Padarth Singh
Padarth Singh (पदार्थसिंह) was a Jat warrior who founded new kingdom of Saharanpurin Uttar Pradesh.
इतिहास
योद्धा पदार्थसिंह - इन्होंने सहारनपुर (उ.प्र.) रियासत की स्थापना की। [1]
Dalip Singh Ahlawat writes -
जिस समय मुगलसम्राट् अकबर अपने समकालीन राजाओं को रौंदता कुचलता हुआ बढ़ता चला जा रहा था, उस समय उच्चाकांक्षाओं से प्रेरित होकर जींद राज्य में रामरायपुर ग्राम को छोड़कर कुछ काकराणावंशी जाट अपने बसरूसिंह (सुपुत्र नाहरसिंह) नेता के नेतृत्व में बहादुरगढ़ में आ बसे। यहां उन्होंने अपने प्रतिद्वन्द्वी भट्टी राजपूतों से बदला लेने के लिए शाही सेनाओं की सेवाएं स्वीकार कर लीं। दुल्हा भट्टी की कमान में लड़ने वाली राजपूत सेनाओं के साथ युद्धग्रस्त रहकर इन्होंने अपनी रणरसिकता से अपने वंश की प्रतिष्ठा को बहुत उन्नत किया। फलतः सरदार बसरूसिंह की मुगल सेना के प्रख्यात शूरवीरों में गणना की जाने लगी। “आईने अकबरी” और “जहांगीरनामे” में इनका उल्लेख आता है।
इस वीर योद्धा बसरूसिंह के चार पुत्र थे - रामसिंह, धर्मसिंह, आलमसिंह तथा पदारथसिंह। इनमें सर्वाधिक प्रतापी राय पदारथसिंह थे। इनके गौरवर्ण के तेजस्वी मुखमण्डल पर काली घनी मूंछें इतनी लम्बी थीं कि उन्हें मरोड़कर आप उन पर नारंगी रख लिया करते थे। इसीलिए उन्हें मूंछ पदारथसिंह तेगबहादुर के नाम पर भी प्रसिद्धि प्राप्त थी। ये बहादुरगढ़ से विशाल गोधन के साथ कनखल (हरिद्वार) और चण्डी से बालावाली तक के उस प्रदेश पर आकर शासक बन गए जो गंगा के दोनों ओर आज के बिजनौर और सहारनपुर जिलों में पड़ता है। इनकी गाय भैंसें नांगल के पास गंगा पार करके आज के नजीबाबाद क्षेत्र में चरने जाया करती थीं। वह स्थान “भैंस घट्टे की घटरी” के नाम पर आज भी विख्यात है। इन्हें अपने “धन” की रक्षार्थ वन के शेरों, चीतों आदि हिंसक प्राणियों का प्रायः आखेट करना होता था। राय मूँछ पदारथसिंह ने शहजादा सलीम (जहांगीर) को प्रभावित करके मित्र बना लिया और शेरों के शिकार के लिए अपने प्रदेश में आमन्त्रित किया। सलीम ने इधर आकर शेरों का शिकार खेला। उसने राय मूँछ पदारथसिंह को आखेट की सकुशल सम्पन्नता पर प्रसन्न होकर उसे तत्कालीन सूबेदार से जिला मुरादाबाद में लगने वाले परगने जलालाबाद, किरतपुर, मण्डावर के 300 गांवों पर अधिकार स्वीकार करा दिया। सन् 1603 ई० में इन्हें ‘राय’ की उपाधि खिलअत और “ता संग अज गंगा” गंगा से शिवालिक पहाड़ तक के प्रदेश पर शासक होने का ताम्रपत्र दिया गया। तब राय मूँछ पदारथसिंह ने बहादुरगढ़ से अपने परिवार को भी यहां बुला लिया। इन्होंने इधर आकर गंगा पार नांगल में एक कच्चा किला बनाया। माता सोती के नाम पर इस गांव को आबाद किया। आज भी इसे सोती की नांगल के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त है। नांगल के अतिरिक्त राय मूँछ पदारथसिंह ने एक किला कच्चा बनवाया। उसके अन्दर विशाल हवेलियां बनवायीं। उसका नाम जलालुद्दीन अकबर के नाम पर जलालाबाद रखा। अगले वर्ष 1605 ई० में इन्होंने किला स्वर्णपुर जो आज साहनपुर के रूप में प्रसिद्ध है, पर अधिकार कर लिया। इस प्राचीन किले के इनके अधिकार में आने पर ये इस क्षेत्र के दूर-दूर तक एकछत्र अधिपति के नाम पर प्रख्यात हो गए।
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-798
1628 ई० में जब शाहजहां सम्राट् बना तो उसका पुत्र दाराशिकोह बिना सूचना दिए ही साहनपुर के वनों में मृगया के लिए आ घुसा। वहां पर राय मूँछ पदारथसिंह का अकेले में दारा से सामना हो गया। हल्के से ही युद्ध में दारा सख्त घायल हो गया। जब ज्ञात हुआ कि यह “दारा” है तो उसकी गुप्त रूप से सेवा शुश्रूषा भी कराई। इस स्वास्थ्य लाभ में दारा को इधर 30-40 दिन हो गए। जब दारा स्वस्थ होकर दिल्ली जाने लगा तो राय मूँछ पदारथसिंह भी उसके सत्कारार्थ साथ गया। इसको शाहजहां ने बन्दी बना लिया। ऐसे समय एक आश्रित मिरासी निसार खां ने दिल्ली दरबार पहुंचकर अपनी बाण विद्या के चमत्कार से शाहजहां को मुग्ध कर लिया। मिरासी के कहने पर शाहजहां ने राजा राय मूँछ पदारथसिंह को बन्दीगृह से बुलवाकर तीरन्दाजी के करतब दिखाने की आज्ञा दी। उसने सात लोहे के तवे रखवाकर इतनी शक्ति से बाण मारा कि वह सातों तवे तोड़ता हुआ पीछे आम के पेड़ में जा धंसा। इस पर प्रसन्न होकर सम्राट् शाहजहां ने उसे ससम्मान मुक्त कर दिया और 300 के स्थान पर 660 गांव और राय की उपाधि देकर विदा किया। वहां से लौटकर दो वर्ष बाद 1631 ई० में आपका स्वर्गवास हो गया।
इनके बड़े भाई रामसिंह ने रम्पुर गांव बसाया जो आजकल नजीबाबाद का एक मोहल्ला है। दूसरे भाई आलमसिंह ने आलम सराय बसाई। तीसरे भाई धर्मसिंह जलालाबाद में ही आबाद रहे। इनकी ही भांति इसी परिवार का एक जत्था युवराज सलीम की कृपादृष्टि से मेरठ के मवाना क्षेत्र पर अधिकारी हो गया जहां कि वे मसूरी, दूधली, राफड़ बणा और बाद में मुजफ्फरनगर में फाईमपुर पर आज भी बड़ी सम्पन्न स्थिति में बसे हुए हैं, किन्तु इनके सर्वाधिक प्रतापी पुरुष राय मूंछ पदारथसिंह तेगबहादुर ही हुए।[2]
External links
References
- ↑ Asli Lutere Koun/Part-I,p.73
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter IX (Page 797-798)
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