Naurangabad Jattan
Naurangabad Jattan (नौरंगाबाद) is a village in Charkhi Dadri tahsil and district in Haryana. It is a site of Indus Valley Civilization.
Note - Before 2017, this village was part of Bhiwani district (Charkhi Dadri district was created on 1 November 2016).
Location
It is 10 kms from Bhiwani.
Jat gotras
Site of Indus Valley Civilization
Naurangabad is a village and location of the Indus Valley Civilization archaeological site in Bhiwani district of Haryana state in India.
An archaeological site at Naurangabad Mound, 10 kms from Bhiwani is now being excavated. There is an ancient mound located in this village. Excavations by Prof. Suraj Bhan, Professor and Chairman of Kurukshetra University brought out the village as an important site belonging to Yaudheyas. Here the coins and other antiquity found has established that it was a very important administrative headquarters of the Yaudheyagana during those days with flourishing commercial activities.
Tej Ram Sharma[1] writes about One of their seals, bearing the legend "Yaudheyanām jayam- antradharāṇām" shews that they were held in high esteem among the warrior-clans of the Punjab . Some scholars seem to be confused about its interpretation. Shobha Mukerji opines that their coins were issued in the name of the gana as well as the Mantra-dharas. M.K. Sharan explains the word " Mantradhara" to mean the members of the Executive Committee "those vested with the policy of the state". He is of the opinion that one set of the Yaudheya coins is struck in the name of the "Mantradharas"and the "Gana", while the other set is struck simply in the name of Gana. He seems to have wrongly substituted the reading "Mantradhara" for "Mantradhara". He has been arbitrary in separating "Jaya" from Mantradhardnam" which forms a compound by the combination of the two words. Further he rejects the view of some historians who consider the word " Mantradharāṇām" to mean
'those who were in possession of Victory Charm'. But he contradicts himself at another place while explaining a seal 619 found at Naurangabad with the remarks : "This seal indicates the bravery of the tribe and that they were never defeated as they had adopted the title of '(जयमन्त्रधरा)' ".
Actually the expression may mean 'the Yaudheyas who knew the secret of victory'. It is symbolic of their victory and pride that they never got defeated.
Archaeological Findings
इतिहासकार स्वामी ओमानन्द सरस्वती लिखते हैं
- यौधेयों की पांचवें प्रकार की मुद्रायें जो कि यौधेय गण की अन्तिम मुद्रायें मानी जाती हैं, और प्रायः जिसे गण राज्यों अथवा उनकी मुद्राओं का स्वल्प ज्ञान रखने वाले व्यक्ति भी जानते हैं, उन पर ब्राह्मी लिपि तथा संस्कृत भाषा में "यौधेय गणस्य जय" लिखा है । मध्य में कार्त्तिकेय अपनी शक्ति लिये खड़ा है । उसके एक पग के पास मयूर (मोर) का चित्र चित्रित है । इस मुद्रा पर कार्त्तिकेय की शक्ति (भाला) और उसके शिर के बीच ब्राह्मी में "द्वि" लिखा है । इस मुद्रा पर दूसरी ओर चलती हुई देवी का चित्र है । देवी का बायां हाथ कटि पर स्थित है तथा दायां हाथ ऊपर उठा रखा है । हाथ में कंगन भी प्रतीत होते हैं । देवी के दायें हाथ के नीचे पुष्पों से परिपूरित पात्र (कलसा) भी विद्यमान है । देवी के बायें ओर इस प्रकार का चिह्न है । देखिये, द्वितीय फलक पर ५ संख्या (नम्बर) वाली मुद्रा । वर्तुलाकार इस में मुद्रा पर देवी के चारों ओर बनी मणियों की माला यह द्योतित करती है कि यह अमूल्य रत्नों तथा धन-धान्य से परिपूरित बहुधान्यक अर्थात् हरयाणा की मुद्रा है । यह यौधेयों की विजय की सूचना देने वाली मुद्रा है । सभी इतिहासज्ञों का यह विचार है कि कुषाणों को पराजित कर उखाड़ फेंक देने के पश्चात् यौधेय गण ने अपनी इस मुद्रा को ढाला (बनाया) था । यह मुद्रा प्रायः सम्पूर्ण हरयाणे में मिलती है । मेरठ, हापुड़, सुनेत, करौंथा, अटायल, आंवली, मोहनबाड़ी, हाँसी, हिसार, भिवानी, नौरंगाबाद, दादरी, मल्हाणा, सीदीपुर लोवा आदि स्थानों से यह मुद्रा हमें प्राप्त हुई है । महम, सोनीपत, जयजयवन्ती, सहारनपुर आदि अनेक स्थानों पर भी यह लोगों को पर्याप्त संख्या में मिली है ।[2]
History
Scattered Dadri villages in British territory surrendered: Lepel H. Griffin writes:[3] There were 14 villages, Chang, Mithathal; Bamla, Naorangabad, Bhund, Rankouli, Aon, Bas, Ranela, Saifal, Khairari, Jawa, Bijna, and Changrour, belonging to the Dadri territory but scattered in the Rohtak and Jhajjar districts. The first nine of these had been administered by the District Officer of Rohtak, both as regarded the collection of revenue and criminal jurisdiction, for varying periods, one village having been so administered since 1858, and three since 1853. The criminal jurisdiction of the ninth village, Saifal, had, since 1845, been vested in the Deputy Commissioner of Rohtak, though the Nawab of Dadri had collected
[Page-396]: the revenue, and the four last villages, both in fiscal and criminal administration, had been subordinate to the Nawab.
For the convenience of both States, and to preserve a satisfactory boundary, a transfer was proposed of these villages to the British Government, in exchange for others of equal value in the Budhwara and Kanoudh Pargannas of the Jhajjar district. The revenue of the Dadri villages, amounted to Rs. 10,641, and the transferred villages made over to the Raja, viz.: Churkli, Nanda, Tiwali, Siswala, Pachobah Kalan, Pachobah Khurd, and Todhi, were worth Rs. 10,850 a year. The Raja was perfectly satisfied with the transfer, which was approved by the Government of India and carried into effect.
दिलीपसिंह अहलावत
दिलीपसिंह अहलावत[4] लिखते हैं - भिवानी जिले के मीत्ताथल गांव में की गई खुदाइयों से पता चला कि इस गांव की बनावट,
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-488
वास्तु-कला और शिल्पकला के नमूने पूर्व हड़प्पा सभ्यता से मिलते हैं। प्रथम बार यह स्थान उस समय रोशनी में आया जब 1913 ई० में वहां से समुद्रगुप्त (धारण गोत्र का जाट) सम्राट के समय के सिक्कों का बड़ा भंडार मिला।
महाभारत से इस बात का प्रमाण मिलता है कि इस जिले में पांडवों का भी पदार्पण हुआ। नकुल ने अपनी दिग्विजय के दौरान यहां के लोगों का मुकाबला किय और उस पर विजय पाकर शासन भी किया। तोशाम की पहाड़ी भी इस बात की साक्षी है कि पांडव इस स्थान से जुड़े रहे। इस पहाड़ी पर सूर्यकुण्ड, व्यासकुण्ड, पाण्डुतीर्थ तथा अन्य कई पवित्रस्थान बने हैं और यह विश्वास किया जाता है कि यह स्थान पाण्डवों के समय में एक तपोभूमि था, जहां साधु लोग घोर तपस्या किया करते थे। यही तोशाम पृथ्वीराज चौहान के समय में दिल्ली का एक हिस्सा भी रहा। महाभारत युद्ध के बाद यह जिला कुरुराज्य (जाटवंश) का एइ हिस्सा बना। कुरुराज्य तीन सीमाओं में बंटा था - 1. कुरुक्षेत्र 2. कुरुदेश 3. कुरुजंगल।
भिवानी क्षेत्र कुरुजंगल का हिस्सा बना और इस क्षेत्र पर पहले राजा परीक्षित और उनके बाद उनके पुत्र जनमेजय ने प्रभावशाली ढ़ंग से शासन किया। कुरु शासन के पतन के साथ इस क्षेत्र में कई जातियां जैसे जाट, अहीर, भदनाकस तथा यौधेय (जाटवंश) आकर बस गईं। ये जातियां काफी ताकतवर, सुदृढ़ और शक्तिशाली थीं तथा उनका मुख्य धन्धा खेतीबाड़ी ही रहा।
इस क्षेत्र में मौर्य-मोर (जाटवंश) राजाओं का शासन होने का भी आभास होता है। तोशाम तथा नौरंगाबाद की खुदाई से मिले सिक्कों से पुरातत्त्वज्ञों ने यह पाया है कि यह क्षेत्र मौर्य शासन में व्यापार का केन्द्र रहा। नौरंगाबाद से मिले इण्डो-ग्रीक सिक्कों से इण्डो-ग्रीक के शासन होने के भी चिन्ह मिलते हैं। (गांधार कला को ही ‘इण्डो-ग्रीक कला’ कहा जाता है क्योंकि इनका विषय भारतीय होते हुए भी शैली (ढंग) पूर्णतया यूनानी थी। गांधार जाटवंश है और यहां इस जाटवंश का शासन था)। गांधार शासन पर बाद में कुषाणवंश (जाटवंश) ने अधिकार कर लिया।
कुषाणवंश ने इस भिवानी क्षेत्र पर लगभग 150 वर्षों तक शासन किया। इस बात की पुष्टि कनिष्क और उसके बेटे हुविष्क के उन सिक्कों से होती है जो नौरंगाबाद में मिले।
तत्पश्चात् इस क्षेत्र पर 350 ईस्वी तक यौधेयों (जाटवंश) का राज्य रहा और बाद में गुप्त वंश (धारण गोत्र के जाट) के शक्तिशाली राजा समुद्रगुप्त ने यौधेयों को हराकर अपना शासन स्थापित किया। समुद्रगुप्त के शासन में भी नौरंगाबाद तथा तोशाम महत्त्वपूर्ण स्थान थे। नौरंगाबाद एक राजनैतिक केन्द्र के रूप में महत्त्वपूर्ण था तो तोशाम धार्मिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध था। (दैनिक ट्रिब्यून, बुधवार, 11 फरवरी 1987, लेखक रमेश आनन्द)।
Population
The Naurangabad Jattan village has population of 1647 of which 860 are males while 787 are females as per Population Census 2011.[5]
Notable persons
- Vinod Kumar Jakhar
External links
References
- ↑ Personal and geographical names in the Gupta inscriptions/Tribes,pp.174-175
- ↑ Veerbhoomi Haryana/यौधेय गण की मुद्रायें (पृष्ठ 140-142)
- ↑ The Rajas of the Punjab by Lepel H. Griffin/The History of the Jhind State,pp.395-396
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter V (Page 488-489)
- ↑ http://www.census2011.co.in/data/village/61398-naurangabad-jattan-haryana.html
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