Jat History Dalip Singh Ahlawat/Introduction

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जाट वीरों का इतिहास
लेखक - कैप्टन दलीप सिंह अहलावत
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प्रस्तावना

कप्तान दलीपसिंह अहलावत धन्यवाद के पात्र हैं जिन्होंने किसानों की गौरवशाली जाट बिरादरी पर एक खोजपूर्ण ऐतिहासिक पुस्तक जाट वीरों का इतिहास लिखकर अपने जन्म को सार्थक किया है। उक्त पुस्तक के लिखने में लेखक ने सतत सात वर्ष तक घोर परिश्रम कर तथा पिचासी प्राचीन ऐतिहासिक पुस्तकों का अध्ययन तथा शोध कार्य हेतु देश के अनेक स्थानों का भ्रमण करके पुस्तक को मूर्त रूप दिया।

पुस्तक के एकादश अध्याय हैं जिनमें लेखक ने भारतीय इतिहास के मर्म को छुआ है और जाट शूरवीरों के कर्म कौशल की गौरव गाथा को इतिहास के परिपेक्ष्य में वर्णित किया है। युद्ध के समय में तलवार के धनी और शांति के समय में हलपति का लेखक ने बहुत ही सुन्दर ढंग से चरित्र-चित्रण किया है।

बतौर एक सैनिक अधिकारी के लेखक ने इतने गहन विषयों का संकलन कर जाट वीरों का इतिहास नामक पुस्तक की रचना करके प्रसिद्धि तो प्राप्त की है, इसके साथ-साथ यह भी सिद्ध कर दिया कि जाट हलपति और तलवारपति के साथ साथ कलमपति भी है। लेखक ने यह भी सिद्ध कर दिया कि वह इतिहास बनाता ही नहीं, इतिहास लिखता भी है। लेखक ने जाट गोत्रावली के अढाई हजार गोत्रों का वर्णन ही नहीं किया बल्कि भारतीय इतिहास के कुछ विशेष ज्वलन्त विषयों का भी वर्णन किया है जो जाट वीरों से संबन्धित हैं जैसे - सृष्टि एवं वेदों की रचना, आर्यों का मूल निवास स्थान, ब्रह्मा की वंशावली, जाटों की संख्या, आवास भूमि, विशेषताएं, उत्पत्ति, जाटों का राज्य, रामायण तथा महाभारत काल से जाट वीरों का राज्य, महाभारत युद्ध के बाद विदेशों तथा भारतवर्ष में जाट राज्य। जाट, गूजर, अहीर, राजपूत, मराठा का गोत्रों के आधार पर एक ही वंश का होना, भारतवर्ष पर विदेशी आक्रमणकारियों से जाटों के युद्ध, दिल्ली साम्राज्य के मुसलमान बादशाह और जाट, भरतपुर, धौलपुर तथा सिक्ख जाट राज्य का वर्णन, सन् 1857 ई० के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम तथा सन् 1947 ई० में मिली भारत की स्वतन्त्रता में जाट वीरों का योगदान तथा आधुनिक युग में जाटों की महानता।

इस प्रकार कप्तान साहब ने इतिहास के सोये हुए पन्नों को तथा उन भूली बिसरी यादों को जोड़कर एक माला के रूप में पिरोया है। अलग से जाट बिरादरी का वर्णन न करके ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर यह भी सिद्ध किया है कि भारत की अन्य लड़ाकू बिरादरियां (Marshal Race) जाट की ही शाखा बिरादरियां हैं।

लेखक के कथन की पुष्टि के लिए मैं कुछ अन्य विद्वान् विचारकों के, जाट के विषय में दिए गए विचारों का भी जिकर करना चाहता हूं जिन्होंने जाट की विशेषताओं पर अपने विचार दिए। आर्यसमाज के प्रवर्तक महर्षि दयानन्द सरस्वती जी महाराज ने एक स्थान पर कहा है कि जाटों


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-xi


को आर्यसमाजी बनाने की आवश्यकता नहीं पड़ी क्योंकि ये तो आदिकाल के उन आर्यों की ही सन्तान हैं जिन्होंने कभी किसी मतमतान्तर, ढोंग और पाखण्ड को नहीं माना।

इसी प्रकार महान् राजनीतिज्ञ तथा समाज-सुधारक दीनबन्धु रहबरे-आजम चौधरी छोटूराम का कहना है कि जाट जैसा उदार, स्वाभिमानी, स्वावलम्बी, दयालु, ईमानदार, धीरु, गम्भीर, वीर, शरणागत का रक्षक, आगन्तुक का स्वागत करने वाला, न्यायप्रिय, दूसरों के लिए मर मिटने वाला निराला पुरुष इस संसार में कोई और नहीं है। लेखक की भांति रहबरे आजम ने भी जाट के साथ-साथ अहीर, गूजर, राजपूत को मिलाकर इन्हें एक अजगर (AJGR) कौम कहा है जो शान्ति के समय में देश के भरण पोषण के लिए अन्न पैदा करती है और युद्ध के समय में देश की रक्षार्थ दुश्मन से लोहा लेती है। चौधरी साहब कहा करते थे कि हे ईश्वर! मेरे कर्मानुसार मुझे लाख बार भी यदि मनुष्य योनि दे तो मुझे जाट के घर में पैदा करना ताकि मैं उच्च विचार तथा शुद्ध कर्मानुसार इस आवागमन के चक्र को उचित ढंग से पार करता चला जाऊं। किसी उर्दू कवि ने शायद जाट के लिए ही कहा है -

सैले हवादिस भी मोड़ सकता नहीं मर्दों के मुंह ।

शेर सीधा तैरता है वक्ते रफ्तन आब में ॥

इसी प्रकार इतिहास विशेषज्ञ कर्नल जेम्स टॉड ने भी अपने राजस्थान का इतिहास पुस्तक में जाट की भूरि-भूरि प्रशंसा कर जाट को महानतम योद्धा बताया है।

अतः मैं इस प्रकार का निराला व्यक्तित्व रखने वाले जाटवीरों का इतिहास लिखने वाले कप्तान दलीपसिंह अहलावत का पुनः धन्यवाद करता हूँ।


- स्वामी कर्मपाल
अध्यक्ष, सर्वजातीय सर्वखाप पंचायत
गोमठ मन्दिर, मैदान गढ़ी, नई दिल्ली-110030
दिनांक 23 दिसम्बर, 1998 ई० (मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा, विक्रमी 2045)


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जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-xii




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