Kikata

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Map of Ancient Jat habitations

Kikata (कीकट) was an ancient kingdom in what is now India, mentioned in the Vedas. It is believed that they were the forefathers of Magadhas. It lay to the south of Magadha Kingdom.

Variants

Jat Gotras

  • Kikat (कीकट)[1] is gotra of Jats. They lived on the banks of rivers Ravi and Vyasa. Later they were on the banks of River Katni. They are also known as Kikatwa.[2] This is variant of Katewa Gotra.
  • Katewa : Kikata (कीकट) → Kikatwa (कीकटवा) → Katewa (कटेवा)

History

A section in the Rigveda (RV 3.53.14) refers to the Kīkaṭas, a tribe which most scholars have placed in Bihar (Magadha).[3]

Zimmer has argued, in referring to Yaska, that they were a non-Aryan people. According to Weber, they were a Vedic people, but were sometimes in conflict with other Vedic people.[4]

जाट इतिहास

ठाकुर देशराज[5] ने महाभारत कालीन प्रजातंत्री समूहों का उल्लेख किया है जिनका निशान इस समय जाटों में पाया जाता है....कीकट - यह विपाश और शतुद्र (रावी और व्यास) के किनारे रहते थे । इस समय यह कटनी नदी के किनारे पाये जाते हैं और कीकटवा या कटेवा कहलाते हैं । मत्स्य शतपथ ब्रा० 13/5/4/9 में इनका नाम आता है। अब यह मछार कहलाते हैं । कुछ लोग कहते हैं, इनका स्थान जयपुर के पास रहा होगा । तब तो यह कछवाहे कहे जा सकते हैं । साम्राज्यवादी विचार रखने वाले तथा पुनर्विवाह को बंद कर देने वाले राजपूत हो गए और नरवर चले गए । बाकी जो रह गए और पुरानी रिवाजों को न छोड़ा, वे जाट हैं।

कीकट

विजयेन्द्र कुमार माथुर[6] ने लेख किया है ...कीकट (AS, p.192) गया (बिहार) का परिवर्ती प्रदेश था. पुराणों के अनुसार बुद्धावतार कीकट देश में ही हुआ था. कीकट का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद में है-- ' किंते कृण्वंति कीकटेषु गावो नाशिरं दुहे न तपन्ति धर्मं आनोभरप्रमगंदस्य वेदो नैचाशाखं के मधवत्रन्ध्यान:' 3,53, 14. इस उद्धरण में कीकट के शासक है प्रमगंद का उल्लेख है. यास्क के अनुसार (निरुक्त 6,32) कीकट अनार्य देश था. पुराण काल में कीकट मगध ही का एक नाम था तथा इससे सामन्यत: अपवित्र समझा जाता था; केवल गया और राजगृह तीर्थ रूप में पूजित थे-- 'कीकटेषु गया पुण्या पुण्यं राजगृहं वनम्' वायु पुराण 108,73. बृहद्धर्मपुराण में भी कीकट अनिष्ट देश माना गया है किन्तु कर्णदा और गया को अपवाद कहा गया है-- 'तत्र देशे गया नाम पुण्यदेशोस्ति वुश्रुत:, नदी च कर्णदा नाम पितृणां स्वर्गदायिनी' 26,47. श्रीमद्भागवत में कतिपय अपवित्र अथवा अनार्य लोगों के देशों में कीकट या मगध की गणना की गई है. महाभारत काल में भी ऐसी ही मान्यता थी. पांडवों की तीर्थ यात्रा के प्रसंग में वर्णन है कि वे जब मगध की [p.193] सीमा के अंदर प्रवेश करने जा रहे थे तो उनके सहयात्री ब्राह्मण वहां से लौट आए. संभव है कि इस मान्यता का आधार वैदिक सभ्यता का मगध या पूर्वोत्तर भारत में देर से पहुंचना हो. अथर्ववेद 5,22,14 से भी अंग और मगध का वैदिक सभ्यता के प्रसार के बाहर होना सिद्ध होता है. पुराण काल में शायद बौद्ध धर्म का केंद्र होने के कारण ही मगध को अपुण्य देश समझा जाता था.

कर्णदा नदी

विजयेन्द्र कुमार माथुर[7] ने लेख किया है ... कर्णदा नदी (AS, p.143) ): बृहद्धर्मपुराण में वर्णित कीकट देश (मगध) की एक नदी जिसे पवित्र माना गया है--'तत्र देशे गया नाम पुण्यदेशोस्ति विश्रुत: नदी च कर्णदा नाम पितृणां स्वर्ग-दायिनी' जान पड़ता है यह गया के निकट बहने वाली फल्गु नदी है जहाँ पितरों का श्राद्ध किया जाता है। कर्णदा नदी का नाम महाभारत के कर्ण से संबंधित जान पड़ता है। यह तथ्य उल्लेखनीय है कि कीकट देश को प्राचीन पुराणों की परंपरा में अपवित्र देश बताया गया है जिसका कारण इस देश में बौद्ध-मत का आधिपत्य रहा होगा, किंतु कालांतर में गया में पुन: हिन्दूधर्म की सत्ता स्थापित होने पर इसे तथा यहाँ बहने वाली नदी को पवित्र समझा जाने लगा।

In Mahabharata

Kikata (कीकट) Mahabharata (VIII.30.45),

Karna Parva/Mahabharata Book VIII Chapter 30 mentions the tribes who are not followers of Brahmanism. Kikata (कीकट) is mentioned in Mahabharata (VIII.30.45). [8]...."The Karasakaras, the Mahishakas, the Kalingas, the Kikatas, the Atavis, the Karkotakas, the Virakas, and other peoples of no religion, one should always avoid."

See also

Reference

  1. Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.31,sn-327.
  2. Dr Mahendra Singh Arya etc, : Ādhunik Jat Itihas, Agra 1998, p. 226
  3. e.g. McDonell and Keith 1912, Vedic Index; Rahurkar, V.G. 1964. The Seers of the Rgveda. University of Poona. Poona; Talageri, Shrikant. (2000) The Rigveda: A Historical Analysis
  4. R. C. Majumdar and A. D. Pusalker (editors): The History and Culture of the Indian People. Volume I, The Vedic age. Bombay : Bharatiya Vidya Bhavan 1951, p. 252
  5. Jat History Thakur Deshraj/Chapter V,p.139
  6. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.192
  7. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.143
  8. कारः करान महिषकान कलिङ्गान कीकटाटवीन, कर्कॊटकान वीरकांश च दुर्धर्मांश च विवर्जयेत Mahabharata (VIII.30.45)

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