Lauhitya

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Lauhitya (लौहित्य) was ancient name of the Brahmaputra River. Lauhitya was also the ancient name of eastern-most country.

Origin

Variants

History

Lauhitya Kingdom: This kingdom existed on the banks of river Brahmaputra known by the name Lauhitya during the epic-age. The Pandava Bhima visited this kingdom during his eastern military campaign to collect tribute for Yudhishthira's Rajasuya sacrifice. There is a place in Arunachal Pradesh by the name Lohit which is the remnant of the Lauhitya kingdom.

A Naga king Lohita also ruled a territory close to Kashmira. It is not known if the Nagas in Kashmir and the Kiratas in Arunachal Pradesh had any cultural link.

In Mahabharata

Lauhitya (लॊहित्य) (Tirtha) mentioned in Mahabharata (III.83.2),

Lauhitya (लौहित्य) (River) mentioned in Mahabharata (2-9-26),

Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 83 mentions names of Pilgrims. Lauhitya (लॊहित्य) (Tirtha) is mentioned in Mahabharata (III.83.2). [1]....Pulastya said, 'Arriving next at the excellent tirtha called Samvedya (संवेद्य) (III.83.1) in the evening, and touching its waters, one surely obtaineth knowledge. Created a tirtha in days of yore by Rama's energy, he that proceedeth to Lauhitya (लॊहित्य)(III.83.2) obtaineth the merit of giving away gold in abundance.


Sabha Parva, Mahabharata/Book II Chapter 9 mentions the Kings Oceans and the Rivers who attended Sabha of Varuna]]. Lauhitya (लौहित्य) (River) is mentioned in Mahabharata (2-9-26). [2].....the Sarayu, the Varavatya, and that queen of rivers the Langali, the Karatoya, the Atreyi, the Lauhitya,....

लौहित्य

लौहित्य (AS, p.825): विजयेन्द्र कुमार माथुर[3] ने लेख किया है .....लौहित्य ब्रह्मपुत्र नदी का प्राचीन नाम है। 'कालिकापुराण' के निम्न श्लोंको में 'ब्रह्मपुत्र' या 'लोहित्य' के साथ संबद्ध पौराणिक कथा का निर्देश है- 'जातसंप्रत्ययः सोऽथ तीर्थमासाद्य तं वरम्, वीथिं परशूना कृत्वा ब्रह्मपुत्रमवाहयत्। ब्रह्मकुंडात्सुतः सोऽथ कासारे लोहिताह्वये, कैलासोपत्यकायां तुत्यापतत् ब्राह्मण: सुतः। तस्य नाम विधिश्चक्रे स्वयं लोहितगंगकम् लौहित्यात्सरसो जातो लौहित्याख्यस्ततोऽभवत्। स कामरूपमखिलं पीठमाप्लाव्य वारिणा गोपयंतीर्थाणि दक्षिणं याति सागरम।'

इस उद्धरण से ज्ञात होता है कि पौराणिक अनुश्रृति के अनुसार ब्रह्मकुंड या लौहित्यसर (= मानसरोवर) से उत्पन्न होने के कारण ही इस नदी को 'ब्रह्मपुत्र' और 'लौहित्य' नामों से अभिहित किया जाता था। कैलास पर्वत की उपत्यका से निकल कर कामरूप में बहती हुई यह नदी 'दक्षिण सागर' (बंगाल की खाड़ी) में गिरती है। इसे इस उद्धरण में लोहितगंगा भी कहा गया है। इस नाम का महाभारत में भी उल्लेख है।

ब्रह्मकुंड या ब्रह्मसर मानसरोवर का ही अभिधान है। [टि. भौगोलिक तथ्य के अनुसार ब्रह्मपुत्र तिब्बत के दक्षिण-पश्चिम भाग की 'कुवी गांगरी' नामक हिमनदी से निस्सृत हुई है। प्रायः सात सौ मील तक यह नदी तिब्बत के पठार पर ही बहती है, जिसमें 100 मील तक इसका मार्ग हिमालय श्रेणी के समानांतर है। तिब्बती भाषा में इस नदी को 'लिहांग' और 'त्सांगपो' (पवित्र करने वाली) कहते हैं। इस प्रदेश में इसकी सहायक नदियां है- 'एकात्सांगयो', 'क्यीचू' (ल्हासा इसी के तट पर है),

[p.826]: 'श्यांगचू' और 'ग्यामदा'। सदिया के निकट ब्रह्मपुत्र असम में प्रवेश करती है, जहां यह गंगा में मिलती है। वहां इसे यमुना कहते हैं। इसके आगे यह 'पद्मा' नाम से प्रसिद्ध है और समुद्र में गिरने के स्थान पर इस मेघना कहते हैं। वर्तमान काल में ब्रह्मपुत्र के उदगम तक पहुंचने का श्रेय कैप्टन किंगडम वार्ड नामक यात्री को दिया जाता है। इन्होंने नदी के उद्गम क्षेत्र की यात्रा 1924 ई. में की थी।]


महाभारत में भीम की पूर्व दिशा की दिग्विजय यात्रा के संबंध में सुह्म देश के आगे लौहित्य तक पहुंचने का उल्लेख है- 'सुह्यानामधिपं चैव ये च सागरवासिन:, सर्वान् म्लेच्छगणांश्चैव विजिग्ये भरतर्षभः, एवं बहुविधान देशान् विजित्य पवनात्मजः वसुतेभ्य उपादाय लौहित्यगमद्बली।'महाभारत, सभापर्व 30, 25, 26.

महाकवि कालिदास ने 'रघुवंश'[4, 81] में रघु की दिग्विजय यात्रा के संबंध में प्राग्ज्योतिषपुर (=गोहाटी, असम) के राजा के, रघु के लौहित्य को पार कर लेने पर भयभीत होने का वर्णन किया है- 'चकम्पे तीर्णलौहित्येतस्मिन् प्राग्ज्योतिषेश्वर: तद्गजालानतां प्राप्तैः सहकालागुरुद्रुभैः।'

उपरोक्त श्लोक में लौहित्य नदी के तटवर्ती प्रदेश में कालागुरु के वृक्षों का वर्णन कालिदास ने किया है, जो बहुत समीचीन है। कभी-कभी इस नदी की उत्तरी धारा को, जो उत्तर असम में प्रवाहित है, लौहित्य और दक्षिणी धारा को, जो पूर्व बंगाल (पाकिस्तान) में बहती है, 'ब्रह्मपुत्र' कहा जाता था। बह्मपुत्र का अर्थ 'ब्रह्मसर' से और लौहित्य का अर्थ 'लोहितसर' से निकलने वाली नदी है। शायद नदी के अरुणाभ जल के कारण भी इसे लौहित्य कहा जाता था। लौहित्य नदी के तटवर्ती प्रदेश को भी लौहित्य नाम से अभिहित किया जाता था। उपर्युक्त महाभारत, सभापर्व [30, 26] में लौहित्य, नदी के प्रदेश का भी नाम हो सकता है।

लोहतगंगा

लोहतगंगा (AS, p.824): ब्रह्मपुत्र तथा लौहित्य नदी को कहा गया है, जो प्राग्ज्योतिषपुर (=गोहाटी, असम) के निकट बहती है। महाभारत, सभापर्व 38 में नरकासुर के वध के प्रसंग में इस नदी का नामोल्लेख है- 'मध्ये लोहितगंगायां भगवान देवकीसुत: औदकायां विरूपाक्षं जघान भरतर्षभ।'. [4]

शत्रुंजय पहाड़ी

विजयेन्द्र कुमार माथुर[5] ने लेख किया है ...शत्रुंजय पहाड़ी (AS, p.889): गुजरात के ऐतिहासिक नगर पालीताना के निकट पाँच पहाड़ियों में सबसे अधिक पवित्र पहाड़ी, जिस पर जैनों के प्रख्यात मन्दिर स्थित हैं। जैन ग्रन्थ 'विविध तीर्थकल्प' में शत्रुंजय के निम्न नाम दिए गए हैं–सिद्धिक्षेत्र, तीर्थराज, मरुदेव, भगीरथ, विमलाद्रि, महस्रपत्र, सहस्रकाल, तालभज, कदम्ब, शतपत्र, नगाधिराजध, अष्टोत्तरशतकूट, सहस्रपत्र, धणिक, लौहित्य, कपर्दिनिवास, सिद्धिशेखर, मुक्तिनिलय, सिद्धिपर्वत, पुंडरीक

External links

See also

References

  1. रामस्य च परसादेन तीर्थं राजन कृतं पुरा, तल लॊहित्यं समासाद्य विन्द्याद बहुसुवर्णकम (III.83.2)
  2. सरयूर्वारवत्याऽथ लाङ्गली च सरिद्वरा। 2-9-26a, करतोया तथाऽऽत्रेयी लौहित्यश्च महानदः।। 2-9-26b
  3. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.825
  4. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.824
  5. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.889-890