Hindon River
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Hindon River (हिंडोन नदी) is a tributary of Yamuna river that originates in the Saharanpur district, from the Upper Sivaliks in Uttar Pradesh.
Variants
- Hindon River हिंडोन , जिला मेरठ, उ.प्र., (AS, p.1021)
- Haranandi हरनंदी दे. Hindon River हिंडोन (AS, p.1008)
- Harnandi हरनंदी
Course
Hindon River flows between Ganges and Yamuna rivers for 400 kilometres through Muzaffarnagar district, Meerut district, Baghpat district, Ghaziabad district and Gautam Buddh Nagar district before it joins Yamuna river just outside Delhi.[1] The Hindon Air Force Base of the Indian Air Force also lies on its bank in the Ghaziabad district on the outskirts of Delhi.[2]
Tributary: Kali river, which originates in the Rajaji Range of Sivalik Hills and travels about 150 kilometres passing through Saharanpur, Muzaffarnagar, Meerut and Bagpat districts, merges with Hindon River, before it merges with the Yamuna River.
Mythology
Near Sardhana lies the ancient Mahadev Temple that is believed to be dating from the Mahabharata period, and where the Pandavas prayed before leaving for the Lakshagrih, the notorious palace made of lac by Duryodhana, at the confluence of the Hindon (previously known as Harnandi) and Krishna rivers (Kali River, Kali Nadi) at Varnavrat, the present Barnava, and where the prince resided with their mother Kunti.[3]
History
An Indus Valley Civilization (fl. 3300–1300 BCE) site, Alamgirpur is located along the Hindon River, 28 km from Delhi.[4]
During 1857-58, Ghaziabad city was a scene of fighting during the Indian Mutiny, when Indian soldiers in the Bengal Army that were under the British East India Company mutinied but soon turned into a widespread uprising against British rule in India. The Hindon River, in particular, was the site of several skirmishes between Indian troops and British soldiers in 1857 including the Battle of Badli-ki-Serai and today, the graves of the British soldiers and officers can still be seen. Ghaziabad’s place in Northern Indian history is assured by the birth of many freedom fighters who played a role in various revolutions all dedicated to the attainment of freedom for all who have lived – and are still living – there.
Jat History
The battle against Sarva Khap army
The battle at the confluence of Hindan and Kali river against Ala ud din Khilji in the 13th Century AD in protest against imposition of heavy taxes and interference in private affairs. [5]
हिंडोन नदी
हिंडोन नदी (AS, p.1021): मेरठ जिले में बहती है जिसका प्राचीन नाम हरनंदी कहा जाता है. हाल ही में मेरठ-बागपत सड़क पर इस नदी के तट के निकटवर्ती क्षेत्र में अनेक प्राचीन अवशेष मिले हैं.[6]
हिंडोन नदी परिचय
हिंडोन नदी या 'हिंडन नदी' उत्तर भारत में प्रवाहित होने वाली यमुना नदी की सहायक नदी है। इस नदी का उद्गम सहारनपुर ज़िले में निचले हिमालय क्षेत्र की ऊपरी शिवालिक पर्वत श्रेणियों में है। पौराणिक ग्रंथों में 'हरनंदी' के नाम से प्रचलित यह नदी अब 'हिंडोन' या 'हिंडन' नाम से जानी जाती है। यह नदी दो नदियों के संगम (काली नदी और कृष्णा नदी) से बनी है। महाभारत कालीन लाक्षागृह से लेकर देश के स्वतंत्रता संग्राम तक की यह नदी साक्षी रही है।
सहायक नदियाँ: कुछ मध्य कालीन ग्रंथों में जिस नदी को हरनंदी नाम से सम्बोधित किया गया है, उसका नाम समय के साथ बदलकर हिंडन पड़ गया। हिंडन नदी हज़ारों वर्षों से बह रही है। यह नदी दो अलग-अलग नदियों के समागम से बनी है। मूलरूप से यह सहारनपुर के पास बेहट इलाके की कुछ छोटी पहाडि़यों के बीच से पानी के स्रोत के रुप में निकलती है। किंतु इसके अतिरिक्त इस नदी को गाज़ियाबाद तक के सफर में दो और सहायक नदियाँ मिल जाती हैं। इनमें से एक मुजफ़्फ़रनगर के पास से प्रवाहित होने वाली काली नदी और दूसरी कृष्णा नदी के नाम से जानी जाती है। कृष्णा नदी भी सहारनपुर के पास की एक पहाड़ी से ही निकलती है। यह नदी शामली और बागपत के एक बड़े हिस्से से होकर गुजरती है। बागपत और मुजफ़्फ़रनगर से प्रवाहित होते हुए कृष्णा और काली नदी का संगम 'वारनावत' (वर्तमान में बरनावा) के पास होता है। बरनावा बागपत में एक गाँव का नाम है। महाभारत कालीन ग्रंथों में इसका उल्लेख है। वहीं से इस नदी का नाम 'हिंडन' पड़ा है।
लाक्षागृह के अवशेष: महाभारत काल में जहाँ पांडवों को मारने के लिए दुर्योधन द्वारा लाक्षागृह का निर्माण करवाया गया था, उसी जगह का नाम वारनावत है। कई ग्रंथों में भी इस तथ्य का उल्लेख है कि वारनावत में ही पांडवों को मारने के लिए कौरवों ने षड़यंत्र के तहत लाक्षागृह बनवाया। किंतु इस साजिश का पता पांडवों को हो गया। पांडव तो वहाँ से सुरंग के रास्ते सुरक्षित निकल गये, किंतु वहाँ आकर रुके पाँच भील लाक्षागृह में जलकर भस्म हो गए। ग्रंथों में ज़िक्र है कि सभी पांडवों ने लाक्षागृह से बचने के लिए एक सुरंग बनवाई थी। इसी सुरंग से पांडव पास के वन क्षेत्र में जा निकले। महाभारत हुए हज़ारों वर्ष व्यतीत हो चुके हैं, फिर भी जहाँ लाक्षागृह बनाया गया था, वहाँ अब कई मंज़िल ऊँचा मिट्टी का टीला बना हुआ है। यहाँ अब संस्कृत का विश्वविद्यालय संचालित होता है। किंतु इस जगह आज भी महाभारत कालीन समय के अवशेष मिलते हैं। जिस सुरंग का प्रयोग कर पांडव यहाँ से सुरक्षित निकले थे, वह सुरंग अब भी मौजूद है। मगर सुरंग में मिट्टी भर जाने के कारण अब उसका मुँह कुछ छोटा हो गया है।
क्रांति की साक्षी: भारत की आज़ादी के लिए मेरठ से 1857 में चिंगारी उठी थी। जून, 1857 में देश के क्रांतिकारियों और अंग्रेज़ सेना के बीच हिंडन नदी पर ही युद्ध लड़ा गया। हिंडन नदी के तट पर हुई उस जंग में कई अंग्रेज़ भी मारे गए थे। यहाँ शहीदों की याद में एक शहीद स्मारक भी बनाया गया है। प्रदूषण की समस्या
हिंडन नदी ने शहर को दो हिस्सों में बांटा हुआ है। दिल्ली की ओर के हिस्से को टीएचए और गाज़ियाबाद मुख्य शहर में अलग-अलग किया हुआ है। पहले इस नदी पर सहारनपुर से लेकर गाज़ियाबाद तक एक भी पुल नहीं था। देश की आज़ादी के बाद इस नदी पर गाज़ियाबाद में पहला पुल वर्ष 1952 में बनाया गया। एक समय हिंडन नदी का पानी शीशे के समान चमकता था, मगर अब हिंडन नदी के पानी में वह चमक नहीं रह गई है। कई शहरों का दूषित जल अपने आप में समेट कर हिंडन नदी अब अपनी यात्रा पूरी कर रही है। उपेक्षा की मार झेल रही हिंडन नदी का पानी अब प्रदूषित होकर काला हो रहा है।
संदर्भ: भारतकोश-हिंडोन नदी
External links
References
- ↑ Jain, Sharad K.; Pushpendra K. Agarwal; Vijay P. Singh (2007). Hydrology and water resources of India- Volume 57 of Water science and technology library - Tributaries of Yamuna river. Springer. p. 350. ISBN 1-4020-5179-4.
- ↑ Hindon Air Base GlobalSecurity.org
- ↑ Epic Proportion: Sardhana - There’s more to Sardhana than the church.. The Economic Times, 6 March 2008.
- ↑ A. Ghosh (ed.). "Excavations at Alamgirpur". Indian Archaeology, A Review (1958-1959). Delhi: Archaeol. Surv. India. pp. 51–52.
- ↑ Ram Swarup Joon, History of the Jats, Rohtak, India (1938, 1967)
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.1021
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