Jat Jan Sewak/Luharu

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पुस्तक: रियासती भारत के जाट जन सेवक, 1949, पृष्ठ: 580

संपादक: ठाकुर देशराज, प्रकाशक: त्रिवेणी प्रकाशन गृह, जघीना, भरतपुर

लुहारु के जाट जन सेवक

लोहारु आंदोलन पर प्रकाश

[पृ.498]: पंजाब प्रांत में हिसार, शेखावाटी और बीकानेर से घिरा हुआ है छोटा सा नवाबी राज्य लोहारु। सन् 1935 के मध्य महीनों में तमाम जनता की निगाह में आ गया जबकि यहां के तेजस्वी किसानों ने नवाब की तानाशाही के खिलाफ आवाज बुलंद की।

लोहारु से 52 गांव की रियासत थी इसलिए बावनी के नाम से पुकारी जाती थी। यहां के आदि वाशिंदे शिवराणा जाट हैं जिनके 52 गांव हैं। अब इनकी संख्या बढ़कर 75 हो गई है। इसकी कुल आबादी 27,000 और आमदनी सवा लाख रूपय सालाना थी।

सन् 1803 में भरतपुर के विरुद्ध अहमदबख्शखां नाम के मुगल ने अंग्रेजों को मदद दी थी। घोड़ों के व्यापारी को अंग्रेजों ने लोहारु और उसके गांव देकर एक रियासत को जन्म दिया।

लोहारू के जाटों का इतिहास

1. 700 वर्ष पहले राव शिवराम यहां पर आबाद हुआ। ऐसा हिसार गजेटीयर और भाटों का कथन है।

2. हमारा मत है कि शिव जाति का एक भाग शिवरान कहलाया।

3. जाट ग्रंथों का कथन है कि नीमराणा अधिपति संकट राव


[पृ.499]: बड़ा वीर था वह 150 वर्ष जिया। उसने 120 वर्ष की उम्र में रानी पवन रेखा से विवाह किया।

4. पवन रेखा के 1. लाह 2. लोरे दो पुत्र उत्पन्न हुए। राज्य लाह को दिया गया।

5. राव शंकट राव की बड़ी रानी के 19 पुत्र थे: 1. हर्षराज, 2. ग्रहराज, 3. वहीराज 4. नलदून्दा, 5. सौर, 6. पीथे, 7. ज्ञानचंद, 8. तिलोकचंद, 9. भान, 10. खैनसी, 11. मैनसी, 12. सहसमल 13. खैरा 14. काहूडाबी 15. बुक्कणासी, 16. विजयराज 17. शिवराव, 18. राधेकृष्ण, 19. परमानंद

राजा शंकरराव के मरने पर दोनों रानियों के पुत्रों में लड़ाई हुई। किंतु जीत पवन रेखा के पुत्रों की हुई। इसलिए दूसरी रानी के पुत्र नीमराणा को छोड़कर इधर उधर जा बसें।

इनमें शिवराव की संतान के 52 गांव लोहारू में 25 जींद राज्य में और कुछ जिला हिसार में है।

6. शिवराव से पृथ्वीपाल हुए। उसके बाद क्रमशः बालादेव, उमराव, रातू, पूरण, अंचल, आतहणासी, रतनपाल हुए। रतनपाल तक स्वतंत्र राज्य रहा फिर शेखावतों का अधिकार हो गया। शेखावतों से यह राज्य अलवर को अलवर से अहमदवालू को मिला।

लुहारु के नवाब द्वारा किसानों का शोषण

एक सौ वर्ष तक नवाब अहमदबक्शखां और उसके वंशजों ने शांति के साथ राज्य किया किंतु इस अरसे में भी वे लगान में बढ़ोतरी करते रहे। जमीन के हक भी कम करते रहे। सन् 1909 में उन्होंने पहले पहल बंदोबस्त कराया जिसमें उनका एक विश्वेदारी का हिस्सा स्वीकार किया किंतु सन् 1923 में जो बंदोबस्त कराया उसमें उनके जमीन के हक़ विश्वेदारी को


[पृ.500]: कम कर दिया और इस तरह की बातें जोड़ दी जिससे हक विरासत का सिलसिला भी खत्म होता था। लगान भी बढ़ाकर 70,000 से 94,000 कर दिया और एक नई लाग ऊंट टैक्स के नाम पर और लगा दी।

प्रजा के भोलेपन से जो भी लाभ उठाये जा सकते हैं, लुहारु के नवाब ने उठाए। वे एक फिजूल खर्च शासक थे। अपने बढे हुये खर्चों की पूर्ति के लिए उन्होंने अनेक टैक्स लगाए। जिनमें विधवा विवाह टेक्स भी था। चूंकि जाटों में विधवा विवाह का चलन है इसलिए उन्हें इस टैक्स से अच्छी आमदनी होती थी।

टैक्स और ज्यादतियाँ दिन पर दिन बढ़ती जाती थी। फिर भी नवाब साहब के खर्चों का पूरा नहीं पड़ता था। इतनी छोटी सी रियासत के मालिक नवाब ने रंग बिरंगी की मोटरें खरीदी। यही क्यों हवाई जहाज भी खरीदा। गर्ज यह है कि उनके खरचों को पूरा करने में प्रजा के नाक में दम आ रहा था।

नवाब साहब इतने पर भी आतंक के साथ हुकूमत करने के पक्षपाती थे। चाहे जिसे जेल में ठूंस देने, तंग करने, सबक सिखाने की बातें उनके लिए मामूली थी।

देहात में शिक्षा का प्रबंध करना तो दूर उन्होंने किसानो द्वारा कायम की हुई पास पाठशालाओं को भी उठवा दिया।

लुहारु किसान आंदोलन

अतिशय रगड़ का जो फल होता है वही लोहारु का भी हुआ। सन् 1935 के आरंभ में वहां के किसानों ने निम्न मांगों के साथ आंदोलन आरम्भ कर दिया।

1. लगान 1909 के समझौते के नियमों के मुताबिक वसूल हो।

2. नवाब खानदान के विवाह प्रसंगों पर तथा हमारे


[पृ.501]: करेवा (विधवा विवाह) पर टैक्स न लिया जाए।

3. पशुओं पर टैक्स हटा दिया जाए।

4. मौरूसी हक फिरसे दे दिए जाएं।

5. नंबरदार का पद वंश परंपरागत है, इसलिए बिना किसी खर्च के नंबरदार के लड़के को नंबरदार बनने का अधिकार हो।

6. हिंदू नियम के अनुकूल विधवा विवाह के संबंध में राज्य का हस्तक्षेप ना हो।

7. राज्य की नौकरियों में हिंदुओं का भी हिस्सा हो ।

8. इनकम टैक्स ब्रिटिश सरकार के कानून के अनुसार वसूल किया जाए।

9. किसी के नि:संतान मरने पर उसकी संपत्ति उसके रिश्तेदारों को मिल जाए।

10. लगान साल में दो बार इकट्ठा किया जाए। फसलों के खराब होने पर माफी दी जाए।

11. राज्य के कर्ज को चुकाने के लिए प्रजा पर भार न डाला जाए। इसके लिए राज्य स्वयं अपने खर्च कम करें।

लोग साधारण तरीके से इकट्ठे होते थे और गांव-गांव में पंचायतें बना रहे थे कि नवाब लोहारू ने इस आंदोलन को हिंदू-मुस्लिम सवाल बनाकर आसपास के मुसलमानों को लोहारू कस्बे में इकट्ठा कर लिया। उधर भारत सरकार से गोरखों की फ़ौज बुला ली।

तारीख 4 अगस्त 1935 को चहड़ कला में तंबू डेरे पहुंच गए। तारीख 5 अगस्त 1935 को गोरखों की पलटन भी पहुंच गई। गांव का घेरा डाल दिया गया। तारीख 6 अगस्त 1935 को नवाब पहुंचा और उसके बाद ही एजीजी (पंजाब) की कार आई।


[पृ.502]: नवाब ने चहड़ के नंबरदार रामनाथ जी और सदाराम जी सिंघाणी के तिरखाराम और सरदाराराम जी तथा उदमीराम जी पहाड़ी को गिरफ्तार कर लिया।

इसके बाद गांव के शेष लोगों पर लाठीचार्ज का हुक्म दे दिया। पुलिस ने बड़ी बेरहमी के साथ लाठीचार्ज किया और सैकड़ों आदमी जमीन पर बिछा दिए। इसके बाद गांव की लूट की गई। सामान मोटरों पर लादकर लोहारू को भेजा जाने लगा! चौधरी सहीराम और अर्जुन सिंह के मकानों में पुलिस ने घुसकर नादिरशाही ढंग से लूट की। स्त्रियों को भी बेइज्जत किया। फर्श खोद डाले गए। छत्ते तोड़ दी गई। सवेरे के 9 बजे से लेकर शाम के 6 बजे तक यह लूटपाट जारी रही। उसके बाद पचासों आदमियों को गिरफ्तार किया गया।

उसके बाद तारीख 7 अगस्त 1935 को सिंघाणी पर नवाब ने हमला कराया। यहां फायर किया गया जिसे सैंकड़ों आदमी घायल हुए और पचासों मरणासन्न हो गए। गोली चलने का दृश्य बड़ा मार्मिक था। घायल पड़े-पड़े कराह रहे थे। वे पानी के लिए मुंह फाड़ रहे थे और बच्चे हाय-हाय करके रो रहे थे। स्त्रियां पागलों की भांति लाशों के ढेरों में अपने पतियों और बच्चों को ढूंढती फिरती थी। घायल लोग भिवानी के अस्पताल में पहुंचाए गए और जिनमें से कई की मृत्यु हो गई। घायलों में कई स्त्रियाँ भी थी।

इस गोली कांड से सारे देश में तहलका मच गया। भाई परमानंद ने पंजाब के एजीजी को निष्पक्ष जांच के लिए एक पत्र लिखा। चौधरी लालचंद जी ने कहा जाट का जीवन ही इतना सस्ता है कि उस पर चाहे जब गोली चलाओ। पंडित नेकीराम शर्मा, ठाकुरदत्त भार्गव आदि ने भी वक्तव्य दिये।


[पृ 503]: चौधरी सर छोटूराम खुद लोहारू गए और हालात को देखा।

चहड़ और सिंहानी कांडों के बाद भी दमन का जोर रहा। नवाब और एजीजी पंजाब ने इसी हत्याकांड का औचित्य यह वक्तव्य देखकर करना चाहा कि जाट मुकाबले की सरकार बनाना चाहते थे। इन वक्तव्य का विरोध सेठ जमनालाल जैसे बड़े लीडरों ने भी किया।

इन कांडों के बाद पुलिस गांव में घूमकर काफी दिनों तक लोगों को डराती रही। सूबेदार दिलसुखराम जी के इनामी वारंट जारी कर दिए गए और चौधरी मनसा राम, चौधरी अर्जुनराम जी चहड़ वालों को गिरफ्तार किया गया। चहड़ खुर्द के पटवारी सुखराम को भी गिरफ्तार किया गया।

चौधरी समरथराम, सुंदरराम और रामलाल चौधरी के मकानों के ताले तोड़कर पीछे से लूट की गई।

जेलों में जो लोग डाले गए उनको बहुत तंग किया। चहड़ के चौधरी रामनाथ जी के तीन बार बेंतें लगाई गई। कुल गिरफ्तारियां 100 के करीब हुई थी जिन पर भारी-भारी जुर्माने किए गए और कुछ को लंबी सजाएं दी गई।

लोहारु के शहीद

[पृ 503]: सिंहाणी गोलीकांड में जिन लोगों ने गोली खाकर बलि दी थी उनकी नामावली ‘गणेश’ अखबार के 6 सितंबर सन 1935 के अंक में इस प्रकार प्रकाशित हुई थी।

शहीद-1. लालजी वल्द कमला अग्रवाल वैश्य, 2. श्योबक्स हैंड वल्द धर्मा अग्रवाल वैश्य, 3. दुलाराम वल्द पातीराम जाट, 4. रामनाथ वल्द बस्तीराम जाट, 5. पीरु वल्द जीरान जाट, 6. भोला वल्द बहादुर जाट, 7. शिवचंद वल्द रामलाल जाट,


[पृ 504]: 8. बानी वल्द मामचंद जाट, 9. अमीलाल वर्ल्ड सरदार जाट, 10. गुटीराम वल्द मोहरा जाट, 11. शिवचंद वल्द खूबी धानक सिंघानी के, 12. पूरन वल्द चेता जाट, 13. हीरा वल्द नानगा जाट, 14. कमला वल्द गोमा जाट जगनाऊ के, 15. धनिया जाट, 16. रामस्वरुप जाट का लड़का गोठरा के, 17. अमी लाल पीपली माम्चन्द वल्द गोधा खाती सिंघानी, 18. सुंदरी वल्द झंडू जाट सिंघानी, 19. माला वल्द झादू सिंघानी

पचासों घायल आदमी भिवानी और हिसार के अस्पतालों में दाखिल किए गए। वह एक भयंकर समय था जब लोहारू के सैंकड़ों प्रजाजन भूख-प्यास से त्रस्त भीवानी और हिसार की सड़कों पर भटकते फिरते थे।

लोहारु की वास्तविक की स्थिति की जांच को ठाकुर देशराज जी ने पंडित ताड़केश्वर जी संपादक ‘गणेश’ और सरदार हरलाल सिंह जी को भेजा। उन्होंने भिवानी के अस्पताल में जाकर जो रिपोर्ट भेजी वह 20 सितंबर सन 1935 के गणेश में प्रकाशित हुई थी उसी के कुछ अंश यहां पर देते हैं।

यह लोग 7 सितंबर 1935 को भिवानी अस्पताल में पहुंचे। वहां पर उन्हें मालूम हुआ था, यहां 17 आदमी घायल अवस्था में दाखिल हुए थे। जिनमें से 3 आते ही मर गए। 11 वापस चले गए। शेष तीन में दो की हालत चिंताजनक थी। नोपाराम पुत्र उदमी राम जाट उम्र 24 साल की उस समय मरहम-पट्टी हो रही थी। इसके दाहिने पैर के घुटने में गोली लगी थी। नैना वल्द सोहन जाट को भी गोली लगी थी। धनीराम पुत्र भजना ब्राह्मण को कुछ होश था उसने बताया 28 आदमियों ने 6 अफसरों की कमान में डेढ़ सौ कदम के


[पृ.505]: फासले से गोली चलाई थी। मरने वालों में एक स्त्री भी थी।

यहां इन्हें यह भी मालूम हुआ कि सात घायल हिसार ले जाए गए थे। हिसार के घायलों में से एक स्त्री घायल की मौत हो गई।

मृतक लाशें ऊंटों पर लाई गई थी और घायल गाड़ियों तथा मोटरों में।

कुस लोगों ने काफी दिनों तक राणा प्रताप की तरह जीवन बिताया। झाड़ियों में रहकर रात और दिन काटे। भारत सरकार की ओर निगाह लगाई किंतु कहीं से उनकी सुनवाई नहीं हुई।

लुहारु किसान आंदोलन के बाद आर्यसमाज का प्रचार

किसान आंदोलन समाप्त हो गया उसके बाद स्वामी स्वतंत्रतानंद जी के कर्मठ शिष्य स्वामी कर्मानंद जी के नेतृत्व में यहां आर्य समाज का प्रचार हुआ।

आरंभ में यहां जो आर्यसमाज स्थापित हुआ उसमें सिर्फ म. गंगानंदजी सत्यार्थी, ठाकुर भगवतसिंह जी, श्री किशोरी लाल जी, म. मनीराम जी, चौधरी गंगासहाय जी, चौधरी हुक्मीराम जी, चौधरी रणसिंह जी, ठाकुर रतन सिंह जी और म. नाथूराम जी थे। 29-30 मार्च सन 1941 को आर्य समाज का प्रथम उत्सव जिसमें नवाब के आदमियों ने जुलूस पर लाठियां बरसाई उसमें स्वामी स्वतंत्रतानंद जी भी जख्मी हुए थे।

स्वामी कर्मानंद जी ने कई पाठशालाये लुहरु राज्य में खोली उनमें हरियाबास, विलासबास, दमकोरा, सेहर, चहड़ खुर्द, गोकुलपुरा, बारबास की पाठशालाएं अपने-साथ त्याग और शौर्य का इतिहास रखती हैं। इन पाठशालाओं की स्थापना से जिन जिन सज्जनों पर विपत्तियां आई उनके


[पृ.506]:

संक्षिप्त विवरण इस प्रकार हैं-

1. चौधरी गंगासहायजी - आपको सन् 1942 में गिरफ्तार करके कारावास में दे दिया गया। उन्हें माफी मांगने पर बाध्य किया गया किंतु वे अटल रहे।

2. नंबरदार सुखराम - आप पर लोहारू राज्य के अधिकारियों ने आपके गांव हरियावास की पाठशाला को मदद नहीं देने के लिए बहुत दबाव डाले किंतु आप मजबूत रहे।

3. नंबरदार कुरडाराम - आपने अपने गांव विसलबास में पाठशाला कायम कराई और लोहारू के तहसीलदार की धमकियों की परवाह नहीं की।

4. चौधरी रतिरामजी - आपके पिता श्री श्यालूराम जी की नंबरदारी इसलिए तोड़ दी गई कि उन्होंने अपने गांव दमकोरा की पाठशाला को चलाने में सहयोग दिया। इसी गांव के चौधरी शेरसिंह जी, चौधरी तिरखाराम जी और चौधरी लेखराम जी के नाम भी उल्लेखनीय हैं।

5. चौधरी रूपारामजी - अपने गांव सेहर में पाठशाला कायम कराई और लोहारू के नवाब के दबाव से निर्भीक रहकर आप ने काम किया।


[पृ.507]:

6. चौधरी भूपालसिंह जी - आपने अपने गांव छोटी चहड़ में पाठशाला को तन और मन से सहायता की और हिम्मत के साथ उसके कामों में मदद की।

7. चौधरी रामनाथ जी - बारवास ने लाख डराने-धमकाने पर अपने गांव की पाठशाला की मदद की।

लोहारू में भजनोपदेशकों ने भी काफी जागृति फैलाई। उनमें

8.म. रामरिछपाल जी चांदावास,

9. महाशय शीशराम जी पचगामा आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।

सन् 1948 के मध्य में लोहारू राज्य खत्म हो गया और उसे हिसार जिले में मिला दिया गया।

चौधरी उदमीराम देवास

[पृ.507]: पिता चौधरी रामदत्त, गोत्र लांबा, गांव देवास जिला हिसार। आप एक बहुत बड़े मालदार जमीदार हैं। आपने शेखावाटी-लोहारू आंदोलन में खूब मदद की। पक्के आर्यसमाजी हैं। रूढ़ियो में खर्च नहीं करते हैं। जिला बोर्ड के मेंबर रहे हैं। इनकम टैक्स अदा न करने पर जेल भी गए। आपके दादा के कारज में 60 मन घी की खपत हुई थी लेकिन जब सुधार पर आए तो दाल-रोटी और खिचड़ी से अपनी लड़की की शादी कर दी। इसमें सिर्फ ₹50 खर्च किए और लड़के रामस्वरूप की शादी में घर से आटा बांधकर ले गए। इस बरात में ठाकुरदास भार्गव, लाला हरदेव सहाय, पंडित नेकीराम आदि प्रतिष्ठित लोग शामिल थे। उम्र 60 के आसपास। भाई 3 भागमल धन्नाराम। संतान 3 लड़के दलेल मर गया। दरियाव सिंह


[पृ.508]: रामस्वरूप। लोहारू में जाना बंद है। 30-40 हजार का उधार जो बनियों और जाटों पर था मारा गया। आपके 2 साल पहले आषाढ़ में डाका पढ़ा जिसमें 40 -50 हजार का माल चला गया।

संत ज्वालादास

[पृ.508]: रेवाड़ी भटिंडा लाइन पर कालांवाली नाम का एक स्टेशन है जिला हिसार की भूमि पर है। कालांवाली का सिख जाटों का गांव है। यहीं पर उदासी संप्रदाय का एक डेरा है। संत ज्वालादास जी इसी डेरे के उत्तराधिकारी हैं। पंजाब में डेरा मंदिर और आश्रम को बोलते हैं। उदासीन संप्रदाय गुरु नानकदेव जी के जेष्ठ पुत्र बाबा श्रीचंद जी का चलाया हुआ है। संत ज्वालादास जी ने ऊंची शिक्षा पाई है। वे बीए हैं। आपने अपनी जवानी में आरंभिक भाग में जाट स्कूल संगरिया की बतौर प्रधान अध्यापक के सेवा की है। मालवा जाट सभा के भी आप मुख्य कार्यकर्ता रहे हैं। सरदार नारायण सिंह जी के आप प्रमुख साथियों में हैं। कुछ दिन आपने मंडी कालांवाली में आढ़त की दुकान खोलकर व्यापार के क्षेत्र में भी पैर बढ़ाया। जिस स्थिति में भी रहे आप अपने स्वभाव के अनुकूल कौम का ख्याल रखते रहे हैं।

संत अमरदास ‘दरदी’ भी उदासीन साधू हैं और पक्के जाट हैं। उनका कुछ सीखो के साथ जाटपन का प्रचार करने के कारण एक बार एक झगड़ा भी हुआ जिसमें चोट भी आई।

अजीतसिंह जी ‘कृति’ बठिंडा में रहते हैं। आपको पंजाबी में कविता करने का बड़ा शौक है। हिम्मत के आप


[पृ.509] धनी है। सरदार नारायण सिंह जी के आप तीनों के साथी हैं।

सरदार नारायण सिंह

Narayan Singh Bhati, Mandi Dabwali, Hisar

[पृ.509]: भाटी कुल की पोहड़ नख में उत्पन्न हुए हैं। अब इनकी आयु लगभग 50 वर्ष की है। उनके पूर्वज जैसलमेर राज्य से आए थे और पंजाब प्रांत में आकर जाट संघ में मिल गए। इनके शेरसिंह, समलसिंह और मालू सिंह नामी 3 पुत्र हुए। इन्होंने दो गांव बसाये। एक पंजाब प्रांत के जिला हिसार में सरदार शेरसिंह के नाम पर शेरगढ़ और दूसरा जिला फिरोजपुर में किलियां वाली जो एक दूसरे से 2 कोस के अंतर पर स्थित हैं और सरदार भगतसिंह जी के प्रपोत्रों की संपत्ति है। इनके उत्तर में पटियाला राज्य और दक्षिण में बीकानेर राज्य की सीमाएं लगती हैं। सरदार नारायण सिंह जी की संक्षिप्त वंशावली निम्नलिखित है:

सरदार भगतसिंह जी के 3 पुत्र 1. शेरसिंह, 2. सालमसिंह, 3. मालूसिंह

शेरसिंह के दो पुत्र 1. राऊसिंह और 2. भाऊसिंह।

भाऊसिंह के नारायणसिंह और गजेंद्रसिंह।

नारायणसिंह जी के भोजदत्त सिंह।

सरदार सालमसिंह के पुत्र 1. टेकसिंह, 2. डी आर उद्योग पाल, 3. वजीरसिंह, 4. केहरसिंह 5. भूदेव सिंह।

सरदार मालूसिंह के पांच पुत्र 1. जीता, 2. गोधा, 3. दाना, 4. माना, और 5. सेमां

अब आगे इनके बस के लगभग 100 आदमी हो गए हैं। जो इन्हीं दो गांव में बसते हैं। परंतु इनमें से विशेष उल्लेखनीय तीन ही पुरुष हैं जो जाट जाति की सेवा में प्रत्येक समय तैयार रहते हैं। इनमें से भी सरदार नारायण सिंह जी भाटी विशेष करके अपने जाति हित पर तुले हुए हैं। इनकी


[पृ.510]: अवस्था केवल 19 या 20 वर्ष की थी जब इनको अपने जाट जाति की सेवा की धुन लग गई थी। प्रथम इन्होंने गीता के प्रथम अध्याय का पंजाबी छंदों में उल्था करके बिना मूल्य वितरण किया। फिर पंजाब के जाटों में प्रचार करने के लिए पंजाबी भाषा में अपने ही खर्च से एक मासिक पत्र संपादन करना आरंभ किया जिसका नाम जाट सुधार है। जो अन्य जातियों के घोर विरोध के कारण आर्थिक हानि सहन कर बंद करना पड़ा क्योंकि उस समय इस और के जाट भी अपने आप को जाट न कहलाकर सिख कहलाना पसंद करते थे।

फिर इन्होंने पंजाबी भाषा में कविता लिख लिख कर और छपवाकर बिना मूल्य के ही लोगों में वितरण करने के द्वारा प्रचार आरंभ कर दिया जो अब तक लगातार कर रहे हैं।

यह पंजाबी भाषा के अच्छे कवि हैं और इधर कवि मंडली में बड़ा मान रखते हैं। कवि महा मंडल के प्रधान के पद पर नियुक्त हैं। इसके पश्चात उन्होंने एक कवि सम्मेलन किया जिसमें बड़े बड़े कवि और दूसरे लोग भी बुलाए गए। इस का सब व्यय स्वयं सहन किया। इससे लोगों में बड़ा प्रचार हुआ। इस सम्मेलन की समस्या ‘जटछत्रीवर्णदे’ पंजाबी भाषा में रखी। इसके पश्चात लोगों में जागृति आ गई और समझने लगे कि सिख और बात है जाट और। फलस्वरुप एक सभा बनाई गई जिसका नाम ‘जाट क्षत्री मालवा सभा’ रखा गया। इसके प्रधान सरदार नारायण सिंह भाटी बनाए गए। इस सभा के कार्यकर्ता सरदार नारायण सिंह भाटी, संत ज्वालादास B.A. “हंस”, सरदार अजीतसिंह “कृती”संत अमरदास "दरदी" आदि है और टिरेकटादि छपवा कर और बिनामूल्य लोगों में बांट कर सभा का बडा भारी प्रचार कर रहे हैं।


[पृ.511]: इस सभा के लगभग 2000 मेंबर बन चुके हैं जो इसके कार्य में बड़ी दिलचस्पी लेते हैं। सरदार नारायण सिंह जी के पुरुषार्थ से इधर की जाट जाति सुसंगठित हो रही है। इन्होंने जाट जाति की दृष्टि व्यापारिक कार्य की ओर आकर्षित करने के लिए मंडी डबवाली में एक दुकान खुलवा रखी है। जिसके ऊपर अपने जातीय चिन्ह हल और तलवार वाला झंडा लगाया हुआ है। यह जाट स्कूल संगरिया राज्य बीकानेर की भी यथोचित सहायता करते रहते हैं। इनके पास अच्छी भूमि है जिसकी आए थे जाट जाति की सेवा करना ही अपना मुख्य कर्तव्य समझा हुआ है।

सरदार नारायण सिंह ने अपने प्रयत्न से एक पुस्तकालय मंडी डबवाली में खुलवा रखा है जिसकी कमेटी के यह प्रधान पद पर हैं और बड़े प्रयत्न से इसका काम चला रहे हैं।

इनके दूसरे भाई पंडित डीआर उद्योगपाल वर्मा है जो अब गैस के धंधे छोडकर सन्यासी हो गए हैं। इनका नाम अब स्वामी रुद्रानंद जी है। यह संस्कृत भाषा के बड़े पंडित हैं और पंजाब यूनिवर्सिटी की शास्त्री परीक्षा उत्तीर्ण हैं। आर्य समाज के प्रसिद्ध मुनाजिर हैं। इन्होंने जाट हाई स्कूल रोहतक के खोलने में बड़ी सहायता की थी और फिर जाट स्कूल संगरिया राज्य बीकानेर कई भद्र पुरुषों की सहायता से स्थापित किया जो भली प्रकार चल रहा है।

तीसरे इनके भाई सरदार भूदेवसिंह जी हैं। यह इंग्लैंड की प्रसिद्ध यूनिवर्सिटी कैंब्रिज की सीनियर परीक्षा पास हैं और 8 भाषाएं जानते हैं। यह जाट स्कूल संगरिया के अवैतनिक मास्टर रहे हैं और कॉपरेटिव सोसायटी के ऑनरेरी सब इंस्पेक्टर भी रह चुके हैं।


[पृ.512]: आपकी जाट महासभा के क्षेत्र में काफी मान है। आपने सदा चौधरी सर छोटूराम के कार्यों में मदद दी। बड़े उत्साह और दृढ़ निश्चय पुरुष है।


लोहारु का अध्याय समाप्त

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