Kurmali
Kurmali or Kurmalli (कुरमल्ली), is a Village in tahsil and district Shamli, western Uttar Pradesh.
Jat gotras
जाट जन सेवक
ठाकुर देशराज[2] ने लिखा है ....चौधरी रनधीरसिंह - [पृ.41]: मुजफ्फरनगर जिले में कुरमाली एक जाटों का प्रसिद्ध गाँव है। यहाँ प्रकृति ने एक सी सूरत शक्ल के दो हरीराम सिंहों को जन्म दिया। दोनों ही खेती के महकमे में सुपरिन्टेंडेंट से ऊंचे पदों पर काम किया। एक के बड़े पुत्र का नाम वारसेन जी और दूसरों के बड़े पुत्र का नाम रणधीरसिंह जी है। चौधरी रणधीर सिंह ने अपनी योग्यता, ईमानदारी और कार्यशीलता के कारण भरतपुर में नाम पाया है। आप साधु बना श्री रत्नाकर जी शास्त्री के दामाद हैं। जाट लोगों का सिर कभी भी रिश्वत न लेकर और ईमानदारी के साथ काम करके श्री सास्त्री जी ने ऊंचा किया था उसको चौधरी रणधीरसिंह जी ने और भी ऊंचा किया है। आपसे पितृ और श्वसुर दोनों कुल उज्जवल हुए हैं। उन्होंने किसी भी जाट संस्था में क्रियात्मक भाग नहीं लिया है किंतु अपने लिए आदर्श योग्य साबित करके जाट लोगों को यह गर्व करने का मौका दिया है कि हमारे अंदर इस प्रकार के संजीदा और ईमानदार आदमी भी पैदा होते हैं जो दूसरों के लिए उदाहरण हैं।
चौधरी रणधीर सिंह BA, LLB हैं। इन्होने भरतपुर की सर्विस में मुंसिफ़ के ओहदे से प्रवेश किया है और आज एडीएम हैं।
History
जि० मुजफ्फरनगर में मलिकों की बावनी में खास-खास गांव निम्नलिखित हैं – निशाड़, खिदरपुर, सून्ना, सरनावली, मखलूमपुर, खरड़, सोजनी, खेड़ामस्तान, कुडाना, लांक, हसनपुर, सिरसी खेड़ा, सलपा, फुगाना, खेड़ा, करोदा, कुलहड़ी, महमूदपुर कुरावां, सागड़ी, खेड़ी, डूंगर, सिलाना, चांदनहेड़ी, पट्टीमाजरा, झाल, बरला, कादीखेड़ा, मोघपुर, बधानी, नीमपुर, कुरमाली आदि। मलिकों का यह कुरमाली गांव यू० पी० के जाटों में एक प्रसिद्ध गांव है।[3]
मेजर जयपाल सिंह मलिक
26 जनवरी मेजर जयपाल सिंह मलिक का अवसान दिवस है। एक अभूतपूर्व क्रांतिकारी थे मेजर जयपाल सिंह । 1916 में पश्चिमी उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में शामली के निकट कुरमाली गाँव के एक जाट किसान परिवार में पैदा हुए थे मेजर जयपाल सिंह। आगरा के सेन्ट जाॅन काॅलेज से स्नातकोत्तर जयपाल सिंह ने बिना दहेज के अन्तर्जातीय विवाह किया और गाँव के पहले व्यक्ति थे जिन्होंनेपत्नी को पर्दा प्रथा से मुक्त रखा।
अंग्रेजी हुकूमत की गुलामी, दमन और अत्याचार ने उनके भीतर देश की आजादी की चाहत को इतना तीव्र किया कि वे 1941 में भाड़े की औपनिवेशिक ब्रिटिश सेना में एक कमीशन प्राप्त अफसर बन गये , ताकि अंग्रेजी हुकूमत के उत्पीड़न के सबसे बड़े हथियार के भीतर रहकर लड़ा जा सके। उन्होंने सेना में भारतीय अफसरों के खिलाफ ब्रिटिश अफसरों का नस्ली भेदभाव और घृणा का भाव प्रत्यक्ष देखा, बैरकों मे भारतीय सैनिकों की दुरावस्था को देखा । राष्ट्रीय मुक्ति संग्राम के असर, साम्राज्य विरोधी भावनाएँ, मातृभूमि से प्रेम और औपनिवेशिक शासन से उपजी घृणा के चलते उन्होंने उन्होंने अन्य भारतीय अफसरों के साथ मिलकर " काउंसिल ऑफ एक्शन" नामक गुप्त संगठन बनाया। इस संगठन का उद्देश्य ब्रिटिश शासन को उखाड़ फैंकने में अंग्रेजों से लड़ने वाले क्रांतिकारियों को आर्थिक व हथियारबंद मदद पहुँचाना था। 1942 के "भारत छोड़ो आंदोलन" के दौरान हजारों नौजवानों ने संघर्ष में हिस्सा लिया तब उनके गुप्त संगठन ने लड़ने वाले इन क्रांतिकारियों को 3000 से ज्यादा हथियार मुहैया कराये। जब 1946 में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ नौसेना के विद्रोह का कांग्रेस ने विरोध किया तो उन्हें झटका लगा। उनके संगठन को इसी दौरान अंग्रेज सरकार का गुप्त दस्तावेज हासिल हुआ जिसका कोडनाम " ऑपरेशन असायलम" था। इसका मकसद राष्ट्रीय आंदोलन के नेताओं के नेताओं की हत्या करवाना था। मेजर जयपाल सिंह ने भारी खतरा लेते हुए यह जानकारी कांग्रेस और समाजवादियों को दी, लेकिन दोनों ने इसपर ध्यान नहीं दिया। सिर्फ कम्युनिस्ट पार्टी और रिवाॅल्यूशनरी काउंसिल ऑफ एक्शन ने इस दस्तावेज को प्रकाशित कर दिया। इस घटना के चलते अंग्रेजी हुकूमत के सामने उनका भेद उजागर हो गया। इसके चलते उन्हें ब्रिटिश औपनिवेशिक सेना से भागना पड़ा, वर्ना उन्हें कोर्ट मार्शल करके गोली से उड़ा दिया जाता।
अंततः मई 1947 में " काउंसिल ऑफ एक्शन " को उन्होंने भंग कर दिया । 15 अगस्त 1947 को भारत ब्रिटिश हुकूमत से आजाद हो गया। मेजर जयपाल सिंह का मानना था कि विदेशी शासकों का तख्ता पलटने की साजिश करना शर्म की बात नहीं थी, बल्कि गौरव की बात थी और यह उनका हक भी था। इसीलिए आजादी के बाद मेजर ने पं. जवाहरलाल नेहरू के नाम एक खुला पत्र प्रकाशित किया, जिसमें उन्होंने " काउंसिल ऑफ एक्शन" की गतिविधियों का विवरण दिया तथा अंग्रेजी हुकूमत द्वारा उनपर लगाये गये आरोपों का खंडन करने के लिये आत्मसमर्पण की पेशकश की। बाद में नेहरू जी के कार्यवाहक सचिव की सलाह पर मेजर ने 3 सितम्बर 1947 को दिल्ली में सेना अधिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया । लेकिन उन्हें ब्रिटिश हुकूमत के द्वारा लगाये गये आरोपों से दोषमुक्त करने के बजाय उन आरोपों में गिरफ्तार करके कलकत्ता के फोर्ट विलियम में कैद कर दिया गया। नवम्बर 1947 उन्होंने पुनः अपने ऊपर लगाये गये आरोपों का खण्डन करते हुए नेहरू को विस्तृत पत्र लिखा, लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला। यह था नये आजाद मुल्क के शासकों द्वारा मेजर जयपाल सिंह को देशभक्ति के बदले में दिया गया ईनाम!
अंततः मेजर जयपाल सिंह 1 साल तक फोर्ट विलियम में कैद रहे और फिर उसकी दीवार फांदकर फरार हो गये। यहाँ से उनका भूमिगत जीवन लगभग लगभग 10 वर्षों तक चला। अपने भूमिगत जीवन में बंगाल में किसानों के संघर्ष, तेलंगाना में निजाम के शासन के खिलाफ हथियार बंद संघर्ष, मणिपुर में राजतंत्र के खिलाफ आदिवासियों के संघर्ष और पांडिचेरी में फ्रांसीसी शासकों के खिलाफ संघर्ष में मदद की।
1956 में मेजर भूमिगत जीवन से बाहर आये तो मुजफ्फरनगर में हजारों लोगों ने उनका स्वागत किया । 1970 में उन्हें उन्हीं पुराने आरोपों में एक साल के लिये जेल में बंद रखा गया। 1975 में पुनः आपातकाल के समय रोहतक जेल में रखा गया। नवम्बर 1976 में वे रिहा हुए।
26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर उनका स्मरण लाजिमी है।
स्रोत - Ranvir Singh Tomar
कॉमरेड मेजर जयपाल सिंह मलिक जी की पुण्यतिथि पर विशेष
कॉमरेड मेजर जयपाल सिंह मलिक जी की पुण्यतिथि पर विशेष ...
जब एक महान देशभक्त क्रांतिकारी को कांग्रेसियों ने बताया डाकू
लेखक - के. पी. मलिक
गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर एक अभूतपूर्व क्रांतिकारी को याद करना अति आवश्यक है। जिसका नाम है मेजर जयपाल सिंह मलिक। उनका आज अवसान दिवस है। वें एक अभूतपूर्व क्रांतिकारी थे। वें 15 जुलाई 1916 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में शामली के निकट कुरमाली गाँव के एक जाट किसान चौधरी बोहरंग लाल के परिवार में पैदा हुए थे। किसान परिवार में पैदा होने के बावजूद उनका मन खेती किसानी में काम और पढ़ाई लिखाई में अधिक लगता था गांव में ही प्राथमिक शिक्षा के बाद सौभाग्य से उन्हें उच्च शिक्षा पाने का अवसर मिला। मैट्रिकुलेशन के बाद बनारस हिन्दू विश्विद्यालय से स्नातक की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने आगरा के सेन्ट जाॅन काॅलेज से स्नातकोत्तर किया। उसे समय देश अंग्रेजों की गुलामी और तमाम कुप्रथाओं को झेल रहा था। इससे मेजर जयपाल सिंह कहीं न कहीं आहत थे। उन्होंने अंग्रेजों और कुप्रथाओं से एक साथ लड़ाई लड़ने का दृढ़ निश्चित किया। उन्होंने बिना दहेज के अन्तर्जातीय विवाह किया और पत्नी को पर्दा प्रथा से मुक्त रखा।
वें गाँव के पहले व्यक्ति थे जो बिरतानिया हुकूमत की गुलामी, दमन और अत्याचार को लेकर अंदर से उबल रहे थे। उनके भीतर देश की आजादी की चाहत की आग को इतनी तीव्र थी कि वे साल 1941 में भाड़े की औपनिवेशिक ब्रिटिश सेना में एक कमीशन प्राप्त अफसर बन गये, ताकि अंग्रेजी हुकूमत के उत्पीड़न के सबसे बड़े हथियार के भीतर रहकर लड़ा जा सके। उन्होंने सेना में भारतीय अफसरों के खिलाफ ब्रिटिश अफसरों का नस्ली भेदभाव और घ्रणा का भाव प्रत्यक्ष देखा, बैरकों मे भारतीय सैनिकों की दुरावस्था को देखा। राष्ट्रीय मुक्ति संग्राम के असर, साम्राज्य विरोधी भावनाएँ, मातृभूमि से प्रेम और औपनिवेशिक शासन से उपजी घ्रणा के चलते उन्होंने उन्होंने अन्य भारतीय अफसरों के साथ मिलकर "काउंसिल ऑफ एक्शन" नामक गुप्त संगठन बनाया। इस संगठन का उद्देश्य ब्रिटिश शासन को उखाड़ फैंकने में अंग्रेजों से लड़ने वाले क्रांतिकारियों को आर्थिक व हथियारबंद मदद पहुँचाना था।
सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद पाल दहिया लिखते हैं कि साल 1942 के "भारत छोड़ो आंदोलन" के दौरान हजारों नौजवानों ने संघर्ष में हिस्सा लिया तब उनके गुप्त संगठन ने लड़ने वाले इन क्रांतिकारियों को क़रीब तीन हज़ार से ज्यादा हथियार मुहैया कराये। जब 1946 में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ नौसेना के विद्रोह का कांग्रेस ने विरोध किया तो उन्हें झटका लगा। उनके संगठन को इसी दौरान अंग्रेज सरकार का गुप्त दस्तावेज हासिल हुआ जिसका कोडनाम "ऑपरेशन असायलम" था। इसका मकसद राष्ट्रीय आंदोलन के नेताओं के नेताओं की हत्या करवाना था। मेजर जयपाल सिंह ने भारी खतरा लेते हुए यह जानकारी कांग्रेस और समाजवादियों को दी, लेकिन दोनों ने इसपर ध्यान नहीं दिया। सिर्फ कम्युनिस्ट पार्टी और रिवाॅल्यूशनरी काउंसिल ऑफ एक्शन ने इस दस्तावेज को प्रकाशित कर दिया। इस घटना के चलते अंग्रेजी हुकूमत के सामने उनका भेद उजागर हो गया। इसके चलते उन्हें ब्रिटिश औपनिवेशिक सेना से भागना पड़ा, वर्ना उन्हें कोर्ट मार्शल करके गोली से उड़ा दिया जाता।
अंततः मई 1947 में "काउंसिल ऑफ एक्शन" को उन्होंने भंग कर दिया। 15 अगस्त 1947 को भारत ब्रिटिश हुकूमत से आजाद हो गया। मेजर जयपाल सिंह का मानना था कि विदेशी शासकों का तख्ता पलटने की साजिश करना शर्म की बात नहीं थी, बल्कि गौरव की बात थी और यह उनका हक भी था। इसीलिए आजादी के बाद मेजर ने पं. जवाहरलाल नेहरू के नाम एक खुला पत्र प्रकाशित किया, जिसमें उन्होंने "काउंसिल ऑफ एक्शन" की गतिविधियों का विवरण दिया तथा अंग्रेजी हुकूमत द्वारा उन पर लगाये गये आरोपों का खंडन करने के लिये आत्मसमर्पण की पेशकश की। बाद में नेहरू के कार्यवाहक सचिव की सलाह पर मेजर ने 3 सितम्बर 1947 को दिल्ली में सेना अधिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। लेकिन उन्हें ब्रिटिश हुकूमत के द्वारा लगाये गये आरोपों से दोषमुक्त करने के बजाय उन आरोपों में गिरफ्तार करके कलकत्ता के फोर्ट विलियम में कैद कर दिया गया। नवम्बर 1947 उन्होंने पुनः अपने ऊपर लगाये गये आरोपों का खण्डन करते हुए नेहरू को विस्तृत पत्र लिखा, लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला। यह था नये आजाद मुल्क के शासकों द्वारा मेजर जयपाल सिंह को देशभक्ति के बदले में दिया गया ईनाम! मैं अपने आप को सौभाग्यशाली समझता हूं कि मैं भी उसी गांव की मिट्टी में जन्म लिया है। जिस पर उस महान क्रांतिकारी का जन्म हुआ था।
बहरहाल, आखिरकार मेजर जयपाल सिंह एक साल तक फोर्ट विलियम में कैद रहे और फिर उसकी दीवार फांदकर फरार हो गये। यहाँ से उनका भूमिगत जीवन लगभग लगभग 10 वर्षों तक चला। उन्होंने अपने भूमिगत जीवन में बंगाल में किसानों के संघर्ष, तेलंगाना में निजाम के शासन के खिलाफ हथियार बंद संघर्ष, मणिपुर में राजतंत्र के खिलाफ आदिवासियों के संघर्ष और पांडिचेरी में फ्रांसीसी शासकों के खिलाफ संघर्ष में मदद की। साल 1956 में मेजर जयपाल सिंह भूमिगत जीवन से बाहर आ गए और मुजफ्फरनगर में हजारों लोगों के आव्हान पर संसदीय चुनाव में सीपीआई ने उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया। जबकि कॉंग्रेसियों ने उन्हें डाकू घोषित किया। लाखों लोगों ने उनके समर्थन में जुलुसऔर रैलियां निकाली। हालाँकि, अंततः वे चुनाव कुछ ही मतों से हार गए थे। लेकिन कांग्रेस सरकार ने 1970 में उन्हें उन्हीं पुराने आरोपों में एक साल के लिये जेल में बंद रखा। 1975 में पुनः आपातकाल के समय रोहतक जेल में रखा गया। नवम्बर 1976 में वे रिहा हुए। 25 जनवरी 1982 को उन्होंने इस नश्वर संसार से विदा ली। आज यानि 26 जनवरी गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर उनको याद करना ज़रूरी है।
महान क्रांतिकारी कॉमरेड मेजर जयपाल सिंह जी को सलाम!
(लेखक दैनिक भास्कर के राजनीतिक संपादक हैं)
Population
The Kurmali village has population of 3335 of which 1762 are males while 1573 are females as per Population Census 2011.[4]
Notable persons
- Chaudhary Hari Singh Kurmali (Muzaffarnagar) was one of the founder members the All India Jat Mahasabha.
- Randhir Singh Kurmali (चौधरी रणधीर सिंह), Bharatpur was a Social worker in Rajasthan. He belonged originally to village Kurmali in Muzaffarnagar, Uttar Pradesh.[5]
References
Back to Jat Villages