Jat Prachin Shasak/Parishisht-4

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जाट प्राचीन शासक (1982)
लेखक - बी. एस. दहिया (आइ आर एस, रिटायर्ड)

विकिफाईअर : चौ. रेयांश सिंह


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परिशिष्ट-4

केल्विन केफ़र्ट (Calvin Kephert) अपनी विख्यात कृति "Races of Man-Kind" में जातीय मूलों एवं उनके पूर्वजनों को लेकर कुछ रूचिकर तथ्यों का उल्लेख करता है। उस की इस कृति से हम इस पुस्तक में प्रस्तुत विचारों से सम्बन्धित कुछ एक संदर्भ अंशों को यहां उद्धृत कर रहे हैं।
केफ़र्ट आर्य उपजाति का, जिसे वह नोर्डिक (Nordic) (उत्तरी क्षेत्र के) कहता है, के विषय में इस प्रकार उल्लेख करता है :— ई. पू. 7700 तक ये लोग तिएन (The Tien) पर्वत श्रृंखला पार कर चुके थे और उस उत्तरीय देश में आवासित हो चुके थे जिसे बाद में चल कर गटे/जटे (Gete) के रूप में जाना गया। यह क्षेत्र हज़ारों वर्ष तक उनका निवास स्थान रहा। यह क्षेत्र काशगर के पार पश्चिमी तुर्किस्तान के पहाड़ी क्षेत्रों, तीएन पर्वत श्रृंखला से लेकर बालकश झील तक... वहां से लेकर वर्तमान सात नदियों के बीच के क्षेत्र (जिसे Semiryechie के रूप में भी जाना जाता है) पर आधारित था। इस में जक्षारत नदी, इशिककुल झील तथा चू एवं इलि नदियों के बीच की घाटी का क्षेत्र भी शामिल था। इस तरह ये गटे (Gete) लोग आर्य जाति की महान्‌ नोर्डिक शाखा के पूर्वज बन गए। (पृ. 228-229)
यह कितना रोचक संयोग है कि सात नदियों का वर्तमान क्षेत्र, जिसे केफ़र्ट ने गटे (Gete) नाम दिया है, को संस्कृत में सप्त सिंधु तथा पूर्ववर्ती काल के मुसलमान लेखकों द्वारा हफतहिंदू का नाम दिया गया है। एन.जी. सरदेसाई इसी क्षेत्र को ऋग्वेद में वर्णित सप्त सिंधु क्षेत्र के समान देखते हैं। इस क्षेत्र में सात नदियां शामिल हैं, जो सभी बालकश सागर अथवा झील में जा गिरती हैं। इस तरह यह क्षेत्र ऋग्वेद की उस कसौटी पर भी पूरा उतरता है, जिस में यह कहा गया है कि सप्त सिंधु देश की सात नदियां एक-एक कर के सागर में जा मिलती हैं।
केफ़र्ट अपना कथन इस प्रकार जारी रखता है, "....4300 ई. पू. के पश्चात्‌ ये जटी देश के नोर्डिक लोग उत्तर की ओर बढ़ते हुए पूर्व तथा पश्चिम के पठारों तक जा पहुंचे और ये लोग किरघिज़ के घास के मैदानों से होकर उरल पर्वत तथा केस्पियन सागर (Caspian Sea) तक फैल गए। अन्ततः ये लोग पांच राष्ट्रों में बंट गए। इन में से शिवि (Suebi), किम्मरी (Kimmerii) तथा जटी/गटी (Gete) ने अपने क्षेत्रीय नाम सुरक्षित रखे, शेष दो मस्सा जटी और शक थे।" (पृ. 232) केफ़र्ट आगे फिर लिखता है कि शिवि 2300 ई.पू. किम्मरी 1700 ई.पू. तथा जटी 1000 ई. पू. वहां से चले गए। मस्साजटी तथा शक (Sakae) तब तक अपने उन क्षेत्रों में रहे जब तक वे कुशानों, तोखरियोंश्वेत हूणों के रूप में नहीं फैले। यहां इस बात का ध्यान रहे कि हम इससे पहले शिवियों


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की समानता जाटों के वर्तमान एक कुल शिविया से सिद्ध कर चुके हैं। इसी तरह किम्मरी, असीरिया के पुरातत्व दसताबेज़ो में वर्णित गिमरी, बाइबल में गोमर के रूप में उल्लेखित, की समानता जाटों के गोमर अथवा घूमन कुल के साथ स्थापित कर चुके हैं। जटी तो निस्संदेह जाटों के लिए प्रयुक्त एक आम नाम है और मस्सा जटी अर्थात्‌ महान्‌ जाट, हेरोडोटस जिन्हें शाही सिथ लोगों का नाम देता है, इन्हीं जाट लोगों की एक शाखा। कुषाण, शक, तोखरी तथा श्वेत हूणों की समानता पहले ही इन्हीं नामों के जाट कुलों के साथ सिद्ध की जा चुकी है।
आगे चलकर केफ़र्ट फिर लिखता है, "गोथ लोगों को यूनानी उन के मूल जटी के रूप में जानते थे किन्तु कई बार इनका सिथियों के रूप में भी उल्लेख कर देते थे। इस रूप को एक भौगोलिक शब्द के रूप में प्रयुक्त किया जाता था...। (पृ. 263, नोट 43)" जातीय अर्थ में सिथ कोई जाति नहीं थी (पृ. 261) केफ़र्ट हेरोडोटस (VI, 5-7) के हवाले से यह भी कहता है कि सिथियों का पूर्वज तरगितौ था। जिस का काल दारा महान्‌ के आक्रमण से लगभग 1000 वर्ष पूर्व अथवा ई. पू. 1600 वर्ष था (पृ. 251) तुरगितौ ऋग्वेद में भी मिलता है। मीडों का उल्लेख करते हुए केफ़र्ट लिखता है कि मीड़ लोग किम्मरियों का एक भाग थे तथा "उन्हें इतिहास के प्रारम्भिक चरण में मण्ड कहा जाता था।" (पृ. 209) इनकी प्राचीनता के विषय में केफ़र्ट गोथिक इतिहास के एक प्रसंग का उल्लेख करता है, जिस के अनुसार जटी लोगों के राजा तनौसी (Tanausis) (लगभग 1323/1209 ई. पू. काल) ने मिश्रवासियों को पराजित करने के बाद पश्चिम एशिया के अधिकांश भाग पर विजय प्राप्त की तथा "उसने इस विजित क्षेत्र को अपने परममित्र तथा मीड़ों के राजा सोरनू के अधीनस्थ एक राज्य बना दिया। (पृ. 275)" इससे यह पता चलता है कि मण्ड लोग इस क्षेत्र में इस समय से क़ाफ़ी समय पूर्व तथा 709 ई. पू. में जब राजा देवक (Deiokes) के नेतृत्व में वे गठित हुए, उससे बहुत समय पहले वहां बस चुके थे। "हेरोडोटस के रचना काल से पूर्व मीड लोग अरी (Arii) लोगो के रूप में भी जाने जाते थे। (Book VII, 26) और परवर्ती काल में यही नाम उत्तर मध्य ईरान में मस्सा जटी लोगों के एक कबीले द्वारा अपने लिए प्रयुक्त किया जाता था। स्ट्राबो के अनुसार पुराने यूनानियों ने असीरियाभारत के बीच फैले हुए समूचे ईरानी क्षेत्र को आर्याना नाम दे रखा था। (पृ. 278)."
"हम जानते हैं कि (...529 ई.पू.) में ईरान का सम्राट् खूश महान्‌ (Cyrus) दहियों के विरुद्ध एक विनाशकारी युद्ध में किस प्रकार मारा गया। यह दहिया, मस्सा जटी लोगों का ही एक भाग थे, यह भयानक युद्ध दहियों ने अपनी रानी तोमरिस (वास्तविक नाम सपरतरा) के नेतृत्व में दक्षिण पश्चिम तुर्किस्तान में लड़ा था तथा फिर कैसे 512 ई. पू. के उत्तराधिकारी दारा महान्‌ ने बदला लेने के लिए (हिरोडोटस IV, I) सिथिया में जटी लोगों का राजा उस समय इदानर्थिस (Idanthyrus) था, के विरुद्ध कृष्ण


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सागर के पश्चिम भाग में विशेष जानकारी के लिए अन्वेषण दल भेजा था।" (पृ. 463)
"उत्तर में, केस्पियन सागर के तनिक पूर्व की ओर, दहिया लोग रहते थे, जो मस्सा जटी से अलग टूट कर (विभाजित होकर) वहां बसे थे। दहियों का एक कबीला कशपी जिस का ज़िकर हेरोडोटस, प्लिनी तथा स्ट्राबो आदि सब ने किया है, अज़र बैजान (Transcaucasia) के क्षेत्र में आ बसा था तथा उसी कशपी कुल ने केसपियन सागर को यह नाम प्रदान किया था।" (पृ. 279)
"स्ट्राबो के काल से पूर्व मस्सा जटी कई छोटे-छोटे कबीलों जैसे दहिए, कोरशमी इत्यादि में बंट चुके थे (Strabo Geography XI, 8, 1-8) केस्पियन सागर के आसपास बसने वाले दहिए, जिन्होंने पार्थिया पर आक्रमण किया था, मीडों के साथ मिल गए तथा उन्होंने उत्तरी ईरान में पार्थिया राष्ट्र का निर्माण किया (पृ. 269)" उनकी भाषा का नाम पेहलवी था तथा "पेहलवी जो पार्थिया के नोर्डिक लोगों की एक बोली थी, ईरानी लोगों की समझ से बाहर थी।" (पृ. 348)
यह भी एक सर्व विख्यात तथ्य है कि जाटों के कई वर्गों ने दारा महान्‌ का साथ दिया था। इन लोगों को "इयूरजटी" कहा गया अर्थात्‌ लाभकारी जाट। हम इस बात का उल्लेख इससे पूर्व कर चुके हैं कि उन्हें लाभकारी जाट इस लिए कहा गया था, क्योंकि वे दारा की योजना जो जाटों के हितों के सर्वथा विपरीत थी, के लिए लाभकारी सिद्ध हो रहे थे। केफ़र्ट इयूरजटी (Euergetae) का अनुवाद जाट विरोधी अर्थ में लेता है, वह इस सम्बन्ध में उन कविओं का उल्लेख भी करता है, जिन्होंने मस्सा जटी जाटों के विरूद्ध सिकन्दर का साथ दिया था। इन इयूरजटी जाटों का उल्लेख अरियन (111, 27, 4), डियोडोर्स (XVII, 81) तथा कर्टियस (VII, 3, 17) ने भी किया है।
इयूरजटी के अर्थ में यह परिवर्तन विशेष महत्व रखता है। पहले वे "लाभकारी जाट" कहे गए किन्तु सिकन्दर का समय आते-आते वह "जाट विरोधी" हो गए। इससे दो बातें स्पष्ट होती हैं, एक यह कि इन लोगों को पुनः कभी स्वजन या मित्रों के रूप में नहीं लिया गया, यहां तक कि इन्हें जाट भी नहीं समझा गया, दूसरी बात यह कि सिकन्दर महान्‌ के मध्य एशिया में जो प्रतिद्वंद्वी थे, वे जाट थे तथा जो उसके सहायक थे वे जाट विरोधी लोग थे। अफतल लोग जिन्हें श्वेत हूण कहा गया, का उल्लेख करते हुए केफ़र्ट लिखता है, "श्वेत हूण उन्हें उनके शत्रुओं द्वारा कहा गया। चीनियों के अनुसार ये लोग वास्तव में यू.ची अथवा जटी (Gete) लोगों का भाग थे।" (पृ. 525) (quoting Encyclopaedia Britannica XIIIth Edn. Vol. IX, p. 679-80 & Vol. XX, p. 422.)


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का उल्लेख करते हुये। और अन्ततः इन लोगों के बारे में {की गईं} कुछ टिप्पणियां :-
यूनानी लेखक अस्काईलस (Aeschylus) कहता है कि "शक लोग अपने श्रेष्ठ नियमों के लिए विख्यात थे तथा वे विशेष रूप से न्यायपरायण लोग थे।" ({केफ़र्ट,} पृ. 263)
स्ट्राबो इस के बारे में लिखता है कि जटी लोग शेष सभी लोगों में से सर्वाधिक न्यायपूर्ण, कुलीन, सम्भ्रांत तथा निष्कपट लोग थे। (Geography VIII, 3, 5-9 quoted {in केफ़र्ट,} पृ. 487)
जटी जाटों {Getae} के बारे में हेरोडोटस की टिप्पणियों का उचित स्थानों पर पहले ही उल्लेख हो चुका हैं, अतः उन्हें यहां दोहराए जाने की आवश्यकता नहीं है।


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