Khokrakot

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Khokhrakot

Khokrakot (खोकराकोट) is an ancient historical site on the outskirts of Rohtak city in Haryana, India.

Variants

Location

It is ocated in the heart of the Rohtak City.

Jat clans

History

Khokhrakot is believed to be the capital of Khokhar Jats in 3rd and 4th century BC. The city is in the shape of ruins now and only heaps of clay are visible. According to archaeologists, an old city is hidden below these heaps. At a few points, archaeological diggings were done in the past and some important discoveries were made.

Clay mounds of coins discovered at Khokhrakot have thrown important light on the process of casting coins in ancient India. The coin moulds of the later Yaudheyas of the 3-4 century A.D. have been discovered in large number here of the same and subsequent dates are several clay sealings. A Gupta era terracotta plague and a head of later date have also been discovered. The town continued to flourish till the 10th century A.D. as coins of Samanta Deva, the Hindus King of Kabul have been found here.

Recent Studies

History and description -: The ancient mound, locally known as Khokhrakot, is identified with the historical town of Rohitika-Rohtak, the present name is derived from its ancient identity. It finds mention in the great epic Mahabharata and the Painted Grey Ware, a class of pottery associated with epic age, was found in the archaeological excavations, is the testimony of its antiquity. This site was the capital of Yaudheya Republic. Sculptures, coins, terracotta figurines and other smaller objects ranging from 8th century BC to 11th century AD have been found here. As tradition goes, this town was re-established by a famous ruler. This site was jointly excavated by Prof Manmohan Kumar of Maharshi Dayanand University, Rohtak and Shri J.S.Khatri of the Department of Archaeology & Museums, Government of Haryana.[1]

रोहतक = रोहितक = रोहीतक (हरयाणा)

विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है ..... रोहतक = रोहितक = रोहीतक, हरयाणा, (AS, p.805): दक्षिण पंजाब का यह अति प्राचीन नगर है। इसका उल्लेख महाभारत सभापर्व 32,4-5 में इस प्रकार है (प्रसंग नकुल की पश्चिम दिशा की दिग्विजय का है) - 'ततो बहुधनं रम्यं गवाढ्यं धनधान्यवत्, कार्तिकेयस्य दयितं रोहितकमुपाद्रवत्, तत्र युद्धं महच्चासीच्छूरैर्मत्तरमूरकैः'

इस प्रदेश को यहाँ बहुत उपजाऊ बताया गया है तथा इसमें मत्तमयूरकों का निवास बताया गया है, जिनके इष्टदेव स्वामी कार्तिकेय थे। (मयूर, कार्तिकेय का वाहन माना जाता है।) इसी प्रसंग में इसके पश्चात् ही शैरीषक (वर्तमान सिरसा) का उल्लेख है। उद्योग पर्व 19,30 में भी रोहितक को कुरुदेश के सन्निकट बताया गया है-दुर्योधन के सहायतार्थ जो सेनाएँ आई थीं, वे रोहतक के पास भी ठहरी थीं- 'तथा रोहिताकारण्यं मरुभूमिश्च केवला, अहिच्छत्रं कालकूटं गंगाकूलं चं भारत'

रोहतक के पास उस समय वन प्रदेश रहा होगा, जिसे यहाँ रोहिताकारण्य कहा गया है। कर्ण ने भी रोहितक निवासियों को जीता था, 'भद्रान् रोहितकांश्चैव आग्रेयान् मालवानपि,'। वनपर्व 254,20 प्राचीन नगर की स्थिति वर्तमान खोखराकोट के पास कही जाती है।

बहुधान्यक

विजयेन्द्र कुमार माथुर[3] ने लेख किया है .....बहुधान्यक (AS, p.615) नामक स्थान का वर्णन महाभारत, सभापर्व 32, 4 में हुआ है। इस वर्णन में इस स्थान उल्लेख 'रोहीतक' (वर्तमान रोहतक) के साथ है। श्री वासुदेवशरण अग्रवाल के अनुसार प्राचीन काल में बहुधान्यक पर यौधेयगण का राज्य था। इनके सिक्के रोहतक के निकट के खोकराकोट नामक स्थान पर मिले हैं। कुछ विद्वानों ने अपने मत में बहुधान्यक को वर्तमान लुधियाना (पंजाब) माना है। यह भी संभव है कि लुधियाना बहुधान्यक का ही अप्रभंश हो।

खोखराकोट में अतिक्रमण

रोहतक का ऐतिहासिक किला खोखरा कोट। अवैध भवनों के नीचे दम तोड़ रहा खोखराकोट का इतिहास: नगर के मध्य बसे खोखरा कोट का इतिहास शताब्दियों पुराना है। खुदाई के दौरान यहां से 350 ई. पूर्व के प्राचीन अवशेष भी प्राप्त हुए हैं। इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को देखते हुए पुरातत्व विभाग ने इसे अपने अधीन तो ले लिया है, लेकिन पिछले काफी समय से अनदेखी के चलते यह ऐतिहासिक धरोहर लुप्त होने की कगार पर पहुंच गई है। सैकड़ों एकड़ भूमि पर लोगों द्वारा अवैध कब्जे कर लेने की वजह से काफी समय से उत्खनन भी नहीं हो पाया है। इतिहासकारों का मानना है कि अगर समय रहते इसका संरक्षण नहीं किया गया तो जल्द ही यह ऐतिहासिक धरोहर लुप्त हो जाएगी।

इतिहासकार बताते हैं कि योधेयों के नगर रहे खोखरा कोट में राजप्रणाली प्रजातंत्र की होती थी। इसका अंतिम शासक खोखर गोत्र का व्यक्ति था, जिसकी वजह से इसका नाम खोखरा कोट पड़ा। कोट का अर्थ किला होता है। इस महत्वपूर्ण नगर राज्य का खंडहर में बदलना कब शुरू हुआ, इसके बारे में तो पुख्ता प्रमाण अभी तक नहीं मिले हैं, लेकिन इतना बताया जाता है कि 350 ई. पूर्व गुप्त साम्राज्य से पहले यह नगर धवस्त होना शुरू हो गया था। इसकी राजधानी एवं टकसाल नौरंगाबाद (भिवानी) में थी। खुदाई के दौरान यहां से जो सिक्के प्राप्त हुए, उनकी देश के ही नहीं, बल्कि विदेशी इतिहासकारों ने भी काफी प्रशंसा की है। यहां जो खुदाई के दौरान सिक्के मिले, उन पर मयूर का चित्र बना था। इससे प्रतीत होता है कि राज्य का प्रतीक मयूर रहा होगा। खुदाई से प्राप्त सिक्के, मूर्तियां व अन्य दूसरी वस्तुओं को आज भी गुरुकुल झज्जर के संग्रहालय में देखा जा सकता है।

वर्तमान में भी यह स्थान पुरातत्व विभाग के अधीन है, लेकिन अनदेखी के चलते इसे कब्जाधारियों ने हथिया लिया है। करीब एक हजार एकड़ में फैले इस भूखंड पर अधिकतर भाग पर अवैध निर्माण किए जा चुके हैं, लेकिन प्रशासन इस ऐतिहासिक धरोहर को बचाने के लिए खास प्रयास नहीं कर पाया है। हालांकि पुरातत्व विभाग कई बार कब्जाधारियों को जमीन खाली कराने के लिए नोटिस भी जारी कर चुका है, लेकिन इससे आगे कभी कोई कार्रवाई नहीं की गई। इतिहासकारों का कहना है कि पुरातत्व क्षेत्र में कैरियर बनाने वाले विद्यार्थियों को अपनी रिसर्च के लिए अन्य ऐतिहासिक स्थलों पर जाना पड़ता है। पिछले काफी समय से खोखरा कोट में उत्खनन का कार्य नहीं हुआ है। अगर यहां उत्खनन हो तो इससे प्राचीन अवशेष प्राप्त हो सकते हैं। साथ ही महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों को रिसर्च के लिए भी बेहतर विकल्प मिल जाएगा।

यूं हो रही है अनदेखी: खोखरा कोट मे अवैध कब्जाधारियों को जिला प्रशासन की तरफ से बनाए गए राशन कार्ड, बिजली कनेक्शन तथा वोटर कार्ड भी प्राप्त है। करीब 200 एकड़ जमीन तो ऐसी है, जहां पर निर्माण हो चुके हैं, जबकि सैकड़ों एकड़ जमीन पर अवैध निर्माण की तैयारी चल रही है। ऐसे में इतिहासकारों का आरोप है कि जिला प्रशासन ने इस ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित करने में भारी लापरवाही की है। अगर यही हाल रहा तो शहर की यह ऐतिहासिक धरोहर समय से पहले ही लुप्त हो जाएगी और आने वाली पीढि़यां इसे आंखों से देखने की बजाय केवल कागजों की जुबां से ही महसूस कर पाएंगे।

प्रशासनिक अधिकारियों के पास नहीं पर्याप्त जानकारी: खोखराकोट पुरातत्व स्थल के रखरखाव की जिम्मेदारी भारतीय पुरात्व सर्वेक्षण विभाग की है। लेकिन विभागीय अधिकारी कभी-कभार ही यहां सर्वे के लिए आते हैं। पिछले दिनों नगर निगम प्रशासन भारतीय पुरात्व सर्वेक्षेण विभाग से खोखराकोट में विकास कार्य करवाने के लिए एनओसी भी ले चुका है। इससे यह स्पष्ट होता है कि इस धरोहर को बचाने के लिए न तो जिला प्रशासन गंभीर और न पुरातत्व विभाग इसको ध्यान दे रहा है।

प्रेषक जसबीर सिंह मलिक, जाट रत्न पत्रिका

External Links

References