Veerbhoomi Haryana/यौधेय गण की मुद्रायें

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हरयाणा इतिहास ग्रन्थमाला का प्रथम मणि


वीरभूमि हरयाणा

(नाम और सीमा)


लेखक

श्री आचार्य भगवान् देव


यौधेय गण की मुद्रायें

This part of the book contains some words in Brahmi script (ब्राह्मी लिपि) which appear on old seals and coins. Since the formatting of Brahmi script in Unicode fonts is not possible, these words have been written in the front image, in handwriting . The bracketed portions (numbers) in the following paragraphs may be referred to that particular number in the image document. Dndeswal 13:25, 30 March 2008 (EDT)


प्राचीन काल से ही यह गण वीरभूमि हरयाणा का स्वामी व शासक रहा है । मैं पहले लिख चुका हूँ कि इस गण का सम्बन्ध शिव तथा इनके पुत्र कुमार कार्त्तिकेय से रहा है । इसीलिये इसकी मुद्राओं पर शिव, शिव का नन्दी वा वृषभ अथवा कार्त्तिकेय का चित्र अंकित मिलता है, जो कि इस बात का पुष्ट प्रमाण है कि हर के साथ सम्बन्ध विशेष होने के कारण इस वीर भूमि का नाम हरयाणा पड़ा जिस पर पहले पर्याप्त प्रकाश डाला जा चुका है । अब संक्षेप में यौधेयों की मुद्राओं के विषय में पाठकों के लाभार्थ लिखना आवश्यक समझता हूँ ।


महर्षि पाणिनी जी ने इस गण को "आयुध जीवी गण" अर्थात् शुद्ध क्षत्रियों का गण माना है । जॉन ऐलेन ने इन्हें "Living by Fighting" अर्थात् आयुध जीवी लिखा है । अतः इनके सिक्कों पर किसी न किसी आयुध वा आयुधधारी आदर्श पुरुष का चित्रादि होना ही चाहिये, और यही पाठक इनकी मुद्राओं पर प्रत्यक्ष देख सकें, इस विषय में लिखने का मेरा मुख्य प्रयोजन यही है ।


यौधेय गण की मुद्रायें अनेक प्रकार की हैं । कुछ मुद्रायें ऐसी हैं जिन पर आयुध आदि के चिह्न तो हैं किन्तु किसी लिपि वा भाषा में लिखा कुछ भी नहीं है ।

Brahmi script on Youdheya Tribe coins


यौधेयों की प्रथम प्रकार की मुद्रायें जो प्रिन्सैप (Princep), थोमस (Thomas) और कनिंघम (Cunningham आदि विदेशी इतिहासकारों को प्राप्‍त हुई थीं और जो अब 'ब्रिटिश म्यूजियम' लन्दन में विद्यमान हैं । उनमें से छः मुद्राओं के चित्र तथा विवरण जोहन ऐलेन (John Allan) ने ब्रिटिश म्यूजियम के कैटेलॉग (Catalogue of the Ancient Indian Coins in the British Museum) विवरण पुस्तिका में दिये हैं । उन सभी पर (1) इस बाड़ वाले वृक्ष (Railing Tree)


वीरभूमि हरयाणा, पृष्ठान्त-132



का चित्र अंकित है और तीन मुद्राओं पर उज्जैनी (2) के समान छोटा चिह्न अंकित है । दो मुद्राओं पर (3) यह छः आरों वाला आयुध चक्र चिह्न दिया है । कुछ इतिहासकार इसे तारा वा सूर्य का चिह्न भी मानते हैं । दो मुद्राओं पर (4) इस प्रकार के आयुध का चित्र भी है । एक मुद्रा पर (5) आयुध का चित्र भी अंकित है । (6) इस आयुध का चित्र प्रायः उन प्रथम प्रकार की यौधेयों की मुद्राओं पर जो हमें हरयाणे के रोहतक, हांसी, हिसार आदि विभिन्न स्थानों से प्राप्‍त हुई हैं, सभी पर है । इन पर अक्षर न होकर केवल आयुधादि के ही चित्र अंकित हैं । उपर्युक्त छः मुद्रायें सहारनपुर से चकरोता को जाने वाले राजमार्ग (Road) पर सहारनपुर से लगभग २० मील दूरी पर स्थित बेहट (बृहदहट्ट) नामक स्थान से एक अंग्रेज इतिहासकार को भी प्राप्‍त हुई थीं । ये मुद्रायें यौधेयों की अन्य मुद्राओं के साथ बेहट में मिलीं थीं, अतः उन्हें कनिंघम आदि प्रसिद्ध इतिहासकार एवं मुद्रा विशेषज्ञों ने यौधेयगण की ही स्वीकार किया है । इन मुद्राओं में से दो मुद्राओं पर उपर्युक्त चिह्नों के


वीरभूमि हरयाणा, पृष्ठान्त-133



अतिरिक्त ब्राह्मी लिपि में एवं प्राकृत भाषा में जो कि संस्कृत के षष्ठी विभक्त्यन्त शब्द का प्राकृत रूप है - महाराजस (महाराजस्य) भी लिखा हुआ है । जो अभी इतिहासकारों के लिये समस्या ही बना हुआ है । क्योंकि महाराजा तो किसी व्यक्ति का नाम नहीं हो सकता, विशेषण हो सकता है । इस मुद्रा (Coin) की दूसरी ओर (7) यह चिह्न अंकित है ।


दूसरी प्रकार की मुद्रायें हैं, जो हमें हरयाणे के रोहतक, सुनेत, हिसार, हांसी, भिवानी, दादरी, भालोठ, भगवतीपुर, अगरोहा और रैय्या आदि स्थानों से मिली हैं । इन पर एक ओर शिवजी महाराज नन्दी सहित खड़े हैं । शिवजी का एक हाथ बैल की थुही (टांट) पर तथा दूसरा हाथ पीठ के पिछले भाग पर रखा दिखाया गया है । दूसरी ओर यौधेय गण के आयुध अर्थात् शस्‍त्रों-त्रिशूल, बज्र, चक्र, परशु आदि के चित्र हैं । एक चित्र जो प्रायः इन सभी मुद्राओं पर है (8) इस प्रकार की आकृति का है । कहीं-कहीं इस चित्र में कुछ थोड़ा भेद भी मिलता है । इसी को कई विद्वानों ने ब्राह्मी के दो अक्षर 'क' और 'त' मानकर 'कोत' पढ़ डाला, जो कि उचित


वीरभूमि हरयाणा, पृष्ठान्त-134



प्रतीत नहीं होता । यह अन्य शस्‍त्रों के साथ होने से शस्‍त्र ही होना चाहिये । कुछ इन मुद्राओं पर मिलने वाले शस्‍त्रों के चिह्न ऐसे हैं जो कि इन्हीं कई मुद्राओं पर नहीं भी मिलते । ठीक इसी प्रकार यह चिह्न भी कई मुद्राओं पर नहीं मिलता, अतः इसे शस्‍त्र ही मानना चाहिये । देखिये फलक संख्या १ का १ से ३ सं० मुद्रा । और फिर इस प्रकार दो अक्षर एक दूसरे से मिलाकर लिखने की परिपाटी प्राचीन मुद्राओं पर देखने में नहीं आती । ये सभी मुद्रायें यौधेय प्रदेश में ही मिलती हैं । यह चिह्न भी यौधेय गण का एक आयुध (शस्‍त्र) ही है । शिव और उसका नन्दी, त्रिशूल, वज्र, चक्र, परशु आदि शस्‍त्र तथा इन सब मुद्राओं का यौधेय प्रदेश के ही स्थानों से प्राप्‍त होना इसका सुदृढ़ प्रमाण है कि ये यौधेयों की ही मुद्रायें हैं । शस्‍त्र को "कोत" समझना भ्रममात्र ही है । ये मुद्रायें यौधेयों की सब मुद्राओं से प्राचीन प्रतीत होती हैं । प्रथम फलक की १ से ३ मुद्रायें ।

Coins of the Yaudheya Tribe-1


तीसरी प्रकार की यौधेयों की वे प्रसिद्ध मुद्रायें हैं जिनके ठप्पे-सांचे (Moulds) रोहतक के खोकरा-कोट की खुदाई में श्री माननीय स्वर्गीय डा० बीरबल साहनी जी को प्राप्‍त हुए थे । ये मुद्रायें प्रायः सभी


वीरभूमि हरयाणा, पृष्ठान्त-135



इतिहासकारों को बहुत थोड़ी संख्या में मिली हैं । हमें ५०० (पाँच सौ) से अधिक संख्या में ये मुद्रायें प्राप्‍त हुई हैं । ये मुद्रायें हांसी, हिसार, भिवानी, दादरी, मेरठ, नौरंगाबाद, बामला, आदि स्थानों से प्राप्‍त हुई हैं । इनके प्रथम पक्ष पर ब्राह्मी लिपि में (9) "यौधेयानां बहुधानके" अंकित है, अर्थात् यौधेयों के बहुधान्यक देश (हरयाणा) की ओर संकेत है जो कि धन-धान्य से भरपूर था । इन अक्षरों के मध्य में नन्दी (बैल) का चित्र है । बैल दायें मुख किये और बायें पैर को उठाये हुये है । किसी-किसी मुद्रा पर बैल बायें मुख किये और दाहिना पैर उठाये हुये है, किन्तु यह मुद्रा बहुत ही कम मिलती है । इस मुद्रा में नन्दी के आगे (10) यह यज्ञीय यूप (खूँटा) भी बना हुआ है । इन मुद्राओं में यज्ञ के यूप का चिह्न किसी-किसी मुद्रा पर विपरीत ढंग का (11) भी मिलता है । इन मुद्राओं पर दूसरी ओर हाथी का चित्र बना है । हाथी कहीं ऊपर तथा नीचे सूंड किये है । हाथी की पीठ के कुछ ऊपर (12) इस प्रकार का चित्र अंकित है और इस चित्र के ठीक पीछे हाथी की पीठ पर लगा हुआ है फहराता हुआ


वीरभूमि हरयाणा, पृष्ठान्त-136



त्रिकोण झंडा (Pennon) । इस मुद्रा से ज्ञात होता है कि महाभारत के समय इस प्रदेश का जो बहुधान्यक नाम था वह इन मुद्राओं पर अंकित होने से यौधेयों को इस प्रदेश का स्वामी होना सिद्ध करता है । इस प्रदेश पर यौधेय गण के स्वामित्त्व का इससे अधिक और क्या प्रमाण हो सकता है । प्रथम तथा द्वितीय फलक की क्रमशः ४ से ६ और १ से ३ संख्या वाली मुद्रायें देखिये ।


महाभारत के काल में यौधेय प्रदेश का एक भाग मरुभूमि भी था जैसा महाभारत सभापर्व में वर्णित है । जिस प्रकार बहुधान्यक की मुद्रायें उपलब्ध हैं, उसी प्रकार इसकी भी मुद्रायें मिलनी चाहियें । इस प्रदेश का यह बहुधान्यक नाम पृथ्वीराज चौहान तक भी चलता रहा है जैसा कि चौहानों के इतिहास से ज्ञात होता है । इन मुद्राओं को कनिंघम आदि कई अंग्रेज इतिहासकारों ने गलत पढ़ा था । उन्होंने प्रथम पंक्ति अथवा पद "यौधेयानाम्" को तो ठीक पढ़ा किन्तु द्वितीय पंक्ति (बहुधानके) को उल्टी ओर से पढ़ने से ठीक नहीं पढ़ सके । केवल रैपसन (Repson) ने इसको "बहुधानके" ठीक पढ़ा, किन्तु प्रसिद्ध मुद्रा विशेषज्ञ कनिंघम के होते हुये इसकी बात मानी नहीं गई ।


वीरभूमि हरयाणा, पृष्ठान्त-137



चतुर्थ प्रकार की मुद्रायें जो ताम्र (ताँबा) तथा रजत (चांदी) दोनों धातुओं की थीं और कनिंघम आदि को मिली थीं उन पर एक ओर षण्मुख कार्त्तिकेय हाथ में भाला (शक्ति) लिये खड़ा है । इस वर्तुलाकार मुद्रा पर ब्राह्मी लिपि में "भागवतस्वामिनो ब्रह्मण्य यौधेय" लेख मिलता है । दूसरी ओर देवी है, जिसके बायें कमल का पुष्प है । देवी के दोनों ओर (13) ये चिह्न हैं और (14) इस प्रकार का चिह्न है । ताम्र मुद्रायें भी इसी प्रकार की हैं । इन पर केवल "कुमारस्य" शब्द और अधिक लिखा है । इसी प्रकार की किसी मुद्रा पर कार्त्तिकेय एक शिर वा मुख वाला भी मिलता है । कुछ मुद्रायें ऐसी भी उनको मिली हैं जिन पर कुछ चिह्नों का भेद मिलता है । तथा देवी के स्थान पर हरिण का चित्र अंकित है और (15) ये चिह्न भी मिलते हैं । शेष पूर्वत् हैं । कहीं-कहीं शिव का चित्र मिलता है । किसी-किसी मुद्रा पर "भानुव" लिखा है, नीचे सर्प की आकृति चित्रित है ।


एक यौधेयों की मुद्रा अंग्रेज इतिहासकारों को ऐसी मिली थी जिस पर वृषभ के चित्र पर "यौधेयानाम्" ही केवल लिखा है । यौधेयों की छोटी-छोटी


वीरभूमि हरयाणा, पृष्ठान्त-138



अनेक प्रकार की मुद्रायें हमें भी हरयाणे के एक प्राचीन दुर्ग से प्राप्‍त हुई हैं जो बहुत छोटी-छोटी हैं, तथा बड़ी ही विचित्र हैं । इन मुद्राओं में एक मुद्रा जो कि प्याला प्रकार की है, ठीक उतनी ही छोटी है जितनी कि प्याला प्रकार की आहत मुद्रायें (Punch Marked Coins) मिलती हैं । इस मुद्रा पर बड़ा ही सुन्दर नन्दी है और नन्दी के ऊपर ब्राह्मी लिपि में "यौधेय" (16) लिखा है । इन्हीं मुद्राओं में एक और मुद्रा भी बड़ी महत्वपूर्ण है । यह भी गोलाकार (वर्तुलाकार) है और उपर्युक्त प्याला प्रकार की मुद्रा के समान ही छोटी है, किन्तु इस वर्तुलाकर मुद्रा पर वर्गाकार भाग ठीक उसी प्रकार बना है जैसा कि पाञ्चाल मुद्राओं (PANCALA COINS) पर होता है । उसी वर्गाकार में इस मुद्रा पर ब्राह्मी अक्षरों में दो पंक्तियों में "बहुधन-यौधेय" (17) लिखा है । अक्षर बड़े सुन्दर और स्पष्ट हैं । इस मुद्रा पर दूसरी ओर बड़ा सुन्दर (18) यह चिह्न बना हुआ है । इन मुद्राओं के साथ हमें और भी कई बड़ी महत्वपूर्ण यौधेयों की मुद्रायें मिली हैं जो कि “हरयाणा प्रान्तीय पुरातत्त्व संग्रहालय,


वीरभूमि हरयाणा, पृष्ठान्त-139



गुरुकुल झज्जर, रोहतक (पंजाब)” में सुरक्षित हैं । इन मुद्राओं पर विशेष प्रकाश "वीर यौधेय" पुस्तक में डाला जायेगा ।

Coins of the Yaudheya Tribe-2


यौधेयों की पांचवें प्रकार की मुद्रायें जो कि यौधेय गण की अन्तिम मुद्रायें मानी जाती हैं, और प्रायः जिसे गण राज्यों अथवा उनकी मुद्राओं का स्वल्प ज्ञान रखने वाले व्यक्ति भी जानते हैं, उन पर ब्राह्मी लिपि तथा संस्कृत भाषा में "यौधेय गणस्य जय" (19) लिखा है । मध्य में कार्त्तिकेय अपनी शक्ति लिये खड़ा है । उसके एक पग के पास मयूर (मोर) का चित्र चित्रित है । इस मुद्रा पर कार्त्तिकेय की शक्ति (भाला) और उसके शिर के बीच ब्राह्मी में "द्वि" (20) लिखा है । इस मुद्रा पर दूसरी ओर चलती हुई देवी का चित्र है । देवी का बायां हाथ कटि पर स्थित है तथा दायां हाथ ऊपर उठा रखा है । हाथ में कंगन भी प्रतीत होते हैं । देवी के दायें हाथ के नीचे पुष्पों से परिपूरित पात्र (कलसा) भी विद्यमान है । देवी के बायें ओर इस प्रकार (21) का चिह्न है । देखिये, द्वितीय फलक पर ५ संख्या (नम्बर) वाली मुद्रा । वर्तुलाकार इस में मुद्रा पर देवी के चारों ओर बनी मणियों की माला


वीरभूमि हरयाणा, पृष्ठान्त-140



यह द्योतित करती है कि यह अमूल्य रत्‍नों तथा धन-धान्य से परिपूरित बहुधान्यक अर्थात् हरयाणा की मुद्रा है । यह यौधेयों की विजय की सूचना देने वाली मुद्रा है । सभी इतिहासज्ञों का यह विचार है कि कुषाणों को पराजित कर उखाड़ फेंक देने के पश्चात् यौधेय गण ने अपनी इस मुद्रा को ढाला (बनाया) था । यह मुद्रा प्रायः सम्पूर्ण हरयाणे में मिलती है । मेरठ, हापुड़, सुनेत, करौंथा, अटायल, आंवली, मोहनबाड़ी, हाँसी, हिसार, भिवानी, नौरंगाबाद, दादरी, मल्हाणा, सीदीपुर लोवा आदि स्थानों से यह मुद्रा हमें प्राप्‍त हुई है । महम, सोनीपत, जयजयवन्ती, सहारनपुर आदि अनेक स्थानों पर भी यह लोगों को पर्याप्‍त संख्या में मिली है ।

इन्हीं मुद्राओं में कुछ ऐसी मुद्रायें भी हैं जिन पर ब्राह्मी लिपि में द्वि की जगह (22) "तृ" भी लिखा मिलता है और दूसरी ओर पुष्‍प पूरित कलस के स्थान पर शंख चित्रित मिलता है । इस मुद्रा पर देवी के पीछे उपर्युक्त त्रिशूल जैसे चिन्ह के स्थान पर (23) यह चिन्ह मिलता है । देखिये द्वितीय फलक पर नं० ६ मुद्रा (सिक्का) ।


वीरभूमि हरयाणा, पृष्ठान्त-141



इसी प्रकार की मुद्राओं में एक मुद्रा इस प्रकार की भी मिलती है कि जिस पर "द्वि" वा "तृ" कोई भी शब्द नहीं मिलता और न ही इस पर कोई 'द्वि', "तृ" का अंक ही मिलता है । इस मुद्रा पर दूसरी ओर भी कलस या शंख आदि की तरह कोई चिन्ह नहीं है । देखिये, द्वितीय फलक पर सं० ४ वाली मुद्रा । इन मुद्राओं के आधार पर ऐसा प्रतीत होता है कि यौधेयों का यह प्रदेश एक, द्वि और तृ - इन तीन नामों से तीन प्रान्तों अथवा भागों में विभाजित था । ये "द्वि", "तृ" इसी के सूचक हैं । यह अभी खोज का विषय है ।


यौधेयों की इन सभी मुद्राओं पर शिव, नन्दी, कार्त्तिकेय और मोर का होना यह सिद्ध करता है कि यौधेय शिव, कार्त्तिकेय को अपना पूर्वज मानते हैं अथवा गणराज्य का संस्थापक गणकर्त्ता होने से पूज्य वा आदर्श राजनीति का पंडित मानते हैं और अपने प्रदेश का नाम 'हरयाणा' शिवजी के प्रसिद्ध नाम 'हर' के कारण इन्होंने रखा है, जो कि ऐतिहासिक रूप धारण करता हुआ प्रसिद्धि को प्राप्‍त हुआ, जिस पर पहले पर्याप्‍त प्रकाश डाला जा चुका है । यौधेयों की मुद्राओं से भी इसकी पुष्टि होती है । इसी कारण संक्षेप में कुछ पंक्तियाँ यौधेयों की मुद्राओं पर लिख दी हैं । इन पर विस्तार से फिर लिखने का यत्‍न करूंगा ।


वीरभूमि हरयाणा, पृष्ठान्त-142




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