजुहा के कुशल पेंटरों द्वारा किया जाता है। जबकि रावण का शीश तांबे से बनाया जाता है। दशमी के दिन से गणेश पूजन से शुरू होने वाली रामलीला परेवा द्वितीया के दिन राम रावण युद्ध के बाद इस ऐतिहासिक रामलीला की समाप्त हो जाती है। खजुहा की रामलीला का विशेष महत्त्व है। जहां रावण को जलाने के स्थान पर इस की पूजा की जाने की परंपरा है। तांबे के शीश वाले रावण के पुतले को हज़ारों दीपों की रोशनी प्रज्वलित करके सजाया जाता है। इसके बाद ठाकुर जी के पुजारी द्वारा श्रीराम के पहले रावण की पूजा की जाती है। जहां मेघनाद का 25 फिट ऊंचा लकड़ी के पुतले की सवारी कस्बे के मुख्य मार्गों में निकाली जाती है। वहीं 40 फुट लंबा कुम्भकर्ण व अन्य के पुतले तैयार किए जाते हैं।

असनी

विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है ...असनी (AS, p.52) उत्तर प्रदेश राज्य में फ़तहपुर ज़िले से 10 मील की दूरी पर स्थित है। किंवदंती के अनुसार असनी का नामकरण अश्विनीकुमारों के नाम पर हुआ है। इनका मंदिर भी असनी में है। कहा जाता है कि मुहम्मद ग़ोरी के कन्नौज पर आक्रमण के समय जयचंद ने राजधानी छोड़ने से पूर्व अपना राजकोष यहां छिपा दिया था। असनी का पुराना क़िला अकबर के समकालीन हरनाथ ने बनवाया था।

External links

References