Ghotda

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Ghotda (घोटड़ा) is a Village in Bhadra tehsil of District Hanumangarh in the Indian state of Rajasthan. The twin villages were founded by Sahu Jats known as Ghotda Patta (घोटड़ा पट्टा) and Ghotda Khalsa (घोटड़ा खालसा).

Location

It is situated at approx 32 KMs South-East of Bhadra.

History

सारणों की राजधानी भाड़ंगाबाद

चूरू जनपद की तारानगर तहसील के उत्तर में साहाबा कस्बे से 9 किलोमीटर दक्षिण में वर्तमान में आबाद भाड़ंग गांव कभी पूला सारण की राजधानी भाड़ंगाबाद के नाम से आबाद थी। मौजूदा भाड़ंग गांव के उत्तरी-पूर्वी कोने में 2-3 किलोमीटर दूर यह पुराना भाड़ंगाबाद पूला सारण की राजधानी आज खंडहर के रूप में अवस्थित अपनी करुण कथा सुना रही है। यहां पूरी तरह से खंडहर हो चुके गढ़ के अवशेष तथा आबादी बसी हुई होने के अवशेष के साथ साथ पीने के पानी के लिए बनाए गए पुराने कुए, कुंड तथा तालाब के चिन्ह भी अपनी उपस्थिति बताते हुए दूर-दूर तक मलबे के ढेर बिखरे पड़े हैं जो कभी विशाल आबादी होने का एहसास दिला रहे हैं। भाड़ंगाबाद का यह गढ़ बहुत बड़ी लंबाई-चौड़ाई में बनाया हुआ था जिसमें 12 गांव आबाद थे। इसके साक्ष्य दूर-दूर खेतों में बिखरे पड़े पुराने मकानों के मलबे के ढेर के ढेर दिखाई देते हैं। यह भी साक्ष्य दिखाई देते हैं कि यहां कभी बहुत बड़ी आबादी गढ़ के परकोटे में दुश्मनों के हमलों से बचाव के साथ आबाद थी। इसी गढ़ के पुराने मलबे के ढेर पर विस्थापित भोमिया जी का छोटा सा मंदिर (थान) बना हुआ है। यह है भोमिया जी वही सारण था जो सहूओं का भांजा था, जिसे सहूओं ने गढ़ की नींव में जीते जी दे दिया था। जिसका नाम पीथा सारण बताया जाता है। यह भूमि अब श्री मालसिंह सुपुत्र विशाल सिंह राजवी (राजपूत) के कब्जे में है।

पीथा सारण: अमर शहीद पीथा की करुण गाथा इस प्रकार किंवदंती के रूप में बताई जाती है। कहते हैं कि सहूओं की एक लड़की सारणों के ब्याही थी जिसका पीहर भाड़ंगाबाद तथा ससुराल सहारनपुर था। वह विधवा हो गई तथा उसके एक लड़का था जो दिव्यांग था। विधवा अवस्था में वह पीहर भाड़ंगाबाद में ही अपने परिवारजनों के साथ रहकर अपना समय व्यतीत करती थी। इधर सहू लोगों ने गढ़ बनाना शुरू किया तो जितना गढ़ वे दिन में चिनते उतना ही वापस ढह जाता। सहू बड़े चिंतित हुए। उन्होंने उस समय के तथाकथित जानकार साधु महात्मा आदि से पूछा कि क्या उपाय किया जाए जिससे यह गढ़ पूर्ण हो सके। किसी ने जानकारी दी कि यह गढ़ एक व्यक्ति का बलिदान मांगता है। एक व्यक्ति को जीते जी इसके नींव में चुना जावे तो यह गढ़ निर्विघ्न पूर्ण हो जाएगा। सब लोगों से पूछा गया, कोई भी व्यक्ति तैयार नहीं हुआ। तब यह तय हुआ कि अपना भांजा पीथाराम दिव्यांग व्यक्ति है उसको ही क्यों न नींव में दे दिया जावे। मां के लिए बेटा बहुत ही प्यारा होता है। पीथा राम की मां अबला थी, उसका कोई जोर नहीं चला। उसके कलेजे के कोर, अपने रहे सहे जीवन के सहारे को अपने आंखों के सामने जीते जी गढ़ की नींव में चिन दिया गया। पीथाराम की मां मजबूरी में अपने दिन काटती रही।

एक दिन पीथाजी की मां जोहड़ पर पानी लाने गई। वहां पर एक प्यासा सारण जाट पानी पीने के लिए आ गया। उसने पिथा की माता से पानी मांगा। तब पिथा की मां ने राहगीर का परिचय पूछा तो उसने बताया कि मैं सारण गोत्र का जाट हूँ। पीथा की मां ने कहा कि अभी सारण धरती पर जिंदा भी हैं? सारण ने पूछा ऐसी क्या बात हो गई। तब पिथा की मां ने सारी कहानी बताई। सारण वहां से बिना पानी पिए सीधा सहारनपुर पिथा के परिवार वालों को यह खबर देने चला गया। इधर सहू जाटों ने गढ़ की चिणाई कर निर्माण कार्य पूर्ण कर लिया।

सारणों और सहू जाटों का युद्ध: सारणों का निकास सहारनपुर से होना बताया जाता है। मंगलाखेजड़ा दो भाई थे। जो पिथाराम की मां के देवर के लड़के थे। अतः पिथा की मां उनकी काकी (चाची) लगती थी। वे कोलायत स्नान का बहाना बनाकर लंबी-चौड़ी फौज लेकर आए और भाड़ंगाबाद में ठहर गए। मंगला-खेजड़ा ने अपनी चाची से सलाह-मशविरा करके सहू जाटों को निमंत्रण दिया कि आपने नया गढ़ बनाया है तो इस खुशी में हम आपको भेज देंगे। भोज की तैयारी के समय नगाड़ा बजेगा तब गढ़ का गेट बंद हो जाएगा। बाहर वाले बाहर वह अंदर वालों को भोजन कराने के बाद बाहर वालों का नंबर आएगा। नगाड़े इस खुशी में जोर जोर से बजते रहेंगे। इधर मंगला-खेजड़ के साथियों ने हथियारों से लैस हो गढ़ में भोजन कराने वाले व्यक्तियों के रूप में घुसेड़ दिया। जब सारे सहू अंदर आ गए तो गढ़ का गेट बंद कर नगाड़े बजाने शुरू कर दिए। अंदर मारकाट शुरु हो गई। रोने-चीखने-चिल्लाने की आवाजें नगाड़ों के स्वर में सुनाई नहीं दी। बचे हुए सहू गढ़ छोड़कर धानसिया गांव में भाग गए जो अब नोहर-सरदारशहर सीमा पर स्थित है। वहां अपनी राजधानी बनाई। इस प्रकार भाड़ंगाबाद के इस सहूओं के गढ़ पर कब्जा कर अमर शहीद पिथा के बलिदान का बदला सारणों ने ले लिया। आगे चलकर यह भाड़ंगाबाद पूला सारण की राजधानी बनी जिसमें 360 गांव आबाद थे।

सारण लोग गढ़ पर कब्जा होने के पश्चात भाड़ंगाबाद में नहीं बसे। नोहर तहसील के जोजासर गांव के पास बैर नाम की गैर आबाद रेख है, उस में बसे थे जो बाद में गैर आबाद हो गई। खेजड़ ने सहूओं को शरण दी थी तब उसे श्राप मिला था कि तेरे नाम से कोई खेड़ा नहीं बसेगा। खेजड़ ने खेजड़ा गांव तहसील सरदारशहर में एक ही बसाया था।

पूला सारण: पूला सारण के बारे में बताते हैं कि यह दो ऐल के थे। पहला पूला सारण ने पूलासर गांव बसाया था, जो बाद में पारीक (पांडिया) ब्राह्मणों को दान में दे दिया था। किंवदंती है कि पूला बड़े लुटेरों के गिरोह में शामिल हो गया था। बादशाह को टैक्स आदि नहीं देता था। बादशाह की बेगम को लूट लिया था। बादशाह ने पकड़ने के लिए पूरी ताकत लगा दी थी। उधर पूला ने गिरफ्तारी से बचने के लिए अपना डेरा दिल्ली में डाल लिया। तीन व्यक्ति उसके साथ ही थे। वह भी साथ ही रहते थे। चमड़े की मसक (भकाल)से यमुना नदी से पानी भरकर लोगों के घरों में डालते थे और अपना पेट पालते थे।

एक दिन घटना ऐसी घटी की पूला के दिनमान ही बदल गए। बादशाह की वही बेगम, जिसे पूला ने लूटा था, वह यमुना में स्नान करने आई थी। वहां उसका पैर फिसल गया और वह पानी में डूब गई। वहां पूला अपने साथियों के साथ पानी भरने आए हुए थे। पूला ने तत्काल नदी में छलांग लगाई और बेगम को नदी से बाहर निकाल लाया। बेगम ने बादशाह को कहा मुझे बचाने वाले को मुंह मांगा इनाम दिया जाए। पूला ने कहा इस बेगम को लूटने वाला भी मैं था और बचाने वाला भी मैं ही हूँ। तब बेगम ने कहा लूटने वाला कसूर माफ कर दिया जाए और मेरी जान बचाने वाले को इनाम दिया जाए। बादशाह ने लूटने का कसूर माफ कर दिया तथा बचाने के लिए मुंह मांगा इनाम देने के लिए कहा। इस पर पूला ने 7 दिन का दिल्ली का राज मांग लिया। बादशाह ने 7 दिन के लिए पूला को दिल्ली का बादशाह बना दिया। पूला ने सात दिन के राज में चमड़े के सिक्के चलाये जिसके बीच में सोने की एक मेख लगाई। चमड़े के सिक्के इसलिए चलाए क्योंकि चांदी व अन्य धातु के सिक्के ढालने में बहुत समय लगता। पूला के पास केवल 7 दिन ही थे।

पूलासर: इधर पूलासर के पारीकों को पता चला तो वे दिल्ली पहुंच गए तथा पूलासर गांव दान में मांग लिया। पूला ने गांव पारीक ब्राह्मणों को दान में दे दिया। 'पूला दादा' के नाम से पूलासर में पूला का मंदिर बना हुआ है। पूला भाड़ंग नहीं आया था।

दूसरा पूला जिसने भाड़ंगाबाद राजधानी बनाई वह कई पीढ़ी बीत जाने पर राजा बना था। पहले पूला ने अपना गाँव दान में देकर अपना नाम अमर कर दिया।

मौजूदा भाड़ंग गांव सुरजाराम जोशी एवं गुणपाल चमार ने बसाया था। सुरजा राम जोशी ने एक जोड़ी खुदवाई जो आज भी सुरजानी जोड़ी कहलाती है।

राव बीका कांधल के राज्य में कांधल राजपूतों ने राज किया। यह पूला सारण राज्य पतन के बाद फिर यह राजवियों के हिस्से में आ गया। 288 बीघा भूमि दे दी गई। 2 बीघा भूमि पर घर बसाने के लिए व एक कुई एवं खेत जाने का रास्ता बीकानेर शासक ने पट्टे पर दे दिया। 1260 बीघा 6000 बीघा भूमि मंडेरणा घोटडा में दी जो भादरा तहसील में पड़ती है। यह गैर आबाद है जो घोटड़ा पट्टा- धीरवास के बीच में पड़ता है।

नोट:- यह संकलन दिनांक 19 दिसंबर 2014 को श्री गणेशराम सारण से भाड़ंग में उनके निवास स्थान पर जाकर किया। श्री गणेश राम ने यह जानकारी अपने भाट एवं पुराने बुजुर्गों से सुनी हुई बताई। गोविंद अग्रवाल द्वारा चूरू का शोधपूर्ण इतिहास में अलग ही विवरण है। चूरू का शोधपूर्ण इतिहास में जाटों के पतन के कारण में मलकी को पूला सारण की पत्नी बताया जाकर उस के अपहरण की कहानी सत्य नहीं है। मलकी पूला सारण की पत्नी न होकर चोखा साहू की पत्नी थी जिसका अपहरण धानसिया गांव में गणगौर के दिन गणगौर के मेले में हुआ था। अतः इस विषय पर सत्य खोज व शोध की आवश्यकता है। भादरा सारणों के बही भाट श्री जसवंत सिंह राव गांव मंडोवरी पोस्ट बड़सिया तहसील परबतसर (नागौर) मोब 9660216254 से जानकारी ली जा सकती है।

संकलनकर्ता - लक्ष्मण राम महला, जाट कीर्ति संस्थान चुरू

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References




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